Satyanarayan

सत्यनारायण पूजा

कथा | Duration : 4 Hours
Price Range: 5100 to 21000

About Puja

"सत्यात्मकं त्वां शरणं प्रपन्नाः" अद्वितीय परब्रह्म परमात्मा का स्वरूप सत्य है, हम सभी आपकी शरण ग्रहण करते हैं। सत्, चित्त् एवं आनन्द के स्वरूप, परात्पर ब्रह्म ही जगत् में सत्यनारायण नाम से  द्योतित (प्रकाशित) हो रहे हैं। सत्य की परिगणना पाँच यमों के अन्तर्गत् की गया है - अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और आपरिग्रह। नख से शिख पर्यन्त परमात्मा  का अप्रतिम स्वरूप सत्य ही है  और सत्य ही नारायण हैं।    

"धर्मसंस्थापनार्थाय" धर्म वही है जो सत्य मे प्रतिष्ठित है और उसी धर्म की रक्षा एवं स्थापना हेतु  सत्य की  महिमा को प्रकाशित करने के लिए भगवान् सत्यस्वरूप में प्रतिष्ठित हुए ।

सत्यव्रती भगवान् वासुदेव का नाम, रूप, लीला और धाम सब सत्य है, इन्हीं की कथागाथा सत्यनारायण के रूप से  जगत् में प्रचारित एवं प्रसारित हुई। यह कथा समाज में अत्यन्त लोकप्रिय तथा प्रचलित है। वैदिक सनातन परम्परा में समस्त माङ्गलिक कार्यों के प्रारम्भ में गणपति पूजन तथा कार्य की पूर्णता में सत्यनारायण कथा श्रवण करने का विधान है। कथा के माध्यम से भगवान् के  स्वरूप का  प्रतिपादन तथा सद्वाणी द्वारा सत्य की उपासना भी हो जाती है।

चित्त के विकारों का मार्जन, निश्छल भाव, सुचिता, पवित्रता आदि सत्यनारायण की उपासना से ही प्राप्त होता है। विशुद्ध साधना से साधन करने वाला साधक अपने साध्य परमात्मा की कृपा प्राप्त करता है। इसीलिए सत्यप्रतिज्ञ होकर भगवद्गुण, लीला, कथा आदि का श्रवण कर शास्त्रोक्त मार्ग का अनुसरण पूर्वक जीवन को यापन करना चाहिए।

सत्य की ही सदा विजय होती है, असत्य की नहीं  "सत्यमेव जयति नानृतम्" यह सिद्धान्त ही सत्यनारायण व्रत कथा का सार है। यह कथा 'स्कन्द पुराण के रेखाखण्ड में सङ्कलित' है। इस कथा के मुख्य दो विषय हैं - प्रमाद के कारण पूर्व में किये गये सत्यसङ्कल्प को भूलना तथा भगवत् प्रसाद का अपमान या अवमानना । सत्य की अवहेलना तथा कर्तव्य को समय सीमा के अन्तर्गत् पूर्ण न करने के कारण ब्राह्मण, पत्नी, पुत्री एवं दामाद आदि को अनेक कष्टों का सामना करना पड़ा।

कथा सार यही है कि अति निर्धन ब्राह्मण एवं काष्ठ विक्रेता के द्वारा, सत्य का आचरण करने से भगवान् की प्राप्ति हुई तथा असत्य आचरण से साधु वणिक् तथा उसके परिवार की अत्यन्त दुर्गति हुई। इन कथाओं से सत्य मार्ग का दृढता पूर्वक पालन की प्रेरणा प्राप्त होती है। कृपालु दयालु भगवान् की शरण ग्रहण से सर्वविध उत्कर्ष होता है।

इस कथा से शङ्काएँ भी उत्पन्न होती हैं, जिज्ञासु जिज्ञासा करते हैं  कि साधुवणिक्, शतानन्द, उल्लकामुख, काष्ठविक्रेता, तुङ्गध्वज आदि के द्वारा किस कथा का श्रवण किया गया था ?

