About Puja
विश्वं कृत्स्न्नं कर्म व्यापारों वा यस्य स:--विश्वकर्मा
अर्थात् जिसकी दृष्टि अच्छी है और कर्म व्यापार है यही स्वरूप विश्वकर्मा का है। वेदों में भी भगवान् विश्वकर्मा की सर्वव्यापकता एवं शक्ति की पूर्णता दर्शायी गयी है। सृष्टि के सृजन कर्ता परमपिता ब्रह्मा जी के पुत्र धर्म एवं धर्म के पुत्र वास्तुदेव, तथा वास्तुदेव और इनकी पत्नी अङ्गिरसी से भगवान् विश्वकर्मा का प्रार्दुभाव हुआ। भगवान् विश्वकर्मा के पांच पुत्र हुए। मनु , मय , त्वष्टा, शिल्पी ,देवज्ञ । एवं इनकी सिद्धि ,बुद्धि और संज्ञा नाम की तीन पुत्रियां थीं। भगवान् विश्वकर्मा कमंडल और पाश अस्त्र के रूप में धारण करते हैं एवं विश्वकर्मा लोक में निवास करते हैं विश्वकर्मा शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है विश्व अर्थात् संपूर्ण ब्रह्मांड ,एवं कर्मा का अभिप्राय है क्रिया अर्थात निर्माण कर्ता। इसलिए भगवान् विश्वकर्मा सृजन,निर्माण,शिल्पकला, वास्तुकला, शस्त्र एवं वाहनों समेत समस्त भौतिक व्यापारीय वस्तुओं के अधिष्ठातृ देवता हैं। देवासुर संग्राम में असुरों के विनाश हेतु "(वज्र) नामक शस्त्र का निर्माण इन्ही के माध्यम से हुआ और उस शस्त्र के प्रभाव से देवता विजयी हुए। ऋग्वेद में विश्वकर्मा भगवान् की ११ ऋचाओं में स्तुति की गई है। पौराणिक साक्ष्यों के अनुसार स्वर्गलोक की इंद्रपुरी ,यमलोक, वरुणलोक,कुबेरलोक,रावण की स्वर्णनगरी लंका,तथा कृष्ण की द्वारका आदि नगरों का निर्माण इन्हीं के द्वारा हुआ। ऐसा पुराणों में वर्णित है।
धर्मग्रंथों में भगवान् विश्वकर्मा के पांच स्वरूपों का वर्णन हमे मिलता है ----
1.विराट् विश्वकर्मा = विराट् विश्वकर्मा के रूप में भगवान् विश्वकर्मा को ब्रह्मांड का निर्माता कहा गया है।
2.धर्मवंशी विश्वकर्मा = धर्मवंशी विश्वकर्मा के रूप में महान शिल्प विज्ञान के विधाता हैं एवं प्रभात पुत्र हैं
3.अङ्गिरावंशी विश्वकर्मा = भगवान् वसु के पुत्र के रूप में।
4.सुधन्वा विश्वकर्मा = महान् शिल्पाचार्य, विज्ञान के जन्मदाता
Benefits
विश्वकर्मा पूजा का माहात्म्य:-
- अपने कार्यालय ,व्यापार, प्रतिष्ठान,कारखाना और अपने नियमित जीविका अर्जन के निमित्त स्थानों पर भगवान् विश्वकर्मा का पूजन करना चाहिए। भगवान् विश्वकर्मा की असीम अनुकम्पा से ही मनुष्यो को भूलोक में समस्त प्रकार के सुख साधन प्राप्त हुए हैं।
- भगवान् विश्वकर्मा की जयंती पर हर्षोल्लास के साथ समस्त भौतिक संसाधनों( अस्त्र- शस्त्र गरुण ) इत्यादि का पूजन कराना चाहिए।
- विशेषतया कार्यालय ,क्रय विक्रय स्थान , उद्योग संस्थान, आदि में इनका पूजन करने से व्यक्ति उत्तरोत्तर वृद्धि को प्राप्त करता है तथा सुख शांति एवं प्रसन्नतापूर्ण जीवन होता है।
- भगवान् विश्वकर्मा के आशीर्वाद से व्यापार एवं कार्यक्षेत्र में निरन्तर वृद्धि होती है।
- व्यापार में सकारात्मकता का निवेश होता है
- यंत्रों अर्थात मशीनरी इत्यादि उत्तम विधि से अपने कार्य को सम्पादित करते हैं
Process
