व्यवसाय में आ रही समस्याओं के समाधान हेतु करें देवकृत् गणेशस्तवन

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श्री गणेशस्तवन स्तोत्र भगवान् गणपति की उपासना हेतु सर्वोत्तम स्तोत्र माना गया है यह स्तोत्र श्री मुद्गल पुराण में वर्णित है । इस स्तवन में भगवान् गणेश को बारम्बार प्रणाम किया गया है । भगवान् गणेश जी समस्त प्रकार की ऋद्धि, सिद्धि, बुद्धि, तथा मंगल प्रदान करने वाले हैं।

                 देवा ऊचुः

गजाननाय पूर्णाय साङ्ख्यरूपमयाय ते। 
विदेहेन च सर्वत्र संस्थिताय नमो नमः ॥१॥ 

देवता बोले-[ हे गणेश्वर!] आप गज के समान मुख धारण करने वाले, पूर्ण परमात्मा और ज्ञानस्वरूप हैं । आप निराकाररूप से सर्वत्र विद्यमान हैं; आपको मेरा बारम्बार नमस्कार है।

अमेयाय च हेरम्ब परशुधारकाय ते। 
मूषकवाहनायैव विश्वेशाय नमो नमः ॥ २॥

हे हेरम्ब ! आपको किन्हीं प्रमाणों द्वारा मापा नहीं जा सकता, आप परशु धारण करने वाले हैं, आपका वाहन मूषक है; आप विश्वेश्वर को मेरा बारम्बार नमस्कार है।

अनन्तविभवायैव परेषां  पररूपिणे ।  
शिवपुत्राय देवाय गुहाग्रजाय ते नमः ।।३।।

आपका वैभव अनन्त है, आप परात्पर हैं, भगवान् शिव के पुत्र तथा स्कन्द के बड़े भाई हैं; आप देव को मेरा नमस्कार है। 

पार्वतीनन्दनायैव देवानां पालकाय ते।
सर्वेषां पूज्यदेहाय गणेशाय नमो नमः ॥ ४॥ 

जो माता पार्वती को आनन्दित करनेवाले हैं, देवताओं के रक्षक हैं और जिनका श्री विग्रह सबके लिये पूजनीय है; उन आप भगवान् गणेश को मेरा बारम्बार नमस्कार है।

स्वानन्दवासिने तुभ्यं शिवस्य कुलदैवत । 
विष्ण्वादीनां विशेषेण कुलदेवाय ते नमः ॥५॥

भगवान् शिव के कुलदेवता आप अपने स्वरूपभूत स्वानन्द-धाम में निवास करने वाले हैं। विष्णु आदि देवताओं के तो आप विशेष रूप से कुलदेवता हैं; हे प्रभु ! आपको मेरा नमस्कार है।

योगाकाराय सर्वेषां योगशान्तिप्रदाय च।
ब्रह्मेशाय नमस्तुभ्यं  ब्रह्मभूतप्रदाय ते ॥ ६ ॥

आप योगस्वरूप एवं सबको योगजनित शान्ति प्रदान करनेवाले हैं; ब्रह्मभाव की प्राप्ति कराने वाले आप ब्रह्मेश्वर को मेरा नमस्कार है ।

सिद्धिबुद्धिपते नाथ सिद्धिबुद्धिप्रदायिने । 
मायिने मायिकेभ्यश्च मोहदाय नमो नमः ॥ ७ ॥ 

नाथ ! आप सिद्धि और बुद्धि के पति हैं तथा सिद्धि और बुद्धि प्रदान करने वाले हैं; आप माया के अधिपति तथा मायावियों को मोह में डालने वाले हैं; आपको मेरा बारम्बार नमस्कार है।

लम्बोदराय वै तुभ्यं सर्वोदरगताय च। 
अमायिने च मायाया आधाराय नमो नमः ॥ ८ ॥ 

आप लम्बोदर हैं, जठरानल रूप से सबके उदर में निवास करते हैं, आप पर किसी की माया नहीं चलती और आप ही माया के आधार हैं; आपको मेरा बारम्बार नमस्कार है।

गजः सर्वस्य बीजं यत्तेन चिह्नेन विघ्नप। 
योगिनस्त्वां प्रजानन्ति तदाकारा भवन्ति ते ॥ ९ ॥ 

विघ्नराज ! गज सबका बीज हैं। उस बीजरूप चिह्न से ही योगीजन आपको पहचानते तथा आपका सारूप्य प्राप्त कर लेते हैं।

तेन त्वं गजवक्त्रश्च किं स्तुमस्त्वां गजानन । 
वेदादयो विकुण्ठाश्च शङ्कराद्याश्च देवपाः ॥ १०॥

हे गजानन ! उस बीजस्वरूप गजचिह्न के कारण ही आप 'गजमुख' कहलाते हैं, हम आपकी क्या स्तुति कर सकते हैं? आपकी स्तुति करने में तो वेदादि शास्त्र तथा शंकर आदि देवेश्वर भी कुण्ठित हो जाते हैं। 

शुक्रादयश्च शेषाद्याः स्तोतुं शक्ता भवन्ति न । 
तथापि संस्तुतोऽसि त्वं स्फूत्या त्वद्दर्शनात्मना ॥ ११॥

शुक्र आदि विद्वान् और शेष आदि नाग भी आपके स्तव समर्थ नहीं हैं; तथापि आपके दर्शनरूप स्फूर्ति से हमने आपका स्तवन् कर लिया है। 

।। इति श्रीमुद्‌गलपुराणे देवकृतं श्रीगणेशस्तवनं सम्पूर्णम् ॥

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