मूलतः इस कथा के माध्यम से भगवान् सत्यनारायण का व्रत (सत्यभाषण) पूजन (दृढता पूर्वक सत्य का अनुपालन) एवं भगवत्कथा का श्रवण ही मुख्य प्रयोजन है। सत्यव्रत एवं पूजन के साथ भगवान् के दिव्य लीलाओं का श्रवण,स्मरण,कीर्तन,आदि की महत्ता है। अनन्त ब्रह्माण्ड नायक आदि पुरुष परमात्मा  सत्य हैं और एक मात्र वही ज्ञेय, ध्येय एवं उपास्य हैं। भक्ति आदि साधनों के द्वारा उनका अनुभव होता है।

कथा के प्रारम्भ में देवताओं का आवाहन स्थापन एवं पूजन किया जाता है, कथा के अनन्तर हवन आदि करना चाहिए। यह कथा, परम्परा का भी बोधक है। इसलिए प्रत्येक पूर्णिमा को या किसी भी शुभ दिन में कराने और सुनने का विधान है।

Benefits

श्रीसत्यनारायण व्रत कथा माहात्म्य -

  • जो व्यक्ति भक्तिभाव से युक्त होकर सत्यनारायण व्रतकथा करता है या सुनता है, उसे सत्य अनुपालन की शक्ति के साथ ही सत्यनारायण की कृपा से धन धान्य की प्राप्ति होती है।
  • कथा के प्रभाव से दरिद्र धनवान् , जिज्ञासु ज्ञानवान्, बन्धन युक्त व्यक्ति बन्धन मुक्त तथा भयभीत व्यक्ति अभय को प्राप्त करता है।
  • कथानुकूल आचरण एवं व्यवहार से सभी ईप्सित (इच्छित), फलों की प्राप्ति होती है।
  • सत्यनारायण की कृपा से समस्त दुःखों से मुक्त हो जाता है।
  • अनेक रूपों को धारणकर भगवान् सत्यनारायण सभी का मनोरथ पूर्ण करते हैं।
  • जो इस सत्यनारायण व्रत का आचारण एवं अनुपालन करता है, उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
  • महान ज्ञाता शतानन्द नामक ब्राह्मण दूसरे जन्म में सुदामा नामक ब्राह्मण हुए जो कृष्ण के सखा एवं उनको कृष्ण कृपा की  भी प्राप्त हुई।
  • लकड़हारा भिल्ल निषादराज गुह हुए और भगवान् श्रीरामचन्द्र की कृपा प्राप्ति हुई।
  • महाराज उल्लकामुख राजा दशरथ हुए तथा भगवान् राम का पिता होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
  • धार्मिक सत्यव्रती साधु, सत्यव्रत के प्रभाव से मोरध्वज राजा हुए और पुत्र का शरीर आरे से चीरकर भगवान् विष्णु को अर्पित कर दिया। 
  • महाराज तुङ्गध्वज जन्मान्तर में स्वायम्भू मनु हुए और भगवन्निष्ठ होकर अन्ततः मोक्ष को प्राप्त किये।
  • समस्त गोपगण सत्यप्रसाद से जन्मान्तर में ब्रज मण्डल में निवास करने वाले गोप हुए। वे भगवान् कृष्ण की विभिन्न लीलाओं के प्रत्यक्षदर्शी रहे और अन्ततः गोलोक की प्राप्ति किये। 
  • इस प्रकार भगवान् सत्यनारायण व्रत के अनेक प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष लाभ वर्तमान समाज में भी दिखाई देते हैं।
Process

