About Puja
प्रतिष्ठानों एवं कार्यालयों में वैभव (सम्पदा) वृद्धि के लिए वैदिक पण्डितों द्वारा पूजन की परम्परा अनादि काल से चली आ रही है। सनातन परम्परा के वाहक हिन्दू, सिख, बौद्ध एवं जैन के साथ ही इन धर्मो के अङ्ग एवं उपाङ्ग जो भी हैं, वो बिना भगवद् आराधना निर्जीव (शून्य) हैं। आश्रम, परम्परा एवं कुलदेवता के साथ ही सम्प्रदायानुसार प्राप्त मन्त्र या देवता की पूजा अर्चना एवं उपासना करनी या करानी चाहिए । जब भारतवर्ष में राजतंत्र की व्यवस्था थी, राजाओं के द्वारा शासन आदि संचालित होता था, उस समय भी उस राज्य के अन्तर्गत् वस्तु तथा आयुध् निर्माण आदि के जितने संस्थान हुआ करते थे वहां पर विद्वान् ब्राह्मणों द्वारा भगवत् पूजा-अर्चना की परम्परा का पालन होता था । कालांतर में जब राजतंत्र लोकतन्त्र में परिवर्तित हुआ तो वह आयुध निर्माण आदि वर्तमान व्यवसायिक कारखानों एक कार्यालयों के रूप में अवस्थित हुआ तथा इन कार्यालयों के विकास तथा विस्तार के लिए देवपूजा परम्परा अबाध गति से चली आ रही है, जिसके कृपा करुणा से वैभव लक्ष्मी तथा समृद्धि की प्राप्ति होती है।
Benefits
- देव पूजन, मानव की प्राचीन तथा शास्त्रीय परम्परा है, जिसके निर्वहन से चेतना का जागरण तथा कार्य के प्रति अभिरुचि उत्पन्न होती है।
- देव पूजन हमारी वैदिक सनातन विचारधारा को पुष्ट करती है तथा परम्परागत् रूप से सन्तति (पुत्र,पौत्रादि) को उत्तम संस्कारों से संस्कृत करती है।
- शब्द, ब्रह्म का वाङ्मय स्वरूप है तथा वेद ध्वनि जहाँ (गुञ्जित) होती है वहाँ समस्त अमङ्गलों का नाश तथा आर्थिक सुख समृद्धि का विस्तार होता है ।
- शास्त्र परम्परा का अनुशीलन पूर्वक जिन प्रतिष्ठानों में वेदोच्चारण तथा मङ्गलपाठ होता है, वहाँ देवगण निरन्तर विद्यमान रहते हुए सदा व्यापार की उत्तरोत्तर उन्नति तथा वृद्धि करते हैं, साथ ही दैवीय आपदाओं से रक्षा भी होती हैं।
- देव आराधना तथा पूजा से, संस्थान, कार्यालय, प्रतिष्ठान् आदि में कार्यकर्ताओं का कार्य के प्रति समर्पण के साथ ही नकारात्मकता की शान्ति तथा सकारात्मकता का उदय होता है।
- संस्थानों एवं कार्यालयों में वेदध्वनि के प्रभाव से कुत्सित मानसिकता का निवारण होता है ।
- सहजता, समरसता, संस्कार, सदाचार, सद्व्यवहार आदि का परस्पर विकास होता है।
- जिन संस्थानों, कार्यालयों, देवालयों में वैदिक ब्राह्मण अपने पूर्ण सनातन परिधान में (धौतवस्त्र) जाते हैं, तो वहाँ समृद्धि, शुभता तथा लक्ष्मी का वास होता है।
Process
- स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
- प्रतिज्ञा सङ्कल्प
- गणपति गौरी पूजन
- कलश स्थापन वरुणादि देवताओं का पूजन
- षोडशमातृका, सप्तघृतमातृका,नवग्रह पूजन
- अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता,
- पञ्चलोकपाल, दस दिक्पाल, वास्तुदेवता पूजन एवं स्मरण
- ब्राह्मण पूजन
- हवन प्रकरण
- सङ्कल्प
- पंचभूसंस्कार, अग्निध्यान पूजन
- हवन विधि (आधार आहुति,आज्य आहुति)
- द्रव्यत्याग (वराहुति) नवग्रहहोम, प्रधान होम
- अग्नि का उत्तर पूजन, स्विष्टकृत हवन
- भूरादि नव आहुतियाँ, अग्निप्रदक्षिणा, त्र्यायुष्करण, संस्रवप्राशन
- उत्तर पूजन,आरती, पुष्पाञ्जलि, प्रदक्षिणा, क्षमाप्रार्थना
- आवाहित देवों का विसर्जन
- रक्षाबन्धन, तिलककरण, आशीर्वाद, चरणामृत ग्रहण
- प्रसादग्रहण
Puja Samagri
वैकुण्ठ के द्वारा दी जाने वाली पूजन सामग्री:-
- रोली, कलावा
- सिन्दूर, लवङ्ग
- इलाइची, सुपारी
- हल्दी, अबीर
- गुलाल, अभ्रक
- गङ्गाजल,
- इत्र, शहद
- धूपबत्ती, रुई
- यज्ञोपवीत, पीला सरसों
- देशी घी, कपूर
- माचिस, जौ
- दोना बड़ा साइज, पञ्चमेवा
- सफेद चन्दन, लाल चन्दन
- अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला
- चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का
- सप्तमृत्तिका
- सप्तधान्य, सर्वोषधि
- पञ्चरत्न, मिश्री
- पीला कपड़ा सूती
- पंचगव्य गोघृत
हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र :-
- काला तिल
- चावल
- कमलगट्टा
- हवन सामग्री, घी,गुग्गुल
- गुड़ (बूरा या शक्कर
- प्रोक्षणी, प्रणीता, स्रुवा, शुचि, स्फय - एक सेट
- हवन कुण्ड ताम्र का 10/10 इंच या 12/12 इंच
- पिसा हुआ चन्दन
- नवग्रह समिधा
- हवन समिधा
- घृत पात्र
- पंच पात्र
यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-
- वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का - 1
- गाय का दूध - 100ML
- दही - 50ML
- मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार
- फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
- दूर्वादल (घास ) - 1मुठ
- पान का पत्ता - 07
- पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg
- पुष्पमाला - 5 ( विभिन्न प्रकार का)
- आम का पल्लव
- तुलसी पत्र -7
- पानी वाला नारियल
- थाली - 2 , कटोरी - 5 ,लोटा - 2 , चम्मच - 2 आदि
- अखण्ड दीपक -1
- तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित
- देवताओं के लिए वस्त्र - गमछा , धोती आदि
- बैठने हेतु दरी,चादर,आसन