Rudrapuja

रुद्राभिषेक एवं शिवाराधन

रुद्राभिषेक | Duration : 4 Hrs 30 Min
Price Range: 5100 to 11500

About Puja

वेद परब्रह्म परमात्मा का नि:श्वास एवं साक्षात् नारायण का स्वरूप है -"वेदो नारायणः साक्षात् स्वयम्भूरिति शुश्रुम"

यथा ब्रह्म,जीव एवं प्रकृति अनादि है,उसी प्रकार वेद भी अनादि एवं अपौरुषेय है। इसलिए सर्वात्मक भगवान् रुद्र का वेद मन्त्रों के द्वारा पूजन,अभिषेक,पाठ आदि की महत्ता है।

भगवान् रुद्र की विशिष्टता प्रतिपादित करते हुए उपनिषद् वचन है -"सर्वदेवात्मको रुद्रः सर्वे देवा:शिवात्मका:"

इस वचनानुसार वेदोक्त साकार ब्रह्म  भगवान् रुद्र हैं। भगवान् रुद्र की अभ्यर्थना के उद्देश्य से शुक्लयजुर्वेद का सार तत्व 'रुद्राष्टाध्यायी' का प्रदुर्भाव हुआ।

        रु = दुःखम्, द्रावयति इति रुद्रः । रुत् = ज्ञानम्,राति = ददाति इति रुद्रः। रोदयति पापिनः इति वा रुद्र:।

अर्थात् भगवान् रुद्र  दुःखनाशक,पापनाशक एवं ज्ञानदाता हैं। जिस प्रकार,वृक्ष के जड़ से शाखा पर्यन्त रस, दुग्ध में घी एवं इक्षुदण्ड में मधुरता व्याप्त रहती है,तथापि उससे अलग होने पर विशेष माधुर्य का अनुभव होता है,ठीक उसी प्रकार शुक्लयजुर्वेद रूपी सागर से सार रूपी रुद्राष्टाध्यायी का प्रादुर्भाव हुआ। वाह्य एवं अन्त:करणों को निरुद्ध कर,रुद्रात्मक भाव में अवतरित होकर भगवान् रुद्र की, इस अष्टाध्यायी के मन्त्रों से उपासना करनी चाहिए।

जगत् में अष्टाध्यायी के इन मन्त्रों का पाठ,अभिषेक,जप आदि के द्वारा भगवान् शिव मे उभय भक्ति, दृढ़ अनुराग,धनधान्य की प्रवृद्धि, सन्तति समृद्धि,सद्‌गति आदि की प्राप्ति होती है। वेदों,स्मृतियों एवं पुराणों में  शिवार्चन के साथ ही अभिषेक की महिमा वर्णित है। वायु पुराण का उद्घोष है-
       यश्व सागर पर्यन्तां सशैलवनकाननाम् ।
       सर्वान्नात्मगुणोपेतां सुवृक्षजलशोभिताम् ॥ 

       दधात् काञ्चनसंयुक्तां  भूमिं चौषधिसंयुताम्।
       तस्मादप्यधिकं तस्य सकृद् रुद्रजपाद् भवेत्।।
                                                                                                                               

उपरोक्त श्लोक का भाव है- वन पर्वत एवं विभिन्न वृक्षों से आच्छादित विशिष्ट रत्नों से युक्त पृथ्वी का जो दान करता है, उस पुण्य से भी अधिक एक बार रुद्राभिषेक करने का पुण्य है।

Benefits

रुद्राभिषेक एवं रुद्रपाठ का माहात्म्य:

  • अवढरदानी सदाशिव रुद्र का 'शिवपुराण' में रुद्राष्टाध्यायी की महत्ता को प्रकट करते हुए कहते हैं कि रुद्रपाठ पूर्वक जो अभिषेक करता है, उसकी समस्त कामनाएँ पूर्ण होती है।
  • भस्मधारण पूर्वक जो रुद्रपाठ करता है तथा जलादि से शिवाभिषेक करता है,  उसके समस्त रोग, क्लेश दूर हो जाते हैं तथा अद्वितीय सुख की प्राप्ति होती है।
  • समयाभाव के कारण जो कम समय मे अभिषेक करना चाहते हैं,उनके लिए शतरुद्रिय का विधान है। रुद्राष्टाध्यायी के ही सतुल्य शतरुद्रिय का माहात्म्य है। पंचम अध्याय को ही शतरुद्रिय कहा गया है, शतरुद्रिय का पाठ एवं जप वेदपारायण के समतुल्य माना गया है।
  • भगवान् वेदव्यास महाभारत के द्रोण पर्व में शतरुद्रिय की महिमा का प्रतिपादन करते हुए अर्जुन को बताते हैं- हे पार्थ ! वेदसम्मित शतरुद्रिय परम पुनीत तथा यश, धन, आयु, कीर्ति का विस्तारक है। इसके पाठ से समस्त मनोरथों की सिद्धि होती है। यह समस्त किल्विषों का नाशक, पापों का निवारक, समस्त दुःखों को दूर करने वाला है। जो सदा शतरुद्रिय को पढता और सुनता है तथा जो निरन्तर भगवान् विश्वनाथ का सेवन अर्चन एवं वन्दन करता है, वह समस्त उत्तम कामनाओं को प्राप्त कर लेता है।
  • अथर्ववेदीय जाबालोपनिषद् में महर्षि याज्ञवल्क्य जी ने शतरुद्रिय को अमृतत्व का साधन कहा है।
  • कृष्णयजुर्वेदीय कैवल्योपनिषद् में शतरुद्रिय को कैवल्य (मोक्ष) प्राप्ति का साधन बताया गया है।
  • लोकपितामह ब्रह्माजी ने महर्षि आश्वलायन से शतरुद्रिय की महिमा को प्रकट करते हुए कहते हैं— जो शतरुद्रिय का पाठ करता है, वह अग्नि एवं वायु के द्वारा पवित्र होता है।  सुरापान, ब्रह्महत्या, स्वर्णचोरी आदि पापों से मुक्त  होता है, वह भगवान् रुद्र के आश्रित रहते हुए अन्ततः मुक्ति को प्राप्त करता है।
  • रुद्राष्टाध्यायी के मन्त्रों से अभिषेक एवं शिवार्चन करने से कन्याओं को उत्तम एवं सर्वगुण सम्पन्न पति की प्राप्ति तथा पुरुषों द्वारा शिवार्चन करने से सुन्दर एवं सुशील पत्नी की प्राप्ति होती है।

रुद्रपाठ के भेद -

                शास्त्रों में रुद्रपाठ के पाँच प्रकार बताये गये हैं - रूपक या षडङ्ग‌पाठ, रुद्री या एकादशिनी, लघुरुद्र, महारुद्र तथा अतिरुद्र।

  1. रूपक या षडङ्गपाठ - समस्त रुद्राष्टाध्यायी में 10 अध्याय हैं। आठ में रुद्र महिमा नौवाँ शान्त्याध्याय तथा दसवाँ स्वस्ति प्रार्थना है। इस प्रकार दस अध्यायों की आवृत्ति (रूपक या षडङ्ग) पाठ कहलाता है।
  2. रुद्री या एकादशनी- षडङ्ग पाठ में नमकाध्याय (पञ्चम्) तथा चमकाध्याय (अष्टम्) को युक्तकर ग्यारह आवृत्ति को (रुद्री या एकादशिनी) कहते हैं।
  3. लघुरुद्र- एकादशिनी रुद्री की ग्यारह आवृत्तियों के पाठ को लघुरुद्र पाठ कहा जाता है। यह  लघुरुद्र अनुष्ठान, एक दिन में ग्यारह ब्राह्मणों का वरणकर एक साथ सम्पन्न कराया जा सकता है। अथवा एक ब्राह्मण द्वारा ग्यारह दिनों तक एकादशिनी पाठ नित्य करके लघुरुद्र की सम्पन्नता होती है।
  4. महारुद्र - लघुरुद्र की ग्यारह आवृत्ति अर्थात् एकादशिनी रुद्री का 121 आवृत्ति पाठ होने पर महारुद्र अनुष्ठान होता है। यह अनुष्ठान 11 ब्राह्मणों द्वारा ग्यारह दिनों में कराया जा सकता है। या ब्राह्मणों की संख्या बढ़ाकर 121 पाठ होने पर महारुद्र अनुष्ठान संपन्न होता है।
  5. अतिरुद्र - महारुद्र की ग्यारह आवृत्ति अर्थात् एकादशिनी रुद्री का 1331 आवृत्ति से अतिरुद्र अनुष्ठान सम्पन्न होता है।

