काम, क्रोध, शोक, मोह, भूत-प्रेत आदि बाधाओं से मुक्ति तथा तीनों तापों से निवृत्ति हेतु करें इस स्तोत्र का पाठ

काम, क्रोध, शोक, मोह, भूत-प्रेत आदि बाधाओं से मुक्ति तथा तीनों तापों से निवृत्ति हेतु करें इस स्तोत्र का पाठ

श्रीआदिशंकराचार्य जी द्वारा विरचित यह स्त्रोत है। काल भैरव भगवान् शिव का ही स्वरुप हैं । इनकी उपासना उग्र रूप में की जाती है, किंतु यह न्यायप्रिय देवता हैं ।इसलिए इनको क्षेत्रपाल भी कहा जाता है । इनका निवास हिंदू तीर्थ काशी नगरी में है। भगवान काल भैरव को प्रसन्न करने के लिए आदि शंकराचार्य जी ने नौ श्लोकों में एक स्तोत्र की रचना की,जिसमें आठ श्लोकों के द्वारा भगवान् कालभैरव की महिमा तथा स्तुति का वर्णन है अथवा नवमें श्लोक में फलश्रुति का वर्णन प्राप्त होता है। भगवान कालभैरव कलयुग में बाधाओं का शीघ्र ही निराकरण करने वाले देवता हैं। विशेष रूप से इनका स्तवन् प्रेत बाधा, तांत्रिक बाधा, दोष बाधा आदि‌ की निवृत्ति के लिए किया जाता है। संतान की दीर्घायु तथा पारिवारिक जनों के स्वास्थ्य में वृद्धि इस स्तोत्र पाठ से होती है। भगवान काल भैरव की पूजा से राहु और केतु ग्रह शान्त होते हैं,तथा शीघ्र ही समस्त कार्यों में सफलता की प्राप्ति कराते हैं । तांत्रिक बाधा और भूत-प्रेत जनित संकटों की निवृत्ति इस स्तोत्र पाठ से होती है।

देवराजसेव्यमानपावनाङ्घ्रिपङ्कजं व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपाकरम् ।
नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगम्बरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥१॥ 

जिनके पवित्र चरण- कमलों की सेवा देवराज इन्द्र सदा करते रहते हैं तथा जिन्होंने शिर के आभूषण के रूप में चन्द्रमा और नागराज का यज्ञोपवीत धारण किया है। जो दिगम्बर-वेश में हैं एवं नारद आदि योगियों का समूह जिनकी वन्दना करता रहता है, ऐसे काशी नगरी के अधिपति भगवान काल भैरव का मैं स्तवन् करता हूँ ॥

भानुकोटिभास्वरं भवाब्धितारकं परं नीलकण्ठमीप्सितार्थदायकंत्रिलोचनम्।
कालकालमम्बुजाक्षमक्षशूलमक्षरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥२॥

जो करोड़ों सूर्यों के समान तेजस्वी, संसार-रुपी भव सागर से तारने वाले, श्रेष्ठ, नीले कण्ठ वाले,अभिलषित वस्तु को प्रदान वाले, त्रिनेत्रधारी, कालों के भी काल, कमल के सदृश नेत्र वाले तथा अक्षमाला और त्रिशूल धारण करने वाले हैं, उन काशी नगरी के अधिपति अविनाशी भगवान कालभैरव का मैं स्तवन् करता हूँ ॥

शूलटङ्कपाशदण्डपाणिमादिकारणं श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम् ।
भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥ ३॥ 

जिनके शरीर की कान्ति श्याम वर्ण की है तथा जिन्होंने अपने हाथों में शूल, टंक, पाश और दण्ड धारण किया हुआ है। जो आदिदेव हैं अविनाशी हैं और आदि कारण हैं, जो आधिदैविक ,आदिभौतिक, आध्यात्मिक इन तीनों तापों से रहित हैं, जिनका पराक्रम महान है। जो सर्व शक्तिमान हैं , जिनको विचित्र ताण्डव  प्रिय है, ऐसे काशी नगरी के अधीश्वर काल भैरव का मैं स्तवन् करता हूँ ॥

भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तचारुविग्रहं भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहम्।
विनिक्वणन्मनोज्ञहेमकिङ्किणीलसत्कटिं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥४॥

