धन-धान्य की वृद्धि हेतु करें शङ्कराचार्यकृत् श्रीअन्नपूर्णा स्तोत्र का पाठ

धन-धान्य की वृद्धि हेतु करें शङ्कराचार्यकृत् श्रीअन्नपूर्णा स्तोत्र का पाठ

।। श्री अन्नपूर्णास्तोत्रम् ।। 

श्रीशंकराचार्यजी द्वारा विरचित यह स्तोत्र समस्त इहलौकिक एवं पारलौकिक संपदाओं को प्रदान करने वाला है । जिस गृह में भगवती अन्नपूर्णा के इस स्तोत्र का नित्य का मासिक पाठ होता है वहां भगवती की कृपा से कभी अन्नभण्डार में अल्पता नहीं आती है । 

नित्यानन्दकरी वराभयकरी सौन्दर्यरत्नाकरी
              निर्धूताखिलघोरपावनकरी प्रत्यक्षमाहेश्वरी ।
प्रालेयाचलवंशपावनकरी काशीपुराधीश्वरी 
              भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥१॥

आप नित्य आनन्द प्रदान करने वाली हैं, वर तथा अभय देने वाली हैं, सौन्दर्यरूपी रत्नों की खान हैं, भक्तों के सम्पूर्ण पापों को नष्ट करके उन्हें पवित्र कर देने वाली हैं, साक्षात् माहेश्वरी के रूप में प्रतिष्ठित हैं, [पार्वती के रूप में जन्म लेकर ] आपने हिमालय के वंश को पावन कर दिया है, आप काशीपुरी की अधीश्वरी (स्वामिनी) हैं, अपनी कृपा का आश्रय देने वाली हैं, आप [समस्त प्राणियों की ] माता हैं, आप भगवती अन्नपूर्णा हैं; मुझे भिक्षा प्रदान करें ।  

नानारत्नविचित्रभूषणकरी हेमाम्बराडम्बरी । 
            मुक्ताहारविलम्बमानविलसद्वक्षोजकुम्भान्तरी।
काश्मीरागरुवासिताङ्गरुचिरे काशीपुराधीश्वरी 
            भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥२॥

आप अनेकविध रत्नों के विचित्र आभूषण धारण करने वाली हैं, आप स्वर्णजटित वस्त्रों से शोभा पाने वाली हैं, आपके वक्षःस्थल का मध्यभाग मुक्ताहार से सुशोभित हो रहा है, आपके श्रीअंग केशर और अगरु से सुवासित हैं, आप काशीपुरी की अधीश्वरी हैं, अपनी कृपा का आश्रय देने वाली हैं, आप [समस्त प्राणियों की] माता हैं, आप भगवती अन्नपूर्णा हैं; मुझे भिक्षा प्रदान करें ।

योगानन्दकरी रिपुक्षयकरी धर्मार्थनिष्ठाकरी
           चन्द्रार्कानलभासमानलहरी त्रैलोक्यरक्षाकरी ।
सर्वैश्वर्यसमस्तवाञ्छितकरी काशीपुराधीश्वरी 
           भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥३॥

आप [योगिजनों को] योग का आनन्द प्रदान करती हैं, शत्रुओं का नाश करती हैं, धर्म और अर्थ के लिये लोगों में निष्ठा उत्पन्न करती हैं; सूर्य, चन्द्र तथा अग्नि की प्रभा-तरंगों के समान कान्तिवाली हैं, तीनों लोकों की रक्षा करती हैं, अपने भक्तों को सभी प्रकार के ऐश्वर्य प्रदान करती हैं; उनके समस्त मनोरथ पूर्ण करती हैं, आप काशीपुरी की अधीश्वरी हैं, अपनी कृपा का आश्रय देने वाली हैं, आप [ समस्त प्राणियों की] माता हैं, आप भगवती अन्नपूर्णा हैं; मुझे भिक्षा प्रदान करें । 

कैलासाचलकन्दरालयकरी गौरी उमा शङ्करी 
           कौमारी निगमार्थगोचरकरी ओङ्कारबीजाक्षरी ।
मोक्षद्वारकपाटपाटनकरी काशीपुराधीश्वरी 
           भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥४॥

