कृष्ण-भक्ति एवं आत्मोन्नति हेतु करें श्रीनन्दकुमाराष्टक का पाठ

कृष्ण-भक्ति एवं आत्मोन्नति हेतु करें श्रीनन्दकुमाराष्टक का पाठ

श्रीवल्लभाचार्य जी द्वारा विरचित यह स्तोत्र है। इस स्तोत्र में आठ श्लोक हैं जिनमें भगवान् श्री कृष्ण के सुन्दर स्वरुप और उनकी  लीलाओं का वर्णन किया गया है | इस स्तोत्र का पाठ करने से साधक श्रीकृष्ण भगवान् का सायुज्य प्राप्त करता है | और अपने कल्याण के मार्ग को प्रशस्त करता है |  

सुन्दरगोपालम् उरवनमालं नयनविशालं दुःखहरं
                   वृन्दावनचन्द्रमानन्दकन्दं परमानन्दं धरणिधरम्।
वल्लभघनश्यामं पूर्णकामं अत्यभिरामं प्रीतिकरं।    
                   भज नन्दकुमारं सर्वसुखसारं तत्त्वविचारं ब्रह्मपरम्।।१।।

जिनके हृदय में वनमाला है, नेत्र बड़े-बड़े हैं, जो शोकहारी, वृन्दावन के चन्द्रमा, परमानन्दमय और पृथ्वी को धारण करने वाले हैं, जो सब के प्रिय, मेघ के समान श्यामल, पूर्णकाम, अत्यन्त सुन्दर और प्रेम करने वाले हैं; उन समस्त सुखों के सारभूत, परब्रह्मस्वरूप, नन्दनन्दन मनमोहन, गोपाल श्रीकृष्ण को तत्त्वरूप जानकर भजो (भजन करो ) ।

सुन्दरवारिजवदनं निर्जितमदनं आनन्दसदनं मुकुटधरं
                       गुञ्जाकृतिहारं विपिनविहारं परमोदारं चीरहरम्।
वल्लभपटपीतं कृतउपवीतं करनवनीतं विबुधवरं
                        भज नन्दकुमारं सर्वसुखसारं तत्त्वविचारं ब्रह्मपरम्।।२।।

जिनका सुन्दर कमल के समान मुख है, जो अपनी कान्ति से कामदेव को भी जीत चुके हैं, जो आनन्द के आगार, मुकुटधारी, गुंजा की माला पहनने वाले, वृन्दावनविहारी परम उदार और गोपियों के चीर हरण करने वाले हैं, जिनको पीताम्बर प्रिय है, जो सुन्दर यज्ञोपवीत धारण किये हुए और हाथ में माखन लिये हुए हैं, उन समस्त सुखों के सारभूत, परब्रह्मस्वरूप, देवेश्वर नन्दनन्दन, श्रीकृष्ण को तत्त्वरूप जानकर भजो (भजन करो ) ।

शोभितमुखधूलं यमुनाकूलं निपटअतूलं सुखदतरं
                    मुखमण्डितरेणुं चारितधेनुं वादितवेणुं मधुरसुरम्।
वल्लभमतिविमलं शुभपदकमलं नखरुचिअमलं तिमिरहरं    
                    भज नन्दकुमारं सर्वसुखसारं तत्त्वविचारं ब्रह्मपरम्।।३।।

जो यमुना तट पर मुँह में धूल लपेटे शोभा पा रहे हैं, जिनकी कहीं तुलना नहीं है, जो परम सुखद हैं, जो धूलिधूसरित- मुख हो, धेनु चराते और मधुर स्वर से वेणु बजाते हैं, जो सबके प्रिय तथा अत्यन्त विमल हैं, जिनके चरणकमल सुन्दर हैं, नखों की कान्ति निर्मल है, जो अज्ञानान्धकार को दूर करते हैं, उन समस्त सुखों के सारभूत, परब्रह्मस्वरूप, नन्दनन्दन श्रीकृष्ण को तत्त्वरूप जानकर भजो (भजन करो) ।

शिरमुकुटसुदेशं कुञ्चितकेशं नटवरवेशं कामवरं
                   मायाकृतमनुजं हलधरअनुजं प्रतिहतदनुजं भारहरम्।
वल्लभव्रजपालं सुभगसुचालं हितमनुकालं भाववरं
                   भज नन्दकुमारं सर्वसुखसारं तत्त्वविचारं ब्रह्मपरम्।।४।।

जिनके सुन्दर मस्तक पर मुकुट है, बाल घुँघराले हैं, नटवर वेष है, जो काम से भी अधिक सुन्दर हैं, माया से मनुष्य-अवतार धारण करते हैं, बलरामजी के छोटे भाई हैं, दानवों को मारकर पृथ्वी का भार हरण करते हैं; जो व्रज के रक्षक, प्रियतम, सुन्दर गतिशील, प्रतिक्षण हित चाहने वाले और उत्तम भाव वाले हैं; उन सब सुखों के सारभूत परब्रह्मस्वरूप, नन्दनन्दन श्रीकृष्ण को तत्त्वरूप जानकर भजो (भजन करो) ) ।

