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श्री गणेशोत्सव (सिद्धिविनायक व्रत)

व्रतोत्सव त्यौहार | Duration : 3 Hours 30 minute
Price : 9000
About Puja

  वैदिक सनातन परम्परा में व्रतों का एक अपना विशिष्ट स्थान है। समस्त व्रतों में विघ्न विनायक भगवान् गणेश का व्रत सर्वोपरि है। इस व्रत का विधिवत् अनुपालन करने से  जन्मान्तरीय पापों का शमन तथा पुत्र, पौत्र, धन, विद्या, यश, स्त्री की प्राप्ति तथा आयुष्य की वृद्धि होती है।  सिद्धि विनायक व्रत भगवान् गणेश के जन्मोत्सव पर पूरे भारत वर्ष में भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि में मनाया जाता है। यह व्रत मध्याह्नकाल व्यापिनी चतुर्थी के दिन करना चाहिए। आचार्य बृहस्पति कहते हैं-

मध्याह्न व्यापिनी सा तु परतश्चेत् परेऽहनि ।

अर्थात गणेशव्रत में तृतीया विद्धा चतुर्थी उत्तमा होती है।

गणेशोत्पत्ति की कथा शिवपुराण के रुद्रसंहितान्तर्गत् कुमार खण्ड में वर्णित है- कि माता की जया और विजया नामक सखियों के अनुरोध पर माता पार्वती ने अपने शरीर से सर्वलक्षण सम्पन्न, सर्वथा निर्दोष सुंदर अंगों वाले, सर्व शोभा सम्पन्न, महाबली पराक्रमी पुरुष का निर्माण किया जिसका नाम गणेश हुआ। विभिन्न लीलाओं के पश्चात् माता पार्वती द्वारा गणेश जी को वरदान दिया गया तथा देवों तथा मनुष्य द्वारा प्रथम पूजा का अधिकार भी प्रदान किया गया भगवान् शिव द्वारा गणेश को सर्वाध्यक्ष पद प्रदान किया गया। विशेषत: चतुर्थी तिथि के दिन वैदिक विधि से ब्राह्मणों द्वारा कराया गया गणेशार्चन अथवा दान, स्नान उपवास आदि गणपति प्रसाद से सौ गुना फल देने वाला होता है-ऐसा व्रतराज में कहा गया है।
  तस्यां स्नानं तथा दानं उपवासोऽर्चनं तथा।
  क्रियमाणं शतगुणं प्रसादान्तिनो नृप।।

पराशर ऋषि का कथन है कि भाद्रपद शुक्लपक्ष की चतुर्थी को चन्द्रमा का दर्शन नहीं करना चाहिए,चन्द्र दर्शन से मिथ्या दोष लगता है,और यदि अकस्मात् दर्शन हो जाए तो श्रीविष्णुमहापुराण या भागवत् महापुराण का स्यमन्तकोपाख्यान अवश्य पढ़ाना या श्रवण करना चाहिए।

Benefits

गणेशोत्सव सिद्धिविनायक  का माहात्म्य:-

  • अष्ट सिद्धियों की प्राप्ति के लिए यह व्रत सर्वोत्कृष्ट है। 
  • जो भक्त अतुल सुख की इच्छा रखता हो उसे यह व्रत प्रयत्न पूर्वक प्रत्येक शुक्लपक्ष पक्ष की चतुर्थी को करना चाहिए।
  • भगवान् गणेश की पूजा वैदिक विधि द्वारा ब्राह्मणों से सम्पन्न करना अथवा कराना चाहिए।
  • भगवान् गणेश को एक वित्त (बारह अंगुल) लम्बी तीन गाढ़ वाली एक सौ एक अथवा इक्कीस दूर्वाओं से पूजा करे। इससे अटल ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
  • भक्ति एवं विधिपूर्वक भगवान् गणपति का व्रत एवं आराधना से सर्वार्थ सिद्धि की प्राप्ति तथा विघ्नों का नाश होता है।
  • सिद्धिविनायक मङ्गलदायक व्रत के आचरण से वह व्रती समस्त मङ्गलों से युक्त हो जाता है।
  • पुत्रहीन को पुत्र, निर्धन को धन, स्त्री की इच्छा वाले को स्त्री, प्रजा चाहने वाले को प्रजा, रोगी को आरोग्यता, भाग्यहीन को सौभाग्य, अपुत्रवान् को पुत्र, धनहीन को धन आदि की प्राप्ति होती है।
  • भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष में चतुर्थी के दिन किया गया दान, स्नान, उपवास तथा गणेशार्चन गणपति प्रसाद से शत् गुना फल देने वाला होता है। 

