सुखी दाम्पत्य विवाहित जीवन के लिए उमा माहेश्वरी पूजा: प्रेम और समृद्धि की कुंजी

सुखी दाम्पत्य विवाहित जीवन के लिए उमा माहेश्वरी पूजा: प्रेम और समृद्धि की कुंजी

हिन्दू पचांग के अनुसार प्रत्येक माह में पूर्णिमा तिथि आती है और इस प्रत्येक तिथि का अपना अलग महत्व है । पूर्णिमा तिथि के दिन विशेष रूप से व्रत, पूजा-पाठ, दान इत्यादि किए जाते हैं । परन्तु भाद्रपद माह में पड़ने वाली पूर्णिमा अत्यंत विशेष मानी जाती है क्योंकि इस दिन से पितृपक्ष अर्थात् श्राद्ध पक्ष प्रारंभ होता है, जो आश्विन माह के अमावस्या तिथि के दिन समाप्त होते हैं । इसके साथ ही भाद्रपद अर्थात् भादों मास में आने वाली पूर्णिमा को भगवान् विष्णु के सत्यनारायण स्वरूप की पूजा-अर्चना की जाती है तथा इसी दिन “उमा महेश्वर व्रत” भी किया जाता है । उमा अर्थात् माता पार्वती, महेश्वर अर्थात् भगवान् शिव । इसलिए  इस दिन भगवान् शिव और माता पार्वती की विधि-विधान से पूजा की जाती है जिसे करने से साधक को मोक्ष की प्राप्ति तथा सुख समृद्धि के साथ सौभाग्य में वृद्धि होती है ।

इस व्रत के दिन उमामाहेश्वरी पूजा को करने से जातक का दाम्पत्य और वैवाहिक जीवन सुखमय रहता है । उमामहेश्वर का व्रत भगवान् शिव और माता पार्वती को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है । 

व्रतराज में उमामहेश्वर व्रत के विषय में वर्णित है कि-

कृतनेतद्वतं पूर्वं सर्वाभीष्टफलप्रदम्‌ । मुक्ति: प्राप्ता च तेनापि व्रतस्यास्य प्रभावतः ॥ 
य य कामं समुद्दीश्य व्रतमेतदनुत्तमम्‌ । यः करिष्यति त काम स समाप्नोति निर्मलम्‌  ॥ 

अर्थात जो जातक जिस किसी उद्देश्य के लिए “उमा महेश्वर”  इस व्रत को विधिपूर्वक करता है  उसकी समस्त इच्छाएं अवश्य पूर्ण होती हैं तथा उस जातक को मोक्ष की प्राप्ति  होती है।  

उमामहेश्वर व्रत :- तिथि एवं मुहूर्त :-

बुधवार 18 सितम्बर 2024 (हृषीकेश पंचांग के अनुसार )

  • पूर्णिमा तिथि आरम्भ :- 17 सितंबर 2024  प्रातः 11 बजकर 00 मिनट पर (व्रत की पूर्णिमा)
  • पूर्णिमा तिथि समाप्त :-  18 सितम्बर 2024 प्रातः 08 बजाकर 41 मिनट पर (स्नान-दान की पूर्णिमा )

उमा महेश्वर व्रत कथा (मत्स्य पुराण ) :-

एक दिन दुर्वासा ऋषि भगवान् शिव के दर्शन कर वापस लौट रहे थे । उसी समय मार्ग में उनकी भेंट भगवान् विष्णु से हुई । दुर्वासा ऋषि ने उन्हें बिल्वपत्र की माला अर्पित की परन्तु भगवान् विष्णु को किसी कारणवश जाना था इसलिए उन्होनें अपने शीर्ष से पूजनीय माला को उतारकर गरुड़ पर अर्पण कर दी । जिसके पश्चात् दुर्वासा ऋषि अत्यंत क्रोधित हो गये और उन्होंने भगवान् विष्णु को श्राप देते हुए कहा कि उनकी लक्ष्मी क्षीरसागर में गिर जाए, उनका गरुड़ भी चला जाए, जिस बैकुंठ पर उनका अधिकार है वह भी चला जाए । उनके इस श्राप के कारण ही माता लक्ष्मी क्षीरसागर में गिर गई और भगवान् विष्णु का अधिकार वैकुण्ठ से चला गया । जिसके अनन्तर भगवान् विष्णु वन-वन में विचरण करने लगे । इस श्राप से मुक्ति पाने के लिए भगवान् विष्णु ने भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि को उमामहेश्वर व्रत किया । इस व्रत के प्रभाव से भगवान् विष्णु को सभी शक्तियों के साथ माता लक्ष्मी पुनः प्राप्त हुई । 

