भगवान् श्रीकृष्णचन्द की अर्धांगिनी श्रीयमुनाजी की कृपा प्राप्ति एवं सर्वथा रक्षा हेतु श्रीयमुना कवच

भगवान् श्रीकृष्णचन्द की अर्धांगिनी श्रीयमुनाजी की कृपा प्राप्ति एवं सर्वथा रक्षा हेतु श्रीयमुना कवच

श्रीयमुना महारानी भगवान् श्रीकृष्ण की परम प्रेयसी हैं । इनका आचमन, दर्शन, कीर्तन आदि करने से कृष्णप्रेम की प्राप्ति होती है । “गर्गाचार्य प्रणीत श्रीगर्गसंहिता के माधुर्यखण्ड अध्याय षोडश में श्रीयमुना-कवच” का उल्लेख है, जो परम अद्भुत कवच है । इस कवच का भक्तियुक्त चित्त से जो प्रयोग करता है, उसके समस्त मनोरथ पूर्ण होते हैं । जो बुद्धिजीवी भक्त ब्रह्मचर्य- पूर्वक सात्विक आहार का सेवन करते हुए तीन माह तक इस कवच से स्वयं को या परिवार को रक्षित करता है उसके धन, यौवन, आदि की वृद्धि होती है । जो भी साधक तीन माह की अवधि पर्यंत प्रतिदिन भक्तियुक्त होकर एक सौ दस बार पाठ करता है उसे इस लोक में समस्त लौकिक ऐश्वर्य की प्राप्ति के अनन्तर योगिदुर्लभ गोलोक की प्राप्ति होती है ।

                   मान्धातोवाच 

यमुनायाः कृष्णराज्ञ्याः कवचं सर्वतोऽमलम् । 
देहि मह्यं महाभाग धारयिष्याम्यहं सदा ॥१।।

मांधाता बोले – महाभाग ! आप मुझे भगवान् श्रीकृष्ण की पटरानी यमुनाजी के सर्वथा निर्मल कवच का उपदेश दीजिए मैं उसे सदा धारण करूंगा ।

                  सौभरिरुवाच 

यमुनायाश्च कवचं सर्वरक्षाकरं नृणाम् । 
चतुष्पदार्थदं साक्षाच्छृणु राजन् महामते ॥२।।

सौभरि बोले - महामति नरेश ! यमुना जी का कवच मनुष्यों की सब प्रकार से रक्षा करने वाला तथा साक्षात् चारों पदार्थों को देने वाला है, तुम इसे सुनो ।

कृष्णां चतुर्भुजां श्यामां पुण्डरीकदलेक्षणाम् । 
रथस्थां सुन्दरीं ध्यात्वा धारयेत्कवचं ततः ॥ ३।।

यमुना जी के चार भुजाएं हैं । वे श्यामा (श्यामवर्णा एवं षोडश वर्ष की अवस्था से युक्त) हैं । उनके नेत्र प्रफुल्ल कमलदल के सदृश सुंदर एवं विशाल हैं । वे परम सुंदरी हैं और दिव्य रथ पर बैठी हुई हैं । इस प्रकार उनका ध्यान करके कवच धारण करे ।

स्नातः पूर्वमुखो मौनी कृतसन्ध्यः कुशासने । 
कुशैर्बद्धशिखो विप्रः पठेद्वै स्वस्तिकासनः ॥४।।

स्नान करके पूर्वाभिमुख हो मौन भाव से कुशासन पर बैठे और कुशों द्वारा शिखा बांधकर संध्या- वंदन करने के अनन्तर द्विज-मात्र स्वस्तिकासन में स्थित होकर कवच का पाठ करे ।

यमुना मे शिरः पातु कृष्णा नेत्रद्वयं सदा। 
श्यामा भ्रूभङ्गदेशं च नासिकां नाकवासिनी ॥ ५ ।।

'यमुना' मेरे मस्तककी रक्षा करें और 'कृष्णा' दोनों नेत्रोंकी । 'श्यामा' भ्रूभंग-देशकी और 'नाकवासिनी' नासिकाकी रक्षा करें।

कपोलौ पातु मे साक्षात्परमानन्दरूपिणी। 
कृष्णवामांससम्भूता पातु कर्णद्वयं मम ॥ ६ ।।

