विकट विपत्ति तथा मृत्यु के समतुल्य कष्ट से मुक्ति हेतु करें महाकाल स्तुति

विकट विपत्ति तथा मृत्यु के समतुल्य कष्ट से मुक्ति हेतु करें महाकाल स्तुति

।। महाकाल स्तुति स्तोत्र ।। 

भगवान् शिव के अनेकों नाम हैं । भक्त भिन्न-भिन्न नामों से इनका गुणगान करते हैं, कोई महादेव तो कोई भोलेनाथ, कोई अघोरी तो कोई शंभु । भोलेनाथ के अलग-अलग रूपों के कारण ही इनके विभिन्न नाम हैं । इन्हें तंत्र साधना का ईश भी कहा जाता है । इसलिए कोई भी तंत्र साधना इनके बिना सम्पूर्ण नहीं होती है । जो साधक एकाग्रचित्त होकर सच्ची श्रद्धा से इनकी उपासना करता है, उसके जीवन में आने वाले बड़े-बड़े कष्ट दूर हो जाते हैं । भगवान् शिव का एक स्वरूप महाकाल का भी है । भगवान् शिव मृत्यु को भी अपने वश में रखते हैं । इसलिए इन्हें महाकाल नाम से जाना जाता है ।

                    ब्रह्मोवाच 

नमोऽस्त्वनन्तरूपाय नीलकण्ठ नमोऽस्तु ते ।
अविज्ञातस्वरूपाय कैवल्यायामृताय च ॥१॥ 

ब्रह्माजी बोले- हे नीलकण्ठ ! आपके अनन्त रूप हैं, आपको बार-बार नमस्कार है । आपके स्वरूप का यथावत् ज्ञान किसी को नहीं है । आप कैवल्य (मोक्ष को प्रदान करने वाले) एवं अमृतस्वरूप हैं । आपको नमस्कार है ।   

नान्तं देवा विजानन्ति यस्य तस्मै नमो नमः। 
यं न वाचः प्रशंसन्ति नमस्तस्मै चिदात्मने ॥२॥ 

जिनका अन्त देवता नहीं जानते, उन भगवान् शिव को नमस्कार है, नमस्कार है । जिनकी प्रशंसा (गुणगान) करने में वाणी असमर्थ है, उन चिदात्मा शिव को नमस्कार है ।

योगिनो यं हृदःकोशे प्रणिधानेन निश्चलाः । 
ज्योतीरूपं प्रपश्यन्ति तस्मै श्रीब्रह्मणे नमः ॥ ३॥

योगी समाधि में निश्चल होकर अपने हृदयकमल के कोष में जिनके ज्योतिर्मय स्वरूप का दर्शन करते हैं, उन श्रीब्रह्म को नमस्कार है ।

कालात्पराय कालाय स्वेच्छया पुरुषाय च ।
गुणत्रयस्वरूपाय नमः प्रकृतिरूपिणे ॥ ४॥

जो काल से परे, कालस्वरूप, स्वेच्छा से पुरुष रूप धारण करने वाले, त्रिगुणस्वरूप तथा प्रकृतिरूप हैं, उन भगवान् शंकर को नमस्कार है ।

विष्णवे  सत्त्वरूपाय रजोरूपाय वेधसे । 
तमोरूपाय रुद्राय स्थितिसर्गान्तकारिणे ॥ ५॥

हे जगत की स्थिति, उत्पत्ति और संहार करने वाले, सत्त्वस्वरूप विष्णु, रजोरूप ब्रह्मा और तमोरूप रुद्र ! आपको नमस्कार है ।

नमो नमः स्वरूपाय पञ्चबुद्धीन्द्रियात्मने ।
क्षित्यादिपञ्चरूपाय नमस्ते विषयात्मने ॥ ६ ॥

बुद्धि, इन्द्रियरूप तथा पृथ्वी आदि पंचभूत और शब्द- स्पर्शादि पंच विषयस्वरूप ! आपको बार-बार नमस्कार है ।

नमो ब्रह्माण्डरूपाय तदन्तर्वर्तिने नमः । 
अर्वाचीनपराचीनविश्वरूपाय ते नमः ।। ७।।

जो ब्रह्माण्डस्वरूप हैं और ब्रह्माण्ड के अन्तः प्रविष्ट हैं तथा जो अर्वाचीन (आधुनिक) भी हैं और प्राचीन भी हैं एवं सर्वस्वरूप हैं, उन्हें नमस्कार है, नमस्कार है । 

अचिन्त्यनित्यरूपाय सदसत्पतये नमः ।
नमस्ते भक्तकृपया स्वेच्छाविष्कृतविग्रह ॥ ८ ॥

अचिन्त्य और नित्यस्वरूप वाले तथा सत्-असत् के स्वामिन् ! आपको नमस्कार है । हे भक्तों के ऊपर कृपा करने के लिये स्वेच्छा से सगुण स्वरूप धारण करने वाले प्रभु आपको नमस्कार है ।

तव निःश्वसितं वेदास्तव वेदोऽखिलं जगत् ।
विश्वभूतानि ते पादः शिरो द्यौः समवर्तत ॥ ९॥

हे प्रभो ! वेद आपके निःश्वास हैं, सम्पूर्ण जगत् आपका स्वरूप है । विश्व के समस्त प्राणी आपके चरणरूप हैं, आकाश आपका सिर है । हे ! प्रभु आपको मेरा नमस्कार है ।

नाभ्या आसीदन्तरिक्षं लोमानि च वनस्पतिः । 
चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्यस्तव प्रभो ।।१०।।

हे नाथ ! आपकी नाभि से अन्तरिक्ष की स्थिति है, आपके लोम वनस्पति हैं । भगवन् ! आपके मन से चन्द्रमा और नेत्रों से सूर्य की उत्पत्ति हुई है ।

त्वमेव सर्वं त्वयि देवि सर्वं ,
                  सर्वस्तुतिस्तव्य इह त्वमेव । 
ईश त्वया वास्यमिदं हि सर्वं,
                  नमोस्तु भूयोऽपि नमो नमस्ते ॥ ११।।

हे देव ! आप ही सब कुछ हैं, आप में ही सबकी स्थिति है । इस लोक में सब प्रकार की स्तुतियों के द्वारा स्तवन् करने योग्य आप ही हैं । हे ईश्वर ! आपके द्वारा यह सम्पूर्ण विश्वप्रपंच व्याप्त है, आपको पुनः-पुनः नमस्कार है ।

॥ इति श्रीस्कन्दमहापुराणे ब्रह्मखण्डे महाकालस्तुतिः सम्पूर्णा ॥

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