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श्रीम‌द्भगवद्गीता

कथा | Duration : 4 Hours 45 minute
Price : 11000
About Puja

          द्वापर युग के अन्तिम चरण में पद्मनाभ भगवान् श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध में अर्जुन को निमित्त बना कर जो पवित्र उपदेश दिया, वह भगवद्गीता के नाम से जाना जाता है। इस अध्यात्मशास्त्र का प्रवचन महाभारत के भीष्मपर्व में किया गया है। भगवद्गीता के समान कल्याणकारी शास्त्र समग्र विश्व में अन्य कोई नहीं है। विश्व की सर्वाधिक भाषाओं में भगवद्गीता का अनुवाद हुआ है, भगवद्गीता की महत्ता को लैकिक दृष्टिसे भी प्रमाणित करता है। मानव को जीवन यापन करने की अद्भुत क्षमता भगवद्गीता के अध्ययन एवं पाठ से प्राप्त होती है। कर्तव्य पथ का बोध कराने वाला यह अद्भुत शास्त्र अष्टादश अध्यायों में उपनिबद्ध है। भगवान् श्रीकृष्ण एवं अर्जुन के सम्वाद को विशाल बुद्धि महर्षि वेदव्यास द्वारा छन्दोबद्ध वाणी में प्रस्तुत किया गया है। यह एक ऐसा ज्ञानमय दीपक है, जिसके आलोक में मानव, कर्तव्य पथ पर आरूढ़ होकर अभ्युदय एवं नि:श्रेयस (मोक्ष)  को सहज में प्राप्त कर लेता है।

        सनातन परम्परा एवं आर्ष ग्रन्थों में गीता, गो और गायत्री का अत्यधिक महत्वपूर्ण प्रतिपादन किया गया है,भगवद्गीता को अमृतत्व प्रदान करने वाला महाशास्त्र स्वीकार किया गया है। सच्चिदानन्द स्वरूप भगवान् श्रीकृष्ण की अमृतमयी वाणी, कालातीत एवं प्राणी मात्र के कल्याण का सम्पादन करने वाली है। महाभारत को मनीषियों ने पञ्चम वेद कहा है। जो महाभारत में है, वही अन्यत्र भी है, और जो कल्याण कारक वचन महाभारत में नहीं है, वो अन्यत्र भी कही उपलब्ध नहीं होता।
      ऐसे महाभारत का सारस्वरूप श्रीमद्भगवद्गीता है। प्रत्येक वचन वेद और विज्ञान की कसौटी पर सर्वथा सत्य सिद्ध होता है।यह शास्त्र जन्म जन्मान्तर के पाप समूह को नष्ट करने वाला है।

Benefits

श्रीमद्भगवद्गीता का माहात्म्य :-

  • पवित्रता पूर्वक नियमतः या अनुष्ठानात्मक पद्धति का आश्रय लेकर  भगवद्गीता का पाठ करने या कराने वाला मनुष्य भय, शोक आदि से पृथक् होकर भगवद्धाम का अधिकारी होता है। 
  • श्रीमद्भगवद्गीता रूपी गङ्गाजल में स्नान करने वाले मानव के समस्त पाप राशि वैसे ही नष्ट हो जाते हैं जैसे अग्नि की चिनगारी से कपास का ढेर समूह।
  • समग्र शास्त्रों के पाठ का फल एकमात्र भगवद्गीता के पाठ अनुष्ठान से ही प्राप्त हो जाता है, क्योंकी यह पञ्चम् वेद महाभारत का सारतत्व है।
  • भगवती भागीरथी का प्रादुर्भाव भगवान् के पादपद्म से हुआ है तथा भगवती गीता का प्राकट्य भगवान् श्रीकृष्ण के मुख कमल से हुआ है, अतः यह दोनों ही जीव मात्र को संसार बन्धन से मुक्त करने वाली है।
  • वेदों के सार सिद्धान्त को उपनिषदों में उपनिबद्ध किया गया है, उपनिषद् रूपी गायों का अमृततुल्य दुग्ध भगवद्गीता ,जिसे अर्जुन रूपी वत्स (बछड़ा) को निमित्त बनाकर देवकी नन्दन श्रीकृष्ण ने दोहन किया है। निश्चित ही इसका विधिवत् सेवन,पठन,मनन आदि करने वाले सुधीजन (विद्वान्) ही हैं।
  •  भगवान् वासुदेव के द्वारा कहा गया यह अनुपम शास्त्र गौरव की दृष्टि से निश्चित ही अद्वितीय है तथा एकमात्र परमदेव जिनमें समस्त देवों का अन्तर्भाव है। भगवान् श्रीकृष्ण का प्रत्येक नाम मन्त्रवत् स्तुत्य है। 
  • समग्र शुभ कर्मों की समाप्ति भगवान् श्री कृष्ण की सेवा एवं गीतापाठ में ही होती है।
  • पितृ मोक्ष की कामना या पितृऋण से उऋण होने के लिए भी श्रीमद्भगवद्गीता पाठ की उपादेयता है।
  • वेदों का सार स्वरुप यह अनुपम ग्रंथ है।
Process

