बुद्धि विवेक के अभ्युदय तथा स्मरण शक्तिविकास के लिए नील सरस्वती स्तोत्र

बुद्धि विवेक के अभ्युदय तथा स्मरण शक्तिविकास के लिए नील सरस्वती स्तोत्र

।। नील सरस्वती स्तोत्रम् ।।

विद्याप्रदायिनी, बुद्धिदायिनी भगवती सरस्वती को समर्पित इस स्तोत्र में कुल तेरह (13) श्लोक हैं जिनमें भगवती के स्वरुप का ध्यान करते हुए उपासक अपनी रक्षा के निमित्त भगवती से प्रार्थना करता है । जो मनुष्य अष्टमी, नवमी तथा चतुर्दशी को इस स्तोत्र का पाठ करता है उसे छः माह में समस्त सिद्धि प्राप्त हो जाती हैं । भगवती की कृपा से मोक्षार्थी को मोक्ष,धनार्थी को धन एवं विद्यार्थी को विद्या प्राप्त होती है । 

विशेष :- जिन विद्यार्थियों की मति (बुद्धि ) मध्यम होती है उन्हें इस स्तोत्र का पाठ करने से उत्तम बुद्धि की प्राप्ति होती है ।  

घोररूपे महारावे सर्वशत्रुभयङ्करि । 
भक्तेभ्यो वरदे देवि त्राहि मां शरणागतम् ॥१॥

भयानक रूपवाली, घोर निनाद करने वाली, सभी शत्रुओं को भयभीत करने वाली तथा भक्तों को वर प्रदान करने वाली हे देवि ! आप मुझ शरणागत की रक्षा करें ।

ॐ सुरासुरार्चिते देवि सिद्धगन्धर्वसेविते । 
जाड्यपापहरे देवि त्राहि मां शरणागतम् ॥२॥

देव तथा दानवों के द्वारा पूजित, सिद्धों तथा गन्धर्वों के द्वारा सेवित और जड़ता तथा पाप को हरने वाली हे देवि ! आप मुझ शरणागत की रक्षा करें ।

जटाजूटसमायुक्ते लोलजिह्वान्तकारिणि ।
द्रुतबुद्धिकरे देवि त्राहि मां शरणागतम् ॥३॥

जटाजूट से सुशोभित, चंचल जिह्वा को अंदर की ओर करने वाली, बुद्धि को तीक्ष्ण बनाने वाली हे देवि ! आप मुझ शरणागत की रक्षा करें ।

सौम्यक्रोधधरे रूपे चण्डरूपे नमोऽस्तु ते । 
सृष्टिरूपे नमस्तुभ्यं त्राहि मां शरणागतम् ॥४॥

सौम्य क्रोध धारण करने वाली, उत्तम विग्रहवाली, प्रचण्ड स्वरूपवाली हे देवि ! आपको नमस्कार है । हे सृष्टिस्वरूपिणि ! आपको नमस्कार है, मुझ शरणागत की रक्षा करें । 

जडानां जडतां हन्ति भक्तानां भक्तवत्सला । 
मूढतां हर मे देवि त्राहि मां शरणागतम् ॥५॥

आप मूर्खों की मूर्खता का नाश करती हैं और भक्तों के लिये भक्तवत्सला हैं । हे देवि ! आप मेरी मूढ़ता को हरें और मुझ शरणागत की रक्षा करें ।

वं ह्रूं ह्रूं कामये देवि बलिहोमप्रिये नमः। 
उग्रतारे नमो नित्यं त्राहि मां शरणागतम् ॥६॥

वं ह्रूं ह्रूं बीजमन्त्रस्वरूपिणी हे देवि ! मैं आपके दर्शन की कामना करता हूँ । बलि तथा होम से प्रसन्न होने वाली हे देवि ! आपको नमस्कार है। उग्र आपदाओं से तारने वाली हे उग्रतारे ! आपको नित्य नमस्कार है, आप मुझ शरणागत की रक्षा करें ।

बुद्धिं देहि यशो देहि कवित्वं देहि देहि मे। 
मूढत्वं च हरेद्देवि त्राहि मां शरणागतम् ॥७॥ 

हे देवि ! आप मुझे बुद्धि दें, कीर्ति दें, कवित्वशक्ति दें और मेरी मूढता का नाश करें । आप मुझ शरणागत की रक्षा करें ।

इन्द्रादिविलसद्वन्द्ववन्दिते करुणामयि ।
तारे ताराधिनाथास्ये त्राहि मां शरणागतम् ॥८॥

इन्द्र आदि के द्वारा वन्दित शोभायुक्तचरणयुगल वाली, करुणा से परिपूर्ण, चन्द्रमा के समान मुखमण्डल वाली और जगत्‌ को तारने वाली हे भगवती तारा ! आप मुझ शरणागत की रक्षा करें ।

अष्टम्यां च चतुर्दश्यां नवम्यां यः पठेन्नरः । 
षण्मासैः सिद्धिमाप्नोति नात्र कार्या विचारणा ॥९॥

जो मनुष्य अष्टमी, नवमी तथा चतुर्दशी तिथि को इस स्तोत्र का पाठ करता है, वह छः महीने में सिद्धि प्राप्त कर लेता है, इसमें संदेह नहीं करना चाहिये ।

मोक्षार्थी लभते मोक्षं धनार्थी लभते धनम् । 
विद्यार्थी लभते विद्यां तर्कव्याकरणादिकम् ॥१०॥ 

इसका पाठ करने से मोक्ष की कामना करने वाला मोक्ष प्राप्त कर लेता है, धन चाहने वाला धन पा जाता है और विद्या चाहने वाला विद्या तथा तर्क-व्याकरण आदि का ज्ञान प्राप्त कर लेता है ।

इदं स्तोत्रं पठेद्यस्तु सततं श्रद्धयाऽन्वितः । 
तस्य शत्रुः क्षयं याति महाप्रज्ञा प्रजायते ॥११॥

जो मनुष्य भक्तिपरायण होकर सतत इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसके शत्रु का नाश हो जाता है और उसमें महान् बुद्धि का उदय हो जाता है ।

पीडायां वापि संग्रामे जाड्ये दाने तथा भये । 
य इदं पठति स्तोत्रं शुभं तस्य न संशयः ॥१२॥ 
इति प्रणम्य स्तुत्वा च योनिमुद्रां प्रदर्शयेत् ॥१३॥

जो व्यक्ति विपत्ति में, संग्राम में, मूर्खत्व की दशा में, दान के समय तथा भय की स्थिति में इस स्तोत्र को पढ़ता है, उसका कल्याण हो जाता है, इसमें संदेह नहीं है। इस प्रकार स्तुति करने के अनन्तर देवी को प्रणाम करके उन्हें योनिमुद्रा दिखानी चाहिये ।

॥ इस प्रकार नीलसरस्वतीस्तोत्र सम्पूर्ण हुआ ॥

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