तस्यां स्नानं तथा दानं उपवासोऽर्चनं तथा।

क्रियमाणं शतगुणं प्रसादान्तिनो नृप:।।

  • यह व्रत सर्वमनोरथ प्रदव्रत है।
Process

गणेशोत्सव सिद्धिविनायक  में  होने वाले प्रयोग या विधि:-

  1. स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
  2. प्रतिज्ञा-सङ्कल्प
  3. गणपति गौरी पूजन
  4. कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
  5. पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
  6. षोडशमातृका पूजन
  7. सप्तघृतमातृका पूजन
  8. आयुष्यमन्त्रपाठ
  9. सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध (आभ्युदयिकश्राद्ध)
  10. नवग्रह मण्डल पूजन
  11. अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
  12. पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं पूजन 
  13. रक्षाविधान, 
  14. प्रधान देवता पूजन
  15. पाठ विधान
  16. विनियोग,करन्यास, हृदयादिन्यास
  17. ध्यानम्, स्तोत्र पाठ
  18. पंचभूसंस्कार, अग्नि स्थापन, ब्रह्मा वरण, कुशकण्डिका
  19. आधार-आज्यभागसंज्ञक हवन
  20. घृताहुति, मूलमन्त्र आहुति, चरुहोम
  21. भूरादि नौ आहुति स्विष्टकृत आहुति, पवित्रप्रतिपत्ति
  22. संस्रवप्राश , मार्जन, पूर्णपात्र दान
  23. प्रणीता विमोक, मार्जन, बर्हिहोम 
  24. पूर्णाहुति, आरती, विसर्जन
Puja Samagri

 वैकुण्ठ के द्वारा दी जाने वाली पूजन  सामग्री

  • रोली, कलावा    
  • सिन्दूर, लवङ्ग 
  • इलाइची, सुपारी 
  • हल्दी, अबीर 
  • गुलाल, अभ्रक 
  • गङ्गाजल, गुलाबजल 
  • इत्र, शहद 
  • धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई 
  • यज्ञोपवीत, पीला सरसों 
  • देशी घी, कपूर 
  • माचिस, जौ 
  • दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा 
  • सफेद चन्दन, लाल चन्दन 
  • अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला 
  • चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का 
  • पानी वाला नारियल, सप्तमृत्तिका 
  • सप्तधान्य, सर्वोषधि 
  • पञ्चरत्न, मिश्री 
  • पीला कपड़ा सूती, तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित  
  • पंचगव्य गोघृत, गोमूत्र

हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र :-

  • काला तिल 
  • जौ,चावल 
  •  कमलगट्टा, पंचमेवा 
  •  हवन सामग्री, घी,गुग्गुल
  • गुड़ (बूरा या शक्कर) ,गड़ी गोला 
  •  पान पत्ता, बलिदान हेतु पापड़
  • काला उडद 
  • पूर्णपात्र -कटोरी या भगोनी
  • प्रोक्षणी, प्रणीता, स्रुवा, शुचि, स्फय - एक सेट
  • हवन कुण्ड ताम्र का 10/10  इंच या 12/12 इंच 
  • कलश रखने के लिए मिट्टी का पात्र
  •  पिसा हुआ चन्दन 
  • नवग्रह समिधा
  •  हवन समिधा 
  •  घृत पात्र
  • कुशा
  • पंच पात्र

यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-

  • वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का - 1
  • गाय का दूध - 100ML
  • दही - 50ML
  • मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार 
  • फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
  • दूर्वादल (घास ) - 1मुठ 
  • पान का पत्ता - 11
  • पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg
  • पुष्पमाला - 7 ( विभिन्न प्रकार का)
  • आम का पल्लव - 2
  • विल्वपत्र - 21
  • तुलसी पत्र -7
  • शमी पत्र एवं पुष्प 
  •  थाली - 2, कटोरी - 5, लोटा - 2, चम्मच - 2 आदि 
  • अखण्ड दीपक -1
  • देवताओं के लिए वस्त्र -  गमछा, धोती  आदि 
  • बैठने हेतु दरी,चादर,आसन 
  • गोदुग्ध,गोदधि,गोबर

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