
शनि ग्रहनवग्रह शान्ति विधान | Duration : 4 Hours 45 minute
Price Range: ₹ 15000
15000
₹ 13500
पूजा विवरण
तप:पूत ऋषियों ने अपने चिन्तन द्वारा यह प्रमाणित किया है कि मनुष्य के जीवन में कर्म का स्थान अत्यन्त महत्वपूर्ण है । प्राणियों का सम्पूर्ण जीवन तथा मरणोत्तर जीवन कर्मतन्तुओं से बंधा हुआ है । कर्म ही प्राणियों के जन्म, जरा, मरण तथा रोगादि विकारों का मूल कारण है ।संसार के समस्त भूत, भविष्य एवं वर्तमान घटनाओं का सूत्रधार यह कर्म ही है । अतएव यह कथन अधिक तर्कसङ्गत है कि स्वकृतकर्म के कारण ही ग्रह नक्षत्रादि जन्माङ्ग में तत्तत् स्थानों में अवस्थित होकर अनुकूल तथा प्रतिकूल फलदाता बन जाते हैं
शनिदेव को सूर्य का पुत्र एवं कर्मफल का दाता माना जाता है । इनको लोग दुःख प्रदान करने वाला ग्रह मानते हैं । लेकिन शनिग्रह इतना अशुभ या मारकग्रह नहीं है , जितना लोग मानते हैं सत्य तो यह है कि शनि प्रकृति में सन्तुलन पैदा करता है तथा प्रत्येक प्राणी को उसके कर्म के अनुसार फल प्रदान करता है । शनिग्रह के बारे में पुराणों में अनेक आख्यान प्राप्त होते हैं । शनिग्रह कश्यप गोत्र में उत्पन्न शूद्र हैं । सौराष्ट्रप्रदेश के अधिपति हैं तथा इनका वर्ण कृष्ण है एवं कृष्णवस्त्र धारण किए हुए हैं । इनके चारों हाथों में क्रमशः- बाण, वर, शूल तथा धनुष हैं । यह गृध्र पर विराजमान रहते हैं । इनके अधिदेवता यमराज तथा प्रत्यधिदेवता प्रजापति हैं । धर्मग्रन्थों के अनुसार शनि सूर्य की पत्नी संज्ञा की छाया के गर्भ से उत्पन्न हुए । इनकी क्रूरदृष्टि के विषय में पुराणों में अनेक आख्यान उपलब्ध है । शनिदेव को न्यायप्रिय देव कहा जाता है । शनिदेव मकर तथा कुम्भ राशि के स्वामी हैं । विंशोत्तरी दशा के अनुसार इनकी महादशा 19 वर्ष की होती है । सत्कर्म करने वालों पर शनिदेव की कृपा सदा बरसती है एवं निकृष्ट कर्म करने वाले लोगों को शनिदेव क्रुद्ध होकर कष्ट प्रदान करते हैं । जातक की कुण्डली में यदि शनिदेव अनुकूल न होकर प्रतिकूल स्थिति में स्थित हों तो वह जातक चारों ओर से कष्ट भोगता है अर्थात् वह किसी भी कार्य में सफल नहीं हो पाता । वह शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, सामाजिक और आर्थिकरूप से दुःखी रहता है । वह प्रसन्न रहना चाहता है लेकिन उसका प्रसन्न होना भी उस समय व्यक्ति को कष्टप्रद ही होता है । ऐसा व्यक्ति को अथक परिश्रम करने पर भी आशातीत सफलता प्राप्त नहीं हो पाती, यदि सफलता मिल भी जाए तो कार्यालयीय लोगों के द्वारा उसको प्रताड़ित किया जाता है । जातक की जन्मपत्रिका में शनिग्रह के अनुकूल दशा में न होने पर व्यक्ति मानसिक तनाव से चिड़चिड़ा हो जाता है तथा स्वयं को भी नष्ट करने का प्रयास करता है । इस प्रकार की कुण्डली वाला व्यक्ति जब समस्याओं से घिरता है तब कोई भी व्यक्ति उसका साथ नहीं देता तथा वह स्वयं को एकाकी महसूस करता है । शनिग्रह के प्रतिकूल होने पर इनके दुष्प्रभाव से शरीर में चर्मरोग अर्थात् फोड़े, फुंसी, कुष्ठरोग, दाद, खाज, खुजली इत्यादि प्रकार के त्वचारोग होने लगते हैं । उसका निम्नप्रकार के व्यवसाय करने का मन करता है लेकिन उसमें भी हानि ही होती है । घर में छोटी-छोटी बातों पर परस्पर क्लेश बना रहता है । उस परिवार के लोग निकृष्ट कार्य करने लगते हैं जिससे जीवन में कलङ्क लगता है ।
Benefit
शनि ग्रह का महत्व -
- शनिदेव के शान्ति अनुष्ठान को यदि वैदिक ब्राह्मणों के द्वारा शास्त्रोक्त विधि से करवाया जाए तो शनिदेव उस व्यक्ति को राजा के समान ऐश्वर्य प्रदान करते हैं ।
- जो व्यक्ति शनि की उपासना करता है उसकी मानसिक व्यथायें एवं गृहक्लेश शान्त होने से चित्त प्रसन्न रहता है ।
- शनिदेव की प्रसन्नता प्राप्त हो जाने पर नौकरी तथा व्यापार में सफलता प्राप्त होती है जिससे समाज में व्यक्ति को पद-प्रतिष्ठा और यश में वृद्धि होती है ।
- शनिदेव के प्रसन्न हो जाने पर उस परिवार के सभी लोग बड़े बुजुर्गों का आदर सत्कार करते हैं एवं आज्ञापालन करते हैं ।
- शनिदेव की उपासना से त्वचा सम्बन्धी एवं अन्य प्रकार के असाध्य रोग भी शान्त हो जाते हैं ।
- परिवार के सभी सदस्यों का मन धार्मिक कार्यों में ज्यादा लगता है । शनिदेव के अनुकूल होने पर परिवार के बच्चों का मन नीचकार्य करने में प्रवृत्त नहीं होता है ।
