श्रीअघोरमन्त्रजप (अनुष्ठान)

श्रीअघोरमन्त्रजप (अनुष्ठान)

मंत्र जप | Duration : 3 Days
Price Range: 38500 to 95000

About Puja

भगवान् शिव अत्यत सहज एवं शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवता हैं। इसीलिए इनका एक नाम आशुतोष है। भगवान् शिव को प्रसन्न करने के विभिन्न साधन हमारे धर्मग्रंथों में वर्णित हैं। यथा-शिव सहसहस्रनामपाठ, शिवार्चन, महामृत्युञ्जय मन्त्रजप,पञ्चाक्षर जपअनुष्ठान, स्तोत्र-पाठ, मन्त्रजप, सूक्तपाठ, वेद-पाठ, विशेष वैदिक-मन्त्र, अभिषेक आदि। इन समस्त विधियों में मन्त्र-जप का अपना एक विशिष्ट स्थान है। भगवान् शिव परम अवढरदानी हैं इनके विभिन्न स्वरूप हैं- यथासदाशिव, परात्मप्रभु शिव, मङ्गलस्वरूप शिव, अर्धनारीश्वर, गौरीपति, महामहेश्वर, पञ्चमुख सदाशिव, अम्बिकेश्वर, पार्वतीनाथ, पञ्चानन, महाकाल, श्रीनीलकण्ठ, पशुपति दक्षिणामूर्ति, महामृत्युञ्जय आदि। इसके साथ ही विभिन्न कल्पों में भगवान् शिव के विशिष्ट स्वरूपों का प्रादुर्भाव हुआ। यथा- श्वेतलोहित कल्प में सद्योजात, रक्तकल्प में वामदेव, पीतवासाकल्प में तत्पुरुष, असितकल्प में अघोर, विश्व- रूपकल्प में ईशान आदि शिव के स्वरूप प्रादुर्भूत हुए। इन समस्त स्वरूपों की उपासना के साथ ही असितकल्प में प्रादुर्भूत भगवान् अघोर (शिव) की उपासना एवं मन्त्रजप का विशेष महत्व है। अघोर मन्त्र भगवान् आशुतोष को परम प्रिय है।  इस मन्त्र के द्वारा शिवोपासना करने से भगवान् शिव अत्यन्त प्रसन्न होते हैं।लिङ्गपुराण के अनुसार ब्रह्मा जी की स्तुति से प्रसन्न होकर भगवान् शिव अनुग्रह पूर्वक ब्रह्माजी से कहा है - हे महाभाग ब्रह्महत्या आदि महापातकों, अन्य पातकों को तथा अनेक पापों को मैं अघोर रूप एवं अघोर मन्त्र से दूर करता हूं। भगवान् शिव अपने अघोर रूप से सभी उपपातक, मानसिक पाप, वाचिकपाप, कायिकपाप, मिश्रितपाप, प्रासंगिकपाप, ज्ञाता- ज्ञातपाप, आगन्तुकपाप, पितृ- मातृ देहजन्यपाप तथा पातक जनित दुःखों का सर्वथा नाश करते हैं।

           मन्त्र- अघोरेभ्योऽथ घोरेभ्यो घोरघोरतरेभ्य: सर्वेभ्य: सर्वशर्वेभ्यो नमस्तेऽअस्तु रुद्ररूपेभ्य:।।

इस मन्त्र का श्रद्धापूर्वक जप तथा अनुष्ठान करने अथवा कराने से समस्त पापों की निवृत्ति तथा अलौकिक ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। यह मन्त्र शिव साक्षात्कार एवं कृपा प्राप्ति में विशेष सहायक है।

इस अघोर मन्त्र का विधिपूर्वक जप अनुष्ठान करने अथवा कराने से साधक (यजमान) की सभी अभिलाषा पूर्ण होती है तथा अनन्त: सदाशिव लोक की प्राप्ति होती है।

Benefits

भगवान् शिव के अघोर मन्त्र का माहात्म्य :-

मनुष्य अपने किये गये पूर्व- जन्म अथवा वर्तमान जन्म के ज्ञाता-ज्ञात पापो के कारण ही दुःख पाता है। जिसका प्रायश्चित अथवा निदान अघोरमन्त्र से सम्भव है।

* अघोरमन्त्र भगवान शिव का अमोघ मन्त्र है।

* लक्षं जप्त्वा ह्यघोरेभ्यो ब्रह्महा मुच्यते प्रभो। एक लाख बार अघोर मन्त्रजप, ब्रह्महत्या से मुक्ति प्रदान करता है।

* अमोघ अघोर मन्त्र का पचास हजार जप करने से वाचिक पाप तथा पच्चीस हजार जप करने से मानसिक पाप शान्त हो जाता है।

* इस मन्त्र द्वारा भ्रूणहत्या तथा ज्ञातज्ञात ब्रह्महत्या आदि पापों का मार्जन होता है।

* मातृ-हन्ता का पाप भी एकाग्रता पूर्वक जप करने वाले का शान्त हो जाता है।

* गोहत्या, कृतघ्न (किये गये उपकार को मानने वालास्त्रीहन्ता आदि पापों के मार्जन के लिए दस हजार बार अघोरमन्त्र का जप करे।

