महामृत्युञ्जय मन्त्र : जानें इसका महत्व, लाभ और उत्तम विधि ।

महामृत्युञ्जय मन्त्र  : जानें इसका महत्व, लाभ और उत्तम विधि ।

शिवपुराण और लिंगपुराण में महामृत्युंजय मंत्र का विशेष महत्व प्रतिपादित किया गया है । इस महामंत्र के जप से भगवान् शिव शीघ्र प्रसन्न होते हैं । महामृत्युंजय मंत्र का उल्लेख हमें ऋग्वेद और यजुर्वेद में प्राप्त होता है । शिवपुराण के अनुसार यदि नियमित रूप से साधक इस महामंत्र का प्रातः या सांय जप करता है उस पर भगवान् शिव की विशेष कृपा होती है तथा मन्त्रजप के प्रभाव से जरा,रोग, व्याधि,मृत्यु इत्यादि से निवृत्ति प्राप्त होती है । इसीलिए इस मन्त्र का जप बहुत प्रभावपूर्ण बतलाया गया है । भगवान् शिव के इस महामंत्र को जीवन प्रदायक मन्त्र भी कहा जाता है क्योंकि इस महामन्त्रजप के प्रभाव से अकाल मृत्यु का भय   समाप्त हो जाता है । 

महामृत्युंजय मंत्र की महत्ता  :- 

पौराणिक कथा के अनुसार, शिवभक्त ऋषि मृकण्डु जी के कोई संतान नहीं थी इसलिए ऋषि बहुत चिन्तित रहते थे । संतान प्राप्ति के लिए ऋषि मृकण्डु जी ने  भगवान् शिव की कठोर तपस्या (साधना) की । इस कठोर तपस्या के फलस्वरूप भगवान् शिव की कृपा से उन्हें पुत्ररत्न का आशीर्वाद प्राप्त हुआ परन्तु आशीर्वाद प्रदान करने के पश्चात् भगवान् शिव बोले- हे ऋषि ! आपकी जो संतान जन्म लेगी उसकी आयु न्यून (अल्प) ही होगी । इस प्रकार की बात भगवान् शिव से जानकर ऋषि मृकण्डु पुनः अत्यन्त दु:खी हो गए । कालान्तर में ऋषि मृकण्डु जी को पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई । परन्तु संतान प्राप्ति के अनन्तर भी ऋषि दु:खी (चिन्तित) थे । उनको इस प्रकार कष्ट में देखकर ऋषि पत्नी बोली- हे स्वामी ! आप को क्या कष्ट है आप दु:खी क्यों हैं ? पत्नी के इस प्रकार प्रश्न करने पर ऋषि मृकण्डु जी ने अपनी पत्नी को अपने कष्ट का कारण बताया । उनकी यह बात सुनकर ऋषिपत्नी बोलीं हे स्वामी ! आप क्यों चिन्ता करते हैं भगवान् शिव की कृपा से हमें संतान प्राप्त हुई है तो स्वयं भगवान् शिव ही हमें इस संकट से पार कराएँगे । इस तरह अपनी पत्नी की के विचार सुनकर ऋषि थोडा संतुष्ट हुए और उन्होंने अपने पुत्र का नाम मार्कंडेय रखा दिया तथा स्वयं शिवभक्त होने के कारण अपने पुत्र को शिवमन्त्र प्रदान किया । ऋषि पुत्र अपने पिता से शिवमंत्र प्राप्त होने के कारण शिव की साधना में ही निरन्तर संलग्न रहते थे । अतः जब  ऋषिपुत्र मार्कंडेय को भगवान् शिव द्वारा कही हुई बात का पता चला तो उन्होंने यह निश्चित किया की वे अपने माता-पिता की प्रसन्नता हेतु उन्हीं भगवान् शिव की उपासना करेंगे और उन्हीं से दीर्घायु होने का वरदान भी प्राप्त करेंगे । ऋषिपुत्र की अल्पायु पूर्ण होने को आ गयी ।  ऋषिपुत्र मार्कंडेय ने शिव आराधना के लिए महामृत्युंजय मन्त्र की रचना की और शिवालय में बैठकर निरन्तर इस महामंत्र का अखण्ड जप किया ।

अल्पायु पूर्ण होने पर जब यमदूत ऋषिपुत्र को अपने साथ ले जाने के लिए आये तो शिवमंत्र के प्रभाव से यमदूत ऋषिपुत्र का स्पर्श तक भी नहीं कर सके । ऋषिपुत्र का अखण्ड महामंत्र जप निरन्तर मानसिक रूप से चलता रहा । यह सब देखकर यमदूत वापस यमपुरी को लौट गए और यमराज के समक्ष जाकर समस्त वृतांत सुनाया । यह सब वृत्तान्त सुनकर स्वयं यमपुरी से महाराज यमराज ऋषिपुत्र के प्राणों का हरण करने के लिए आये और जैसे ही महाराज यमराज ने अपना मृत्युपाश ऋषिपुत्र पर फेंका तो वह बालक तत्क्षण ही शिवलिंग से लिपट गया और मृत्युपाश शिवलिंग पर जा गिरा । यमराज के इस दु:साहस को देखकर भगवान् शिव अत्यन्त क्रोधित हो गए और अपने भक्त को इस प्रकार यमराज के साथ जाते देख तत्क्षण ही वहां प्रकट हो गए । महाराज यमराज ने भगवान् शिव की सुन्दर स्तुति करते हुए प्रणाम किया तथा विधि के विधान से भगवान् शिव को अवगत कराने लगे । यह सब जानकर भगवान् शिव ने ऋषिपुत्र को दीर्घायु होने का वरदान प्रदान किया । यह सब देखकर यमराज ने ऋषिपुत्र के प्राण छोड़ दिए और भगवान् शिव से कहा की आपका जो भी भक्त ऋषिपुत्र द्वारा विरचित इस महामन्त्र का जप करेगा मैं उस जप करने वाले मनुष्य को पीड़ा नहीं दूंगा । 
यही ऋषिपुत्र कालांतर में मार्कंडेय ऋषि के नाम से जाने गए और “मार्कंडेयपुराण” जैसे महापुराण की रचना की ।
 
