समस्त भौतिक दु:खों से निवृत्ति तथा अनन्त सुख की प्राप्ति हेतु करें माँ दुर्गा जी की यह “दुर्गा स्तुति”

समस्त भौतिक दु:खों से निवृत्ति तथा अनन्त सुख की प्राप्ति हेतु करें माँ दुर्गा जी की यह “दुर्गा स्तुति”

श्रीभागवत महापुराण के अन्तर्गत् वेद भगवान् के द्वारा भगवती दुर्गा की स्तुति की गयी | भगवती सभी प्रकार कष्टों को हरने वाली हैं | इस स्तोत्र का श्रद्धा पूर्वक गायन या वाचन करने से भगवती दुर्गा प्रसन्न होकर सर्वसम्पत्ति प्रदान करती हैं |  माता दुर्गा के अनन्य उपासक इस स्तोत्र के पाठ से समस्त दुक्खों को दूर कर अनन्त शान्ति तथा अपरिमित ऊर्जा को प्राप्त करते हैं | 

श्रुतय ऊचु : 

     दुर्गे विश्वमपि प्रसीद परमे सृष्ट्यादिकार्यत्रये 
                    ब्रह्माद्याः पुरुषास्त्रयो निजगुणैस्त्वत्स्वेच्छ्या कल्पिताः । 
     नो ते कोऽपि च कल्पकोऽत्र भुवने विद्येत मातर्यतः 
                    कः शक्तः परिवर्णितुं तव गुणाँल्लोके भवेदुर्गमान् ॥ १ ॥

वेदों ने कहा- दुर्गे ! आप सम्पूर्ण जगत् पर कृपा कीजिये | परमे ! आपने ही अपने गुणों के द्वारा स्वेच्छानुसार सृष्टि आदि तीनों कार्यों के निमित्त ब्रहम्मा आदि तीनों देवों की रचना की है, इसलिए इस जगत् में आपको रचने वाला कोई भी नहीं है | मात: ! आपके दुर्गम गुणों का वर्णन करने में इस लोक में भला कौन समर्थ हो सकता है | 

      त्वामाराध्य हरिर्निहत्य समरे दैत्यान् रणे दुर्जयान्
                     त्रैलोक्यं परिपाति शम्भुरपि ते धृत्वा पदं वक्षसि ।
      त्रैलोक्यक्षयकारकं समपिबद्यत्कालकूटं विषं
                     किं ते वा चरितं वयं त्रिजगतां ब्रूमः परित्र्यम्बिके ॥ २ ॥

भगवान् विष्णु आप की आराधना के प्रभाव से ही दुर्जय दैत्यों को युद्धस्थल में मारकर तीनों लोकों की रक्षा करते हैं | भगवान् शिव ने भी अपने ह्रदय पर आपका चरण धारण कर तीनों लोकों का विनाश करने वाले कालकूट विष का पान कर लिया था | तीनों लोकों की रक्षा करने वाली अम्बिके ! हम आपके चरित्र का वर्णन कैसे कर सकते हैं | 
      
     या पुंसः परमस्य देहिन इह स्वीयैर्गुणैर्मायया,
                देहाख्यापि चिदात्मिकापि च परिस्पन्दादिशक्तिः परा । 
     त्वन्मायापरिमोहितास्तनुभृतो यामेव देहस्थिता,
                  भेदज्ञानवशाद्वदन्ति पुरुषं तस्यै नमस्तेऽम्बिके ॥ ३ ॥

जो अपने गुणों से माया के द्वारा इस लोक में साकार परम पुरुष के देह्स्वरूप को धारण करती हैं, और जो पराशक्ति ज्ञान तथा क्रियाशक्ति के रूप में प्रतिष्ठित हैं; आपकी उस माया से विमोहित शरीरधारी प्राणी भेदज्ञान के कारण सर्वान्तरात्मा के रूप में विराजमान आपको ही पुरुष कह देते हैं; अम्बिके ! उन आप महादेवी को नमस्कार है |  
 
      स्त्रीपुंस्त्वप्रमुखैरुपाधिचयैर्हीनंपरं ब्रह्म यत्
                त्वत्तो या प्रथमं बभूव जगतां सृष्टौ सिसृक्षा स्वयम् ।
      सा शक्तिः परमाऽपि यच्च समभून्मूर्तिद्वयं शक्तित-
                स्त्वन्मायामयमेव तेन हि परं ब्रह्मापि शक्त्यात्मकम् ॥ ४ ॥

स्त्री–पुरुष रूप प्रमुख उपाधि समूहों से रहित जो परब्रह्म है, उसमें जगत् की सृष्टि के निमित्त सर्वप्रथम सृजन की जो इच्छा हुई, वह स्वयं आपकी ही शक्ति से हुई और वह पराशक्ति भी स्त्री-पुरुष दो मूर्तियों में आपकी शक्ति से ही विभक्त हुई है | इस कारण वह परब्रह्म भी मायामय शक्तिस्वरुप ही है | 

