ऐश्वर्य की प्राप्ति तथा समस्त बन्धनों से मुक्ति हेतु श्री गणेशाष्टक स्तोत्र

ऐश्वर्य की प्राप्ति तथा समस्त बन्धनों से मुक्ति हेतु श्री गणेशाष्टक स्तोत्र

।। श्री गणेश अष्टक स्तोत्र ।।

श्री गणेश पुराण के अन्तर्गत् उपासनाखंड में यह स्तोत्र प्राप्त होता है । इस स्तोत्र में कुल तेरह (13) श्लोक हैं जिनमें से आठ (8) श्लोकों में भगवान् गणेश की स्तुति है एवं अन्य श्लोकों में स्तोत्र पाठ की फल श्रुति बताई गयी है । 

स्तोत्र पाठ के लाभ :

  • जो साधक तीन दिन पर्यंत तीनों संध्या के समय इस स्तोत्र का पाठ करता है उसे समस्त मांगलिक कार्यों में सिद्धि प्राप्त होती है । 
  • जो आठ दिन पर्यंत इन श्लोकों का पाठ करता है, तथा चतुर्थी तिथी को आठ बार इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसे अष्ट सिद्धियों की प्राप्ति होती है ।
  • एक मास पर्यंत प्रतिदिन दस पाठ करने से कारागार में बंधा हुआ व्यक्ति भी मुक्त हो जाता है ।

          सर्वे ऊचु:    

यतोऽनन्तशक्तेरनन्ताश्च जीवा, 
                      यतो निर्गुणादप्रमेया गुणास्ते । 
यतो भाति सर्वं त्रिधा भेदभिन्नं, 
                      सदा तं गणेशं नमामो भजामः ॥१॥

सभी भक्तों ने कहा- जिन अनन्त शक्ति वाले परमेश्वर से अनन्त जीव प्रकट हुए हैं, जिन निर्गुण परमात्मा से अप्रमेय (असंख्य ) गुणों की उत्पत्ति हुई,सात्विक, राजस, और तामस – इन तीन भेदों वाला यह सम्पूर्ण जगत् जिनसे प्रकट एवं भासित हो रहा है, उन गणेश का हम नमन एवं भजन करते हैं ।

यतश्चाविरासीज्जगत्सर्वमेत-,
                    त्तथाब्जासनो विश्वगो विश्वगोप्ता ।
तथेन्द्रादयो देवसङ्घा मनुष्याः, 
                    सदा तं गणेशं नमामो भजामः ॥२॥

जिनसे इस समस्त जगत् प्रादुर्भाव हुआ है, जिनसे कमलासन ब्रह्मा, विश्वव्यापी विश्वरक्षक विष्णु, इन्द्र आदि देव-समुदाय और मनुष्य प्रकट हुए हैं, उन गणेश का हम सदा ही नमन एवं भजन करते हैं ।

यतो वह्निभानूद्भवो भूर्जलं च, 
                    यतः सागराश्चन्द्रमा व्योम वायुः।
यतः स्थावरा जङ्गमा वृक्षसङ्घाः,
                    सदा तं गणेशं नमामो भजामः ॥३॥

जिनसे अग्नि और सूर्य का प्राकट्य हुआ; पृथ्वी, जल, समुद्र, चन्द्रमा, आकाश और वायु का प्रादुर्भाव हुआ तथा जिनसे स्थावर-जंगम और वृक्षसमूह उत्पन्न हुए हैं, उन गणेश का हम नमन एवं भजन करते हैं ।

यतो दानवाः किन्नरा यक्षसङ्घा, 
                    यतश्चारणा वारणाः श्वापदाश्च ।
यतः पक्षिकीटा यतो वीरुधश्च,
                    सदा तं गणेशं नमामो भजामः ॥४॥

जिनसे दानव, किंनर और यक्षसमूह प्रकट हुए; जिनसे हाथी और हिंसक जीव उत्पन्न हुए तथा जिनसे पक्षियों, कीटों और लता-बेलों का प्रादुर्भाव हुआ, उन गणेश का हम सदा ही नमन और भजन करते हैं ।

यतो बुद्धिरज्ञाननाशो मुमुक्षोर्यतः,
                    सम्पदो भक्तसंतोषिकाः स्युः।
यतो विघ्ननाशो यतः कार्यसिद्धिः
                    सदा तं गणेशं नमामो भजामः ॥५॥

