बन्धु वियोग से मुक्ति और पतिप्रेम की प्राप्ति हेतु करें श्री राधा स्तोत्र का पाठ

बन्धु वियोग से मुक्ति और पतिप्रेम की प्राप्ति हेतु करें श्री राधा स्तोत्र का पाठ

।। श्री राधा स्तोत्रम् ।।

श्री ब्रह्मवैवर्त महापुराण में भगवान् श्रीकृष्णजी के परम सखा श्रीउद्धवजी द्वारा भगवती श्रीराधा की अपरिमित महिमा का गुणगान तथा बारम्बार प्रणाम किया गया है। इस स्तोत्र पाठ से बन्धु वियोग से मुक्ति, पतिप्रेम की प्राप्ति, पुत्रहीन को पुत्रप्राप्ति, यश, कीर्ति ,धन-वैभव आदि की प्राप्ति सहजता से हो जाता है।

                 उद्धव उवाच

वन्दे राधापदाम्भोजं ब्रह्मादिसुरवन्दितम्। 
यत्कीर्तिकीर्तनेनैव पुनाति भुवनत्रयम् ॥ १॥
नमो गोलोकवासिन्यै राधिकायै नमो नमः।
शतशृङ्गनिवासिन्यै चन्द्रवत्यै नमो नमः॥२॥
तुलसीवनवासिन्यै वृन्दारण्यै नमो नमः ।
रासमण्डलवासिन्यै रासेश्वर्यै नमो नमः ॥३॥
विरजातीरवासिन्यै वृन्दायै च नमो नमः। 
वृन्दावनविलासिन्यै कृष्णायै च नमो नमः ॥४॥

उद्धवजीने कहा - मैं श्रीराधाके उन चरणकमलोंकी वन्दना करता हूँ, जो ब्रह्मा आदि देवताओंद्वारा वन्दित हैं तथा जिनकी कीर्तिके कीर्तनसे ही तीनों भुवन पवित्र हो जाते हैं। गोलोकमें वास करनेवाली राधिकाको बारम्बार नमस्कार। शतश्रृंगपर निवास करनेवाली चन्द्रवतीको नमस्कार-नमस्कार। तुलसीवन तथा वृन्दावनमें बसनेवालीको नमस्कार-नमस्कार। रासमण्डलवासिनी रासेश्वरीको नमस्कार-नमस्कार। विरजाके तटपर वास करनेवाली वृन्दाको नमस्कार- नमस्कार। वृन्दावनविलासिनी कृष्णाको नमस्कार-नमस्कार ॥ १-४॥

नमः कृष्णप्रियायै च शान्तायै च नमो नमः। 
कृष्णवक्षःस्थितायै च तत्प्रियायै नमो नमः ॥५॥ 
नमो वैकुण्ठवासिन्यै महालक्ष्म्यै नमो नमः । 
विद्याधिष्ठातृदेव्यै च सरस्वत्यै नमो नमः ॥ ६॥ 
सर्वैश्वर्याधिदेव्यै च कमलायै नमो नमः।
पद्मनाभप्रियायै च पद्मायै च नमो नमः॥ ७॥
महाविष्णोश्च मात्रे च पराद्यायै नमो नमः । 
नमः सिन्धुसुतायै च मर्त्यलक्ष्म्यै नमो नमः ॥८॥

कृष्णप्रियाको नमस्कार। शान्ताको पुनः पुनः नमस्कार। कृष्णके वक्षः- स्थलपर स्थित रहनेवाली कृष्णप्रियाको नमस्कार-नमस्कार। वैकुण्ठवासिनीको नमस्कार। महालक्ष्मीको पुनः-पुनः नमस्कार। विद्याकी अधिष्ठात्री देवी सरस्वतीको नमस्कार-नमस्कार। सम्पूर्ण ऐश्वर्योकी अधिदेवी कमलाको नमस्कार-नमस्कार। पद्मनाभकी प्रियतमा पद्माको बारम्बार प्रणाम। जो महाविष्णुकी माता और पराद्या हैं; उन्हें पुनः-पुनः नमस्कार। सिन्धुसुताको नमस्कार। मर्त्यलक्ष्मीको नमस्कार-नमस्कार ॥ ५-८॥