उमा महेश्वर व्रत की पूजा विधि :-

  • भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि को प्रातः शीघ्र जागकर, स्नान कर, साफ़ स्वच्छ वस्त्र धारण करें तथा इस बात का ध्यान रखें कि वस्त्र फटे-पुराने न हो ।  
  • अब स्नान के पश्चात् व्रत को विधि-विधान से करने हेतु संकल्पित हों ।  
  • तत्पश्चात एक चौकी पर साफ़ वस्त्र बिछाएं और इस पर भगवान् शंकर और माता उमा (पार्वती) की प्रतिमा को स्थापित करें।
  • इसके पश्चात् शिवमंत्र (ॐ नमः शिवाय) का जप करते हुए जलाभिषेक करें ।   
  • जलाभिषेक के अनन्तर पुष्प, बिल्वपत्र तथा नैवेध्य अर्पित कर धूप, दीप, रोली व अक्षत से भगवान् शिव की पूजा-अर्चना करें।  
  • पूजन के बाद प्रसाद का वितरण अवश्य करें।   
  • व्रत के समापन से पहले ब्राह्मणों को भोजन कराएं और उन्हें यथा सामर्थ्य वस्तुओं का दान अवश्य करें ।  
  • अगर व्रती के घर किसी भी प्रकार का अतिथि आता है तो उसे भोजन अवश्य कराएं ।  

उमा-महेश्वर व्रत का महात्मय :-

•    सुखी वैवाहिक जीवन के लिए पूजा : 

भाद्रपद की पूर्णिमा को पड़ने वाला  “उमा महेश्वर” का ये व्रत स्त्रियों के लिए विशेष महत्वपूर्ण है । इस व्रत को करने से पति-पत्नी के बीच प्रेम तथा उनका दाम्पत्य जीवन सुखी बना रहता है ।  

अस्य व्रतस्याचरणान्मुक्ति: प्राप्ता मुनीश्वरै: । 
इदं व्रतं प्रयत्नेन यः करिष्यति भक्तितः  ॥ 
तस्य सौमाग्यसम्पत्ति भर्विष्यत्येव सर्वथा ।
यस्यास्त्यैश्वर्य भोगेच्छा मोक्षेच्छाप्यनपायिनी ॥ 

अर्थात् जो जातक इस व्रत को भक्ति-भाव से तथा नियमपूर्वक करता है उसे सुख-सम्पत्ति का लाभ तो अवश्य प्राप्त होता ही है तथा उसके जीवन में यश-कीर्ति और ऐश्वर्य में वृद्धि भी होती है ।

ये मामनन्यहृदयाः सकलामरेशं सम्पूजयन्ति सततं धृतभस्मपूताः ॥ 
ते मामुपेत्य विगताखिलदुःखबन्धा मद्रूपमेत्य सुखिनो निवसन्ति नित्यम्‌ ॥

अर्थात् जो साधक इस व्रत का पूजन एकाग्रचित्त तथा पूर्ण पवित्रता के साथ करेगा उसे सभी कष्टों से मुक्ति प्राप्त होगी तथा समस्त प्रकार के सुखों का उपभोग करेगा तथा व्रत के प्रभाव से  शिवलोक की भी प्राप्ति होगी ।  

इस प्रकार धन-वैभव-यश और ऐश्वर्य की कामना वाले प्रत्येक साधक को इस “उमा महेश्वर” व्रत अवश्य करना चाहिये ।

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