Pitra dev

श्री पितृ गायत्री मन्त्रजप (अनुष्ठान)

मंत्र जप | Duration : 3 Days
Price Range: 25000 to 95000

About Puja

पितृ गायत्री मंत्र :- 

        देवताभ्यः: पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च। 

        नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नमः।। 

        पितृगणायविद्महेजगतधारिणीधीमहि।तन्नोपितृ (पित्रो) प्रचोदयात्। 

पितृ गायत्री जप (अनुष्ठान ) :-  

 वैदिक छन्दोंमें गायत्री एक महत्वपूर्ण छन्द है। जिसमें तीन चरण एवं चौबीस मात्राएँ होती हैं | जिसकी महत्ता ॐकेसदृशमानीगयीहै।लिंगपुराणमेंविभिन्न देवताओं की गायत्री प्राप्त होती है | गायत्री मंत्रकेविषयमेंकहागयाहैकि-  

“सर्वेषामेव वेदानां गृह्योपनिषदां तथा।  

सारभूता तु गायत्री निर्गता ब्रह्मणोमुखात्।। 

अर्थात् गायत्री मंत्र को सभी वेदों तथा उपनिषदों का सार माना गया है,क्योंकि ब्रह्मा के मुख से इनकी उत्पत्ति हुई है।गायत्री मंत्र केजाप से समस्त पाप,ताप और उपपातकों से मुक्ति मिलती है।गायत्री उपासना से इहलोक और परलोक उभयत्र उपासक को सुख की प्राप्ति होती है।गायत्री का गोत्र सांख्यायन है, इस मंत्र काछन्द गायत्री नाम वाला है इसीलिए इसेगायत्री कहते हैं।हमारे धर्म ग्रंथोंऔर पुराणों में गायत्री मंत्र की उपादेयता के संदर्भ मेंविभिन्न प्रकार केलाभ बताये गये हैं।उन्हीं में से एकपितृदोष की शांति एवं पितरों की प्रसन्नता के लिए पितृ गायत्री मंत्र का उल्लेख “श्रीब्रह्मपुराण” के 200वें अध्याय में प्राप्त होता है।लिंगपुराण उत्तरभाग के 48वें अध्याय में भी विभिन्न देवताओं की गायत्री प्राप्त होती है|दिवंगत पूर्वजों की आत्मा कोनिर्वाण (मोक्ष )न मिलने के कारणपितृदोष उत्पन्न होता है।इसके अलावा यह मुख्य रूप से तब होता है,जब मृत पूर्वजों को जलदान,पिण्डदान,आदि शास्त्रीय विधि से न किया गया हो|यह माना जाता है कि आपके पूर्वजों या दिवंगत पूर्वजों की आत्मा मोक्ष की तलाश में हैं, यदि उनकी मृत्यु प्राकृतिक थी या उनकी कम उम्र में हुई थी|अथवा अकाल मृत्यु के कारण, उनकी आत्माएं निर्वाण (मोक्ष) को प्राप्त नहीं कर पातीं और जिससे वह पृथ्वी पर ही‌ भटकती रहती हैं,तथा निरन्तर अपने परिवारीजनों से सद्गति की आश लगाए रहतीं हैं। 

कई बार जिन मृतात्माओं का और्ध्वदैहिक क्रिया के उपरान्त श्राद्ध-कर्म किसी कारणवश शास्त्रोक्त विधि-विधान से संपन्न नहीं हो पाता है, तो परिणामत: ऐसी मृतात्माओं के लिए मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती और उनकी आत्माएं मोक्ष की तलाश में यत्र-तत्र भ्रमण करती रहती हैं। अतःमृतात्माओं की शान्ति के निमित्त तथा कुण्डली में पितृदोष शांति के निमित्त “पितृगायत्री मन्त्र जप” करनेका विधान है| इससे अवश्य ही मृतात्माओं की मुक्ति एवं पितृदोषों का परिहार होता है|    

पितृ दोष के लक्षण :-  

  1. पितृदोष संतान प्राप्ति में बाधा उत्पन्न करता है|   
  2. नौकरी व व्‍यवसाय में निरन्तर प्रयास करने के बावजूद भी हानि होना। 
  3. परिवार में अक्‍सर कलह बने रहना या फिर एकता न होना,परिवार में शांति का अभाव। 
  4. परिवार में किसी न किसी व्‍यक्ति का सदैव अस्‍वस्‍थ बने रहना,इलाज करवाने के बाद भी ठीक न हो पाना। 
  5. परिवार में विवाह योग्‍य लोगों का विवाह न हो पाना,या फिर विवाह होने के बाद विच्छेद (तलाक) हो जाना या फिर अलगाव रहना। 
  6. पितृदोष होने पर पारिवारिक जनों से ही अक्‍सर धोखा मिलता है। 
  7. पितृदोष होने पर व्‍यक्ति बार-बार दुर्घटनाओं का शिकार होता है।  
  8. मांगलिक कार्यों में बाधाएं आती हैं। 
  9. परिवार के सदस्‍यों पर अक्‍सर किसी प्रेत बाधा का प्रभाव बना रहता है। 
  10. घर में अक्‍सर तनाव और क्‍लेश की स्थिति बनी रहती है। 
  11. किसी कार्य का बनते-बनते रुक जाना। 
Benefits

