भगवान् शिव की कृपा प्राप्ति का सर्वोत्तम उपाय,महर्षि असित कृत शिव स्तोत्र

भगवान् शिव की कृपा प्राप्ति का सर्वोत्तम उपाय,महर्षि असित कृत शिव स्तोत्र

यह स्तोत्र ब्रह्मवैवर्त महापुराण” के अन्तर्गत महर्षि असित द्वारा गेय है  इस स्तोत्र में कुल नौ श्लोक हैं , जिनमें से प्रारम्भ के सात श्लोकों में भगवान्  शिव की स्तुति और अन्त के तीन श्लोकों में स्तोत्र पाठ से होने वाले  लाभ के विषय में बताया गया है  भगवान् शिव अपने भक्तों से शीघ्र ही प्रसन्न होने वाले हैं, और सभी प्रकार के सांसारिक कष्टों को हरने वाले हैं 

भगवान् आशुतोष  की प्रसन्नता और कष्टों की निवृत्ति के निमित्त इस स्तोत्र का पाठ करना चाहिए 

स्तोत्र :-

असित उवाच

जगद्गुरो नमस्तुभ्यं शिवाय शिवदाय च।

योगीन्द्राणां च योगीन्द्र गुरूणां गुरवे नमः ॥ १ ॥

असित बोले – जगद्गुरु ! आपको नमस्कार है  आप शिव हैं और शिव ( कल्याण ) के दाता हैं । योगीन्द्रों के भी योगीन्द्र तथा गुरुओं के भी गुरु हैं ; आपको नमस्कार है

मृत्योर्मृत्युस्वरूपेण मृत्युसंसारखण्डन ।

मृत्योरीश मृत्युबीज मृत्युञ्जय नमोऽस्तु ते ॥ २॥

मृत्यु के लिए भी मृत्यु रूप होकर जन्म – मृत्युमय संसार का खण्डन करने वाले देवता ! आपको नमस्कार है मृत्यु के ईश्वर ! मृत्यु के बीज ! मृत्युंजय ! आपको नमस्कार है |

कालरूपं कलयतां कालकालेश कारण।

कालादतीत कालस्य कालकाल नमोऽस्तु ते॥३॥

कालगणना करने वालों के लक्ष्यभूत कालरूप हे परमेश्वर ! आप काल के भी काल, ईश्वर और कारण हैं, तथा काल के लिए भी  कालातीत हैं हे कालों के काल ! आपको नमस्कार है

गुणातीत गुणाधार गुणबीज गुणात्मक ।

गुणीश गुणिनां बीज गुणिनां गुरवे नमः ॥ ४ ॥

हे गुणातीत ! गुणाधार ! गुणबीज ! गुणात्मक ! गुणीश ! और गुणियों के आदिकारण ! आप समस्त गुणवानों के गुरु हैं ; आपको नमस्कार है

ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मज्ञ ब्रह्मभावनतत्पर ।
ब्रह्मबीजस्वरूपेण ब्रह्मबीज नमोऽस्तु ते॥५॥

हे ब्रह्मस्वरुप ! ब्रह्मज्ञ ! ब्रह्मचिन्तनपरायण ! वेदों के बीज रूप होने के कारण ब्रह्मबीज ! आपको नमस्कार है   

इति स्तुत्वा शिवं नत्वा पुरस्तस्थौ मुनीश्वरः ।

दीनवत् साश्रुनेत्रश्च पुलकाञ्चितविग्रहः ॥ ६ ॥

इस प्रकार स्तुति करके शिव को प्रणाम करने के पश्चात् मुनीश्वर असित उनके सामने खड़े हो गये और दीन की भाँति नेत्रों से आंसू बहाने लगे उनके सम्पूर्ण शरीर में रोमांच हो आया

   स्तोत्र फलश्रुति :-

          असितेन कृतं स्तोत्रं भक्तियुक्तश्च यः पठेत्।
          वर्षमेकं हविष्याशी शङ्करस्य महात्मनः ॥ ७ ॥

          स लभेद् वैष्णवं पुत्रं ज्ञानिनं चिरजीविनम् ।
          भवेद्धनाढ्यो दुःखी च मूको भवति पण्डितः॥८॥

जो असित द्वारा किये गये महात्मा शंकर के इस स्तोत्र का प्रतिदिन भक्तिभाव से पाठ करता है, और एक वर्ष पर्यन्त नित्य हविष्य ग्रहण करता है – उसे ज्ञानी, चिरंजीवी एवम् वैष्णव पुत्र की प्राप्ति होती है जो धनाभाव से दु:खी हो, वह धनाढ्य और जो गूंगा हो, वह पण्डित हो जाता है

अभार्यो लभते भार्यां सुशीलां च पतिव्रताम् ।
इहलोके सुखं भुक्त्वा यात्यन्ते शिवसंनिधिम् ॥ ९ ॥

पत्नीहीन पुरुष को सुशीला एवं पतिव्रता पत्नी प्राप्त होती है, तथा वह इस लोक में सुख भोगकर अन्त में भगवान् शिव का सानिध्य प्राप्त करता है   

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