आपने कैलासपर्वत की गुफा को अपना निवासस्थल बना रखा है, आप गौरी, उमा, शंकरी तथा कौमारी के रूपमें प्रतिष्ठित हैं, आप वेदार्थ तत्त्वों का अवबोध कराने वाली हैं, आप 'ओंकार' बीजाक्षरस्वरूपिणी हैं, आप मोक्षमार्ग के कपाट का उद्घाटन करने वाली हैं, आप काशीपुरी की अधीश्वरी हैं, अपनी कृपा का आश्रय देने वाली हैं, आप [समस्त प्राणियों की] माता हैं, आप भगवती अन्नपूर्णा हैं; मुझे भिक्षा प्रदान करें ।

दृश्यादृश्यविभूतिवाहनकरी ब्रह्माण्डभाण्डोदरी 
           लीलानाटकसूत्रभेदनकरी विज्ञानदीपाङ्‌कुरी ।
श्रीविश्वेशमनः प्रसादनकरी काशीपुराधीश्वरी 
           भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥५॥

आप दृश्य तथा अदृश्यरूप अनेकविध ऐश्वर्य रूपी वाहनों पर आरूढ़ होने वाली हैं, आप अनन्त ब्रह्माण्ड को अपने उदररूपी पात्र में धारण करने वाली हैं, माया-प्रपंच के (कारणभूत अज्ञान) सूत्र का भेदन करने वाली हैं, आप विज्ञान (अपरोक्षानुभूति)-रूपी दीपक की शिखा हैं, आप भगवान् विश्वनाथ के मन को प्रसन्न रखने वाली हैं, आप काशीपुरी की अधीश्वरी हैं, अपनी कृपा का आश्रय देने वाली हैं, आप [ समस्त प्राणियों की] माता हैं, आप भगवती अन्नपूर्णा हैं; मुझे भिक्षा प्रदान करें ।

उर्वीसर्वजनेश्वरी भगवती मातान्नपूर्णेश्वरी
          वेणीनीलसमानकुन्तलहरी नित्यान्नदानेश्वरी ।
सर्वानन्दकरी सदा शुभकरी काशीपुराधीश्वरी 
           भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥६॥

आप पृथ्वीतल पर स्थित सभी प्राणियों की ईश्वरी (स्वामिनी) हैं, आप ऐश्वर्यशालिनी हैं, सभी जीवों में मातृभाव से विराजती हैं, अन्न से भण्डार को परिपूर्ण रखने वाली देवी हैं, आप नील वर्ण की वेणी के समान लहराते केश-पाशवाली हैं, आप निरन्तर अन्न-दान में लगी रहती हैं, समस्त प्राणियों को आनन्द प्रदान करने वाली हैं, सर्वदा [भक्तजनोंका] मंगल करने वाली हैं, आप काशीपुरी की अधीश्वरी हैं, अपनी कृपा का आश्रय देने वाली हैं, आप [समस्त प्राणियों की] माता हैं, आप भगवती अन्नपूर्णा हैं; मुझे भिक्षा प्रदान करें ।  

आदिक्षान्तसमस्तवर्णनकरी शम्भोस्त्रिभावाकरी 
           काश्मीरात्रिजलेश्वरी त्रिलहरी नित्याङ्कुरा शर्वरी ।
कामाकाङ्क्षकरी जनोदयकरी काशीपुराधीश्वरी 
           भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥७॥

 
आप 'अ' से 'क्ष' पर्यन्त समस्त वर्णमाला से व्याप्त हैं, आप भगवान् शिव के तीनों भावों (सत्त्व, रज, तम) को प्रादुर्भूत करने वाली हैं, आप केसर के समान आभावाली हैं, आप स्वर्गगंगा, पातालगंगा तथा भागीरथी -इन तीन जल-राशियों की स्वामिनी हैं, आप गंगा, यमुना तथा सरस्वती-इन तीनों नदियों की लहरों के रूपमें विद्यमान हैं, आप विभिन्न रूपों में नित्य अभिव्यक्त होने वाली हैं, आप रात्रिस्वरूपा हैं, आप अभिलाषी भक्त जनों की कामनाएँ पूर्ण करने वाली हैं, लोगों का अभ्युदय करने वाली हैं, आप काशीपुरी की अधीश्वरी हैं, अपनी कृपा का आश्रय देने वाली हैं, आप [समस्त प्राणियोंकी] माता हैं, आप भगवती अन्नपूर्णा हैं; मुझे भिक्षा प्रदान करें । 

देवी सर्वविचित्ररत्नरचिता दाक्षायणी सुन्दरी 
          वामं स्वादुपयोधरप्रियकरी सौभाग्यमाहेश्वरी ।
भक्ताभीष्टकरी सदा शुभकरी काशीपुराधीश्वरी 
          भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥८॥

