कैद में पड़े हुए स्वजनों की मुक्ति तथा दुर्लभ लक्ष्मी प्राप्ति के लिए

कैद में पड़े हुए स्वजनों की मुक्ति तथा दुर्लभ लक्ष्मी प्राप्ति के लिए

।। श्री मयूरेश्वर स्तोत्रम् ।।

श्रीगणेशपुराण के अन्तर्गत् “मयूरेश्वर स्तोत्र” वर्णित है । इस स्तोत्र में कुल तेरह (13) श्लोक हैं जिनमें भगवान् गणेश की अर्चना की गयी है । इस स्तोत्र का पाठ करने से साधक को मनोवांछित फल तथा दुर्लभ वस्तुओं की प्राप्ति होती है एवं परिवार में सुख-समृद्धि का समावेश होता है ।

परब्रह्मरूपं चिदानन्दरूपं, सदानन्दरूपं सुरेशं परेशम् । 
गुणाब्धिं गुणेशं गुणातीतमीशं, मयूरेशमाद्यं नताः स्मो नताः स्मः ॥१॥

जो परब्रह्मस्वरूप, चिदानन्दमय, सदानन्दरूप, देवेश्वर, परमेश्वर, गुणों के सागर, गुणों के स्वामी तथा गुणों से अतीत हैं, उन आदि ईश्वर मयूरेश्वर को हम नमस्कार करते हैं, नमस्कार करते हैं ।

जगद्वन्द्यमेकं परोंकारमेकं, गुणानां परं कारणं निर्विकल्पम् । 
जगत्पालकं हारकं तारकं तं, मयूरेशमाद्यं नताः स्मो नताः स्मः ॥२॥

जो एकमात्र विश्ववन्द्य और एक मात्र परम ओंकारस्वरूप हैं, जो गुणों के परम कारण एवं निर्विकल्प हैं, उन जगत् के पालक, संहारक एवं उद्धारक आदि-मयूरेश्वर को हम नमस्कार करते हैं, नमस्कार करते हैं ।

महादेवसूनुं महादैत्यनाशं, महापूरुषं सर्वदा विघ्ननाशम् । 
सदा भक्तपोषं परं ज्ञानकोशं, मयूरेशमाद्यं नताः स्मो नताः स्मः ॥३॥ 

जो महादेवजी के पुत्र, महान् दैत्यों के नाशक, महापुरुष, सदा विघ्नविनाशक तथा सदैव भक्तों के पोषक हैं, उन परमज्ञान के कोष आदि मयूरेश्वर को हम नमस्कार करते हैं, नमस्कार करते हैं ।

अनादिं गुणादिं सुरादिं शिवाया, महातोषदं सर्वदा सर्ववन्द्यम् । 
सुरार्यन्तकं भुक्तिमुक्तिप्रदं तं, मयूरेशमाद्यं नताः स्मो नताः स्मः ॥४॥

जिनका कोई आदि नहीं है, जो समस्त गुणों के आदिकारण तथा देवताओं के भी आदि-उद्भावक हैं, पार्वतीदेवी को महान् सन्तोष देने वाले तथा सबके द्वारा सदा ही वन्दनीय हैं, उन दैत्यनाशक एवं भोग तथा मोक्ष के प्रदाता आदिमयूरेश्वर को हम नमस्कार करते हैं, नमस्कार करते हैं ।

परं मायिनं मायिनामप्यगम्यं, मुनिध्येयमाकाशकल्पं जनेशम् ।
असंख्यावतारं निजाज्ञाननाशं, मयूरेशमाद्यं नताः स्मो नताः स्मः ॥५॥

जो परम मायावी (मायाके अधिपति) और मायावियों के लिये भी अगम्य हैं, महर्षिगण जिनका सदा ध्यान करते हैं, जो अनादि आकाशके तुल्य सर्वव्यापक हैं, जीवमात्र के स्वामी हैं तथा जिनके असंख्य अवतार हैं, उन आत्मत्तत्त्व विषयक अज्ञान के नाशक आदिमयूरेश्वर को हम नमस्कार करते हैं, नमस्कार करते हैं । 

अनेकक्रियाकारणं श्रुत्यगम्यं, त्रयीबोधितानेककर्मादिबीजम् ।
क्रियासिद्धिहेतुं सुरेन्द्रादिसेव्यं, मयूरेशमाद्यं नताः स्मो नताः स्मः ॥६॥

