गायत्री जप

श्रीगायत्री मन्त्रजप (अनुष्ठान)

मंत्र जप | Duration : 3 Days
Price Range: 25000 to 99999

About Puja

भारतीय संस्कृति का उद्गम ज्ञान गंगोत्री गायत्री ही हैं। भारतीय सनातन हिन्दू वैदिक परम्परा में सभी मन्त्रों में गायत्री मन्त्र को अपार शक्तिसम्पन्न और प्रभावशाली माना गया  है। इस बात की पुष्टि ऋग्वेद में मिलती है- कि जो साधक माता गायत्री की उपासना करता है, या गायत्री मन्त्र का जप कराता है, उसका जीवन सुखमय हो जाता है। गायत्री मन्त्र को  महामन्त्र की संज्ञा दी गयी है। इस मन्त्र के प्रभाव से जीवन में सफलता के मार्ग  प्रशस्त होते हैं तथा कष्टों से निवृत्ति मिलती है। सुख, समृद्धि, ऐश्वर्यादि का आगमन होता है। गायत्री मन्त्र की उपासना  से पितृदेवता भी प्रसन्न होते हैं तथा उनके आशीर्वाद से घर में शान्ति का वातावरण बना रहता है और गृह सम्बन्धी क्लेशों का भी  शमन पितृदेवता के आशीर्वाद से हो जाता है। गायत्री जप के प्रभाव से उपासक की बुद्धि से अहंकार, जड़ता, अज्ञानता आदि क्रूर प्रवृत्तियों से मुक्ति मिलती है तथा विवेक, सदाचार तथा सुविचारों का उदय हो जाता है, माता गायत्री वैष्णवी (दुर्गा), सावित्री, और सरस्वती भेद से तीन प्रकार की हैं, अर्थात् वैष्णवी ही गायत्री, सावित्री, सरस्वती स्वरुपिणी हैं। माता गायत्री के तीनों स्वरूपों की आराधना करने  वाले व्यक्ति के लिये कुछ भी प्राप्त करना असंभव नहीं है।

माता गायत्री के विषय में ब्राह्मण ग्रन्थों, आरण्यकों, उपनिषदों, रामायण तथा  श्रीदेवीभागवतमहापुराण में विस्तार से वर्णन मिलता  है।

सर्वेषामेव वेदानां गृह्योपनिषदां तथा । सारभूता तु गायत्री निर्गता ब्रह्मणो मुखात् ।।
माता गायत्री को समस्त वेदों तथा उपनिषदों का सार माना है, क्योंकि इनकी उत्पत्ति ब्रह्मा जी के मुख से हुई है। गायत्री का उद्‌भव ब्रह्मा जी के मुख से होने के कारण इनको ब्रह्मगायत्री भी कहते हैं। गायत्री मन्त्र अथवा छन्द में तीन चरण और चौबीस अक्षर हैं। माता गायत्री को सविता कहने से अभिप्राय यही है कि सृष्टि-स्थिति- संहार कारक प्रकाश के देवता सूर्य से और परब्रह्म परमात्मा से इनका सम्बन्ध होने के कारण सविता नाम से ख्यापित हुई। गायत्री मन्त्र जप के प्रभाव से पापों तथा महापातकों से निवृत्ति होती है। गायत्री मन्त्र की उपासना  करने से इहलोक तथा परलोक उभयत्र  सुख प्राप्त होता है ।

Benefits

श्रीगायत्री मन्त्रजप (अनुष्ठानसे लाभ :-

  • गायत्री मंत्र जप के प्रभाव से मनोभिलषित सिद्धियों की प्राप्ति होती है ।
  • गायत्री जप अनुष्ठानात्मक रूप से करने अथवा कराने से पितृ दोष का निवारण होता है तथा बाधाएं समाप्त होती हैं।
  • उपासक के पातक, महापातक तथा उपपातको से रक्षा होती है।
  • गायत्री-जप के प्रभाव से मानसिक तथा वाचिक पाप और विषयेन्द्रियों  के संयोग से उत्पन्न होने वाले पापों की निवृत्ति हो जाती है।
  • साधक को दीर्घायु की प्राप्ति होती है तथा आरोग्य, ऐश्वर्य,धन आदि की प्राप्ति गायत्री उपासना से होती है। 
  • गायत्री मन्त्रजप समस्त प्रकार के कष्टों को प्रभावहीन कर देता है।
  • नौकरी, व्यवसाय आदि से सम्बन्धित समस्याओं का निदान होता है ।
  • गायत्री मंत्र की उपासना  करने से कुण्डली में व्याप्त सूर्यदेव से सम्बन्धित समस्याओं का शमन होता है।
  • करियर में तरक्की का मार्ग प्रशस्त होता है।
  • समाज में मान-सम्मान में बढ़ोत्तरी, तथा नकारात्मकता का ह्रास और विभिन्न प्रकार के रोगों से मुक्ति मिलती है।
Process