नोट :  ये पाठ अनुष्ठानात्मक, अभिषेकात्मक तथा हवनात्मक तीनों प्रकार से किया जा सकता है।

विभिन्न कामनाओं की सिद्धि के लिए विभिन्न द्रव्यों का प्रयोग एवं  उनका फल -  यद्यपि निष्काम भाव से भगवान् के यजन एवं अभिषेक का अनन्तफल है, तथापि शास्त्रों में विभिन्न सङ्कल्पों की सिद्धि के लिए  अनेक द्रव्यों का निर्देश है - यथा -

  • ज्वरशान्ति ,कृपादृष्टि एवं जलवृष्टि की कामना के लिए जल से अभिषेक करें।
  • व्याधि (रोगों) की शान्ति के लिए कुशोदक से अभिषेक होता है।
  • पशु प्राप्ति के लिए दही से।धन एवं लक्ष्मी की कामना वालों को इक्षुरस (गन्ने का रस), मधु तथा घृत से भगवान् शिव का अभिषेक करें।
  • मोक्ष प्राप्ति की कामना वालों को तीर्थजल से अभिषेक करना चाहिए।
  • पुत्रप्राप्ति के इच्छुक, वन्ध्या, काकवन्ध्या (एकसन्तानवाली) मृतवत्सा (सन्तान उत्पन्न होने के बाद मर जाए) या जिसका मृत सन्तान उत्पन्न हो। इन सभी को गोदुग्ध या चीनी युक्त दूध के द्वारा अभिषेक करने से शीघ्र स्वस्थ एवं सुलक्षण पुत्र उत्पन्न होता है।
  • वंश विस्तार के लिए घृत से अभिषेक करें।
  • प्रमेह (शुगर) रोग की निवृत्ति के लिए दुग्ध धारा से अभिषेक करें।
  • प्रज्ञा प्राप्ति एवं बुद्धि की जड़ता को दूर करने के लिए चीनी युक्त दूध से अभिषेक करें।
  • शत्रु बुद्धि विनाश के लिए सरसों के तेल से अभिषेक करें।
  • यक्ष्मा रोग (तपेदिक) तथा पापक्षय के लिए मधु से अभिषेक करना चाहिए।
  • पंचम अध्याय को ही शतरुद्रिय कहा जाता है जो रुद्राष्टाध्यायी के समतुल्य है।

नोट: इन द्रव्यों के अभिषेक से भगवान् शिव अत्यन्त प्रसन्न होकर भक्तों की समस्त मनोकामना पूर्ण करते हैं।

