मानसिक उपासना सर्वोपरि उपासना है,भगवान् शिव की उपासना में करें शिवमानस पूजा स्तोत्र का पाठ

मानसिक उपासना सर्वोपरि उपासना है,भगवान् शिव की उपासना में  करें शिवमानस पूजा स्तोत्र का पाठ

भगवान् शिव परम आनन्दस्वरूप, समस्त जगत् को धारण करने वाले तथा सर्वत्र व्यापक हैं ।  “शिवमानस पूजा” इस स्तोत्र का जो साधक प्रातः या सांयकाल भगवान् के समक्ष या अन्यत्र कहीं साफ़-स्वच्छ स्थान पर बैठकर पाठ करता है भगवान् शिव साक्षात् उसे षोडशोपचार सामग्री से की गयी पूजा के सदृश फल प्रदान करते हैं । इसलिए यह स्तोत्र मानसिक पूजा हेतु सर्वोत्तम है । 

रत्नैः कल्पितमासनं हिमजलैः स्नानं च दिव्याम्बरं
        नानारत्नविभूषितं  मृगमदामोदाङ्कितं चन्दनम् । 
जातीचम्पकबिल्वपत्ररचितं पुष्पं च धूपं तथा
        दीपं देव दयानिधे पशुपते हृत्कल्पितं गृह्यताम् ॥१।।

हे दयानिधे ! हे पशुपते ! हे देव ! यह रत्न निर्मित सिंहासन, शीतलजल से स्नान, नानारत्नावलि विभूषित दिव्य वस्त्र, कस्तूरि का गन्धसमन्वित चन्दन, जुही, चम्पा और बिल्वपत्र से रचित पुष्पांजलि तथा धूप और दीप यह सब मानसिक [ पूजोपहार ]  ग्रहण कीजिये ।

सौवर्णे नवरत्नखण्डरचिते पात्रे घृतं पायसं
        भक्ष्यं पञ्चविधं पयोदधियुतं रम्भाफलं पानकम् ।
शाकानामयुतं जलं रुचिकरं कर्पूरखण्डोज्ज्वलं
        ताम्बूलं मनसा मया विरचितं भक्त्या प्रभो स्वीकुरु ॥ २ ॥

मैंने नवीन रत्नखण्डों से खचित सुवर्णपात्र में घृतयुक्त खीर, दूध और दधि सहित पाँच प्रकार का व्यंजन, कदली फल, शर्बत, अनेकों शाक, कपूर से सुवासित और स्वच्छ किया हुआ मीठा जल तथा ताम्बूल-ये सब मन के द्वारा ही बनाकर प्रस्तुत किये हैं ; प्रभो ! कृपया इन्हें स्वीकार कीजिये ॥

छत्रं चामरयोर्युगं व्यजनकं चादर्शकं निर्मलं
        वीणाभेरिमृदङ्गकाहलकला गीतं च नृत्यं तथा ।
साष्टाङ्गं प्रणतिः स्तुतिर्बहुविधा ह्येतत् समस्तं मया,
        सङ्कल्पेन समर्पितं तव विभो पूजां गृहाण प्रभो ॥ ३ ॥

छत्र,दो चॅवर,पंखा,निर्मल दर्पण, वीणा, भेरी,मृदंग,दुन्दुभी के वाद्य, गान और नृत्य, साष्टांग प्रणाम, नानाविधि स्तुति- ये सब मैं संकल्प से ही आपको समर्पण करता हूँ; प्रभो ! मेरी यह पूजा ग्रहण कीजिये । 

आत्मा त्वं गिरिजा मतिः सहचराः प्राणाः शरीरं गृहं
        पूजा ते विषयोपभोगरचना निद्रा समाधिस्थितिः ।
सञ्चारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः स्तोत्राणि सर्वा गिरो
        यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शम्भो तवाराधनम् ॥ ४ ॥

हे शम्भो ! मेरी आत्मा तुम हो, बुद्धि पार्वती जी हैं, प्राण आपके गण हैं, शरीर आपका मन्दिर है, सम्पूर्ण विषय- भोग की रचना आपकी पूजा है, निद्रा समाधि है, मेरा चलना-फिरना आपकी परिक्रमा है तथा सम्पूर्ण शब्द आपके स्तोत्र हैं; इस प्रकार मैं जो-जो भी कार्य करता हूँ, वह सब आपकी आराधना ही है ।

करचरणकृतं वाक्कायजं कर्मजं वा 
         श्रवणनयनजं वा मानसं वापराधम् । 
विहितमविहितं वा सर्वमेतत् क्षमस्व
         जय जय करुणाब्धे श्रीमहादेव शम्भो ॥५॥

प्रभो ! मैंने हाथ, पैर, वाणी, शरीर, कर्म, कर्णौ, नेत्र अथवा मन से भी जो अपराध किये हों, वे विहित हों अथवा अविहित, उन सबको हे करुणासागर महादेव शम्भो ! आप क्षमा कीजिये । आपकी जय हो, जय हो । 

।। इस प्रकार श्रीमत् शंकराचार्य जी द्वारा विरचित “शिवमानसपूजा” स्तोत्र सम्पूर्ण हुआ ।। 

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