लौकिक तथा पारलौकिक सुखों को भोगकर मुक्ति प्राप्ति हेतु करें सप्तश्लोकी गणपति स्तोत्र

लौकिक तथा पारलौकिक सुखों को भोगकर मुक्ति प्राप्ति हेतु करें सप्तश्लोकी गणपति स्तोत्र

।। श्री गणपति स्तोत्रम् ।।

श्रीवासुदेवानन्दसरस्वतीविरचित इस सप्तश्लोकी स्तोत्र का जो श्रद्धावान् पुरुष दूर्वांकुर, लावा आदि उपचारों से शिवसुत गणेश की पूजा करते हैं, वे लौकिक तथा पारलौकिक सुखों को भोगकर मुक्ति प्राप्त करते हैं । 

निर्विघ्नार्थं हरीशाद्या देवा अपि भजन्ति यम् ।
मत्यैः स वक्रतुण्डोऽर्च्य इति गाणेशसम्मतम् ॥१॥

विघ्नों के नाश के लिये जिनकी सेवा विष्णु तथा महेश्वर आदि देवता भी करते रहते हैं, उन वक्रतुण्ड की पूजा मरणधर्मी जीवों को करनी चाहिये, ऐसा गणपति-सम्प्रदाय के लोगों का कहना है ।

जगत्सृष्ट्यादिहेतुः सा वरा श्रुत्युक्तदेवता ।
गणानां त्वेति मन्त्रेण स्तुतो गृत्समदर्षिणा ॥२॥ 

जगत् की स्थिति, पालन एवं संहार हेतु श्रुतियों के द्वारा प्रतिपादित श्रेष्ठ देवता श्रीगणेश हैं, 'गणानां त्वा' - इस वैदिक मन्त्र के द्वारा गृत्समद ऋषि ने उनकी स्तुति की है ।

इत्युक्तं तत्पुराणेऽतो गणेशो ब्रह्मणस्पतिः । 
महाकविर्येष्ठराजः श्रूयते मन्त्रकृच्च सः ॥३॥

मन्त्रं वदत्युक्थमेष प्रनूनं ब्रह्मणस्पतिः।
यस्मिन्निन्द्रादयः सर्वे देवा ओकांसि चक्रिरे ॥४॥

गणेशपुराण में उन गणेशजी को ब्रह्मणस्पति नाम से कहा गया है, वे महाकवि, ज्येष्ठराज तथा मन्त्रकृत् आदि नामों से भी सम्बोधित किये जाते हैं। ये ब्रह्मणस्पति सामवेद के मन्त्र का यथार्थ रूप में गान करते हैं, जिसमें इन्द्र आदि सभी देवताओं ने आश्रय ग्रहण किया ।

स प्रभुः सर्वतः पाता यो रेवान्यो अमीवहा ।
अतोऽर्योऽसौ यश्चतुरो वसुवित्पुष्टिवर्धनः ॥५॥

वे गणनाथ ही एकमात्र सब के प्रभु हैं, सभी जीवों के संरक्षक हैं, सभी का सब तरह से कल्याण करने वाले हैं, सभी के योगक्षेम का वहन करने वाले हैं, प्रवीण हैं, ऐश्वर्यसम्पन्न हैं, पुष्टि की वृद्धि करने वाले हैं, अतः वे पूजनीय हैं ।

वक्रतुण्डोऽपि सुमुखः साधो गन्तापि चोर्ध्वगः ।
येऽमुं नार्चन्ति ते विघ्नैः पराभूता भवन्ति हि ॥६॥

गणपति वक्रतुण्ड वाले होने पर भी सुन्दर मुखवाले हैं। उनका तुण्ड नीचे की ओर गमन करता हुआ भी ऊपर की ओर गति करता है। जो इनकी पूजा नहीं करते हैं, वे विघ्नों के बन्धन में पड़कर दुःख भोगते हैं ।

ये दूर्वाकुरलाजाद्यैः पूजयन्ति शिवात्मजम् ।
ऐहिकामुष्मिकान् भोगान् भुक्त्वा मुक्तिं व्रजन्ति ते ॥७॥

जो [श्रद्धावान् पुरुष] दूर्वांकुर, लावा आदि उपचारों से शिवसुत गणेश की पूजा करते हैं, वे लौकिक तथा पारलौकिक सुखों को भोगकर मुक्ति प्राप्त करते हैं ।

॥ इति श्रीवासुदेवानन्दसरस्वतीविरचितं गणपतिस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

वैदिक पद्धति से विशिष्ट पूजा-पाठ, यज्ञानुष्ठान, षोडश संस्कार, वैदिकसूक्ति पाठ, नवग्रह जप आदि के लिए हमारी साइट vaikunth.co पर जाएं तथा अभी बुक करें ।

Vaikunth Blogs

व्यवसाय में आ रही समस्याओं के समाधान हेतु करें देवकृत् गणेशस्तवन
व्यवसाय में आ रही समस्याओं के समाधान हेतु करें देवकृत् गणेशस्तवन

श्री गणेशस्तवन स्तोत्र भगवान् गणपति की उपासना हेतु सर्वोत्तम स्तोत्र माना गया है यह स्तोत्र श्री मुद...

उत्तम सन्तान प्राप्ति एवं रक्षा हेतु सन्तान गणपति स्तोत्र
उत्तम सन्तान प्राप्ति एवं रक्षा हेतु सन्तान गणपति स्तोत्र

।। संतान गणपति स्तोत्र ।। भगवान् गणेश की उपासना के निमित्त पुराणों में विभिन्न जप, स्तोत्र पाठ, त...

सर्वविध रक्षा हेतु करें संसारमोहन गणेशकवच का पाठ
सर्वविध रक्षा हेतु करें संसारमोहन गणेशकवच का पाठ

।। संसार मोहन गणेश कवचम् ।। श्रीब्रह्मवैवर्तपुराण के अन्तर्गत गणपतिखण्ड में संसारमोहन नामक गणेशकव...

पत्नी,पुत्र,विद्या,गृह, सम्पत्ति आदि की प्राप्ति के लिए सुनें या करें श्री गणेश महिम्न स्तोत्र का पाठ
पत्नी,पुत्र,विद्या,गृह, सम्पत्ति आदि की प्राप्ति के लिए सुनें या करें श्री गणेश महिम्न स्तोत्र का पाठ

।। श्री गणेशमहिम्न: स्तोत्र ।।  भगवान् शिव एवं गणपति के अनन्य भक्त श्रीपुष्पदन्तजी द्वारा विरचित...

असाध्य कार्यों में सफलता तथा सर्वत्र विजय प्राप्ति हेतु
असाध्य कार्यों में सफलता तथा सर्वत्र विजय प्राप्ति हेतु

।। श्री एकदन्त शरणागति स्तोत्र ।। श्रीमुद्गलपुराण के अन्तर्गत भगवान् श्रीगणेश को समर्पित इस स्तोत...

दु:ख-द्रारिद्रय की निवृत्ति तथा धन-धान्य की वृद्धि हेतु करें श्री गणेश स्तुति
दु:ख-द्रारिद्रय की निवृत्ति तथा धन-धान्य की वृद्धि हेतु करें श्री गणेश स्तुति

।। श्री गणेश स्तुति ।।  श्रीब्रह्मपुराण में देवताओं के द्वारा भगवान् गणेश की यह स्तुति की गयी है...

 +91 |

By clicking on Login, I accept the Terms & Conditions and Privacy Policy

Recovery Account