- शनिदेव की अनुकूलता प्राप्त करने के लिए शनिवार का व्रत, हनुमत् उपासना तथा शनिमन्त्र का 23000 जप करने का विधान शास्त्रों में वर्णित है । ऐसा करने से व्यक्ति के इष्टकार्य की सिद्धि होती है तथा मनोवाञ्छित फल की प्राप्ति होती है ।
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शनिदेव की अनुकूलता प्राप्ति हेतु नीलम धारण करना चाहिए ।
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इनकी शान्ति करवाने से जीवन में अनेक प्रकार की बाधाएं दूर होती है तथा जीवन में आनन्द की प्राप्ति होती है ।
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शनिदेव के अनुष्ठान में ब्रह्मणों को वस्त्र, दक्षिणा, उड़द की दाल, काले तिल, अनाज, नीलम, लोहे के बर्तन कड़ाही इत्यादि देने से शनिदेव की अनुकूलता अतिशीघ्र प्राप्त होती है यह अनुष्ठान वेदज्ञ ब्राह्मणों के द्वारा सम्पन्न करवाना चाहिए ।
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मंत्र जप करने या कराने से पूर्व किसी कुंडली विशेषज्ञ को कुंडली जरूर दिखाएं।
Process
शनि ग्रह में होने वाले प्रयोग या विधि :-
- स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
- प्रतिज्ञा-सङ्कल्प
- गणपति गौरी पूजन
- कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
- पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
- षोडशमातृका पूजन
- सप्तघृतमातृका पूजन
- आयुष्यमन्त्रपाठ
- सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध (आभ्युदयिकश्राद्ध)
- नवग्रह मण्डल पूजन
- अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
- पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं पूजन
- रक्षाविधान, प्रधान देवता पूजन
- मन्त्रजप विधान
- विनियोग,करन्यास, हृदयादिन्यास
- ध्यानम्, स्तोत्र पाठ
- पंचभूसंस्कार, अग्नि स्थापन, ब्रह्मा वरण, कुशकण्डिका
- आधार-आज्यभागसंज्ञक हवन
- घृताहुति, मूलमन्त्र आहुति, चरुहोम
- भूरादि नौ आहुति स्विष्टकृत आहुति, पवित्रप्रतिपत्ति
- संस्रवप्राश , मार्जन, पूर्णपात्र दान
- प्रणीता विमोक, मार्जन, बर्हिहोम
- पूर्णाहुति, आरती, विसर्जन
Puja samagri :-
वैकुण्ठ के द्वारा दी जाने वाली पूजन सामग्री:-
- रोली, कलावा
- सिन्दूर, लवङ्ग
- इलाइची, सुपारी
- हल्दी, अबीर
- गुलाल, अभ्रक
- गङ्गाजल, गुलाबजल
- इत्र, शहद
- धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई
- यज्ञोपवीत, पीला सरसों
- देशी घी, कपूर
- माचिस, जौ
- दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा
- सफेद चन्दन, लाल चन्दन
- अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला
- चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का
- पानी वाला नारियल, सप्तमृत्तिका
- सप्तधान्य, सर्वोषधि
- पञ्चरत्न, मिश्री
- पीला कपड़ा सूती, तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित
- पंचगव्य गोघृत, गोमूत्र
हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र :-
- काला तिल
- जौ,चावल
- कमलगट्टा, पंचमेवा
- हवन सामग्री, घी,गुग्गुल
- गुड़ (बूरा या शक्कर) ,गड़ी गोला
- पान पत्ता, बलिदान हेतु पापड़
- काला उडद
- पूर्णपात्र -कटोरी या भगोनी
- प्रोक्षणी, प्रणीता, स्रुवा, शुचि, स्फय - एक सेट
- हवन कुण्ड ताम्र का 10/10 इंच या 12/12 इंच
- कलश रखने के लिए मिट्टी का पात्र
- पिसा हुआ चन्दन
- नवग्रह समिधा
- हवन समिधा
- घृत पात्र
- कुशा
- पंच पात्र
यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-
- वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का - 1
- गाय का दूध - 100ML
- दही - 50ML
- मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार
- फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
- दूर्वादल (घास ) - 1मुठ
- पान का पत्ता - 11
- पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg
- पुष्पमाला - 7 ( विभिन्न प्रकार का)
- आम का पल्लव - 2
- विल्वपत्र - 21
- तुलसी पत्र -7
- शमी पत्र एवं पुष्प
- थाली - 2, कटोरी - 5, लोटा - 2, चम्मच - 2 आदि
- अखण्ड दीपक -1
- देवताओं के लिए वस्त्र - गमछा, धोती आदि
- बैठने हेतु दरी,चादर,आसन
- गोदुग्ध,गोदधि,गोबर