नारायणप्रियायै च नारायण्यै नमो नमः । 
नमोऽस्तु विष्णुमायायै वैष्णव्यै च नमो नमः ॥ ९॥
महामायास्वरूपायै सम्पदायै नमो नमः। 
नमः कल्याणरूपिण्यै शुभायै च नमो नमः ॥ १०॥ 
मात्रे चतुर्णां वेदानां सावित्र्यै च नमो नमः। 
नमो दुर्गविनाशिन्यै दुर्गादेव्यै नमो नमः ॥ ११॥ 
तेजःसु सर्वदेवानां पुरा कृतयुगे मुदा । 
अधिष्ठानकृतायै च प्रकृत्यै च नमो नम:।।१२।।
नमस्त्रिपुरहारिण्यै त्रिपुरायै नमो नमः ।
सुन्दरीषु च रम्यायै निर्गुणायै नमो नमः ।।१३।।

नारायणकी प्रिया नारायणीको बारम्बार नमस्कार। विष्णुमायाको मेरा नमस्कार प्राप्त हो। वैष्णवीको नमस्कार-नमस्कार। महामाया- स्वरूपा सम्पदाको पुनः-पुनः नमस्कार। कल्याणरूपिणीको नमस्कार। शुभाको बारम्बार नमस्कार। चारों वेदोंकी माता और सावित्रीको पुनः- पुनः नमस्कार। दुर्गविनाशिनी दुर्गादेवीको बारम्बार नमस्कार। पहले सत्ययुगमें जो सम्पूर्ण देवताओंके तेजोंमें अधिष्ठित थीं; उन देवीको तथा प्रकृतिको नमस्कार-नमस्कार। त्रिपुरहारिणीको नमस्कार। त्रिपुराको पुनः-पुनः नमस्कार। सुन्दरियोंमें परम सुन्दरी निर्गुणाको नमस्कार- नमस्कार ॥ ९-१३॥

नमो निद्रास्वरूपायै निर्गुणायै नमो नम:।
नमो दक्षसुतायै च नमः सत्यै नमो नमः ॥ १४॥
नमः शैलसुतायै च पार्वत्यै च नमो नमः । 
नमो नमस्तपस्विन्यै ह्युमायै च नमो नमः ॥ १५॥
निराहारस्वरूपायै ह्यपर्णायै नमो नमः। 
गौरीलोकविलासिन्यै नमो गौर्यै नमो नमः ॥ १६॥ 
नमः कैलासवासिन्यै माहेश्वर्यै नमो नमः। 
निद्रायै च दयायै च श्रद्धायै च नमो नमः ॥ १७॥ 
नमो धृत्यै क्षमायै च लज्जायै च नमो नमः। 
तृष्णायै क्षुत्स्वरूपायै स्थितिकर्त्र्यै नमो नमः ॥ १८॥ 

निद्रास्वरूपाको नमस्कार और निर्गुणाको बारम्बार नमस्कार। दक्षसुताको नमस्कार और सत्याको पुनः पुनः नमस्कार। शैलसुताको नमस्कार और पार्वतीको बार-बार नमस्कार। तपस्विनीको नमस्कार-नमस्कार और उमाको बारम्बार नमस्कार। निराहारस्वरूपा अपर्णाको पुनः-पुनः नमस्कार। गौरीलोकमें विलास करनेवाली गौरीको बारम्बार नमस्कार। कैलासवासिनीको नमस्कार और माहेश्वरीको नमस्कार-नमस्कार। निद्रा, दया और श्रद्धाको पुनः पुनः नमस्कार। धृति, क्षमा और लज्जाको बारम्बार नमस्कार। तृष्णा, क्षुत्स्वरूपा और स्थितिकर्त्रीको नमस्कार-नमस्कार ॥ १४-१८॥

नमः संहाररूपिण्यै महामार्यै नमो नमः। 
भयायै चाभयायै च मुक्तिदायै नमो नमः ॥ १९ ॥
नमः स्वधायै स्वाहायै शान्त्यै कान्त्यै नमो नमः । 
नमस्तुष्ट्यै च पुष्ट्यै च दयायै च नमो नमः ॥ २० ॥
नमो निद्रास्वरूपायै श्रद्धायै च नमो नमः । 
क्षुत्पिपासास्वरूपायै लज्जायै च नमो नमः ॥२१॥ 
नमो धृत्यै क्षमायै च चेतनायै नमो नमः । 
सर्वशक्तिस्वरूपिण्यै सर्वमात्रे नमो नमः ॥२२॥ 

अग्नौ दाहस्वरूपायै भद्रायै च नमो नमः। 
शोभायै पूर्णचन्द्रे च शरत्पद्मे नमो नमः ॥ २३॥ 

