भगवान् पशुपति की कृपा एवं प्रीति प्राप्ति के लिए पशुपति स्तोत्र

भगवान् पशुपति की कृपा एवं प्रीति प्राप्ति के लिए पशुपति स्तोत्र

।। पशुपतिस्तोत्रम् ।।

संग्रहात्मक, जगत् के रक्षक भगवान् पशुपति को प्रसन्न करने वाला यह स्तोत्र है । इस स्तोत्र में भगवान् पशुपति (शिव ) से रक्षा के निमित्त पांच श्लोकों में प्रार्थना की गयी है । हे पशुपति नाथ ! आप सर्वविध हमारी रक्षा करें । 
 
स पातु वो यस्य जटाकलापे
              स्थितः शशाङ्क: स्फुटहारगौरः । 
 नीलोत्पलानामिव नालपुञ्जे 
              निद्रायमाणः शरदीव  हंसः ॥१॥ 

जिनके जटाजूट में स्थित गौरवर्ण का चन्द्रमा शरद्-ऋतु में नील कमल के नालों में निद्रायमाण हंस-सा दीख रहा है, ऐसे चन्द्रभूषण भगवान् पशुपति आप सब की रक्षा करें । 

जगत्सिसृक्षाप्रलयक्रियाविधौ
              प्रयत्नमुन्मेषनिमेषविभ्रमम् ।  
वदन्ति यस्येक्षणलोलपक्ष्मणां
              पराय तस्मै परमेष्ठिने नमः ॥२॥

जिन भगवान् पशुपति के चंचल नेत्रों की पलकों का उन्मेष (खोलना), निमेष (बंद करना) एवं विभ्रम (घूमना) संसार की सृष्टि, पालन तथा संहार की क्रियाओं का प्रयत्न कहा जाता है, उन परात्पर परमेष्ठी भगवान् पशुपति को नमस्कार है । 

व्योम्नीव नीरदभरः सरसीव वीचि- 
             व्यूहः सहस्त्रमहसीव सुधांशुधाम । 
यस्मिन्निदं जगदुदेति च लीयते च
              तच्छाम्भवं भवतु वैभवमृद्धये वः ॥३॥

जिनके भीतर यह जगत् उसी प्रकार प्रकट और विलीन होता रहता है, जिस प्रकार आकाश में मेघपुंज, तालाब में तरंगसमूह और अनन्त दीप्ति वाले सूर्यमण्डल में चन्द्रमा की किरणें, ऐसे भगवान् पशुपति शंकर आप सबको सुख-समृद्धि प्रदान करें । 

यः कन्दुकैरिव पुरन्दरपद्मसद्म- 
             पद्मापतिप्रभृतिभिः प्रभुरप्रमेयः ।
 खेलत्यलङ्ख्यमहिमा  स  हिमाद्रिकन्या- 
             कान्तः कृतान्तदलनो गलयत्वघं वः ॥४॥

अप्रमेय एवं अनतिक्रमणीय महिमा वाले तथा कृतान्त (यमराज)- का दलन करने वाले, इन्द्र, ब्रह्मा और विष्णु आदि के साथ क्रीड़ा-कन्दुक बनकर संसार में क्रीड़ा करने वाले पार्वतीपति भगवान् पशुपति आप लोगों के पाप को नष्ट करें ।

दिश्यात् स शीतकिरणाभरणः शिवं वो
              यस्योत्तमाङ्गभुवि विस्फुरदुर्मिपक्षा ।
 हंसीव निर्मलशशाङ्ककलामृणाल- 
              कन्दार्थिनी सुरसरिन्नभतः पपात ॥५॥

जिन भगवान् शंकर के सिर पर अपनी लहरों के साथ लहराती हुई गंगा आकाश से इस प्रकार अवतरित हो रही हैं, जैसे चन्द्रमा को निर्मल मृणालकन्द समझकर उसे पाने की इच्छा करती हुई और अपने पंखों को हिलाती-डुलाती हंसी आकाश से सरोवर में उतर रही हो । ऐसे शीतकिरण चन्द्रमा को आभूषणरूप में धारण करने वाले भगवान् पशुपति आप सबका कल्याण करें । 

॥इस प्रकार श्रीपाशुपति स्तोत्र सम्पूर्ण हुआ॥ 

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