इन्दीवरभासं प्रकटसुरासं कुसुमविकासं वंशिधरं
                 हृतमन्मथमानं रूपनिधानं कृतकलगानं चित्तहरम्।
वल्लभमृदुहासं कुञ्जनिवासं विविधविलासं केलिकरं
                भज नन्दकुमारं सर्वसुखसारं तत्त्वविचारं ब्रह्मपरम्।।५।।

जिनकी नीलकमल के समान कान्ति है, जिन्होंने पवित्र रास-रस को प्रकट किया है, जो कुसुमों के समान विकसित रहते हैं, वंशी धारण करते हैं; जिन्होंने कन्दर्प के दर्प को चूर कर दिया है, जो रूप की राशि हैं, मधुर गायन के द्वारा मन मोह लेते हैं, जिनका मधुर हास प्रिय लगता है, जो निकुंजों में रहकर नाना प्रकार की लीलाएँ किया करते हैं, उन सब सुखों के सारभूत, परब्रह्मस्वरूप, नन्दनन्दन श्रीकृष्ण को तत्त्वरूप जानकर भजो (भजन करो ) ।

अतिपरप्रवीणं पालितदीनं भक्ताधीनं कर्मकरं
                   मोहनमतिधीरं फणिबलवीरं हतपरवीरं तरलतरम्।
वल्लभव्रजरमणं वारिजवदनं हलधरशमनं शैलधरं
                   भज नन्दकुमारं सर्वसुखसारं तत्त्वविचारं ब्रह्मपरम्।।६।।

जो परम प्रवीण हैं, दीनों के पालक और भक्तों के अधीन कर्म करने वाले, जो अत्यन्त धीर मनमोहन, शेष के अवतार बलभद्ररूप, शत्रुवीरों के नाशक, अतिशय चपल, प्रेममय व्रज में रमनेवाले, कमल-वदन गोवर्धनधारी और हलधर जी को शान्त करने वाले हैं; उन सब सुखों के सारभूत, परब्रह्मस्वरूप, नन्दनन्दन श्रीकृष्ण को तत्त्वरूप जानकर भजो (भजन करो)।

जलधरद्युतिअङ्गं ललितत्रिभङ्गं बहुकृतरङ्गं रसिकवरं
                            गोकुलपरिवारं मदनाकारं कुञ्जविहारं गूढतरम्।
वल्लभव्रजचन्द्रं सुभगसुछन्दं कृतआनन्दं भ्रान्तिहरं
                          भज नन्दकुमारं सर्वसुखसारं तत्त्वविचारं ब्रह्मपरम्।।७।।

जिनके अंग की कान्ति मेघ के सदृश श्याम है, उसमें ललित त्रिभंग शोभा पाता है, जो नाना रंगों में रहते हैं, परम रसिक हैं, गोकुल ही जिनका परिवार है, मदन के समान सुन्दर आकृति है, जो कुंज में विहार करते हैं, सर्वत्र अत्यन्त गूढ़भाव से छिपे हैं, जो प्यारे व्रजचन्द्र, बड़भागी और दिव्य लीलामय हैं, सदा आनन्द करने वाले और भ्रान्ति को भगाने वाले हैं, उन सब सुखों के सारभूत, परब्रह्मस्वरूप, नन्दनन्दन श्रीकृष्ण को तत्त्वरूप जानकर भजो (भजन करो)।

वन्दितयुगचरणं पावनकरणं जगदुद्धरणं विमलधरं
                    कालियशिरगमनं कृतफणिनमनं घातितयमनं मृदुलतरम्।
वल्लभदुःखहरणं निर्मलचरणम् अशरणशरणं मुक्तिकरं
                      भज नन्दकुमारं सर्वसुखसारं तत्त्वविचारं ब्रह्मपरम्।।८।।

जिनके दोनों चरण (भक्तोंद्वारा) पूजनीय हैं, जो सबको पवित्र करते हैं और जगत्‌ का उद्धार करने वाले हैं, निर्मल भक्तों को हृदय में धारण करने वाले तथा कालिनाग के मस्तक पर नृत्य करने वाले हैं, जिनकी शेषनाग भी स्तुति करते हैं, जो कालयवन के घातक और अति कोमल हैं, जो अपने प्रियजनों के शोकहारी, निर्मल चरणों वाले, अशरणों की शरण और मोक्ष देनेवाले हैं, उन सब सुखों के सारभूत, परब्रह्मस्वरूप, नन्दनन्दन श्रीकृष्ण का तत्त्वरूप से भजन करो।

“इस प्रकार श्रीवल्लभाचार्य जी द्वारा विरचित यह श्रीनन्दकुमाराष्टक सम्पूर्ण हुआ” | 

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