अतः इस पौराणिक कथा के आधार पर “महामृत्युंजय मन्त्र” शक्तिशाली व प्रभावशाली है इस बात की यथार्थता की पुष्टि होती है ।

महामृत्युंजय मंत्र-

ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥ ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ

महामृत्युंजय मंत्र से होने वाले लाभ :-   

1. दीर्घायु की प्राप्ति के लिए :

प्रत्येक जातक की यह कामना होती है की वह दीर्घायु हो, जिससे वह अपने समस्त सांसारिक और सामाजिक कार्यों को पूर्ण कर सके परन्तु जन्मकुंडली में दोष विशेष आ जाने से मनुष्य की आयु न्यून हो जाती है अतः इस न्यून आयु के दोष की निवृत्ति हेतु जातक इस महामंत्र का अनुष्ठान अपने निजगृह में सम्पादित कर दीर्घायु प्राप्त कर सकता है । इस महामंत्र के प्रभाव से अकाल मृत्यु पर भी विजय प्राप्त की जा सकती है।  

2. रोगों से मुक्ति हेतु :-

“शरीरमाद्यम् खलु धर्म साधनम्” अर्थात् यह शरीर ही समस्त धर्म (कर्म) को सम्पादित करने का माध्यम है । अतः किसी कार्य या क्रिया को सम्पादित करने के लिए शारीरिक रूप से स्वास्थ्य होना आवश्यक है । कहने का आशय यह है की यदि किसी जातक को किसी भी प्रकार का शारीरिक कष्ट है या कोई ऐसा रोग जो बहुत दीर्घकाल से पीड़ा दे रहा हो तो ऐसे अरिष्ट रोग की शांति के लिए भी यह महामन्त्र अत्यन्त प्रभावशाली है ।

3. संतान प्राप्ति के लिए :-

जिन जातकों को विवाह के पश्चात् संतान प्राप्ति में किसी कारणवश समस्या आती है तो ऐसे जातक भी भगवान् आशुतोष के इस महामंत्र के प्रभाव से संतान सम्बन्धी समस्या का निवारण कर सकते हैं । महामंत्र के जप से भगवान् आशुतोष प्रसन्न होते हैं तथा जातक को संतान प्राप्ति हेतु आशीर्वाद प्रदान करते हैं ।

4. समाज में यश (सम्मान) की प्राप्ति :

महामृत्युंजय मंत्र का निरंतर जप करने से जातक समाज में ख्याति प्राप्त करता  है । भगवान् शिव के मंत्रजप के प्रभाव से जातक की ,मेधा और यश में वृद्धि होती है एवं समाज में उच्च ख्याति (स्थान) प्राप्त होता है।    

5. भय से मुक्ति :

यदि किसी जातक को किसी भी प्रकार का भय या अकाल मृत्यु होने का भय प्रतीत होता है तो उसकी निवृत्ति के लिए महामृत्युंजय मंत्र का निरंतर जप करना चाहिए ।  

महामृत्युंजय मंत्र को करने की उचित विधि :-

  • महामृत्युंजय जप का अनुष्ठान विधि-विधान पूर्वक, विद्वान् ब्राह्मण से परामर्श करके शुभ मुहूर्त में ही सम्पादित करना चाहिए । 
  • शिवपुराण में इस महामंत्र का जप करने के लिए प्रातः या सांय का समय उत्तम माना गया है । 
  • मंत्र जाप के लिए “रुद्राक्ष” की माला का प्रयोग करें ।   
  • महामृत्युंजय मंत्र का जप विधि-विधान से पूर्व दिशा में शिवलिंग के समक्ष साफ-स्वच्छ स्थान पर ही बैठकर करें । 
  • भगवान् शिव की एक प्रतिमा लें या फिर एक चित्र ले लें और उसे एक चौकी पर कपडा बिछाकर प्रतिष्ठित करें ।
  • इसके पश्चात् भगवान् शिव की यथासामर्थ्यनुसार सामग्री से पूजा करें । (रोली- चावल-पुष्प-माला-फल-मिष्ठान इत्यादि )
  • पूजन के पश्चात् ही जप प्रारंभ करें ।
  • यथाशक्ति जप हो जाने के पश्चात् आरती करें और प्रसाद वितरित करके स्वयं भी प्रसाद ग्रहण करें

इस प्रकार महामृत्युंजय मन्त्र की प्रभावशीलता दृष्टिगोचर होती है अतः हम कह सकते हैं की यह महामंत्र सर्वविध कल्याण करने वाला है ।   

नोट :-

उपर्युक्त विधि का केवल स्वयं जप के समय पालन करना है । इस महामंत्र का अनुष्ठान सम्पादित करते समय जो विधि की जाती है वह बृहद है अतः जब महामृत्युंजय मन्त्र का अनुष्ठान कराना हो तब किन्हीं विद्वान वैदिक ब्राह्मणों से संपर्क करें ।   

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