'साक्षात् परमानन्दरूपिणी' मेरे दोनों कपोलों की रक्षा करें । कृष्णवामांससम्भूता' (श्रीकृष्णके बायें कंधे से प्रकट हुई वे देवी) मेरे दोनों कानों का संरक्षण करें ।

अधरौ पातु कालिन्दी चिबुकं सूर्यकन्यका। 
यमस्वसा कन्धरां च हृदयं मे महानदी ॥ ७।।

'कालिन्दी' अधरों की और 'सूर्यकन्या' चिबुक (ठोढ़ी) की रक्षा करें। 'यमस्वसा' (यमराज की बहन) मेरी ग्रीवा की और 'महानदी' मेरे हृदय की रक्षा करें ।

कृष्णप्रिया पातु पृष्ठं तटिनी मे भुजद्वयम् । 
श्रोणीतटं च सुश्रोणी कटिं मे चारुदर्शना ॥ ८।।

'कृष्णप्रिया' पृष्ठ-भाग का और 'तटिनी' मेरी दोनों भुजाओं का रक्षण करें । 'सुश्रोणी' श्रोणीतट (नितम्ब)- की और 'चारुदर्शना' मेरे कटिप्रदेश की रक्षा करें ।

ऊरुद्वयं तु रम्भोरुर्जानुनी त्वङ्घ्रिभेदिनी। 
गुल्फौ रासेश्वरी पातु पादौ पापापहारिणी ॥ ९।।

'रम्भोरु' दोनों ऊरुओं (जाँघों) की और 'अङ्घ्रि-भेदिनी' मेरे दोनों घुटनों की रक्षा करें । 'रासेश्वरी' गुल्फों (घुट्ठियों) का और 'पापापहारिणी' पादयुगल का त्राण करें ।

अन्तर्बहिरधश्चोर्ध्वं दिशासु विदिशासु च। 
समन्तात्पातु जगतः परिपूर्णतमप्रिया ॥ १०।।

'परिपूर्णतमप्रिया' भीतर बाहर, नीचे- ऊपर तथा दिशाओं और विदिशाओं में सब ओर से मेरी रक्षा करें ।

इदं श्रीयमुनायाश्च कवचं परमाद्भुतम्। 
दशवारं पठेद्भक्त्या निर्धनो धनवान् भवेत् ॥ ११।।

यह श्रीयमुना का परम अद्भुत कवच है । जो भक्तिभाव से दस बार इसका पाठ करता है, वह निर्धन भी धनवान् हो जाता है।११।।

त्रिभिर्मासैः पठेद्धीमान् ब्रह्मचारी मिताशनः । 
सर्वराज्याधिपत्यञ्च प्राप्यते नात्र संशयः ॥ १२।।

जो बुद्धिमान् मनुष्य ब्रह्मचर्यके पालनपूर्वक परिमित आहारका सेवन करते हुए तीन मासतक इसका पाठ करेगा, वह सम्पूर्ण राज्योंका आधिपत्य प्राप्त कर लेगा, इसमें संशय नहीं है ।

दशोत्तरशतं नित्यं त्रिमासावधि भक्तितः । 
यः पठेत्प्रयतो भूत्वा तस्य किं किं न जायते ॥ १३।।

जो तीन माह की अवधि तक प्रतिदिन भक्तिभाव से शुद्धचित्त हो इस स्तोत्र का एक सौ दस बार पाठ करेगा, उसको क्या-क्या नहीं मिल जायेगा ? अर्थात् सब कुछ (प्रत्येक भौतिक वस्तु)  प्राप्त हो जायेगी ।

य: पठेत्प्रातरुत्थाय सर्वतीर्थफलं लभेत् । 
अन्ते व्रजेत्परं धाम गोलोकं योगिदुर्लभम् ॥ १४।।

जो प्रातःकाल उठकर इसका पाठ करेगा, उसे सम्पूर्ण तीर्थों में स्नान का फल मिल जायगा तथा अन्त में वह योगिदुर्लभ परमधाम गोलोक में चला जायगा ।

“इस प्रकार श्रीगर्ग संहितामें माधुर्यखण्डके अन्तर्गत् श्रीनारद बहुलाश्व-संवादमें श्रीसौभरि-मान्धाता के संवादके प्रसंगमें 'श्रीयमुना-कवच' नामक सोलहवाँ अध्याय सम्पूर्ण हुआ” ।

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