
कर्णवेध संस्कारसंस्कार | Duration : 3 Hours 30 minute
Price Range: ₹ 12000
12000
₹ 10800
पूजा विवरण
जिस संस्कार में विधिपूर्वक सर्वप्रथम बालक का दाहिना एवं बालिका के बाएं कान का छेदन किया जाता है।उसे कर्णवेध संस्कार कहते हैं। चूड़ाकरण के पश्चात् कर्णवेध संस्कार किया जाता है, यह जातक का तीसरे अथवा पांचवें वर्ष में संपन्न होता है। दीर्घायु एवं श्री (लक्ष्मी)की वृद्धि के लिए यह संस्कार शास्त्रों में उल्लिखित है। इस संस्कार से बालक के मूत्रद्वार एवं अंडकोष से संबंधित रोग नहीं होते हैं। इन्द्रिय संयम के लिए भी कर्णवेध संस्कार का महान उपयोग है। बालक का दोनों कान एवं कन्या की नाक और कान छेदने का विधान है।कानों में स्वर्ण का स्पर्श निरन्तर रहे यह शास्त्रीय नियम है। बालक के कर्ण छिद्र में सूर्य किरण प्रवेश हो जाए तथा कन्या के कान में आभूषण पहनने योग्य छिद्र करना चाहिए। कर्णवेध अनिष्ट कारक बालग्रहों से बालक एवं बालिका की रक्षा करता है। कर्णवेध संस्कार पूर्णतः शास्त्रीय संस्कार है। भारत में विभिन्न प्रांतों की जनजातियां कर्णवेध के महत्व को समझते हुए और अपनी परम्पराओं की रक्षा हेतु कर्ण छेदन कराती है। नाथ संप्रदाय में भी कर्ण छेदन का अत्यंत महत्त्व है।
Benefit
कर्णवेध संस्कार का माहात्म्य:-
- आचार्य सुश्रुत लिखते हैं- "रक्षाभूषणनिमित्तं बालस्य कर्णौ विध्येते" अर्थात् बालक या बालिका का कर्णछेदन के दो प्रमुख उद्देश्य हैं। सर्व प्रकार से बालक या बालिका की रक्षा तथा दोनों के कानों में छिद्र आभूषण के लिए , जिसको धारण कर सुंदर लगे।
- आचार्य चक्रपाणि ने कहा है- कर्णव्यधे कृते बालो न ग्रहैरभिभूयते।
भूष्यतेऽस्य मुखं तस्मात् कार्यस्तत् कर्णयोर्व्यध: ।।
- अर्थात् कर्णवेध संस्कार से शनि राहु आदि अनिष्ट कारक ग्रहों का जीवन में दुष्प्रभाव नहीं होता।
- अनेक व्यक्तियों का अनुभव है कि कर्णच्छेद से कोई ऐसी नस विध जाती है ,जिसका सम्बन्ध आन्त्र से है,इस नस के छेद जाने से आन्त्रवृद्धि (हर्निया)नहीं होती है।
- कर्णवेध संस्कार के द्वारा बालक या बालिका की असाध्य रोगों से रक्षा होती है ।
- कर्णवेध संस्कार से पेट सम्बन्धी जटिल रोग उत्पन्न नहीं होते हैं।
Process
कर्णवेध संस्कार में होने वाले प्रयोग या विधि-
- स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
- प्रतिज्ञा सङ्कल्प
- गणपति गौरी पूजन
- कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
- पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
- षोडशमातृका पूजन
- सप्तघृतमातृका पूजन
- आयुष्यमन्त्रपाठ
- सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध (आभ्युदयिकश्राद्ध)
- नवग्रह मण्डल पूजन
- अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
- पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं पूजन
- रक्षाविधान आदि
- प्रतिष्ठा
- एकादश देवों का आवाहन एवं पूजन
- कुल देवता, वैद्य, ब्राह्मणों तथा कर्णच्छेदन कर्ता का अभिवादन
- बालक के दहिने कान अभिमन्त्रण
- बालक के बायें कान का अभिमन्त्रण
- कानों का वेधन
- कन्या के बायें कान का अभिमन्त्रण
- कन्या के दाहिने कान का अभिमन्त्रण
- कानों का छेदन
- कन्या का नासिकाच्छेदन
- दक्षिणा ब्रह्मणभोजनसङ्कल्प
- विसर्जन
- भगवद्स्मरण
Puja samagri :-
वैकुण्ठ के द्वारा दी जाने वाली पूजन सामग्री
- रोली, कलावा
- सिन्दूर, लवङ्ग
- इलाइची, सुपारी
- हल्दी, अबीर
- गुलाल, अभ्रक
- गङ्गाजल, गुलाबजल
- इत्र, शहद
- धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई
- यज्ञोपवीत, पीला सरसों
- देशी घी, कपूर
- माचिस, जौ
- दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा
- सफेद चन्दन, लाल चन्दन
- अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला
- चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का
- पानी वाला नारियल, सप्तमृत्तिका
- सप्तधान्य, सर्वोषधि
- पञ्चरत्न, मिश्री
- पीला कपड़ा सूती, तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित
- पंचगव्य गोघृत, गोमूत्र
यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-
- वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का - 1
- गाय का दूध - 100ML
- दही - 50ML
- मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार
- फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
- दूर्वादल (घास ) - 1मुठ
- पान का पत्ता - 11
- पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg
- पुष्पमाला - 7 ( विभिन्न प्रकार का)
- आम का पल्लव - 2
- विल्वपत्र - 21
- तुलसी पत्र -7
- शमी पत्र एवं पुष्प
- थाली - 2 , कटोरी - 5 ,लोटा - 2 , चम्मच - 2 आदि
- अखण्ड दीपक -1
- देवताओं के लिए वस्त्र - गमछा , धोती आदि
- बैठने हेतु दरी,चादर,आसन
- गोदुग्ध,गोदधि,गोबर