श्रीपितृ गायत्री मन्त्रजप (अनुष्ठानके जप का माहात्म्य :-

  • सामाजिक, आर्थिक, मानसिक,और शारीरिक समस्त बाधाओं की परिसमाप्ति होती है। 
  • समाज में पद प्रतिष्ठा, यश एवं कीर्ति का विस्तार होता है। 
  • नौकरी तथा व्यापार में उन्नति 
  • वैवाहिक जीवन सुखमय रहता है। 
  • पारिवारिक क्लेशों की परिसमाप्ति होती है। 
  • रोगों की निवृत्ति, आरोग्यता की प्राप्ति। 
  • घर-परिवार से दरिद्रता की परिसमाप्ति। 
  • संतान सुख की प्राप्ति। 
  • वैवाहिक जीवन में आने वाली समस्याओं से निवृत्ति। 
  • समस्त परिवारीजनों पर पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। 
Process

श्रीपितृ गायत्री मन्त्रजप (अनुष्ठान) में होने वाले प्रयोग या विधि :-

  1.   स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
  2.   प्रतिज्ञा-सङ्कल्प
  3.   गणपति गौरी पूजन
  4.   कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
  5.   पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
  6.   षोडशमातृका पूजन
  7.   सप्तघृतमातृका पूजन
  8.   आयुष्यमन्त्रपाठ
  9.   सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध (आभ्युदयिकश्राद्ध)
  10.   नवग्रह मण्डल पूजन
  11.   अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
  12.   पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं पूजन 
  13.   रक्षाविधान,  प्रधान देवता पूजन
  14.   मन्त्रजप विधान
  15.   विनियोग,करन्यास, हृदयादिन्यास
  16.   ध्यानम्, स्तोत्र पाठ
  17.   पंचभूसंस्कार, अग्नि स्थापन, ब्रह्मा वरण, कुशकण्डिका
  18.   आधार-आज्यभागसंज्ञक हवन
  19.   घृताहुति, मूलमन्त्र आहुतिचरुहोम
  20.   भूरादि नौ आहुति स्विष्टकृत आहुति, पवित्रप्रतिपत्ति
  21.   संस्रवप्राश , मार्जन, पूर्णपात्र दान
  22.   प्रणीता विमोक, मार्जन, बर्हिहोम 
  23.   पूर्णाहुति, आरती, विसर्जन
Puja Samagri

वैकुण्ठ के द्वारा दी जाने वाली पूजन सामग्री:-

  1. रोली, कलावा    
  2. सिन्दूर, लवङ्ग 
  3. इलाइची, सुपारी 
  4. हल्दी, अबीर 
  5. गुलाल, अभ्रक 
  6. गङ्गाजल, गुलाबजल 
  7. इत्र, शहद 
  8. धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई 
  9. यज्ञोपवीत, पीला सरसों 
  10. देशी घी, कपूर 
  11. माचिस
  12. दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा 
  13. सफेद चन्दन, लाल चन्दन 
  14. अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला 
  15. चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का 
  16. सप्तमृत्तिका 
  17. सप्तधान्य, सर्वोषधि 
  18. पञ्चरत्न, मिश्री 
  19. पीला कपड़ा सूती

हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र :-

  1. काला तिल 
  2. जचावल 
  3. कमलगट्टा
  4. हवन सामग्री, घी,गुग्गुल
  5. गुड़ (बूरा या शक्कर) 
  6. बलिदान हेतु पापड़
  7. काला उडद 
  8. पूर्णपात्र -कटोरी या भगोनी
  9. प्रोक्षणी, प्रणीता, स्रुवा, शुचि, स्फय - एक सेट
  10. हवन कुण्ड ताम्र का 10/10  इंच या 12/12 इंच 
  11. पिसा हुआ चन्दन 
  12. नवग्रह समिधा
  13. हवन समिधा 
  14. घृत पात्र
  15. कुशा
  16. पंच पात्र

यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-

  1. वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का - 1
  2. गाय का दूध - 100ML
  3. दही - 50ML
  4. मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार 
  5. फल विभिन्न प्रकारआवश्यकतानुसार )
  6. दूर्वादल (घास ) - 1मुठ 
  7. पान का पत्ता - 07
  8. पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg
  9. पुष्पमाला - 7 ( विभिन्न प्रकार का)
  10. आम का पल्लव - 2
  11. विल्वपत्र - 21
  12. पानी वाला नारियल
  13. तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित  
  14. तुलसी पत्र -7
  15. शमी पत्र एवं पुष्प 
  16. थाली - 2, कटोरी - 5, लोटा - 2, चम्मच - 2 आदि 
  17. अखण्ड दीपक -1
  18. देवताओं के लिए वस्त्र -  गमछाधोती  आदि 
  19. बैठने हेतु दरी,चादर,आसन 
  20. गोदुग्ध,गोदधि

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