Process

रुद्राभिषेक एवं शिवाराधन में होने वाले प्रयोग या विधि: -

1.  पवित्रीकरण एवं पवित्रीधारण 
2. आचमन एवं प्राणायाम 
3.  रक्षादीप, अधिकारार्थ प्रायश्चित सङ्कल्प
4.  गो प्रार्थना 
5.  स्वस्तिवाचन
6.  प्रतिज्ञा सङ्कल्प
7.  गणेशाम्बिका पूजन -[आवाहन, प्राणप्रतिष्ठा,आसन, पाद्य, अर्घ्य,आचमन, स्नान,पञ्चामृतस्नान, शुद्धोदक वस्त्र, यज्ञोपवीत, उपवस्त्र
                                  चन्दन, अक्षत, पुष्पमाला, दूर्वा, सिन्दूर, अबीर, धूप दीप,नैवेध, ऋतुफल, करोद्वर्तन, ताम्बूल, दक्षिणा, आरती,
                                  पुष्पाञ्जति, प्रदक्षिणा, विशेषार्घ्य, प्रार्थना एवं समर्पण।]
8.  ब्राह्मण वरण
9.  पार्षदों का पूजन -[नन्दीश्वर-पूजन, वीरभद्र-पूजन, कार्तिकेय पूजन, कुबेर- पूजन, कीर्तिमुख पूजन, सर्प- पूजन]  
10. शिव पूजन -[ध्यान, आवाहन, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन स्नान, दुग्धस्नान, दधिस्नान, धृतस्नान, मधुस्नान,शर्करास्नान, पञ्चामृतस्नान,
                      गन्धोदक स्नान,शुद्धोदक स्नान,महाभिषेक,आचमन,वस्त्र,यज्ञोपवीत,उपवस्त्र,चन्दन, भस्म,अक्षत, पुष्पमाला, बिल्वपत्र,
                      दुर्वा, सुगन्धित द्रव्य]
11.  एकादश रुद्रपूजा
12.  एकादश शक्तिपूजा-  [आभूषण ,नानापरिमल द्रव्य, सिन्दूर, धूप, दीप, नैवेध, करोद्वर्तन, ऋतुफल , ताम्बूल, द्रव्यदक्षिणा, स्तुति] 
13.  विशेषपूजा - अङ्गपूजा, गणपूजा, अष्टमूर्तिपूजा
14.  पञ्चवक्त्र पूजा 1-पश्चिमवक्त्र, 2-उत्तरवक्त्र, 3-दक्षिणवक्त्र, 4-पूर्ववक्त्र, 5-उर्ध्वमुख
15.  श्रृङ्गी या धारापात्र पूजन
16.  विनियोग तथा पूर्व षडङ्गन्यास [हृदय, सिर, शिखा, कवच, नेत्र, अस्त्र]
17.  भगवान् शिव का ध्यान - ॐ नमः शिवाय का जप
18.  अभिषेक प्रारम्भ
19.. उत्तर-षडङ्गन्यास
20.  उत्तरपूजन, आरती, पुष्पाञ्जलि
21.  परिक्रमा, प्रणाम, क्षमाप्रार्थना, दक्षिणादान, भूयसी सङ्कल्प, अभिषेक, विसर्जन, रक्षाबन्धन, तिलक, आशीर्वाद
22.  स्तोत्रपाठ

Puja Samagri

 वैकुण्ठ के द्वारा दी जाने वाली पूजन सामग्री :

  • रोली,कलावा    
  • सिन्दूर,लवङ्ग 
  • इलाइची,सुपारी 
  • हल्दी,अबीर 
  • गुलाल,अभ्रक 
  • गङ्गाजल,गुलाबजल 
  • इत्र,शहद 
  • धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई 
  • यज्ञोपवीत,पीला सरसों 
  • देशी घी,कपूर 
  • माचिस,जौ 
  • दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा 
  • सफेद चन्दन,लाल चन्दन 
  • अष्टगन्ध चन्दन,
  • चावल(छोटा वाला),
  • सप्तमृत्तिका 
  • सप्तधान्य,सर्वोषधि 
  • पञ्चरत्न, मिश्री   
  • पंचगव्य गोघृत,गोमूत्र
  • चमेली तेल,कमलगट्टा
  • काला तिल,पीली सरसो
  • भस्म,चीनी

यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-

  • पार्वती जी के लिए श्रृङ्गार
  • भगवान् शिव के लिए वस्त्र धोती गमछा आदि
  • गन्ने का रस :- 2 लीटर
  • पान का पत्ता :- 11 पीस
  • पुष्प विभिन्न प्रकार आधा किलो, मन्दार पुष्पमाला 5 पीस
  • पुष्पमाला, गुलाब का पुष्प आधा किलो
  • धतूर का पुष्प एवं फल :- धतूर फल एवं फूल न्यूनतम 5 पीस 
  • मन्दार पुष्प
  • तुलसी और तुलसी मंजरी 1 मुठ्ठी
  • कमलपुष्प
  • बिल्वपत्र, बिल्वफल
  • पानी वाला नारियल
  • भांग
  • फलों का रस :- 500 ग्राम
  • हरी दुर्वा घास :- 1 मुठ्ठी
  • फूलों की लडी़ श्रृङ्गार के लिए
  • बड़ी साइज की परात 
  • दूध :-  5 लीटर
  • दही :- 250 ग्राम
  • मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार:- 2 किलो अथवा भक्तों की संख्या के अनुसार
  • आम का पल्लव - 2
  • अखण्ड दीपक -1
  • फल :- भक्तों की संख्या केअनुसार
  • बैठने हेतु दरी,चादर,आसन 
  • पीला कपड़ा सूती ,तांबा या पीतल का कलश 
  • शिव लिङ्ग की व्यवस्था (यदि घर में अभिषेक हो तो)

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