संहाररूपिणीको नमस्कार और महामारीको पुनः पुनः नमस्कार। भया, अभया और मुक्तिदाको नमस्कार-नमस्कार। स्वधा, स्वाहा, शान्ति और कान्तिको बारम्बार नमस्कार। तुष्टि, पुष्टि और दयाको पुनः-पुनः नमस्कार। निद्रास्वरूपाको नमस्कार और श्रद्धाको नमस्कार-नमस्कार। क्षुत्पिपासा- स्वरूपा और लज्जाको बारम्बार नमस्कार। धृति, चेतना और क्षमाको बारम्बार नमस्कार। जो सबकी माता तथा सर्वशक्तिस्वरूपा हैं; उन्हें नमस्कार- नमस्कार। अग्निमें दाहिका-शक्तिके रूपमें विद्यमान रहनेवाली देवी और भद्राको पुनः-पुनः नमस्कार। जो पूर्णिमाके चन्द्रमामें और शरत्कालीन कमलमें शोभारूपसे वर्तमान रहती हैं; उन शोभाको नमस्कार- नमस्कार ॥ १९-२३॥

नास्ति भेदो यथा देवि दुग्धधावल्ययोः सदा। 
यथैव गन्धभूम्योश्च यथैव जलशैत्ययोः ॥ २४॥ 
यथैव शब्दनभसोर्ज्योतिः सूर्यकयोर्यथा । 
लोके वेदे पुराणे च राधामाधवयोस्तथा ॥ २५॥ 
चेतनं कुरु कल्याणि देहि मामुत्तरं सति । 
इत्युक्त्वा चोद्धवस्तत्र प्रणनाम पुनः पुनः ॥ २६॥

देवि । जैसे दूध और उसकी धवलतामें, गन्ध और भूमिमें, जल और शीतलतामें, शब्द और आकाशमें तथा सूर्य और प्रकाशमें कभी भेद नहीं है; वैसे ही लोक, वेद और पुराणमें-कहीं भी राधा और माधवमें भेद नहीं है; अतः कल्याणि ! चेत करो। सति ! मुझे उत्तर दो। यों कहकर उद्धव वहाँ उनके चरणोंमें पुनः-पुनः प्रणिपात करने लगे ॥ २४-२६॥

इत्युद्धवकृतं स्तोत्रं यः पठेद् भक्तिपूर्वकम्। 
इह लोके सुखं भुक्त्वा यात्यन्ते हरिमन्दिरम् ॥ २७॥ 
न भवेद् बन्धुविच्छेदो रोगः शोकः सुदारुणः। 
प्रोषिता स्त्री लभेत् कान्तं भार्याभेदी लभेत् प्रियाम्॥ २८ ॥
अपुत्रो लभते पुत्रान् निर्धनो लभते धनम्। 
निर्भूमिर्लभते भूमिं प्रजाहीनो लभेत् प्रजाम् ॥ २९॥ 
रोगाद् विमुच्यते रोगी बद्धो मुच्येत बन्धनात्। 
भयान्मुच्येत भीतस्तु मुच्येतापन्न आपदः ॥ ३०॥ 
अस्पष्टकीर्तिः सुयशा मूर्खो भवति पण्डितः ॥ ३१ ॥ ॥ 

जो मनुष्य भक्तिपूर्वक इस उद्धवकृत स्तोत्रका पाठ करता है; वह इस लोकमें सुख भोगकर अन्तमें वैकुण्ठमें जाता है। उसे बन्धुवियोग तथा अत्यन्त भयंकर रोग और शोक नहीं होते। जिस स्त्रीका पति परदेश गया होता है, वह अपने पतिसे मिल जाती है और भार्यावियोगी अपनी पत्नीको पा जाता है। पुत्रहीनको पुत्र मिल जाते हैं, निर्धनको धन प्राप्त हो जाता है, भूमिहीनको भूमिकी प्राप्ति हो जाती है, प्रजाहीन प्रजाको पा लेता है, रोगी रोगसे विमुक्त हो जाता है, बँधा हुआ बन्धनसे छूट जाता है, भयभीत मनुष्य भयसे मुक्त हो जाता है, आपत्तिग्रस्त आपसे छुटकारा पा जाता है और मलिन कीर्तिवाला उत्तम यशस्वी तथा मूर्ख पण्डित हो जाता है ॥ २७-३१॥ 

इस प्रकार श्री ब्रह्मवैवर्तमहापुराणमें उद्धवकृत श्री राधा स्तोत्र सम्पूर्ण हुआ।।

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