श्रीगायत्री मन्त्रजप (अनुष्ठान) में होने वाले प्रयोग या विधि :-

  1.   स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
  2.   प्रतिज्ञा-सङ्कल्प
  3.   गणपति गौरी पूजन
  4.   कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
  5.   पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
  6.   षोडशमातृका पूजन
  7.   सप्तघृतमातृका पूजन
  8.   आयुष्यमन्त्रपाठ
  9.   सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध (आभ्युदयिकश्राद्ध)
  10.   नवग्रह मण्डल पूजन
  11.   अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
  12.   पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं पूजन 
  13.   रक्षाविधान,  प्रधान देवता पूजन
  14.   मन्त्रजप विधान
  15.   विनियोग,करन्यास, हृदयादिन्यास
  16.   ध्यानम्, स्तोत्र पाठ
  17.   पंचभूसंस्कार, अग्नि स्थापन, ब्रह्मा वरण, कुशकण्डिका
  18.   आधार-आज्यभागसंज्ञक हवन
  19.   घृताहुति, मूलमन्त्र आहुति, चरुहोम
  20.   भूरादि नौ आहुति स्विष्टकृत आहुति, पवित्रप्रतिपत्ति
  21.   संस्रवप्राश , मार्जन, पूर्णपात्र दान
  22.   प्रणीता विमोक, मार्जन, बर्हिहोम 
  23.   पूर्णाहुति, आरती, विसर्जन
Puja Samagri

वैकुण्ठ के द्वारा दी जाने वाली पूजन सामग्री:-

  1. रोली, कलावा    
  2. सिन्दूर, लवङ्ग 
  3. इलाइची, सुपारी 
  4. हल्दी, अबीर 
  5. गुलाल, अभ्रक 
  6. गङ्गाजल, गुलाबजल 
  7. इत्र, शहद 
  8. धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई 
  9. यज्ञोपवीत, पीला सरसों 
  10. देशी घी, कपूर 
  11. माचिस, जौ 
  12. दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा 
  13. सफेद चन्दन, लाल चन्दन 
  14. अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला 
  15. चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का 
  16. सप्तमृत्तिका 
  17. सप्तधान्य, सर्वोषधि 
  18. पञ्चरत्न, मिश्री 
  19. पीला कपड़ा सूती

हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र :-

  1. काला तिल 
  2. चावल 
  3. कमलगट्टा
  4. हवन सामग्री, घी,गुग्गुल
  5. गुड़ (बूरा या शक्कर)
  6. बलिदान हेतु पापड़
  7. काला उडद 
  8. पूर्णपात्र -कटोरी या भगोनी
  9. प्रोक्षणी, प्रणीता, स्रुवा, शुचि, स्फय - एक सेट
  10. हवन कुण्ड ताम्र का 10/10  इंच या 12/12 इंच 
  11. पिसा हुआ चन्दन 
  12. नवग्रह समिधा
  13. हवन समिधा 
  14. घृत पात्र
  15. कुशा
  16. पंच पात्र

यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-

  1. वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का - 1
  2. गाय का दूध - 100ML
  3. दही - 50ML
  4. मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार 
  5. फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
  6. दूर्वादल (घास ) - 1मुठ 
  7. पान का पत्ता - 07
  8. पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg
  9. पुष्पमाला - 7 ( विभिन्न प्रकार का)
  10. आम का पल्लव - 2
  11. पानी वाला नारियल,
  12. विल्वपत्र - 21
  13. तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित  
  14. तुलसी पत्र -7
  15. शमी पत्र एवं पुष्प 
  16. थाली - 2, कटोरी - 5, लोटा - 2, चम्मच - 2 आदि 
  17. अखण्ड दीपक -1
  18. देवताओं के लिए वस्त्र -  गमछा, धोती  आदि 
  19. बैठने हेतु दरी,चादर,आसन 
  20. गोदुग्ध,गोदधि

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