विस्फोटक (चेचक) रोग तथा दैवीय कोप से रक्षा हेतु करें शीतलाष्टकम् का पाठ

विस्फोटक (चेचक) रोग तथा दैवीय कोप से रक्षा हेतु करें शीतलाष्टकम् का पाठ

।। शीतलाष्टकम् स्तोत्र ।।

यह स्तोत्र स्कन्दपुराण में वर्णित है । इस स्तोत्र में माँ शीतलादेवी के स्वरुप का विवेचन है । साधक इस स्तुति के माध्यम से बारम्बार प्रार्थना करता है की हे भगवती विस्फोटक (चेचक ) रोग से आप अपने भक्तों की रक्षा करें । हे माता शीतले ! आप जगत् की माता-पिता तथा पालनकर्त्री हो, आपको बारम्बार प्रणाम है ।  

स्तोत्र :

अस्य श्रीशीतलास्तोत्रस्य महादेव ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, शीतला देवता, लक्ष्मी बीजम्, भवानी शक्तिः, सर्व- विस्फोटकनिवृत्तये जपे विनियोगः ।

इस श्रीशीतलास्तोत्र के ऋषि महादेवजी, छन्द अनुष्टुप्, देवता शीतला माता, बीज लक्ष्मीजी तथा शक्ति भवानी देवी हैं। सभी प्रकार के विस्फोटक (चेचक आदि) के निवारण हेतु इस स्तोत्र का जप में विनियोग होता है।

ईश्वर उवाच

वन्देऽहं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बराम् । 
मार्जनीकलशोपेतां शूर्पालङ्कृतमस्तकाम् ॥१॥

ईश्वर बोले – गर्दभ पर विराजमान, दिगम्बरा, हाथ में मार्जनी (झाडू) तथा कलश धारण करने वाली, सूप से अलंकृत मस्तक वाली भगवती शीतला की मैं वन्दना करता हूँ ।

वन्देऽहं शीतलां देवीं सर्वरोगभयापहाम् । 
यामासाद्य निवर्तेत विस्फोटकभयं महत् ॥२॥

मैं सभी प्रकार के भय तथा रोगों का नाश करने वाली उन भगवती शीतला की वन्दना करता हूँ, जिनकी शरण में जाने से विस्फोटक (चेचक)-का बड़ा-से-बड़ा भय दूर हो जाता है ।

शीतले शीतले चेति यो ब्रूयाद्दाहपीडितः । 
विस्फोटकभयं घोरं क्षिप्रं तस्य प्रणश्यति ॥३॥

[चेचककी] जलन से पीड़ित जो व्यक्ति 'शीतले-शीतले'- ऐसा उच्चारण करता है, उसका भयंकर विस्फोटकरोगजनित भय शीघ्र ही नष्ट हो जाता है ।

यस्त्वामुदकमध्ये तु धृत्वा पूजयते नरः। 
विस्फोटकभयं घोरं गृहे तस्य न जायते ॥४॥

जो मनुष्य आपकी प्रतिमा को (हाथमें) लेकर जल के मध्य स्थित हो आपकी पूजा करता है, उसके घर में विस्फोटक रोग का भीषण भय नहीं उत्पन्न होता है ।

शीतले ज्वरदग्धस्य पूतिगन्धयुतस्य च ।
प्रणष्टचक्षुषः पुंसस्त्वामाहुर्जीवनौषधम् ॥५॥

हे शीतले ! ज्वर से संतप्त, मवाद के दुर्गन्ध से युक्त तथा विनष्ट नेत्र- ज्योति वाले मनुष्य के लिये आपको ही जीवनरूपी औषधि कहा गया है ।

शीतले तनुजान् रोगान्नृणां हरसि दुस्त्यजान् । 
विस्फोटकविदीर्णानां त्वमेकामृतवर्षिणी ॥६॥

