दरिद्रता, दुःख, दुर्भाग्य से मुक्ति प्राप्ति हेतु करें दारिद्र्यदहन शिव स्तोत्र का पाठ

दरिद्रता, दुःख, दुर्भाग्य से मुक्ति प्राप्ति हेतु करें दारिद्र्यदहन शिव स्तोत्र का पाठ

।। दारिद्र्यदहन शिव स्तोत्रम् ।।

महर्षि वशिष्ठजी द्वारा विरचित इस स्तोत्र में कुल नौ (09) श्लोक हैं । इन नौ श्लोकों में साधक भगवान् शिव से आई हुई दरिद्रता के नाश हेतु प्रार्थना करता है । जो साधक इस स्तोत्र का नियम पूर्वक पाठ करते हैं उनके धन-यश-वैभव और ऐश्वर्य में वृद्धि होती है तथा रोगादि से निवृत्ति होती है । 

विश्वेश्वराय नरकार्णवतारणाय  कर्णामृताय  शशिशेखरधारणाय । 
कर्पूरकान्तिधवलाय जटाधाराय दारिद्र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥१॥

समस्त चराचर विश्व के स्वामिरूप विश्वेश्वर, नरकरूपी संसारसागर से उद्धार करने वाले, कर्ण से श्रवण करने में अमृत के समान नाम वाले, अपने भाल पर चन्द्रमा को आभूषणरूप में धारण करने वाले, कर्पूर की कान्ति के समान धवल वर्णवाले, जटाधारी और दरिद्रतारूपी दुःख के विनाशक भगवान् शिव को मेरा नमस्कार है ।

गौरीप्रियाय रजनीशकलाधराय कालान्तकाय भुजगाधिपकङ्कणाय ।
गङ्गाधराय गजराजविमर्दनाय दारिद्र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥२॥

गौरी के अत्यन्त प्रिय, रजनीश्वर (चन्द्र) की कला को धारण करने वाले, काल के भी अन्तक (यम) रूप, नागराज को कंकणरूप में धारण करने वाले, अपने मस्तक पर गंगा को धारण करने वाले, गजराज का विमर्दन करने वाले और दरिद्रता रूपी दुःख के विनाशक भगवान् शिव को मेरा नमस्कार है । 

भक्तिप्रियाय भवरोगभयापहाय उग्राय दुर्गभवसागरतारणाय ।
ज्योतिर्मयाय गुणनामसुनृत्यकाय दारिद्र्यदुःखदहनाय नम: शिवाय ॥३॥

भक्ति के प्रिय, संसाररूपी रोग एवं भय के विनाशक, संहार के समय उग्ररूपधारी, दुर्गम भवसागर से पार कराने वाले, ज्योति: स्वरुप, अपने गुण और नाम के अनुसार सुन्दर नृत्य करने वाले तथा दरिद्रतारूपी दुःख के विनाशक भगवान् शिव को मेरा नमस्कार है ।

चर्माम्बराय शवभस्मविलेपनाय भालेक्षणाय मणिकुण्डलमण्डिताय ।
मञ्जीरपादयुगलाय जटाधराय  दारिद्र्यदुःखदहनाय नम: शिवाय ॥४॥

व्याघ्रचर्मधारी, चिताभस्म को लगाने वाले, भाल में तृतीय नेत्रधारी, मणियों के कुण्डल से सुशोभित, अपने चरणों में नूपुर धारण करने वाले जटाधारी और दरिद्रतारूपी दुःख के विनाशक भगवान् शिव को मेरा नमस्कार है ।

पञ्चाननाय फणिराजविभूषणाय हेमांशुकाय भुवनत्रयमण्डिताय ।
आनन्दभूमिवरदाय तमोमयाय  दारिद्र्यदुःखदहनाय नम: शिवाय ॥५॥

पाँच मुखवाले, नागराजरूपी आभूषणोंसे सुसज्जित, सुवर्णके समान वस्त्रवाले अथवा सुवर्णके समान किरणवाले, तीनों लोकोंमें पूजित, आनन्दभूमि (काशी) को वर प्रदान करनेवाले, सृष्टिके संहारके लिये तमोगुणाविष्ट होनेवाले तथा दरिद्रतारूपी दुःखके विनाशक भगवान् शिवको मेरा नमस्कार है ।

भानुप्रियाय भवसागरतारणाय कालान्तकाय कमलासनपूजिताय ।
नेत्रत्रयाय शुभलक्षणलक्षिताय दारिद्र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥६॥ 

सूर्य को अत्यन्त प्रिय अथवा सूर्य के प्रेमी, भवसागर से उद्धार करने वाले, काल के लिये भी महाकालस्वरूप, कमलासन (ब्रह्मा)- से सुपूजित, तीन नेत्रों को धारण करने वाले, शुभ लक्षणों से युक्त तथा दरिद्रतारूपी दुःख के विनाशक भगवान् शिव को मेरा नमस्कार है । 

रामप्रियाय रघुनाथवरप्रदाय नागप्रियाय नरकार्णवतारणाय ।
पुण्येषु पुण्यभरिताय सुरार्चिताय दारिद्र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥७॥

मर्यादापुरुषोत्तम भगवान् राम को अत्यन्त प्रिय अथवा राम से प्रेम करने वाले, रघुनाथ को वर देने वाले, सर्पों के अतिप्रिय, भवसागररूपी नरक से तारने वाले, पुण्यवानों में परिपूर्ण पुण्यवाले, समस्त देवताओं से सुपूजित तथा दरिद्रतारूपी दुःख के विनाशक भगवान् शिव को मेरा नमस्कार है । 

मुक्तेश्वराय फलदाय गणेश्वराय गीतप्रियाय वृषभेश्वरवाहनाय ।
मातङ्गचर्मवसनाय महेश्वराय दारिद्र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥८॥

मुक्तजनों के स्वामिरूप, पुरुषार्थचतुष्ट्यरूप फल को देने वाले, प्रमथादि गणों के स्वामी, स्तुतिप्रिय, नन्दीवाहन, गजचर्म को वस्त्ररूप में धारण करने वाले, महेश्वर तथा दरिद्रतारूपी दुःख के विनाशक भगवान् शिव को मेरा नमस्कार है ।

वसिष्ठेन कृतं स्तोत्रं सर्वरोगनिवारणम् ।
सर्वसम्पत्करं शीघ्रं पुत्रपौत्रादिवर्धनम् ।
त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नित्यं स हि स्वर्गमवाप्नुयात् ॥९॥

समस्त रोगों के विनाशक तथा शीघ्र ही समस्त सम्पत्तियों को प्रदान करने वाले और पुत्र-पौत्रादि वंश-परम्परा को बढ़ाने वाले वसिष्ठद्वारा निर्मित इस स्तोत्र का जो भक्त नित्य तीनों कालों में पाठ करता है, उसे निश्चय ही स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है । 

॥ इति महर्षिवसिष्ठविरचितं दारिद्रयदहनशिवस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

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