समस्त मांगलिक कार्यों के प्रारम्भ में विघ्न निवारण हेतु करें मंगलम् स्तोत्र का पाठ

समस्त मांगलिक कार्यों के प्रारम्भ में विघ्न निवारण हेतु करें मंगलम् स्तोत्र का पाठ

।। मंगलम् ।।

सनातन धर्म के अनुसार श्री महादेव और माँ पार्वती के पुत्र गणपति (गणेशजी) समस्त देवताओं में प्रथम पूज्यनीय हैं । भगवान् गणेश की जिस साधक पर कृपा दृष्टी हो जाती है उस साधक को अपने जीवन में रिद्धि-सिद्धि सहजता से आशीर्वाद के स्वरूप में प्राप्त होती है एवं समस्त संकटों का विनाश होता है ।

स जयति सिन्धुरवदनो देवो यत्पादपङ्कजस्मरणम् । 
वासरमणिरिव तमसां राशीन्नाशयति विघ्नानाम् ॥१॥ 

उन गजबदन देवदेव की जय हो, जिनके चरणकमल का स्मरण सम्पूर्ण विघ्नसमूह को इस प्रकार नष्ट कर देता है जैसे सूर्य अन्धकारराशी को ।   

सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः ।
लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः ॥२॥  

धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजानन: ।
द्वादशैतानि नामानि य: पठेच्छृणुयादपि ॥३॥      

विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा ।
संग्रामे सङ्कटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते ॥४॥ 

जो पुरुष विद्यारम्भ, विवाह, गृहप्रवेश, निर्गमन (घर से बहार जाने ), संग्राम अथवा संकट के समय सुमुख, एकदन्त, कपिल, गजकर्ण, लम्बोदर, विकट, विघ्ननाशन, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचंद्र, और गजानन,- इन बारह नामों का पाठ या श्रवण करता है,उसे किसी प्रकार का विघ्न नहीं होता है । 

शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजम् ।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत्सर्वविघ्नोपशान्तये ॥५॥

जो श्वेत वस्त्र धारण किये हैं, चंद्रमा के समान जिनका वर्ण है तथा जो प्रसन्नवदन हैं उन देवदेव चतुर्भुज भगवान् विष्णु का सब विघ्नों की निवृत्ति के लिए ध्यान करना चाहिए ।  

व्यासं वसिष्ठनप्तारं शक्तेः पौत्रमकल्मषम् ।
पराशरात्मजं वन्दे शुकतातं तपोनिधिम् ॥६॥

जो वशिष्ठजी के नाती (प्रपौत्र), शक्ति के पौत्र, पाराशरजी के पुत्र,तथा सुखदेव के पिता हैं,उन निष्पाप,तपोनिधि, व्यासजी की मैं वन्दना करता हूँ ।

व्यासाय विष्णुरूपाय व्यासरूपाय विष्णवे ।
नमो वै ब्रह्मनिधये वासिष्ठाय नमो नमः ॥७॥

विष्णु स्वरूप व्यास अथवा व्यासरूप श्री विष्णु को मैं नमस्कार करता हूँ । वशिष्ठवंशज ब्रह्म निधि श्रीव्यासजी को बारम्बार नमस्कार है ।

अचतुर्वदनो ब्रह्मा द्विबाहुरपरो हरि: ।
अभाललोचनः शम्भुर्भगवान् बादरायण: ॥८॥

भगवान् वेदव्यास जी बिना चार मुख के ब्रह्मा हैं, दो भुजा वाले दुसरे विष्णु हैं और ललाटलोचन ( तीसरे नेत्र ) से रहित साक्षात् महादेवजी हैं ।  

॥ इति मंगलम् सम्पूर्ण ॥ 

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