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रुद्रसूक्त [शिवसूक्त,नीलसूक्त]  पाठ एवं हवन

रुद्रसूक्त [शिवसूक्त,नीलसूक्त] पाठ एवं हवन

12000

भूतेश्वर भगवान् शिव की प्रसन्नता के लिए रुद्रसूक्त के पाठ का अनिर्वचनीय फलश्रुति है।

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सीमन्तोन्नयन संस्कार

सीमन्तोन्नयन संस्कार

12000

 सीमन्त तथा उन्नयन इन दो शब्दों के योग से सीमन्तोन्नयन सिद्ध हुआ है।

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ब्रह्मणस्पति (गणपतिसूक्त )  पाठ एवं हवन

ब्रह्मणस्पति (गणपतिसूक्त ) पाठ एवं हवन

12000

गणपति सूक्त को ब्रह्मणस्पति सूक्त भी कहा जाता है।

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पुंसवन संस्कार

पुंसवन संस्कार

12000

गर्भाधान संस्कार के अनन्तर पुंसवन संस्कार का क्रम आता है।

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गणपत्यथर्वशीर्षम्

गणपत्यथर्वशीर्षम्

12000

 गणपति स्तवन प्राय: समस्त मांगलिक कार्यों में सर्वप्रथम करने का विधान है।

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प्रतिष्ठानों में नित्य पूजन

प्रतिष्ठानों में नित्य पूजन

1100

बृहद् प्रतिष्ठानों एवं कार्यालयों में वैभव (सम्पदा)वृद्धि के लिए वैदिक पण्डितों द्वारा नित्य पूजन अर्चन

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सौभाग्य प्रदायक चतुर्थी कर्म

सौभाग्य प्रदायक चतुर्थी कर्म

11000

विवाह के पश्चात् तीन रात पर्यन्त वर वधू को विशेष नियमों का पालन करते हुए चौथी रात्रि में होम करण का विधान है,

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वर्धापन (वर्षगाँठ-जन्मोत्सव, आनन्दोत्सव) का स्वरूप

वर्धापन (वर्षगाँठ-जन्मोत्सव, आनन्दोत्सव) का स्वरूप

11000

मानव जीवन- स्वास्थ्य रक्षण पूर्वक दीर्घायु एवं समृद्धि वैभव युक्त रहे, इसके लिए सनातन वैदिक संस्कृति

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सूर्याथर्वशीर्षम्

सूर्याथर्वशीर्षम्

12000

भगवान् सूर्य को वेदों में चराचर जगत् का आत्मा कहा गया है।

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नारायणाथर्वशीर्षम्

नारायणाथर्वशीर्षम्

12000

  नर शब्द जीव का वाचक है, नार= जीवों के समूह और उन जीवों का अयन (आश्रय) परमेश्वर हैं,

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देव्यथर्वशीर्षम्

देव्यथर्वशीर्षम्

12000

जिस प्रकार भक्ति के बिना भक्तिमान् (भक्त)की कल्पना नहीं की जा सकती ,

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शिवाथर्वशीर्षम्

शिवाथर्वशीर्षम्

12000

"वेद: शिव: शिवो वेद:" वेद शिव हैं और शिव वेद हैं,

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