जो अनेकानेक क्रियाओं के कारण हैं, जिनका स्वरूप श्रुतियों के लिये भी अगम्य है, जो वेदबोधित अनेकानेक कर्मों के आदिबीज हैं, समस्त कार्यों की सिद्धि के हेतु हैं तथा देवेन्द्र आदि जिनकी सदा सेवा करते हैं, उन आदिमयूरेश्वर को हम नमस्कार करते हैं, नमस्कार करते हैं । 

महाकालरूपं  निमेषादिरूपं,  कलाकल्परूपं सदागम्यरूपम् ।
जनज्ञानहेतुं नृणां सिद्धिदं तं, मयूरेशमाद्यं नताः स्मो नताः स्मः ॥७॥

जो महाकालस्वरूप हैं, लव-निमेष आदि भी जिनके ही स्वरूप हैं, जो कला और कल्परूप हैं तथा जिनका स्वरूप सदा ही अगम्य है, जो लोगों के ज्ञान के हेतु तथा मनुष्यों को सब प्रकार की सिद्धि प्रदान करने वाले हैं, उन आदिमयूरेश्वर को हम नमस्कार करते हैं, नमस्कार करते हैं ।

महेशादिदेवैः सदा सेव्यपादं, सदा रक्षकं योगिनां चित्स्वरूपम् ।
सदा कामरूपं कृपाम्भोनिधिं तं, मयूरेशमाद्यं नताः स्मो नताः स्मः ॥८॥

महेश्वर आदि देवता सदा जिनके चरणों की सेवा करते हैं, जो योगियों के नित्य रक्षक, चित्स्वरूप, निरन्तर इच्छानुसार रूप धारण करने वाले और करुणा के सागर हैं, उन आदिमयूरेश्वर को हम नमस्कार करते हैं, नमस्कार करते हैं ।

सदा भक्तानां त्वं प्रसभपरमानन्दसुखदो,
              यतस्त्वं लोकानां परमकरुणामाशु तनुषे ।
षडूर्मीणां वेगं सुरवर सदा नाशय विभो,
              ततोऽमुक्तिः श्लाघ्या तव भजनतोऽनन्तसुखदात् ॥९॥

हे सुरश्रेष्ठ ! आप सदा भक्तजनों के लिये हठात् परमानन्दमय सुख देने वाले हैं, क्योंकि आप संसार के जीवों पर शीघ्र परम करुणा का विस्तार करते हैं। हे प्रभो ! काम-क्रोधादि छः प्रकार की (ऊर्मियों) वेग को शान्त कीजिये, क्योंकि आपके अनन्त सुखदायक भजन की अपेक्षा मुक्ति भी स्पृहणीय नहीं है ।

किमस्माभिः स्तोत्रं गजवदन ते शक्यमतुलं,
               विधातुं वा रम्यं गुणनिधिरसि प्रेम जगताम् । 
न चास्माकं शक्तिस्तव गुणगणं वर्णितुमहो,
               त्वदीयोऽयं वारांनिधिरिव जगत्सर्जनविधिः ॥१०॥

हे गजानन ! क्या हम आपके योग्य कोई उत्तम या सुन्दर स्तवन् कर सकते हैं? आप समस्त गुणों की निधि और सम्पूर्ण जगत के प्रेमपात्र हैं। आपके गुणसमूहों का वर्णन करने की शक्ति हममें नहीं है। आपका जो यह जगत् की सृष्टि-रचना का क्रम है, वह समुद्रके समान अपार है  ।

इदं यः पठते स्तोत्रं स कामाँल्लभतेऽखिलान् ॥ ११ ॥

जो इस स्तोत्र का पाठ करता है, वह सम्पूर्ण मनोवांछित कामनाओं को प्राप्त कर लेता है।

सहस्रावर्तनात्कारागृहस्थं मोचयेज्जनम् । 
अयुतावर्तनान्मर्त्योऽसाध्यं  यत्साधयेत्क्षणात् ॥१२॥

इसकी एक सहस्र आवृत्ति करनेसे मनुष्य कैदमें पड़े हुए अपने स्वजन को भी मुक्त कर लेता है। दस हजार बार इसका पाठ करने से मनुष्य असाध्य वस्तुको भी क्षणमात्रमें सिद्ध कर लेता है। 

सर्वत्र जयमाप्नोति श्रियं परमदुर्लभाम् ।
पुत्रवान् धनवांश्चैव वशतामखिलं नयेत् ॥१३॥ 

उस व्यक्ति को सर्वत्र विजय प्राप्त होती है; परम दुर्लभ लक्ष्मी उपलब्ध होती है । वह पुत्रवान् और धनवान् होता है तथा सबको वश में कर लेता है ।

॥ इति श्रीगणेशपुराणे श्रीमयूरेश्वरस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।

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