जिनका स्वरूप सुन्दर और प्रशंसनीय है, सम्पूर्ण विश्व ही जिनका शरीर है, जिन के कटिप्रदेश (कमर) में सोने की सुन्दर करधनी रुनझुन करती हुई सुशोभित हो रही है, जो भक्तों के प्रिय एवं स्थिर- शिवस्वरूप हैं, जो भोगों तथा मुक्ति को प्रदान करने वाले हैं ऐसे काशी नगरी अधिपति भगवान कालभैरव की मैं अर्चना करता हूँ ॥

धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशकं कर्मपाशमोचकं सुशर्मदायकं विभुम् ।
स्वर्णवर्णशेषपाशशोभिताङ्गमण्डलं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥५॥

जो धर्मरूपी सेतु के पालक एवं अधर्म के नाशक हैं तथा कर्मरुपी पाश से मुक्त कराने वाले हैं, सभी को कल्याण प्रदान करने वाले और सृष्टि में व्यापक हैं, जिनका सारा अंगमण्डल स्वर्णवर्ण वाले शेषनाग से सुशोभित है, ऐसे काशीनगरी के स्वामी भगवान कालभैरव का मैं स्तवन् करता हूँ ॥

रत्नपादुकाप्रभाभिरामपादयुग्मकं नित्यमद्वितीयमिष्टदैवतं निरञ्जनम् । 
मृत्युदर्पनाशनं करालद्रंष्ट्रमोक्षणं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥६॥

जिनके चरणयुगल रत्नमयी पादुका (खड़ाऊँ) की कान्ति से सुशोभित हो रहे हैं, जो निर्मल (स्वच्छ), अविनाशी, अद्वितीय हैं तथा सभी के इष्टदेवता हैं। मृत्यु के अभिमान को नष्ट करने वाले हैं तथा काल के भयंकर दांतों से मोक्ष दिलाने वाले हैं, ऐसे काशी नगरी के अधीश्वर काल भैरव की मैं आराधना करता हूँ ॥

अट्टहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसन्ततिं दृष्टिपातनष्टपापजालमुग्रशासनम् । 
अष्टसिद्धिदायकं कपालमालिकन्धरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥७॥

जिनके अट्टहास से ब्रह्माण्डों के समूह विदीर्ण हो जाते हैं, जिनकी कृपामयी दृष्टि  मात्र से पापों के समूह विनष्ट हो जाते हैं, जिनका शासन कठोर है, जो अष्ट सिद्धियों को प्रदान करने वाले तथा जो कपाल की माला धारण करने वाले हैं, ऐसे काशी नगरी के अधिपति भगवान कालभैरव का मैं स्तवन् करता हूँ ॥

भूतसंघनायकंविशालकीर्तिदायकंकाशिवासलोकपुण्यपापशोधकं विभुम्।
नीतिमार्गकोविदं पुरातनं जगत्पतिं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥८॥

 जो भूत-प्रेत,बिकिनी,शाकिनी आदि सभी के नायक हैं, जो अपने भक्तों की  कीर्ति और महिमा का‌ विस्तार करने वाले हैं; जो काशी के लोगों को उनके पापों और अधर्मों से मुक्त करते है; जो हमें धर्म के मार्ग पर ले जाने वाले हैं, जो ब्रह्माण्ड के सबसे प्राचीन (शाश्वत) स्वामी हैं।ऐसे काशी के सर्वोच्च स्वामी भगवान कालभैरव को मेरा नमस्कार है।

                                           (फलश्रुति)

कालभैरवाष्टकं पठन्ति ये मनोहरं ज्ञानमुक्तिसाधनं विचित्रपुण्यवर्धनम् ।
शोकमोहदैन्यलोभकोपतापनाशनं ते प्रयान्ति कालभैरवाङ्घ्रिसन्निधिं ध्रुवम ॥९॥ 

जो भक्त इस कालभैरवाष्टकम् स्तोत्र का पाठ करता है,उनको  ज्ञान और मुक्ति की  प्राप्ति होती है, तथा उनके पुण्यों में वृद्धि कराने वाला यह स्तोत्र है। इस स्तोत्र का पाठ से शोक, मोह, दीनताभाव,, लोभ, कोप( क्रोध)- तथा तीनों तापों नाश होता है। तथा निश्चित् ही उपासक भगवान काल भैरव के चरणों में शरणागति प्राप्त करता है।

॥ श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचितं कालभैरवाष्टकं सम्पूर्णम् ॥

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