
बृहस्पति ग्रहनवग्रह शान्ति विधान | Duration : 4 Hours 45 minute
Price Range: ₹ 15000
15000
₹ 13500
पूजा विवरण
देवगुरु बृहस्पति का नवग्रहों में प्रमुख स्थान है । महाभारत के आदिपर्व के अनुसार बृहस्पति अङ्गिरा के पुत्र तथा देवताओं के पुरोहित हैं । यह सिन्धु देश के अधिपति हैं । इनका वर्ण पीत है । ये पीताम्बर धारण किए हुए हैं । कमल पर विराजमान हैं । ये चारों हाथों में क्रमशः रुद्राक्ष, वरमुद्रा, शिला और दण्ड धारण किए हुए हैं । इनके अधिदेवता ब्रह्मा हैं और प्रत्यधिदेवता इन्द्र हैं । जब राक्षस यज्ञ में विघ्न उत्पन्न करते हैं तो ऐसी परिस्थिति में देवगुरु बृहस्पति रक्षोघ्न मन्त्रों का प्रयोग करके देवताओं की रक्षा करते हैं । इन्हें देवताओं का आचार्यत्व और ग्रहत्व कैसे प्राप्त हुआ ? इसका विस्तृत वर्णन स्कन्दपुराण में प्राप्त होता है । बृहस्पति ने प्रभास तीर्थ में जाकर भगवान् शंकर की कठोर तपस्या की । इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान् शंकर ने इन्हें देवगुरु का पद तथा ग्रहत्व प्राप्त करने का वरदान दिया । श्रीमद्भागवत के अनुसार बृहस्पति एक राशि पर एक वर्ष रहते हैं । वक्रगति होने पर इसमें अन्तर आ जाता है । ऋग्वेद के अनुसार बृहस्पति अत्यन्त सुन्दर हैं । ये अपने भक्तों पर प्रसन्न होकर उन्हें सम्पत्ति तथा बुद्धि से सम्पन्न कर देते हैं तथा उन्हें सन्मार्ग पर चलाते हैं और विपत्ति में उनकी रक्षा भी करते हैं ।
शरणागतवत्सलता का गुण इनमें कूट-कूट कर भरा हुआ है । बृहस्पति धनु तथा मीन राशि के स्वामी हैं । विंशोत्तरी दशा के अनुसार इनकी महादशा सोलह वर्ष की होती है ।
Benefit
बृहस्पतिग्रह के मन्त्रजप का माहात्म्य :-
- देवगुरु बृहस्पति के द्वारा कुण्डली में विद्या, विवाह और सन्तान इत्यादि का विचार किया जाता है । व्यक्ति के विवाह में विलम्ब हो रहा हो अथवा दम्पती को सन्तान प्राप्ति नहीं हो रही हो तो उसे बृहस्पति अनुष्ठान से अवश्यमेव लाभ प्राप्त होता है ।
- विभिन्न प्रकार की परिस्थितियों में बृहस्पति अनुष्ठान करवाने से अवश्य ही लाभ प्राप्त होता है । यथा - बृहस्पतिग्रह के प्रतिकूल होने पर जातक अपने कार्यों में अथक परिश्रम करने के बाद भी आशातीत सफलता प्राप्त नहीं कर पाता । हमेशा मानसिक तनाव से ग्रस्त रहता है । जिसके कारण सटीक निर्णय लेने में असमर्थ रहता है ।
- अकारण ही लोगों से शत्रुता प्राप्त होती है, गुप्तशत्रु सक्रिय रहते हैं , जो कार्यों में अवरोध उत्पन्न करते रहते हैं तथा पारिवारिक जीवन कलहपूर्ण हो जाता है ।
- बृहस्पति अनुष्ठान करवाने से पूर्वोक्त प्रकार की बाधाओं का अवश्य ही शमन हो जाता है ।
- यदि वैवाहिक जीवन में तनाव के साथ विच्छेद तक की स्थितियां उत्पन्न हो गई हों । जातक को शारीरिक, मानसिक, पारिवारिक, आर्थिक, सामाजिक तथा व्यावसायिक इत्यादि क्षेत्रों में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा हो तो वैदिक ब्राह्मणों के द्वारा शास्त्रोक्त विधिपूर्वक बृहस्पति अनुष्ठान सम्पन्न कराना चाहिए । इससे अवश्य ही समस्त प्रकार की बाधाएं नष्ट हो जाती हैं तथा जीवन में सुख समृद्धि की वृद्धि होती है ।
- व्यवसाय में अकल्पनीय लाभ प्राप्त होता है और समाज में पद-प्रतिष्ठा तथा यश में वृद्धि होती है ।
- शास्त्रों में बृहस्पति ग्रह की जपसंख्या 19000 बताई गई है ।
- बृहस्पति की अनुकूलता प्राप्त करने के लिए बृहस्पतिवार का व्रत तथा पीला पुखराज धारण करना चाहिए ।