जिनसे मुमुक्षु को बुद्धि प्राप्त होती है और अज्ञान का नाश होता है; जिनसे भक्तों को सन्तोष देने वाली सम्पदाएँ प्राप्त होती हैं तथा जिनसे विघ्नों का नाश और समस्त कार्यों की सिद्धि होती है, उन गणेश का हम सदा नमन एवं भजन करते हैं।

यतः पुत्रसम्पद् यतो वाञ्छितार्थो, 
                    यतोऽभक्तविघ्नास्तथानेकरूपाः ।
यतः शोकमोहौ यतः काम एव,
                    सदा तं गणेशं नमामो भजामः ॥६ ॥

जिनसे पुत्र-सम्पत्ति सुलभ होती है; जिनसे मनोवांछित अर्थ सिद्ध होता है; जिनसे अभक्तों को अनेक प्रकारके विघ्न प्राप्त होते हैं तथा जिनसे शोक, मोह और काम प्राप्त होते हैं, उन गणेश का हम सदा नमन एवं भजन करते हैं।

यतोऽनन्तशक्तिः स शेषो बभूव, 
                     धराधारणेऽनेकरूपे च शक्तः । 
यतोऽनेकधा स्वर्गलोका हि नाना,
                      सदा तं गणेशं नमामो भजामः ॥ ७॥

जिनसे अनन्त शक्तिसम्पन्न सुप्रसिद्ध शेषनाग प्रकट हुए; जो इस पृथ्वी को धारण करने एवं अनेक रूप ग्रहण करने में समर्थ हैं; जिनसे अनेक प्रकार के अनेक स्वर्गलोक प्रकट हुए हैं, उन गणेश का हम सदा ही नमन एवं भजन करते हैं ।

यतो वेदवाचो विकुण्ठा मनोभिः, 
                     सदा नेति नेतीति यत्ता गृणन्ति ।
परब्रह्मरूपं चिदानन्दभूतं,
                      सदा तं गणेशं नमामो भजाम: ।।८।।

जिनके विषय में वेदवाणी कुण्ठित है; जहाँ मन की भी पहुँच नहीं है तथा श्रुति सदा सावधान रहकर 'नेति-नेति'-इन शब्दों द्वारा जिनका वर्णन करती है; जो सच्चिदानन्दस्वरूप परब्रह्म हैं, उन गणेश का हम सदा ही नमन एवं भजन करते हैं ।

        श्रीगणेश उवाच

पुनरूचे गणाधीशः स्तोत्रमेतत्पठेन्नरः। 
त्रिसंध्यं त्रिदिनं तस्य सर्वं कार्यं भविष्यति ॥९॥

श्रीगणेशजी बोले- जो मनुष्य तीन दिनों तक तीनों संध्याओं के समय इस स्तोत्र का पाठ करेगा, उसके सारे कार्य सिद्ध हो जायेंगे ।

यो जपेदष्टदिवसं श्लोकाष्टकमिदं शुभम् । 
अष्टवारं चतुर्थ्यां तु सोऽष्टसिद्धीरवाप्नुयात् ॥१०॥ 

जो आठ दिनों तक इन आठ श्लोकों का एक बार पाठ करेगा और चतुर्थी तिथि को आठ बार इस स्तोत्र को पढ़ेगा, वह आठों सिद्धियों को प्राप्त कर लेगा ।

यः पठेन्मासमात्रं तु दशवारं दिने दिने । 
स मोचयेद् बन्धगतं राजवध्यं न संशयः ॥११॥

जो एक मास तक प्रतिदिन दस-दस बार इस स्तोत्र का पाठ करेगा, वह कारागार में बँधे हुए तथा राजा के द्वारा वध-दण्ड पाने वाले कैदी को भी छुड़ा लेगा, इसमें संशय नहीं है ।

विद्याकामो लभेद्विद्यां पुत्रार्थी पुत्रमाप्नुयात् । 
वाञ्छिताँल्लभते सर्वानेकविंशतिवारत: ।।१२।।

इस स्तोत्र का इक्कीस बार पाठ करने से विद्यार्थी विद्या को, पुत्रार्थी पुत्र को तथा कामार्थी समस्त मनोवांछित कामनाओं को प्राप्त कर लेता है ।

यो जपेत् परया भक्त्या गजाननपरो नरः ।
एवमुक्त्वा ततो देवश्चान्तर्धानं गतः प्रभुः ॥१३॥

जो मनुष्य पराभक्ति से इस स्तोत्र का जप करता है, वह गजानन का परम भक्त हो जाता है-ऐसा कहकर भगवान् गणेश वहीं अन्तर्धान हो गये ।

॥ इति श्रीगणेशपुराणे श्रीगणेशाष्टकं सम्पूर्णम् ॥

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