पितृदोष निवारणार्थ तर्पण

पितृदोष निवारणार्थ तर्पणपितृदोष निवारणार्थ तर्पण | Duration : 3 Hours 30 minute

Price Range: 2100

2100 ₹ 1890

पूजा विवरण

   जन्म-जन्मान्तर के उपार्जित प्रारब्ध के अनुसार मनुष्य जन्म लेता है । कर्मानुसार उसकी मृत्युपर्यन्त कई तरह के ऋण, जन्म जन्मान्तर के पाप और पुण्य उसका पीछा करते रहते हैं । क्योंकि कहा जाता है - ( पूर्वजन्मकृतं कर्म अग्रे अग्रे धावति )   शास्त्रों में कहा गया है कि तीन प्रकार के ऋण को चुका देने से मनुष्य को बहुत से पाप और सङ्कटों से छुटकारा मिल जाता है । हालांकि जो लोग इसमें विश्वास नहीं करते उनको भी जीवन के किसी मोड़ पर इसका भुगतान करना ही होता है । आखिर ये ऋण कौन से हैं ? और कैसे उतरेंगे ? यह जानना बहुत जरूरी है ।
ये तीन ऋण हैं:- 

  1.  देव ऋण
  2.   ऋषि ऋण
  3.  पितृ ऋण 

देव ऋण- : यह ऋण उत्तम चरित्र रखते हुए दान और यज्ञ, देवपूजन करने से चुकता होता है । जो लोग धर्म का अपमान करते हैं या धर्म के बारे में भ्रम फैलाते या वेदों के विरुद्ध कार्य करते हैं, उनके ऊपर यह ऋण दुष्प्रभाव डालने वाला सिद्ध होता है । उत्तम और सात्विक भोजन करें । धर्म का प्रचार-प्रसार करें या धर्म के लिए दान करें । देवी-देवताओं आदि का सम्मान और उन्हें श्रद्धापूर्वक नमन करें ।
ऋषि ऋण :- वेद, उपनिषद् और गीता आदि पढ़कर उसके ज्ञान को सभी में बांटने से ही यह ऋण चुकता हो सकता है । जो व्यक्ति ऐसा नहीं करता है उससे  ऋषिगण सदा अप्रसन्न ही रहते हैं । इससे व्यक्ति का जीवन घोर सङ्कट में घिरता जाता है ।
पितृ ऋण :- इस ऋण को उतारने के उपाय- देश के धर्मानुसार कुल परम्परा का पालन करना, पितृपक्ष में तर्पण और श्राद्धकर्म करना और सन्तान उत्पन्न करके उसमें धार्मिक संस्कार डालना । इसीलिए प्रत्येक मानव को इन तीनों ऋणों से मुक्ति के शास्त्रों में जो उपाय बतायें हैं । उन उपायों के माध्यम से  उऋण होने का यत्न करना चाहिए । शास्त्रों में तर्पण का बहुत अधिक महत्व बताया गया है । इसीलिए प्रत्येक मानव को इन तीनों ऋणों से मुक्ति के लिए शास्त्रों में जो उपाय बतायें हैं । उन उपायों के माध्यम से  उऋण होने का यत्न करना चाहिए । शास्त्रों में तर्पण का बहुत अधिक महत्व बताया गया है ।

     एकैकस्य तिलैर्मिश्रांस्त्रींस्त्रीन् दद्याज्जलाञ्जलिम् ।
     यावज्जीवकृतं पापं तत्क्षणादेव नश्यति " ।।

एक-एक पितर को तिलमिश्रित जल की तीन-तीन अञ्जलि प्रदान करें । इस प्रकार तर्पण करने से जन्म से लेकर तर्पण के दिन तक किये  गये पाप उसी समय नष्ट हो जाते हैं । जो लोग तर्पण नहीं करते ब्रह्मादिदेव और पितृगण तर्पण न करने वाले मनुष्य के शरीर का रक्तपान करते हैं । "अतर्पिता: शरीरात् रुधिरं पिबन्ति" ।  इसीलिए प्रत्येक गृहस्थ मानव को प्रतिदिन तर्पण अवश्य करना चाहिए । पितृपक्ष में या अमावस्या के दिन अथवा जब भी श्रद्धा हो, या फिर घर में कोई माङ्गलिक कार्य हो । तब पितृतर्पण एवं श्राद्ध आदि करने का विधान  है । इस शुभ अवसर पर लोग अपने पितरों की आत्मा की शान्ति के लिए श्राद्ध और तर्पण करते हैं । शास्त्रों के अनुसार विधिपूर्वक ऐसा करने से पूर्वज अपने वंशजों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करते हैं ।  इस दिन पितरों की आत्मा की शान्ति के लिए उपवास करें । सनातनधर्म में शास्त्रों के अनुसार घर के मुखिया या प्रथमपुरुष अपने पितरों का श्राद्धकर्म तथा तर्पण कर सकता है । अगर मुखिया नहीं है, तो घर का कोई अन्यपुरुष अपने पितरों को तर्पण के माध्यम से जल प्रदान कर सकता है । पितरों का श्राद्ध, तर्पण भूलकर भी शाम या रात के समय नहीं करना चाहिए । पितरों का तर्पण अथवा श्राद्धकर्म मध्यान्हकाल में करने का विधान है । शास्त्रों के अनुसार पितरों की प्रसन्नता के लिए कभी भी श्राद्धकर्म और तर्पण दूसरों की भूमि पर नहीं करना चाहिए । यदि किसी के पास स्वयं का मकान न हो तो वह मंदिर, तीर्थस्थान अथवा किसी नदी के किनारे आदि पर जाकर श्राद्धकर्म या तर्पण कर सकता है । क्योंकि इस पर किसी का अधिकार नहीं होता है । यदि सम्भव हो तो पितृपक्ष में, अमावस्या के दिन, अथवा जिस दिन तर्पण या श्राद्धकर्म करना हो उस दिन विशेषकर  बाल और दाढ़ी नहीं कटवाना चाहिए तथा विशेषरूप से लहसुन, प्याज से बना भोजन नहीं करना चाहिए । ऐसा करने से धन की हानि होती है तथा पितृदेवता क्रोधित होकर श्राप देकर उस स्थान से चले जाते हैं तथा समस्त क्रियाएं निष्फल हो जाती हैं ।