     तोयोत्थं करकादिकं जलमयं दृष्ट्वा यथा निश्चय- 
                   स्तोयत्वेन भवेद् ग्रहोऽप्यभिमतां तथ्यं तथैव ध्रुवम् ।
      ब्रह्मोत्थं सकलं विलोक्य मनसा शक्त्यात्मकं ब्रह्म त- 
                   च्छक्तित्वेन विनिश्चितः पुरुषधीः पारं परा ब्रह्मणि ॥ ५ ॥ 

जिस प्रकार जल से उत्पन्न ओले आदि को देखकर मान्यजनों को यह जल ही है- ऐसा ध्रुव निश्चय होता है, उसी प्रकार ब्रह्म से ही उत्पन्न इस समस्त जगत् को देखकर यह शक्यात्मक ब्रह्म ही है- ऐसा मन में विचार होता है, और पुनः परात्पर परब्रह्म में जो पुरुषबुद्धि है, वह भी शक्तिस्वरुप ही है, ऐसा निश्चित होता है | 

      षट्चक्रेषु लसन्ति ये तनुमतां ब्रह्मादयःषट् शिवा-
                       स्ते प्रेता भवदाश्रयाच्च परमेशत्वं समायान्ति हि ।
       तस्मादीश्वरता शिवे नहि शिवे त्वय्येव विश्वाम्बिके
                       त्वं देवि त्रिदशैकवन्दितपदे दुर्गे प्रसीदस्व नः ॥ ६ ॥

जगदम्बिके ! देहधारियों के शरीर में स्थित षट्चक्रों में ब्रह्मा आदि जो छः विभूतियाँ सुशोभित होती हैं, वे प्रलयान्त में आपके आश्रय से ही परमेशपद को प्राप्त होती हैं | इसलिए शिवे ! शिवादि देवों में स्वयं की ईश्वरता नहीं है, अपितु वह तो आप में ही है | देवि ! एकमात्र आपके चरणकमल ही देवताओं के द्वारा वन्दित हैं | दुर्गे ! आप हम पर प्रसन्न हों |  

“इस प्रकार श्रीमहाभागवत् महापुराण के अन्तर्गत् वेदों द्वारा की गयी दुर्गा स्तुति पूर्ण हुई” |  

वैदिक पद्धति से विशिष्ट पूजा-पाठ, यज्ञानुष्ठान, षोडश संस्कार, वैदिकसूक्ति पाठ, नवग्रह जप आदि के लिए हमारी साइट vaikunth.co पर जाएं तथा अभी बुक करें |      

Vaikunth Blogs

उत्तम वर की प्राप्ति तथा समस्त संकटों के शमन हेतु करें “भुवनेश्वरी कात्यायनी स्तोत्र” का पाठ
उत्तम वर की प्राप्ति तथा समस्त संकटों के शमन हेतु करें “भुवनेश्वरी कात्यायनी स्तोत्र” का पाठ

श्री मार्कण्डेय महापुराण के अन्तर्गत् “भुवनेश्वरी कात्यायनी” की स्तुति हमें प्राप्त होती है | भगवती...

Ram Navmi 2024: Date, Auspicious Time, Puja Vidhi, and Religious Significance
Ram Navmi 2024: Date, Auspicious Time, Puja Vidhi, and Religious Significance

Ram Navmi is one of the most celebrated festivals in Sanatan Dharma. This festival is especially sig...

नवरात्रि के प्रथम दिन करें माता शैलपुत्री की उपासना
नवरात्रि के प्रथम दिन करें माता शैलपुत्री की उपासना

हमारी चेतना में सत, रज, तम- तीनों प्रकार के गुण व्याप्त होते हैं। प्रकृति के साथ इसी चेतना के उत्सव...

Vivah Muhurat 2024: जानें 2024 में शुभ तिथि और मुहूर्त
Vivah Muhurat 2024: जानें 2024 में शुभ तिथि और मुहूर्त

षोडश संस्कारों का उल्लेख हमें हमारे धर्मग्रन्थों में प्रायः प्राप्त होता है । इन्हीं षोडश संस्कारों...

7 Benefits of Performing Rudrabhishek Puja on Mahashivratri 2024
7 Benefits of Performing Rudrabhishek Puja on Mahashivratri 2024

Mahashivratri is the most sacred and worshipped Shivratri among the 12 Shivratris that occur once a...

कृष्णकृपा प्राप्ति के लिए वरदान है यह श्रीभीष्म-कृत् भगवत् स्तुति
कृष्णकृपा प्राप्ति के लिए वरदान है यह श्रीभीष्म-कृत् भगवत् स्तुति

श्रीमद्भागतमहापुराण प्रथम स्कंध के नवम् अध्याय में  श्रीभीष्म जी के द्वारा भगवत् स्तुति की गयी है। य...

 +91 |

By clicking on Login, I accept the Terms & Conditions and Privacy Policy

Recovery Account