प्रचुर विद्या-धन, सौख्य, कीर्ति की प्राप्ति के लिए करें विश्वनाथाष्टकम् का पाठ

प्रचुर विद्या-धन, सौख्य, कीर्ति की प्राप्ति के लिए करें विश्वनाथाष्टकम् का पाठ

परमश्रद्धेय श्रीमहर्षिव्यास प्रणीत यह स्तोत्र है इस स्तोत्र में कुल दस श्लोक हैं । भगवान् शिव का ही अपर नाम विश्वनाथ है । शिव समस्त संसार के कष्टों को शीघ्रता से हरने वाले हैं । जो साधक नित्यप्रातः या सांय इस स्तोत्र का पाठ करता है उसे भगवान् शिव विद्या,धन,प्रचुर सौख्य, एवं अनन्त कीर्ति प्रदान करते हैं । 

गङ्गातरङ्गरमणीयजटाकलापं
               गौरीनिरन्तरविभूषितवामभागम् ।
नारायणप्रियमनङ्गमदापहारं
              वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥१॥

जिनकी जटाएँ गंगाजी की लहरों से सुन्दर प्रतीत होती हैं, जिनका वामभाग सदा पार्वतीजी से सुशोभित रहता है, जो नारायण के प्रिय और कामदेव के मद का नाश करने वाले हैं, उन काशीपति विश्वनाथ को भजो (भजन करो ) ।

वाचामगोचरमनेकगुणस्वरूपं 
                वागीशविष्णुसुरसेवितपादपीठम् ।
वामेन विग्रहवरेण कलत्रवन्तं
                 वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥२॥

वाणी द्वारा जिनका वर्णन नहीं हो सकता, जिनके अनेक गुण और अनेक स्वरूप हैं, ब्रह्मा, विष्णु और अन्य देवता जिनकी चरण पादुका का सेवन करते हैं, जो अपने सुन्दर वामांग के द्वारा ही सपत्नीक हैं, उन काशीपति विश्वनाथ को भजो (भजन करो ) ।

भूताधिपं भुजगभूषणभूषिताङ्गं
                 व्याघ्राजिनाम्बरधरं जटिलं त्रिनेत्रम् ।
पाशाङ्कुशाभयवरप्रदशूलपाणिं
                 वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥३॥

जो भूतों के अधिपति हैं, जिनका शरीर सर्परूपी गहनों से विभूषित है, जो बाघ की खाल का वस्त्र पहनते हैं, जिनके हाथों में पाश, अंकुश, अभय, वर और शूल हैं, उन जटाधारी त्रिनेत्र काशीपति विश्वनाथ को भजो (भजन करो ) ।

शीतांशुशोभितकिरीटविराजमानं
                  भालेक्षणानलविशोषितपञ्चबाणम् ।
नागाधिपारचितभासुरकर्णपूरं 
                   वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥४॥

जो चन्द्रमा द्वारा प्रकाशित किरीट से शोभित हैं, जिन्होंने अपने भालस्थ नेत्र की अग्नि से कामदेव को दग्ध कर दिया, जिनके कानों में बड़े- बड़े साँपों के कुण्डल चमक रहे हैं, उन काशीपति विश्वनाथ को भजो (भजन करो ) ।

पञ्चाननं दुरितमत्तमतङ्गजानां
                 नागान्तकं दनुजपुङ्गवपन्नगानाम् ।
दावानलं मरणशोकजराटवीनां 
                 वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥५॥

जो पापरूपी मत वाले हाथियों के मारने वाले सिंह हैं, दैत्यसमूह रूपी साँपों का नाश करने वाले गरुड हैं तथा जो मरण, शोक और बुढ़ापा रूपी भीषण वन को जलाने वाले दावानल हैं, ऐसे काशीपति विश्वनाथ को भजो (भजन करो ) ।

तेजोमयं सगुणनिर्गुणमद्वितीय- मानन्दकन्दमपराजितमप्रमेयम् ।
नागात्मकं सकलनिष्कलमात्मरूपं वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥६॥

जो तेजपूर्ण, सगुण, निर्गुण, अद्वितीय, आनन्दकन्द, अपराजित और अतुलनीय हैं, जो अपने शरीर पर सर्पों को धारण करते हैं, जिनका रूप ह्रास-वृद्धि रहित है, ऐसे आत्मस्वरूप काशीपति विश्वनाथ को भजो (भजन करो ) । 

रागादिदोषरहितं स्वजनानुरागं 
                   वैराग्यशान्तिनिलयं गिरिजासहायम् ।
माधुर्यधैर्यसुभगं गरलाभिरामं
                   वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम्॥७॥

जो रागादि दोषों से रहित हैं, अपने भक्तों पर कृपा रखते हैं, वैराग्य और शान्ति के स्थान हैं, पार्वतीजी सदा जिनके साथ रहती हैं,जो धीरता और मधुर स्वभाव से सुन्दर जान पड़ते हैं तथा जो कण्ठ में गरल के चिह्न से सुशोभित हैं, उन काशीपति विश्वनाथ को भजो (भजन करो ) ।

आशां विहाय परिहृत्य परस्य  निन्दां
                  पापे रतिं च सुनिवार्य मनः समाधौ ।
आदाय हृत्कमलमध्यगतं परेशं
                   वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥८॥

सब आशाओं को छोड़कर, दूसरों की निन्दा त्यागकर और पाप कर्म से अनुराग हटाकर, चित्त को समाधि में लगाकर, हृदय कमल में प्रकाशमान परमेश्वर काशीपति विश्वनाथ को भजो (भजन करो ) ।

वाराणसीपुरपतेः स्तवनं शिवस्य
                 व्याख्यातमष्टकमिदं पठते मनुष्यः । 
विद्यां श्रियं विपुलसौख्यमनन्तकीर्तिं 
                 सम्प्राप्य देहविलये लभते च मोक्षम् ॥ ९॥

जो मनुष्य काशीपति शिव के इन आठ श्लोकों के स्तवन का पाठ करता है, वह विद्या, धन, प्रचुर सौख्य और अनन्त कीर्ति प्राप्त कर देहावसान होने पर मोक्ष भी प्राप्त कर लेता है ॥

विश्वनाथाष्टकमिदं यः पठेच्छिवसन्निधौ ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥ १० ॥

जो शिव के समीप इस 'विश्वनाथाष्टक' का पाठ करता है, वह शिवलोक प्राप्त करता और शिव के साथ आनन्दित होता है ॥

॥ इस प्रकार महर्षि व्यास प्रणीतं विश्वनाथाष्टकम् सम्पूर्ण हुआ ॥

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