
गर्भाधान संस्कारसंस्कार | Duration : 4 Hours
Price Range: ₹ 12000
12000
₹ 10800
पूजा विवरण
गर्भ+आधान। आधान का अर्थ है स्थापित करना। अर्थात् पुरुष के द्वारा स्त्री के क्षेत्र में तेज (शुक्र)को स्थापित करना गर्भाधान प्रक्रिया है। किंतु इस क्रिया को धार्मिक एवं यज्ञ रूप बनाना अर्थात् उसे संस्कृत करना संस्कार का कार्य है। ऋषियों ने पाशविक प्रवृत्तियों पर अंकुश लगाने के लिए संस्कारों का विधान किया, ताकि स्वेच्छाचार एवं कामाचार पर नियंत्रण हो और सुसंस्कृत माता-पिता द्वारा उत्पन्न सन्तति आध्यात्मिक भावना से संपन्न हो। जैसे मन और बुद्धि की शुद्धि के लिए भक्ति साधन है ,वैसे ही शरीर एवं बाह्य करणों की शुद्धि, संस्कारों से होती है। गर्भाधानादि संस्कारों का पूर्ण प्रभाव संतान के मन,बुद्धि,चित्त तथा हृदय पर पडता है।
गर्भाधान संस्कार का उत्तम समय :-
गर्भाधान संस्कार के लिए माता-पिता का सदाचार संपन्न होना, ऋतु काल का होना, ऋतु काल में भी निषिद्ध तिथियों, नक्षत्रों,पर्वो तथा योगो का परिहार करना ,सहवास से पूर्व शास्त्रीय विधि से देवपूजा तथा वैदिक मंत्रों का पाठ कराना ,धार्मिक भावना से युक्त संतति की कामना,तथा सन्तानोपत्ति के लिए सहवास करना ।
संतानोत्पत्ति एक विज्ञान तथा अनुष्ठान है, जब पति-पत्नी दोनों संतान उत्पत्ति के योग्य और स्वस्थ हो, संतान उत्पन्न करने की प्रबल इच्छा हो ,देव पूजन एवं मंत्रों द्वारा उत्तम वातावरण उपस्थित हो , उस समय वह संसर्ग, यज्ञ का स्वरूप धारण कर लेता है और वह संतति पित्रृऋण से मुक्त कराती है।
Benefit
शास्त्रसम्मत गर्भाधान का माहात्म्य
- सर्वोत्तम संतति (संतान) की प्राप्ति होता है।
- माता-पिता तथा गुरु आज्ञाओ का पालन संतान होता है।
- भगवद्भक्त होने के साथ सर्वगुण संपन्न संतति की प्राप्ति होती है ।
- उत्तम विचार, पावन चरित्र एवं निश्छल मानसिकता वाली संतान की प्राप्ति।
- विदुषी कन्या एवं विद्वान् पुत्र की प्राप्ति होती है।
- शास्त्रविधि से संस्कार करने या कराने से असंख्य लाभ प्राप्त होते हैं।
Process
गर्भाधान संस्कार में होने वाले प्रयोग या विधि-
- स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
- प्रतिज्ञा सङ्कल्प
- गणपति गौरी पूजन
- कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
- पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
- षोडशमातृका पूजन
- सप्तघृतमातृका पूजन
- आयुष्यमन्त्रपाठ
- सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध (आभ्युदयिकश्राद्ध)
- नवग्रह मण्डल पूजन
- अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
- पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं पूजन
- रक्षाविधान आदि।
Puja samagri :-
वैकुण्ठ के द्वारा दी जाने वाली पूजन सामग्री-
- रोली, कलावा
- सिन्दूर, लवङ्ग
- इलाइची, सुपारी
- हल्दी, अबीर
- गुलाल, अभ्रक
- गङ्गाजल, गुलाबजल
- इत्र, शहद
- धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई
- यज्ञोपवीत, पीला सरसों
- देशी घी, कपूर
- माचिस, जौ
- दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा
- सफेद चन्दन, लाल चन्दन
- अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला
- चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का
- पानी वाला नारियल, सप्तमृत्तिका
- सप्तधान्य, सर्वोषधि
- पञ्चरत्न, मिश्री
- पीला कपड़ा सूती, तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित
- पंचगव्य गोघृत, गोमूत्र
यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-
- वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का - 1
- पीला कपड़ा सूती - 2meter
- गाय का दूध - 100ML
- दही - 50ML
- मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार
- फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
- दूर्वादल - 1मुठ
- पान का पत्ता - 11
- पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg
- पुष्पमाला - 7 ( विभिन्न प्रकार का)
- आम का पल्लव - 2
- तुलसी पत्र -7
- थाली - 2
- कटोरी - 5
- लोटा - 2
- चम्मच - 2
- तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित -1
- अखण्ड दीपक -1
- देवताओं के लिए वस्त्र
- बैठाने हेतु दरी,चादर,आसन
- पंचगव्य गोघृत,गोदुग्ध,गोदधि,गोमूत्र,गोबर