हे शीतले ! मनुष्यों के शरीर में होने वाले तथा अत्यन्त कठिनाई से दूर किये जाने वाले रोगों को आप हर लेती हैं; एकमात्र आप ही विस्फोटक- रोग से विदीर्ण मनुष्यों के लिये अमृत की वर्षा करने वाली हैं ।

गलगण्डग्रहा रोगा ये चान्ये दारुणा नृणाम् । 
त्वदनुध्यानमात्रेण शीतले यान्ति संक्षयम् ॥७॥

हे शीतले ! मनुष्यों के गलगण्डग्रह आदि तथा और भी अन्य प्रकार के जो भीषण रोग हैं, वे आपके ध्यानमात्र से नष्ट हो जाते हैं ।

न मन्त्रो नौषधं तस्य पापरोगस्य विद्यते । 
त्वामेकां शीतले धात्रीं नान्यां पश्यामि देवताम् ॥८॥

उस उपद्रवकारी पाप-रोग की न कोई औषधि है और न मन्त्र ही है। हे शीतले ! एकमात्र आप जननी को छोड़कर [उस रोग से मुक्ति पाने के लिये ] मुझे कोई दूसरा देवता नहीं दिखायी देता ।

मृणालतन्तुसदृशीं नाभिहृन्मध्यसंस्थिताम् । 
यस्त्वां संचिन्तयेद्देवि तस्य मृत्युर्न जायते ॥९॥

हे देवि ! जो प्राणी मृणाल-तन्तु के समान कोमल स्वभाव वाली और नाभि तथा हृदय के मध्य विराजमान रहने वाली आप भगवती का ध्यान करता है, उसकी मृत्यु नहीं होती है ।

अष्टकं शीतलादेव्या यो नरः प्रपठेत्सदा । 
विस्फोटकभयं घोरं गृहे तस्य न जायते ॥१०॥

जो मनुष्य भगवती शीतला के इस अष्टक का नित्य पाठ करता है, उसके घर में विस्फोटक का घोर भय नहीं रहता ।

श्रोतव्यं पठितव्यं च श्रद्धाभक्तिसमन्वितैः । 
उपसर्गविनाशाय परं स्वस्त्ययनं महत् ॥११॥

मनुष्यों को विघ्न-बाधाओं के विनाश के लिये श्रद्धा तथा भक्ति से युक्त होकर इस परम कल्याणकारी स्तोत्र का पाठ और श्रवण करना चाहिये ।

शीतले त्वं जगन्माता शीतले त्वं जगत्पिता । 
शीतले त्वं जगद्धात्री शीतलायै नमो नमः ॥१२॥

हे शीतले ! आप जगत् की माता हैं, हे शीतले ! आप जगत् के पिता हैं, हे शीतले ! आप जगत्‌ का पालन करने वाली हैं, आप शीतला को बार-बार नमस्कार है ।

रासभो गर्दभश्चैव खरो वैशाखनन्दनः । 
शीतलावाहनश्चैव दूर्वाकन्दनिकृन्तनः ॥१३॥

एतानि खरनामानि शीतलाग्रे तु यः पठेत्। 
तस्य गेहे शिशूनां च शीतलारुङ् न जायते ॥१४॥

जो व्यक्ति रासभ, गर्दभ, खर, वैशाखनन्दन, शीतलावाहन, दूर्वाकन्द- निकृन्तन - [ भगवती शीतला के वाहन के इन नामों का उनके समक्ष पाठ करता है, उसके घर में बच्चों को शीतलारोग नहीं होता है ।

शीतलाष्टकमेवेदं न देयं यस्य कस्यचित् । 
दातव्यं च सदा तस्मै श्रद्धाभक्तियुताय वै ॥१५॥

इस शीतलाष्टकस्तोत्र को जिस किसी अनधिकारी को नहीं देना चाहिये अपितु भक्ति तथा श्रद्धा से सम्पन्न व्यक्ति को ही सदा यह स्तोत्र प्रदान करना चाहिये ।

॥ इस प्रकार श्रीस्कन्दमहापुराणमें वर्णित शीतलाष्टक सम्पूर्ण हुआ ॥

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