विवाह में आ रही बाधाओं की निवृत्ति तथा सौभाग्य प्राप्ति के लिए श्री मीनाक्षी पञ्चरत्नम्

विवाह में आ रही बाधाओं की निवृत्ति तथा सौभाग्य प्राप्ति के लिए श्री मीनाक्षी पञ्चरत्नम्

श्रीमत् आदिशंकराचार्य जी द्वारा विरचित यह स्तोत्र है । यह स्तोत्र भगवान् सुंदरेश्वर (शिव) की पत्नी देवी मीनाक्षी के दिव्य गुणों, स्वरूप और महानता की व्याख्या करता है । पंचरत्न नाम होने के कारण इस स्तोत्र में पांच ही श्लोक हैं । जिन कन्याओं के विवाह में किसी कारण कोई समस्या या परेशानी आती है तो उसकी निवृत्ति हेतु कन्याओं को विशेष इस स्तोत्र का पाठ करना चाहिए । 

उद्यद्भानुसहस्त्रकोटिसदृशां केयूरहारोज्ज्वलां
                       विम्बोष्ठीं स्मितदन्तपङ्क्तिरुचिरां पीताम्बरालङ्कृताम् ।
विष्णुब्रह्मसुरेन्द्रसेवितपदां तत्त्वस्वरूपां शिवां 
                       मीनाक्षीं प्रणतोऽस्मि सन्ततमहं कारुण्यवारांनिधिम् ।।१।।

जो उदय होते हुए सहस्रकोटि सूर्यों के सदृश आभा वाली हैं, केयूर और हार आदि आभूषणों से भव्य प्रतीत होती हैं, बिम्बाफल के समान अरुण ओठों वाली हैं, मधुर मुसकान युक्त दन्तावलि से जो सुन्दरी मालूम होती हैं तथा पीताम्बर से अलंकृता हैं; ब्रह्मा, विष्णु आदि देवनायकों से सेवित चरणों वाली उन तत्त्वस्वरूपिणी कल्याणकारिणी करुणावरुणालया श्रीमीनाक्षीदेवी का मैं निरन्तर वन्दन करता हूँ ।

मुक्ताहारलसत्किरीटरुचिरां पूर्णेन्दुवक्त्रप्रभां 
                       शिञ्जन्नूपुरकिङ्किणीमणिधरां पद्मप्रभाभासुराम्। 
सर्वाभीष्टफलप्रदां गिरिसुतां वाणीरमासेवितां
                       मीनाक्षीं प्रणतोऽस्मि सन्ततमहं कारुण्यवारांनिधिम्।।२।।

जो मोती की लड़ियों से सुशोभित मुकुट धारण किये सुन्दर मालूम होती हैं, जिनके मुख की प्रभा पूर्णचन्द्र के समान है, जो झनकारते हुए नूपुर (पायजेब), किंकिणी (करधनी) तथा अनेकों मणियाँ धारण किये हुए हैं, कमल की-सी आभा से भासित होने वाली, सबको अभीष्ट फल देने वाली, सरस्वती और लक्ष्मी आदि से सेविता उन गिरिराजनन्दिनी करुणावरुणालया श्रीमीनाक्षीदेवी का मैं निरन्तर वन्दन करता हूँ ।

श्रीविद्यां शिववामभागनिलयां हीङ्कारमन्त्रोज्ज्वलां 
                       श्रीचक्राङ्कितबिन्दुमध्यवसतिं श्रीमत्सभानायिकाम्।
श्रीमत्षण्मुखविघ्नराजजननीं श्रीमज्जगन्मोहिनीं
                       मीनाक्षीं प्रणतोऽस्मि सन्ततमहं कारुण्यवारांनिधिम् ।।३।।

जो श्रीविद्या हैं, भगवान् शंकर के वामभाग में विराजमान हैं, 'ह्रीं' बीजमन्त्र से सुशोभिता हैं, श्रीचक्रांकित विन्दु के मध्य में निवास करती हैं तथा देवसभा की अधिनेत्री हैं, उन श्रीस्वामी कार्तिकेय और गणेशजी की माता जगन्मोहिनी करुणावरुणालया श्रीमीनाक्षीदेवी का मैं निरन्तर वन्दन करता हूँ ।

श्रीमत्सुन्दरनायिकां भयहरां ज्ञानप्रदां निर्मलां 
                        श्यामाभां कमलासनार्चितपदां नारायणस्यानुजाम्।
वीणावेणुमृदङ्गवाद्यरसिकां नानाविधामम्बिकां
                        मीनाक्षीं प्रणतोऽस्मि सन्ततमहं कारुण्यवारांनिधिम्।।४।।

जो अति सुन्दर स्वामिनी हैं, भयहारिणी हैं, ज्ञानप्रदायिनी हैं, निर्मला और श्यामला हैं, कमलासन श्रीब्रह्माजीद्वारा जिनके चरणकमल पूजे गये हैं तथा श्रीनारायण (कृष्णचन्द्र) की जो अनुजा (छोटी बहन) हैं; वीणा, वेणु, मृदंगादि वाद्यों की रसिका उन विचित्र लीलाविहारिणी करुणावरुणालया श्री मीनाक्षीदेवी का मैं निरन्तर वन्दन करता हूं।

नानायोगिमुनीन्द्रहृत्सुवसतिं नानार्थसिद्धिप्रदां
                        नानापुष्पविराजिताङ्घ्रियुगलां नारायणेनार्चिताम्। 
नादब्रह्ममयीं परात्परतरां नानार्थतत्त्वात्मिकां
                        मीनाक्षीं प्रणतोऽस्मि सन्ततमहं कारुण्यवारांनिधिम्।।५।।

जो अनेकों योगिजन और मुनीश्वरों के हृदयमें निवास करने वाली तथा नाना प्रकार के पदार्थों की प्राप्ति कराने वाली हैं, जिनके चरणयुगल विचित्र पुष्पों से सुशोभित हो रहे हैं, जो श्रीनारायण से पूजिता हैं तथा जो नादब्रह्ममयी, परे से भी परे और नाना पदार्थों की तत्त्वस्वरूपा हैं, उन करुणावरुणालया श्रीमीनाक्षीदेवी का मैं निरन्तर वन्दन करता हूँ।

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