तर्पण न करने से हानि :-

  1. जिस किसी परिवार में पितरों के निमित्त पितृकर्म ( तर्पण, श्राद्धकर्म तथा पिण्डदान ) नहीं होते, वह घर श्मशान तुल्य हो जाता है । 
  2. उस परिवार के दिवङ्गत पूर्वज वहाँ निवास करने वाले परिवार के सदस्यों को श्राप देते हैं । जिससे परिवार के सभी सदस्यों का जीवन दु:खमय होने लगता है ।
  3. फिर उस घर में पितृदोष लगता है ।जिसके कारण परिवार में अशान्ति एवं परस्पर कलह होता रहता है ।*
  4.  घर की उन्नति अवरुद्ध हो जाती है । साथ ही विवाह सम्बन्धी और सन्तान से सम्बन्धित समस्यायें बढ़ती चली जाती हैं । 
  5. उस घर के सदस्यों पर कलङ्क लगने का भय रहता है और अन्य लोगों के द्वारा उनको आदर-सत्कार प्राप्त नहीं होता । 
  6. यदि सन्तान होती भी हैं तो वे कुसंस्कार से युक्त होती हैं । 
  7. जिनके पितर नाराज हो जाते हैं उनके जीवन में विभिन्न प्रकार की समस्यायें आनी प्रारम्भ हो जाती हैं ।
  8. इसीलिए हमें जब कभी अवसर प्राप्त हो तभी वैदिक विधिपूर्वक ब्राह्मणों के द्वारा तर्पण, श्राद्धकर्म करवाने चाहिए ।
  9. तर्पण के पश्चात् ब्राह्मणों को दान दक्षिणा इत्यादि से प्रसन्न करना चाहिए ।

Benefit

पितृदोष निवारणार्थ तर्पण से लाभ :- 

 

  1. पितृतर्पण से हमारे पितृदेवता प्रसन्न होते है । जिससे हमारे जीवन की उन्नति में आ रही शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तथा आर्थिक बाधायें नष्ट होती है ।
  2. तर्पण करने से पितृदेवताओं की प्रसन्नता के द्वारा समाज में यश बढ़ता है और पद-प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है ।
  3. पितरों के आशीर्वाद से नौकरी में, व्यापार में, वैवाहिक जीवन में, सन्तान उत्पत्ति में आ रही समस्याओं से छुटकारा मिलता है तथा वैवाहिक जीवन खुशहाल होता है ।
  4. तर्पण करने या करवाने से परिवार में शान्ति और सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है ।
  5. तर्पण के शुभ प्रभाव से घर परिवार में, व्यापार में, समाज में, परिवार के सदस्यों को सम्मान प्राप्त होता है ।  इसीलिए हमें जब अवसर प्राप्त हो तब शास्त्रीय विधि से वैदिक ब्राह्मणों को सम्मानपूर्वक बुलवाकर पितरों की प्रसन्नता हेतु तर्पण, श्राद्धकर्म एवं अन्य पितृकर्म करवाने चाहिए ।

Process

पितृदोष निवारणार्थ तर्पण होने वाले प्रयोग  या विधि :-

  1. गंगा आदि सप्त नदियों तथा तीर्थों का आवाहन
  2. आचमन 
  3.  शिखा बन्धन
  4.  पवित्रीधारण,पवित्रीकरण
  5.  तर्पण संकल्प 
  6. देवादि आवाहन
  7. देव तर्पण विधि
  8. .ऋषि तर्पण विधि
  9. दिव्य मनुष्य तर्पण विधि
  10. दिव्य पितृ तर्पण विधि
  11.  यम तर्पण विधि
  12. मनुष्य पितृ तर्पण विधि
  13. द्वितीय गोत्र तर्पण (ननिहाल पक्ष)
  14. पत्न्यादि तर्पण विधि
  15. वस्त्र निष्पीडन
  16. भीष्म तर्पण विधि 
  17. सूर्यार्घ्य विधि
  18. प्रदक्षिणा
  19. दिशाभिवन्दन एवं जला‌‌ञ्जलि
  20. समर्पण

Puja samagri :-

वैकुण्ठ के द्वारा दी जाने वाली पूजन  सामग्री:-

1.कुशा
2. जौ 
3.अक्षत 
4.त्रिकुश 
5. जनेऊ 
6. गमछा 
7.काला तिल 
8.सफेद चंदन 

यजमान द्वारा देय सामग्री
1. लोटा - 1 (तांबा या कांस्य का)
2.सफेद पुष्प 200 ग्रा.               
3.सफेद पुष्प की माला पितरों की संख्या के अनुसार
 4.तर्पण कर्ता के लिए धोती और उपवस्त्र

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