आप सभी प्रकार के अद्भुत रत्नाभूषणों से सजी हुई देवी के रूप में शोभा पाती हैं, आप दक्ष की सुन्दर पुत्री हैं, आप माता के रूप में अपने वाम तथा स्वादमय पयोधर से [ भक्त शिशुओं का] प्रिय सम्पादन करने वाली हैं, आप सौभाग्य की माहेश्वरी हैं, आप भक्तों की अभिलाषा पूर्ण करने वाली और सदा उनका कल्याण करने वाली हैं, आप काशीपुरी की अधीश्वरी हैं, अपनी कृपा का आश्रय देने वाली हैं, आप [समस्त प्राणियों की] माता हैं, आप भगवती अन्नपूर्णा हैं; मुझे भिक्षा प्रदान करें ।

चन्द्रार्कानलकोटिकोटिसदृशा चन्द्रांशुबिम्बाधरी 
           चन्द्रार्काग्निसमानकुन्तलधरी चन्द्रार्कवर्णेश्वरी ।
मालापुस्तकपाशसाङ्‌कुशधरी काशीपुराधीश्वरी 
           भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥९॥

आप कोटि-कोटि चन्द्र-सूर्य-अग्नि के समान जाज्वल्यमान प्रतीत होती हैं, आप चन्द्रकिरणों के समान [शीतल] तथा बिम्बाफल के समान रक्त-वर्ण के अधरोष्ठ वाली हैं, चन्द्र-सूर्य तथा अग्नि के समान प्रकाशमान केश धारण करने वाली हैं, आप चन्द्रमा तथा सूर्य के समान देदीप्यमान वर्ण वाली ईश्वरी हैं, आपने [अपने हाथों में] माला, पुस्तक, पाश तथा अंकुश धारण कर रखा है, आप काशीपुरी की अधीश्वरी हैं, अपनी कृपा का आश्रय देने वाली हैं, आप [ समस्त प्राणियों की] माता हैं; आप भगवती अन्नपूर्णा हैं, मुझे भिक्षा प्रदान करें ।  

क्षत्रत्राणकरी महाऽभयकरी माता कृपासागरी 
             साक्षान्मोक्षकरी सदा शिवकरी विश्वेश्वरश्रीधरी । 
दक्षाक्रन्दकरी निरामयकरी काशीपुराधीश्वरी 
             भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥१०॥ 

आप घोर संकट की स्थिति में अपने भक्तों की रक्षा करती हैं, आप भक्तों को महान् अभय प्रदान करती हैं, आप मातृस्वरूपा हैं, आप कृपासमुद्र हैं, आप साक्षात् मोक्ष प्रदान करने वाली हैं, आप सदा कल्याण करने वाली हैं, आप भगवान् विश्वनाथ का ऐश्वर्य धारण करने वाली हैं, [यज्ञ का विध्वंस करके ] आप दक्ष को रुलाने वाली हैं, आप रोग-दोषों से मुक्त करने वाली हैं, आप काशीपुरी की अधीश्वरी हैं, अपनी कृपा का आश्रय देने वाली हैं, आप [समस्त प्राणियों की] माता हैं, आप भगवती अन्नपूर्णा हैं, मुझे भिक्षा प्रदान करें ।

अन्नपूर्णे सदापूर्ण शङ्करप्राणवल्लभे । 
ज्ञानवैराग्यसिद्धयर्थं भिक्षां देहि च पार्वति ॥११॥

सारे वैभवों से सदा परिपूर्ण रहने वाली तथा भगवान् शंकर की प्राणप्रिया हे अन्नपूर्णे ! हे पार्वति ! ज्ञान तथा वैराग्य की सिद्धि के लिये मुझे भिक्षा प्रदान करें । 

माता च पार्वती देवी पिता देवो महेश्वरः ।
बान्धवाः शिवभक्ताश्च स्वदेशो भुवनत्रयम् ॥१२॥

भगवती पार्वती मेरी माता हैं, भगवान् महेश्वर मेरे पिता हैं, सभी शिवभक्त मेरे बन्धु-बान्धव हैं और तीनों लोक मेरा ही देश है (यह भावना मन में निरन्तर बनीं रहे)।

॥ इति श्रीमत्शंकराचार्य विरचित “श्री अन्नपूर्णा” स्तोत्र संपूर्णं ॥

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