* सुरा (मदिरा) पीने वाला भी अपने पाप का प्रायश्चित अघोरमन्त्र जप से कर सकता है।

* स्नान के बिना भोजन करने वाला, गायत्री जप तथा अग्निहोत्र किए बिना भोजन करने वाला, देवताओं तथा अतिथियों को भोजन कराए बिना भोजन करने वाले को अपने अपराध के प्रायश्चित के लिए इस मन्त्र का जप करना अथवा कराना चाहिए।

* अघोर मन्त्र का जप करने अथवा कराने मात्र से मनुष्यकृत समस्त ज्ञाताज्ञात पापों का शमन हो जाता है।

* अतएव ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य को सभी पापों से मुक्ति हेतु इस अघोर मन्त्र का जप नित्य करना अथवा अनुष्ठानात्मक रूप से कराना चाहिए।

* अघोर मन्त्र जप अनुष्ठान के साथ ही ब्रह्मकूर्च विधि से निर्मित पंचगव्य का प्रशन करना चाहिए।

* घृत, चरु, समिध्, तिल, यव, धान्य से आहुति दें अथवा केवल घृत से आहुति करें।

Process

श्रीअघोरमन्त्रजप (अनुष्ठान) में होने वाले प्रयोग या विधि :-

  1. स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
  2. प्रतिज्ञा-सङ्कल्प
  3. गणपति गौरी पूजन
  4. कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
  5. पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
  6. षोडशमातृका पूजन
  7. सप्तघृतमातृका पूजन
  8. आयुष्यमन्त्रपाठ
  9. सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध (आभ्युदयिकश्राद्ध)
  10. नवग्रह मण्डल पूजन
  11. अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
  12. पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं पूजन 
  13. रक्षाविधान,  प्रधान देवता पूजन
  14.  मन्त्रजप विधान
  15. विनियोग,करन्यास, हृदयादिन्यास
  16. ध्यानम्, स्तोत्र पाठ
  17. पंचभूसंस्कार, अग्नि स्थापन, ब्रह्मा वरण, कुशकण्डिका
  18. आधार-आज्यभागसंज्ञक हवन
  19. घृताहुति, मूलमन्त्र आहुति, चरुहोम
  20. भूरादि नौ आहुति स्विष्टकृत आहुति, पवित्रप्रतिपत्ति
  21. संस्रवप्राश , मार्जन, पूर्णपात्र दान
  22. प्रणीता विमोक, मार्जन, बर्हिहोम 
  23. पूर्णाहुति, आरती, विसर्जन
Puja Samagri

वैकुण्ठ के द्वारा दी जाने वाली पूजन सामग्री:-

  1. रोली, कलावा    
  2. सिन्दूर, लवङ्ग 
  3. इलाइची, सुपारी 
  4. हल्दी, अबीर 
  5. गुलाल, अभ्रक 
  6. गङ्गाजल, गुलाबजल 
  7. इत्र, शहद 
  8. धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई 
  9. यज्ञोपवीत, पीला सरसों 
  10. देशी घी, कपूर 
  11. माचिस, जौ 
  12. दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा 
  13. सफेद चन्दन, लाल चन्दन 
  14. अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला 
  15. चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का 
  16. सप्तमृत्तिका 
  17. सप्तधान्य, सर्वोषधि 
  18. पञ्चरत्न, मिश्री 
  19. पीला कपड़ा सूत

हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र :-

  1. काला तिल 
  2. चावल 
  3. कमलगट्टा
  4. हवन सामग्री, घी,गुग्गुल
  5. गुड़ (बूरा या शक्कर)
  6. बलिदान हेतु पापड़
  7. काला उडद 
  8. पूर्णपात्र -कटोरी या भगोनी
  9. प्रोक्षणी, प्रणीता, स्रुवा, शुचि, स्फय - एक सेट
  10. हवन कुण्ड ताम्र का 10/10  इंच या 12/12 इंच 
  11. पिसा हुआ चन्दन 
  12. नवग्रह समिधा
  13. हवन समिधा 
  14. घृत पात्र
  15. कुशा
  16. पंच पात्र

यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-

  1. वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का - 1
  2. गाय का दूध - 100ML
  3. दही - 50ML
  4. मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार 
  5. फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
  6. दूर्वादल (घास ) - 1मुठ 
  7. पान का पत्ता - 07
  8. पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg
  9. पुष्पमाला - 7 ( विभिन्न प्रकार का)
  10. आम का पल्लव - 2
  11. विल्वपत्र - 21
  12. तुलसी पत्र -7
  13. पानी वाला नारियल,
  14. शमी पत्र एवं पुष्प 
  15. तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित  
  16. थाली - 2, कटोरी - 5, लोटा - 2, चम्मच - 2 आदि 
  17. अखण्ड दीपक -1
  18. देवताओं के लिए वस्त्र -  गमछा, धोती आदि 
  19. बैठने हेतु दरी,चादर,आसन 
  20. गोदुग्ध,गोदधि

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