
महामृत्युञ्जय जपजाप | Duration : 7 Day
Price Range: ₹ 21000
21000
₹ 18900
पूजा विवरण
नाम ही नामी के गुण एवं धर्मों की अभिव्यक्ति करता है । मृत्युञ्जय अर्थात् मृत्यु के साथ ही मृत्यु सदृश असह्य पीड़ा, त्रिविध दुःख, असाध्यरोग, अविद्यादि पञ्चक्लेश, व्याधित्यानादि अन्तराय क्लेश, अविवेक, अज्ञान, पराभव आदि कष्टों से निवृत्ति ही भगवान् महामृत्युञ्जय नाम का अभिप्राय अथवा फल है । अन्य मन्त्रों की अपेक्षा महामृत्युञ्जय मन्त्र जगत् में विशेष प्रसिद्धि को प्राप्त किया । इस मन्त्र का शीघ्र प्रभाव ही मन्त्र की प्रसिद्धि का मूल कारण है । भगवान् मृत्युञ्जय त्र्यम्बक अष्ट भुजाओं से सुशोभित हैं । भगवान् के एक हाथ में अक्षमाला ( रुद्राक्षमाला ), दूसरे में मृगीमुद्रा है । दो हाथों में अमृत कलश तथा अमृत द्वारा अपने मस्तक को आप्लावित कर रहे हैं । अन्य दो हाथों से दो अमृत पूर्ण कलश पकड़े हुए हैं । दो हाथ अपने अङ्ग पर तथा अमृत पूर्ण घट से युक्त हैं । मुकुट पर बालचन्द्र मुखमण्डल पर त्रिनेत्र तथा भगवान् मृत्युञ्जय कैलाश पर्वत पर विराजमान हैं । महामृत्युञ्जय जप एवं अनुष्ठान को शिवपुराण एवं अन्य पुराणों में महत्वपूर्ण एवं श्रेष्ठतम बताया गया है । इस मन्त्र में अकालमृत्यु को भी जीतने का सामर्थ्य है । जिस व्यक्ति के जीवन में अकालमृत्यु एवं बालहानि योग हो तो उसके लिए महामृत्युञ्जय विद्या का अनुष्ठान सर्वोत्तम है ।
वैदिक उल्लेख एवं पौराणिक कथा
महामृत्युञ्जय मन्त्र का उल्लेख ऋग्वेद से लेकर यजुर्वेद तक में मिलता है । ऋषि-मुनियों ने महामृत्युञ्जय मन्त्र को वेद का हृदय कहा है । चिन्तन तथा ध्यान के लिए प्रयोग किये जाने वाले अनेक मन्त्रों में गायत्री मन्त्र के साथ इस महामृत्युञ्जय मन्त्र का सर्वोच्च स्थान है । इस मन्त्र के प्रसङ्ग में शिवपुराण में कथा इस प्रकार है । मृकण्ड ऋषि के कठोर तपस्या करने पर भगवान् शिव के वरदान से पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई । उस अल्पायु मृकण्ड पुत्र ने महामृत्युञ्जय मन्त्र के प्रभाव से यमराज को भी पराजित कर दिया और भगवान् मृत्युञ्जय महादेव के आशीर्वाद से चिरञ्जीवी हुए । रुद्रसंहिता के सतीखण्ड में उल्लेख मिलता है कि महर्षि दधीचि भी शुक्राचार्यजी के द्वारा इस मन्त्र के प्रभाव से सकुशल पुनर्जीवित हुए थे । इस मन्त्र के प्रभाव से बृहस्पति के पुत्र कच भी जीवित हो उठे थे ।
Benefit
महामृत्युञ्जय अनुष्ठान से लाभ :-
- शास्त्रों में वर्णन है कि महामृत्युञ्जय चमत्कारी एवं अत्यन्त शक्तिशाली मन्त्र है । जीवन में अनेक प्रकार की समस्याओं को हल करने में यह सहायक है । यह मन्त्र ग्रहों की शान्ति में भी अहम् भूमिका निभाता है । इस मन्त्र को मृतसंजीवनी के नाम से भी जाना जाता है ।
- श्रीमहामृत्युञ्जय मन्त्र जप का अचिन्त्य प्रभाव पुराणों में प्रदर्शित है । मृत्युञ्जय मन्त्र के प्रभाव से कुण्डली में चतुर्थ, अष्टम् , द्वादश स्थान पर यदि कोई अनिष्टकारी ग्रह उपस्थित है या अपने दुष्प्रभाव से जातक का अनिष्ट कर रहा है तो इस मन्त्रजप से अनिष्ट शान्त हो जाता है ।