सत्यनारायण व्रतकथा में होने वाले प्रयोग या विधि:-

  1. स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
  2. प्रतिज्ञा सङ्कल्प
  3. गणपति गौरी पूजन
  4. कलश स्थापन वरुणादि देवताओं का पूजन
  5. षोडशमातृका, सप्तघृतमातृका,नवग्रह पूजन 
  6. अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता,
  7. पञ्चलोकपाल, दस दिक्पाल, वास्तुदेवता पूजन एवं स्मरण
  8. शालग्राम शिलापूजन या लड्डू गोपाल पूजन
  9. सरस्वती एवं ब्राह्मण पूजन
  10. अथ श्रीसत्यनारायण व्रत कथा प्रारम्भ प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ एवं पञ्चम अध्याय
  11. हवन प्रकरण 
  12. सङ्कल्प
  13. पंचभूसंस्कार, अग्निध्यान पूजन
  14. हवन विधि (आधार आहुति,आज्य आहुति)
  15. द्रव्यत्याग (वराहुति) नवग्रहहोम, प्रधान होम
  16. अग्नि का उत्तरपूजन, स्विष्टकृत हवन 
  17. भूरादि नव आहुतियाँ, अग्निप्रदक्षिणा, त्र्यायुष्करण,  संस्रवप्राशन और दक्षिणादान
  18. उत्तर पूजन,आरती,  पुष्पाञ्जलि, प्रदक्षिणा, क्षमाप्रार्थना
  19. आवाहित देवों का विसर्जन
  20. रक्षाबन्धन, तिलककरण, आशीर्वाद, चरणामृत ग्रहण 
  21. तुलसीग्रहण, प्रसादग्रहण
Puja Samagri

वैकुण्ठ के द्वारा दी जाने वाली पूजन सामग्री:-

  • रोली, कलावा    
  • सिन्दूर, लवङ्ग 
  • इलाइची, सुपारी 
  • हल्दी, अबीर 
  • गुलाल, अभ्रक 
  • गङ्गाजल, गुलाबजल 
  • इत्र, शहद 
  • धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई 
  • यज्ञोपवीत, पीला सरसों 
  • देशी घी, कपूर 
  • माचिस, जौ 
  • दोना बड़ा साइज, पञ्चमेवा 
  • सफेद चन्दन, लाल चन्दन 
  • अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला 
  • चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का 
  • सप्तमृत्तिका 
  • सप्तधान्य, सर्वोषधि 
  • पञ्चरत्न, मिश्री 
  • पीला कपड़ा सूती
  • पंचगव्य गोघृत

हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र :-

  • काला तिल 
  • चावल 
  • कमलगट्टा
  • हवन सामग्री, घी,गुग्गुल
  • गुड़ (बूरा या शक्कर)
  • पान पत्ता, बलिदान हेतु पापड़
  • काला उडद 
  • पूर्णपात्र -कटोरी या भगोनी
  • प्रोक्षणी, प्रणीता, स्रुवा, शुचि, स्फय - एक सेट
  • हवन कुण्ड ताम्र का 10/10  इंच या 12/12 इंच 
  • पिसा हुआ चन्दन 
  • नवग्रह समिधा
  • हवन समिधा 
  • घृत पात्र
  • कुशा
  • पंच पात्र

यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-

  • वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का - 1
  • गाय का दूध - 100ML
  • दही - 50ML
  • मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार 
  • फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
  • दूर्वादल (घास ) - 1मुठ 
  • पान का पत्ता - 07
  • पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg
  • पुष्पमाला - 7 ( विभिन्न प्रकार का)
  • आम का पल्लव - 2
  • विल्वपत्र - 21
  • तुलसी पत्र -7
  • पानी वाला नारियल
  • पंजीरी, केला, पंचामृत
  • शमी पत्र एवं पुष्प 
  • थाली - 2 , कटोरी - 5 ,लोटा - 2 , चम्मच - 2 आदि 
  • अखण्ड दीपक -1
  • तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित
  • देवताओं के लिए वस्त्र -  गमछा , धोती  आदि 
  • बैठने हेतु दरी,चादर,आसन 
  • गोदुग्ध,गोदधि

Yes, all our Satyanarayan Puja packages includes Samagri. You can find the details of Samagris under the "Puja Samagris" tab.
 +91 |

By clicking on Login, I accept the Terms & Conditions and Privacy Policy

Recovery Account