उत्तम वर, विद्या, यश की प्राप्ति तथा धन धान्य की वृद्धि के लिए विश्वनाथ मङ्गल स्तोत्र

उत्तम वर, विद्या, यश की प्राप्ति तथा धन धान्य की वृद्धि के लिए विश्वनाथ मङ्गल स्तोत्र

।। श्री विश्वनाथमङ्गलस्तोत्रम् ।।

काशीपीठाधीश्वर शंकराचार्य श्रीस्वामी महेश्वरानन्दसरस्वती जी द्वारा विरचित यह दिव्य स्तोत्र भगवान् शिवस्वरुप में स्थित बाबा विश्वनाथ की स्तुति में समर्पित है । इस स्तोत्र में कुल ग्यारह श्लोक हैं जिनमें से प्रथम दस श्लोक में साधक भगवान् शिव के विभिन्न नामों का स्मरण करते हुए प्रणाम करता है और अन्तिम एक श्लोक में इस स्तोत्र का माहात्म्य वर्णित है । 

सम्पूर्ण भक्ति-भाव से युक्त होकर जो साधक इस स्तोत्र का पाठ मनोयोग से दत्तचित्त होकर करता है उसकी समस्त मनोभिलाषाएं पूर्ण होती हैं । 

गङ्गाधरं शशिकिशोरधरं त्रिलोकी- 
              रक्षाधरं निटिलचन्द्रधरं त्रिधारम् ।
भस्मावधूलनधरं गिरिराजकन्या-
              दिव्यावलोकनधरं वरदं प्रपद्ये ॥१॥

गंगा एवं बाल चन्द्र को धारण करने वाले, त्रिलोकी की रक्षा करने वाले, मस्तक पर चंद्रमा एवं त्रिधार (गंगा) को धारण करने वाले, भस्म का उदधूलन करने वाले तथा पार्वती को दिव्य दृष्टि से देखने वाले, वरदाता भगवान् शंकर की मैं शरण में हूँ ।

काशीश्वरं सकलभक्तजनार्तिहारं
              विश्वेश्वरं प्रणत पालनभव्यभारम् ।
रामेश्वरं विजयदानविधानधीरं
              गौरीश्वरं वरदहस्तधरं नमामः ॥२॥

काशी के ईश्वर, सम्पूर्ण भक्तजन की पीडा को दूर करने वाले, विश्वेश्वर, प्रणतजनों की रक्षा का भव्य भार धारण करने वाले भगवान् राम के ईश्वर, विजय प्रदान के विधान में धीर एवं वरद मुद्रा धारण करने वाले, भगवान् गौरीश्वर को हम प्रणाम करते हैं । 

गङ्गोत्तमाङ्गकलितं ललितं विशालं
              तं मङ्गलं गरलनीलगलं ललामम् ।
श्रीमुण्डमाल्यवलयोज्ज्वलमञ्जुलीलं 
               लक्ष्मीश्वरार्चितपदाम्बुजमाभजामः ॥३॥

"जिनके उत्तमांग में गंगाजी सुशोभित हो रही हैं, जो सुन्दर तथा विशाल हैं, जो मंगलस्वरूप हैं, जिनका कण्ठ हालाहल विष से नीलवर्ण का होने से सुन्दर है, जो मुण्ड की माला धारण करने वाले, कंकण से उज्ज्वल तथा मधुर लीला करने वाले हैं, विष्णु के द्वारा पूजित चरणकमल वाले भगवान् शंकर को हम भजते हैं ।

दारिद्र्यदुःखदहनं कमनं सुराणां 
                 दीनार्तिदावदहनं दमनं रिपूणाम्।
दानं श्रियां प्रणमनं भुवनाधिपानां 
                 मानं सतां वृषभवाहनमानमामः ॥४॥

दारिद्र्य एवं दुःख का विनाश करने वाले, देवताओं में सुन्दर, दीनों की पीडा को विनष्ट करने के लिये दावानलस्वरूप, शत्रुओं का विनाश करने वाले, समस्त ऐश्वर्य प्रदान करने वाले, भुवनाधिपों के प्रणम्य और सत्पुरुषों के मान्य वृषभवाहन भगवान् शंकर को हम भलीभाँति प्रणाम करते हैं ।

श्रीकृष्णचन्द्रशरणं रमणं भवान्याः 
                शश्वत्प्रपन्नभरणं धरणं  धरायाः ।
संसारभारहरणं करुणं वरेण्यं
                संतापतापकरणं करवै शरण्यम् ॥५॥ 