- आयुर्वेद में मन्त्र थेरेपी विशेष रूप से वर्णित है । कहा जाता है कि जब चिकित्सा की सभी पद्धतियाँ असफल हो जाती हैं तब मन्त्र थैरेपी से मरणासन्न रोगी को भी बचाया जा सकता है । मान्यता है कि इस महामृत्युञ्जय मन्त्र के द्वारा असाध्य रोगों की चिकित्सा सम्भव हैं । इस मन्त्र के प्रभाव से काल के हाथ से भी व्यक्ति को खींचकर लाया जा सकता है ।
- हम शिवपुराण में उल्लेख हैं कि इस मन्त्र का जप जिस भावना से किया जाये उन सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाला यह कामधुक् मन्त्र है । इस महामन्त्र के प्रभाव से महामृत्युञ्जय भगवान् शिव मनुष्य के समस्त प्रकार के दुःख, दारिद्र्य, कष्ट तथा अहंकार का हरण कर लेते हैं ।
- जो व्यक्ति इस महामन्त्र का जप विपत्ति के समय करते या कराते हैं । उन्हें इस मन्त्र के प्रभाव से आयुवृद्धि, रोगों से मुक्ति एवं समस्त प्रकार के भयों से मुक्ति मिलती है तथा यह मन्त्र एक दिव्य ऊर्जा के कवच के समान सुरक्षा प्रदान करता है ।
- हीन शक्तियाँ दो प्रकार की होती हैं। एक वह जो मनुष्य अपने अन्तर्मन की विचारधाराओं द्वारा निर्मित करता है। दूसरी हीन शक्ति दूसरों के द्वारा निर्मित की जाती है । महामृत्युञ्जय मन्त्र अपने ध्वनि के प्रभाव से इस प्रकार की समस्त नकारात्मताओं को पूर्णतया नष्ट कर देता है ।
- मृत्युतुल्य कष्ट अथवा अकालमृत्यु के योग की भी नष्ट करने की क्षमता एक मात्र महामृत्युञ्जय मन्त्र में है । राजसत्ता से दण्ड प्राप्ति का भय हो, शत्रुओं से भय हो अथवा मानसिक कष्ट या तनाव हो तथा कोई व्यक्ति मरणासन्न अवस्था में पहुँच गया हो इस प्रकार की समस्त विपत्तियों को महामृत्युञ्जय मन्त्र के प्रभाव से नष्ट किया जा सकता है । धनसम्पत्ति विवाद, भूमि विवाद या सफलता प्राप्ति के लिए भी इस मन्त्र का अनुष्ठान करवाना चाहिए । शिवपुराण के अनुसार ग्रह दोष, एवं किसी भी प्रकार के तन्त्र-मन्त्र, जादू तथा नकारात्मकता को महामृत्युञ्जय अनुष्ठान के माध्यम से दूर किया जा सकता है।
महामृत्युञ्जय मन्त्र एवं विधि
ॐ हौं ॐ जूं सः भूर्भुवः स्वः त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् । भूर्भुवः स्वरों जूं स: हौं ॐ
इस मन्त्र की जप संख्या सवा लाख बतायी गयी है । इस महामृत्युञ्जय अनुष्ठान में भगवान् महामृत्युञ्जय शिव की पूजा-अर्चना, मन्त्र जप तथा बाद में सम्पूर्ण मन्त्रजप का दशांश होम एवं तर्पण तथा मार्जन का विधान है । इस मन्त्र का जप रुद्राक्ष की माला तथा ऊनी आसन पर बैठकर किया जाता है
इस अनुष्ठान को वेदज्ञ विद्वान् ब्राह्मणों के द्वारा शास्त्रीय विधि-विधान से शुभ मुहूर्त में सम्पन्न कराना चाहिए तथा यथासामर्थ्य ब्राह्मणों को विविध प्रकार से प्रसन्न करना चाहिए
इस अनुष्ठान को शास्त्रोक्त विधि से कराया जाये तो यह सम्पूर्ण मनोरथों को पूर्ण करने वाला है ।
Process
महामृत्युञ्जय जाप में होने वाले प्रयोग या विधि :-
- स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
- प्रतिज्ञा-सङ्कल्प
- गणपति गौरी पूजन
- कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
- पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
- षोडशमातृका पूजन
- सप्तघृतमातृका पूजन
- आयुष्यमन्त्रपाठ
- सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध (आभ्युदयिकश्राद्ध)
- नवग्रह मण्डल पूजन
- अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
- पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं पूजन
- रक्षाविधान, प्रधान देवता पूजन
- मन्त्रजप विधान
- विनियोग,करन्यास, हृदयादिन्यास
- ध्यानम्, स्तोत्र पाठ
- पंचभूसंस्कार, अग्नि स्थापन, ब्रह्मा वरण, कुशकण्डिका
- आधार-आज्यभागसंज्ञक हवन
- घृताहुति, मूलमन्त्र आहुति, चरुहोम
- भूरादि नौ आहुति स्विष्टकृत आहुति, पवित्रप्रतिपत्ति
- संस्रवप्राश , मार्जन, पूर्णपात्र दान
- प्रणीता विमोक, मार्जन, बर्हिहोम
- पूर्णाहुति, आरती, विसर्जन
Puja samagri :-
वैकुण्ठ के द्वारा दी जाने वाली पूजन सामग्री:-
- रोली, कलावा
- सिन्दूर, लवङ्ग
- इलाइची, सुपारी
- हल्दी, अबीर
- गुलाल, अभ्रक
- गङ्गाजल, गुलाबजल
- इत्र, शहद
- धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई
- यज्ञोपवीत, पीला सरसों
- देशी घी, कपूर
- माचिस, जौ
- दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा
- सफेद चन्दन, लाल चन्दन
- अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला
- चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का
- पानी वाला नारियल, सप्तमृत्तिका
- सप्तधान्य, सर्वोषधि
- पञ्चरत्न, मिश्री
- पीला कपड़ा सूती, तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित
- पंचगव्य गोघृत, गोमूत्र
हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र :-
- काला तिल
- जौ,चावल
- कमलगट्टा, पंचमेवा
- हवन सामग्री, घी,गुग्गुल
- गुड़ (बूरा या शक्कर) ,गड़ी गोला
- पान पत्ता, बलिदान हेतु पापड़
- काला उडद
- पूर्णपात्र -कटोरी या भगोनी
- प्रोक्षणी, प्रणीता, स्रुवा, शुचि, स्फय - एक सेट
- हवन कुण्ड ताम्र का 10/10 इंच या 12/12 इंच
- कलश रखने के लिए मिट्टी का पात्र
- पिसा हुआ चन्दन
- नवग्रह समिधा
- हवन समिधा
- घृत पात्र
- कुशा
- पंच पात्र
यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-
- वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का - 1
- गाय का दूध - 100ML
- दही - 50ML
- मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार
- फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
- दूर्वादल (घास ) - 1मुठ
- पान का पत्ता - 11
- पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg
- पुष्पमाला - 7 ( विभिन्न प्रकार का)
- आम का पल्लव - 2
- विल्वपत्र - 21
- तुलसी पत्र -7
- शमी पत्र एवं पुष्प
- थाली - 2, कटोरी - 5, लोटा - 2, चम्मच - 2 आदि
- अखण्ड दीपक -1
- देवताओं के लिए वस्त्र - गमछा, धोती आदि
- बैठने हेतु दरी,चादर,आसन
- गोदुग्ध,गोदधि,गोबर