समस्त दु:खों का नाश तथा कष्टों के निवारण हेतु करें श्री शङ्कराष्टकम् स्तोत्र पाठ

समस्त दु:खों का नाश तथा कष्टों के निवारण हेतु करें श्री शङ्कराष्टकम् स्तोत्र पाठ

।। श्री शङ्कराष्टकम् ।।

श्रीयोगानन्दतीर्थविरचित यह स्तोत्र आठ श्लोकों में आबद्ध है । इन श्लोकों के द्वारा आर्तभाव से काशीपति विश्वनाथ से प्रार्थना की गयी है आप हमारे समस्त दु:खों का नाश तथा कष्टों का निवारण करें । यह स्तोत्र पाठ समस्त पापों का नाश करने वाला है ।  

हे वामदेव शिवशङ्कर दीनबन्धो
            काशीपते पशुपते पशुपाशनाशिन् ।
हे विश्वनाथ भवबीज जनार्तिहारिन्
            संसारदुः खगहनाज्जगदीश रक्ष ॥१॥

हे वामदेव, शिवशंकर, दीनबन्धु, काशीपति, हे पशुपति, प्राणियों के भव-बन्धन को नष्ट करने वाले, हे विश्वनाथ संसार के कारण और भक्तों की पीडा का हरण करने वाले, हे जगदीश्वर ! इस संसार के गहन दुःखों से मेरी रक्षा कीजिये । 

हे भक्तवत्सल सदाशिव हे महेश
           हे विश्वतात जगदाश्रय हे पुरारे । 
गौरीपते मम पते मम प्राणनाथ
           संसारदुःखगहनाज्जगदीश रक्ष ॥२॥

हे भक्तवत्सल सदाशिव, हे महेश, जगत् के पिता, संसार के आधार, हे पुर नामक दैत्य के विध्वंसक, गौरीपति, मेरे रक्षक एवं मेरे प्राणनाथ, हे जगदीश्वर, आप इस संसार के गहन दुःखों से मेरी रक्षा कीजिये ।

हे दुःखभञ्जक विभो गिरिजेश शूलिन् 
           हे वेदशास्त्रविनिवेद्य जनैकबन्धो ।
हे व्योमकेश भुवनेश जग‌द्विशिष्ट 
           संसारदुःखगहनाज्जगदीश रक्ष ॥३॥

हे समस्त दुःखों के विध्वंसक, विभु, हे गिरिजेश, हे शूली, आपका स्वरूप वेद एवं शास्त्र से ही गम्य है, समस्त चराचर के एकमात्र बन्धुरूप, हे व्योमकेश, हे त्रिभुवन के स्वामी, जगत् से विलक्षण, हे जगदीश्वर ! इस संसार के गहन दुःखों से आप मेरी रक्षा कीजिये ।

हे धूर्जटे गिरिश हे गिरिजार्धदेह 
          हे सर्वभूतजनक प्रमथेश देव ।
हे सर्वदेवपरिपूजितपादपद्म
          संसारदुःखगहनाज्जगदीश रक्ष ॥४॥ 

हे धूर्जटि, कैलाश पर्वत पर शयन करने वाले, हे अर्धनारीश्वर (पार्वतीरूप अर्धशरीर वाले) तथा हे समस्त चराचर के उत्पादक, हे प्रमथगणों के स्वामी, देव, समस्त देवताओं से वन्दित चरणकमल वाले हे जगदीश्वर ! आप इस संसार के गहन दुःखों से मेरी रक्षा कीजिये ।

हे देवदेव वृषभध्वज नन्दिकेश
          कालीपते गणपते गजचर्मवास ।
हे  पार्वतीश परमेश्वर रक्ष शम्भो
          संसारदुःखगहनाज्जगदीश रक्ष ॥५॥ 

हे देवाधिदेव वृषभध्वज, नन्दी के स्वामी, कालीपति, समस्त वीरभद्रादि गणों के एकमात्र अधिपति, गजचर्म धारण करने वाले, हे पार्वतीवल्लभ ! हे परमेश्वर शम्भु ! आप इस संसार के गहन दुःखों से मेरी रक्षा कीजिये । 

हे वीरभद्र भववैद्य पिनाकपाणे 
         हे नीलकण्ठ मदनान्त शिवाकलत्र ।
वाराणसीपुरपते भवभीतिहारिन् 
         संसारदुःखगहनाज्जगदीश रक्ष ॥६॥ 

हे वीरभद्रस्वरूप, संसाररूपी रोग के चिकित्सक, अपने करकमलों में पिनाक नामक धनुष धारण करने वाले, हे नीलकण्ठ, कामदेव का अन्त करने वाले, पार्वती के स्वामी एवं वाराणसी नगरी के अधिपति, संसाररूपी भय के विनाशक, हे जगदीश्वर ! इस संसार के गहन दुःखों से आप मेरी रक्षा कीजिये । 

हे कालकाल मृड शर्व सदासहाय 
          हे भूतनाथ भवबाधक हे त्रिनेत्र ।
हे यज्ञशासक यमान्तक योगिवन्द्य
          संसारदुः खगहनाज्जगदीश रक्ष ॥७॥

हे काल के भी महाकालस्वरूप, हे सुखस्वरूप, हे शिव, हे सदा सहायक, हे भूतनाथ, भवको बाधित करने वाले, त्रिनेत्रधारी, यज्ञ के नियन्ता, यम के भी विनाशक, परम योगियों के द्वारा वन्दनीय, हे जगदीश्वर ! इस संसार के गहन दुःखों से आप मेरी रक्षा कीजिये ।

हे वेदवेद्य शशिशेखर हे दयालो
         हे सर्वभूतप्रतिपालक शूलपाणे ।
हे चन्द्रसूर्यशिखिनेत्र चिदेकरूप 
          संसारदुःखगहनाज्जगदीश रक्ष ॥८॥ 

हे वेद-प्रतिपाद्य, हे शशिशेखर, हे दयालु, प्राणिमात्र की रक्षा करने में निरन्तर तत्पर, हे अपने करकमलों में त्रिशूल धारण करने वाले, सूर्य, चन्द्र एवं अग्निरूप त्रिनेत्रधारी चिन्मात्रस्वरूप, हे जगदीश्वर ! इस संसार के गहन दुःखों से आप मेरी रक्षा कीजिये । 

श्रीशङ्कराष्टकमिदं योगानन्देन निर्मितम् ।
सायं प्रातः पठेन्नित्यं सर्वपापविनाशकम् ॥९॥ 

श्रीस्वामी योगानन्दतीर्थ द्वारा विरचित इस 'श्रीशंकराष्टक' का जो भक्तगण श्रद्धा-भक्तिपूर्वक सायं तथा प्रातः नित्य पाठ करते हैं, उनके समस्त पाप निश्चय ही नष्ट हो जाते हैं ।

॥ इति श्रीयोगानन्दतीर्थविरचितं श्रीशङ्कराष्टकं सम्पूर्णम् ॥

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