श्रीकृष्णचन्द्रजी के शरण, भवानी के पति, शरणागत का सदा भरण करने वाले, पृथ्वी को धारण करने वाले, संसार के भार को हरण करने वाले, करुण, वरेण्य तथा संताप को नष्ट करने वाले भगवान् शंकर की मैं शरण ग्रहण करता हूँ ।

चण्डीपिचण्डिलवितुण्डधृताभिषेकं 
                श्रीकार्तिकेयकलनृत्यकलावलोकम् ।
नन्दीश्वरास्यवरवाद्यमहोत्सवाढ्यं 
                सोल्लासहासगिरिजं गिरिशं तमीडे ॥६॥

चण्डी, पिचण्डिल तथा गणेश के शुण्ड द्वारा अभिषिक्त, कार्तिकेय के सुन्दर नृत्यकला का अवलोकन करने वाले, नन्दीश्वर के मुखरूपी श्रेष्ठ वाद्य से प्रसन्न रहने वाले तथा सोल्लास गिरिजा को हँसाने वाले भगवान् गिरीश की मैं स्तुति करता हूँ ।

श्रीमोहिनीनिविडरागभरोपगूढं 
                 योगेश्वरेश्वरहृदम्बुजवासरासम् ।
सम्मोहनं गिरिसुताञ्चितचन्द्रचूडं
                 श्रीविश्वनाथमधिनाथमुपैमि नित्यम् ॥७॥

श्रीमोहिनी के द्वारा उत्कट एवं पूर्ण प्रीति से आलिंगित,योगेश्वरों के ईश्वरके हत्कमल में रास के द्वारा नित्य निवास करने वाले, मोह उत्पन्न करने वाले, पार्वती के द्वारा पूजित शशिशेखर, सर्वेश्वर श्रीविश्वनाथ को मैं नित्य नमस्कार करता हूँ । 

आपद् विनश्यति समृध्यति सर्वसम्पद् 
                 विघ्नाः प्रयान्ति विलयं शुभमभ्युदेति ।
योग्याङ्गनाप्तिरतुलोत्तमपुत्रलाभो 
                 विश्वेश्वरस्तवमिमं पठतो जनस्य ॥८॥

इस विश्वेश्वर के स्तोत्र का पाठ करने वाले मनुष्य की आपत्ति दूर हो जाती है, वह सभी सम्पत्ति से परिपूर्ण हो जाता है, उसके विघ्न दूर हो जाते हैं तथा वह सब प्रकार का कल्याण प्राप्त करता है, उसे उत्तम स्त्रीरत्न तथा अनुपम उत्तम पुत्र का लाभ होता है ।

वन्दी विमुक्तिमधिगच्छति तूर्णमेति 
                स्वास्थ्यं रुजार्दित उपैति गृहं प्रवासी ।
विद्यायशोविजय इष्टसमस्तलाभः  
                सम्पद्यतेऽस्य पठनात् स्तवनस्य सर्वम् ॥९॥

इस विश्वेश्वरस्तव का पाठ करने से बन्धन में पड़ा मनुष्य बन्धन से मुक्त हो जाता है, रोग से पीडित व्यक्ति शीघ्र स्वास्थ्य- लाभ प्राप्त करता है, प्रवासी शीघ्र ही विदेश से घर आ जाता है तथा विद्या, यश, विजय और समस्त अभिलाषाओं की पूर्ति हो जाती है ।            

कन्या वरं सुलभते पठनादमुष्य 
                स्तोत्रस्य धान्यधनवृद्धिसुखं समिच्छन्।
किं च प्रसीदति विभुः परमो दयालुः 
                श्रीविश्वनाथ इह सम्भजतोऽस्य साम्बः ॥१०॥

इस स्तोत्र का पाठ करने से कन्या उत्तम वर प्राप्त करती है, धन-धान्य की वृद्धि तथा सुख की अभिलाषा पूर्ण होती है एवं उस पर व्यापक परम दयालु भगवान् श्रीविश्वेश्वर पार्वती के सहित प्रसन्न हो जाते हैं ।

काशीपीठाधिनाथेन शङ्कराचार्यभिक्षुणा ।
महेश्वरेण ग्रथिता स्तोत्रमाला शिवार्पिता ॥११॥

काशीपीठके शंकराचार्य पद पर प्रतिष्ठित श्रीस्वामी महेश्वरानन्दजी ने इस स्तोत्र की रचना कर के भगवान् विश्वनाथ जी को समर्पित किया है ।

॥ इस प्रकार काशीपीठाधीश्वरशंकराचार्य श्रीस्वामिमहेश्वरानंदसरस्वती विरचित “श्री विश्वनाथमङ्गलस्तोत्रम् सम्पूर्ण हुआ ॥

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