श्रीम‌द्भगवद्गीता में  होने वाले प्रयोग या विधि

  1. स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
  2. प्रतिज्ञा सङ्कल्प
  3. गणपति गौरी पूजन
  4. कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
  5. पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
  6. षोडशमातृका पूजन
  7. सप्तघृतमातृका पूजन
  8. आयुष्यमन्त्रपाठ
  9. सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध (आभ्युदयिकश्राद्ध)
  10. नवग्रह मण्डल पूजन
  11. अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
  12. पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं पूजन 
  13. रक्षाविधान
  14. प्रधान देवता पूजन
  15. श्रीम‌द्भगवद्गीता सस्वर पाठ 
  16. पंचभूसंस्कार
  17. अग्नि स्थापन
  18. ब्रह्मा वरण 
  19. कुशकण्डिका
  20. आधार-आज्यभागसंज्ञक हवन
  21. घृताहुति
  22. मूलमन्त्र आहुति 
  23.  चरुहोम
  24. भूरादि नौ आहुति
  25.  स्विष्टकृत आहुति
  26. पवित्रप्रतिपत्ति
  27. संस्रवप्राशन 
  28. मार्जन
  29. पूर्णपात्र दान
  30. प्रणीता विमोक
  31. मार्जन 
  32. बर्हिहोम 
  33. पूर्णाहुति, आरती, भोग, विसर्जन  आदि
Puja Samagri

 वैकुण्ठ के द्वारा दी जाने वाली पूजन  सामग्री:-

  • रोली, कलावा    
  • सिन्दूर, लवङ्ग 
  • इलाइची, सुपारी 
  • हल्दी, अबीर 
  • गुलाल, अभ्रक 
  • गङ्गाजल, गुलाबजल 
  • इत्र, शहद 
  • धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई 
  • यज्ञोपवीत, पीला सरसों 
  • देशी घी, कपूर 
  • माचिस, जौ 
  • दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा 
  • सफेद चन्दन, लाल चन्दन 
  • अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला 
  • चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का 
  • पानी वाला नारियल, सप्तमृत्तिका 
  • सप्तधान्य, सर्वोषधि 
  • पञ्चरत्न, मिश्री 
  • पीला कपड़ा सूती, तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित  
  • पंचगव्य गोघृत, गोमूत्र

हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र :-

  • काला तिल 
  • जौ,चावल 
  •  कमलगट्टा, पंचमेवा 
  •  हवन सामग्री, घी,गुग्गुल
  • गुड़ (बूरा या शक्कर) ,गड़ी गोला 
  •  पान पत्ता, बलिदान हेतु पापड़
  • काला उडद 
  • पूर्णपात्र -कटोरी या भगोनी
  • प्रोक्षणी, प्रणीता, स्रुवा, शुचि, स्फय - एक सेट
  • हवन कुण्ड ताम्र का 10/10  इंच या 12/12 इंच 
  • कलश रखने के लिए मिट्टी का पात्र
  •  पिसा हुआ चन्दन 
  • नवग्रह समिधा
  •  हवन समिधा 
  •  घृत पात्र
  • कुशा
  • पंच पात्र

यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-

  • वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का - 1
  • गाय का दूध - 100ML
  • दही - 50ML
  • मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार 
  • फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
  • दूर्वादल (घास ) - 1मुठ 
  • पान का पत्ता - 11
  • पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg
  • पुष्पमाला - 7 ( विभिन्न प्रकार का)
  • आम का पल्लव - 2
  • विल्वपत्र - 21
  • तुलसी पत्र -7
  • शमी पत्र एवं पुष्प 
  •  थाली - 2 , कटोरी - 5 ,लोटा - 2 , चम्मच - 2 आदि 
  • अखण्ड दीपक -1
  • देवताओं के लिए वस्त्र -  गमछा , धोती  आदि 
  • बैठने हेतु दरी,चादर,आसन 
  • गोदुग्ध,गोदधि,गोबर

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