- पीली दालें, पीले वस्त्र, धार्मिक ग्रन्थों का दान करने से बृहस्पति की अनुकूलता प्राप्त होती है ।
- मंत्र जप करने या कराने से पूर्व किसी कुंडली विशेषज्ञ को कुंडली जरूर दिखाएं।
Process
बृहस्पति ग्रह में होने वाले प्रयोग या विधि :-
- स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
- प्रतिज्ञा-सङ्कल्प
- गणपति गौरी पूजन
- कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
- पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
- षोडशमातृका पूजन
- सप्तघृतमातृका पूजन
- आयुष्यमन्त्रपाठ
- सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध (आभ्युदयिकश्राद्ध)
- नवग्रह मण्डल पूजन
- अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
- पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं पूजन
- रक्षाविधान, प्रधान देवता पूजन
- मन्त्रजप विधान
- विनियोग,करन्यास, हृदयादिन्यास
- ध्यानम्, स्तोत्र पाठ
- पंचभूसंस्कार, अग्नि स्थापन, ब्रह्मा वरण, कुशकण्डिका
- आधार-आज्यभागसंज्ञक हवन
- घृताहुति, मूलमन्त्र आहुति, चरुहोम
- भूरादि नौ आहुति स्विष्टकृत आहुति, पवित्रप्रतिपत्ति
- संस्रवप्राश , मार्जन, पूर्णपात्र दान
- प्रणीता विमोक, मार्जन, बर्हिहोम
- पूर्णाहुति, आरती, विसर्जन
Puja samagri :-
वैकुण्ठ के द्वारा दी जाने वाली पूजन सामग्री:-
- रोली, कलावा
- सिन्दूर, लवङ्ग
- इलाइची, सुपारी
- हल्दी, अबीर
- गुलाल, अभ्रक
- गङ्गाजल, गुलाबजल
- इत्र, शहद
- धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई
- यज्ञोपवीत, पीला सरसों
- देशी घी, कपूर
- माचिस, जौ
- दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा
- सफेद चन्दन, लाल चन्दन
- अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला
- चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का
- पानी वाला नारियल, सप्तमृत्तिका
- सप्तधान्य, सर्वोषधि
- पञ्चरत्न, मिश्री
- पीला कपड़ा सूती, तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित
- पंचगव्य गोघृत, गोमूत्र
हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र :-
- काला तिल
- जौ,चावल
- कमलगट्टा, पंचमेवा
- हवन सामग्री, घी,गुग्गुल
- गुड़ (बूरा या शक्कर) ,गड़ी गोला
- पान पत्ता, बलिदान हेतु पापड़
- काला उडद
- पूर्णपात्र -कटोरी या भगोनी
- प्रोक्षणी, प्रणीता, स्रुवा, शुचि, स्फय - एक सेट
- हवन कुण्ड ताम्र का 10/10 इंच या 12/12 इंच
- कलश रखने के लिए मिट्टी का पात्र
- पिसा हुआ चन्दन
- नवग्रह समिधा
- हवन समिधा
- घृत पात्र
- कुशा
- पंच पात्र
यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-
- वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का - 1
- गाय का दूध - 100ML
- दही - 50ML
- मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार
- फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
- दूर्वादल (घास ) - 1मुठ
- पान का पत्ता - 11
- पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg
- पुष्पमाला - 7 ( विभिन्न प्रकार का)
- आम का पल्लव - 2
- विल्वपत्र - 21
- तुलसी पत्र -7
- शमी पत्र एवं पुष्प
- थाली - 2, कटोरी - 5, लोटा - 2, चम्मच - 2 आदि
- अखण्ड दीपक -1
- देवताओं के लिए वस्त्र - गमछा, धोती आदि
- बैठने हेतु दरी,चादर,आसन
- गोदुग्ध,गोदधि,गोबर