विश्वकर्मा पूजा में होने वाले प्रयोग या विधि:-
- स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
- प्रतिज्ञा-सङ्कल्प
- गणपति गौरी पूजन
- कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
- पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
- षोडशमातृका पूजन
- सप्तघृतमातृका पूजन
- आयुष्यमन्त्रपाठ
- सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध (आभ्युदयिकश्राद्ध)
- नवग्रह मण्डल पूजन
- अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
- पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं पूजन
- रक्षाविधान,
- प्रधान देवता पूजन
- पाठ विधान
- विनियोग,करन्यास, हृदयादिन्यास
- ध्यानम्, स्तोत्र पाठ
- पंचभूसंस्कार, अग्नि स्थापन, ब्रह्मा वरण, कुशकण्डिका
- आधार-आज्यभागसंज्ञक हवन
- घृताहुति, मूलमन्त्र आहुति, चरुहोम
- भूरादि नौ आहुति स्विष्टकृत आहुति, पवित्रप्रतिपत्ति
- संस्रवप्राश , मार्जन, पूर्णपात्र दान
- प्रणीता विमोक, मार्जन, बर्हिहोम
- पूर्णाहुति, आरती, विसर्जन
Puja Samagri
वैकुण्ठ के द्वारा दी जाने वाली पूजन सामग्री:-
- रोली, कलावा
- सिन्दूर, लवङ्ग
- इलाइची, सुपारी
- हल्दी, अबीर
- गुलाल, अभ्रक
- गङ्गाजल, गुलाबजल
- इत्र, शहद
- धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई
- यज्ञोपवीत, पीला सरसों
- देशी घी, कपूर
- माचिस, जौ
- दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा
- सफेद चन्दन, लाल चन्दन
- अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला
- चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का
- सप्तमृत्तिका
- सप्तधान्य, सर्वोषधि
- पञ्चरत्न, मिश्री
- पीला कपड़ा सूती
हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र :-
- काला तिल
- चावल
- कमलगट्टा
- हवन सामग्री, घी,गुग्गुल
- गुड़ (बूरा या शक्कर)
- बलिदान हेतु पापड़
- काला उडद
- पूर्णपात्र -कटोरी या भगोनी
- प्रोक्षणी, प्रणीता, स्रुवा, शुचि, स्फय - एक सेट
- हवन कुण्ड ताम्र का 10/10 इंच या 12/12 इंच
- पिसा हुआ चन्दन
- नवग्रह समिधा
- हवन समिधा
- घृत पात्र
- कुशा
- पंच पात्र
यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-
- वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का - 1
- गाय का दूध - 100ML
- दही - 50ML
- मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार
- फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
- दूर्वादल (घास ) - 1मुठ
- पान का पत्ता - 07
- पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg
- पुष्पमाला - 7 ( विभिन्न प्रकार का)
- आम का पल्लव - 2
- विल्वपत्र - 21
- तुलसी पत्र -7
- शमी पत्र एवं पुष्प
- थाली - 2, कटोरी - 5, लोटा - 2, चम्मच - 2 आदि
- अखण्ड दीपक -1
- देवताओं के लिए वस्त्र - गमछा, धोती आदि
- बैठने हेतु दरी,चादर,आसन
- पानी वाला नारियल
- गोदुग्ध,गोदधि
- तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित