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भगवान कुबेर का पूजन

व्रतोत्सव त्यौहार | Duration : 3 Hrs 30 min
Price Range: 4100 to 7100

About Puja

सनातन धर्म में कुबेर को धन के अधिपति के रूप में जाना जाता है। धनत्रयोदशी (धनतेरस) के दिन यक्षपति कुबेर की पूजा करने का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन यक्षराज कुबेर की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में कभी भी आर्थिक संकट उत्पन्न नहीं होता। भगवान् कुबेर की पूजा धन प्राप्ति के लिए की जाती है। वहीं घर की उत्तर दिशा में कुबेर देवता का वास माना गया है। ऐसा माना जाता है कि धन के देवता कुबेर की दया दृष्टि जिस किसी पर भी पड़ती है उसे जीवन में आर्थिक समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता।      पौराणिक मान्यताओं के अनुसार- कुबेर लंकापति रावण के सौतेले भाई हैं। रावण की मृत्यु के बाद कुबेर को ही असुरों का नया सम्राट् बनाया गया। वे यक्षों के राजा भी हैं। वे उत्तर दिशा के दिक्पाल हैं  और लोकपाल भी माने जाते हैं। इनके पिता महर्षि विश्रवा तथा माता देववर्णिणी थीं। इन्हें भगवान शिव का परम भक्त और नौ निधियों का देवता भी कहा गया है। लेकिन यक्षपति कुबेर  को  धन के स्वामी बनने के पीछे बड़ी ही रोचक कथा मिलती है। स्कन्दपुराण में वर्णन मिलता है कि पूर्वजन्म में भगवान कुबेर का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था जिसका नाम गुणनिधि था। लेकिन उसमें एक अवगुण था कि वह चोरी करने लगा था। इस बात का पता चलने पर उसके पिता ने उसे घर से निकाल दिया। जब भटकते हुए एक शिव मन्दिर गुणनिधि को दिखा तो उसने मंदिर से प्रसाद चुराने की योजना बनाई। वहां एक पुजारी सो रहा था। जिससे बचने के लिए गुणनिधि ने दीपक के सामने अपना अंगोछा फैला दिया। लेकिन पुजारी ने उसे चोरी करते हुए पकड़ लिया और इसी हाथापाई में उसकी मृत्यु हो गई।मृत्यु के उपरान्त जब यमदूत गुणनिधि को लेकर आ रहे थे तो दूसरी ओर से भगवान शिव के दूत भी आ रहे थे। भगवान शिव के दूतों ने गुणनिधि को भोलेनाथ के समक्ष प्रस्तुत किया। भोलेनाथ को यह प्रतीत हुआ कि गुणनिधि ने अंगोछा बिछाके उनके लिए जल रहे दीपक को बुझने से बचाया है। इसी बात से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने गुणनिधि को कुबेर की उपाधि प्रदान की। साथ ही देवताओं के धन का संरक्षक बनने का आशीर्वाद प्रदान किया।

रामायण के अनुसार-
      रामायण में भी यक्षराज कुबेर का वर्णन मिलता है। भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए कुबेर ने हिमालय पर्वत पर तप किया। तप के अन्तराल में शिव तथा पार्वती दर्शन हुआ कुबेर ने अत्यन्त सात्त्विक भाव से पार्वती की ओर बाए नेत्र से देखा। पार्वती के दिव्य तेज से वह नेत्र भस्म होकर पीला पड़ गया। कुबेर वहां से उठकर दूसरे स्थान पर चले गए। कुबेर के घोर तप से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने कहा  तुमने मुझे तपस्या से जीत लिया है। तुम्हारा एक नेत्र पार्वती के तेज से नष्ट हो गया, अत: तुम एकाक्षीपिंगल के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त करोगे। इस नाम के अतिरिक्त कुबेर को संपूर्ण विश्व का राजा,नृपाधिपति,धनाधिपति,धनदाता आदि नामों से ख्याति प्राप्त है।

भगवान कुबेर के नौ रूपों का वर्णन हमें शास्त्रों से प्राप्त होता है प्रत्येक रूप में भगवान कुबेर की उपासना का अलग-अलग फल और महत्व बताया गया है।


१.  उग्रकुबेर

     उग्र कुबेर के रूप में भगवान कुबेर की उपासना से उपासक को धन प्राप्त होता है एवं सभी प्रकार के शत्रुओं का विनाश  होता है।

२. पुष्पकुबेर

   इस रूप में  भगवान कुबेर का  स्तवन् करने से धन, प्रेम, विवाह और मनवांछित फल की प्राप्ति तथा सभी प्रकार के दुखों से मुक्ति दिलाने वाले हैं।

३.चंद्र कुबेर

    इस रूप में कुबेर की उपासना से धन एवं पुत्र की प्राप्ति होती है।

४. पीतकुबेर

धन, वाहन एवं सुख- संपदा आदि की प्राप्ति हेतु पीतकुबेर की उपासना की जाती है, इनकी उपासना से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

५.हंसकुबेर

   इस रूप की उपासना करने से अज्ञात आने वाले दुखों से निवृत्ति और कोर्ट-कचहरी सम्बन्धित मामलों में विजय की प्राप्ति होती है।

६.रागकुबेर

    भौतिक और आध्यात्मिक प्रत्येक प्रकार की विद्या संगीत कला और नृत्यादि में निपुणता की प्राप्ति हेतु रागकुबेर की उपासना की जाती है।एवं इनकी उपासना से सभी प्रकार की परीक्षाओं में      भी सफलता प्राप्त होती है।

७.अमृत कुबेर

    सर्वविध स्वास्थ्य लाभ, धन और जीवन में सभी प्रकार से आ रहे कष्टों से निवृत्ति हेतु अमृतकुबेर की  उपासना की जाती है।

८.प्राण कुबेर

   इस रूप में कुबेर की उपासना से ऋण से मुक्ति भी मिलती है।

९. धनकुबेर

    भगवान श्री कुबेर के सभी रूपों में सर्वश्रेष्ठ रूप धनकुबेर का है। जीवन में हम जो भी कार्य करते हैं उस कार्य के अनुसार हमें फल की प्राप्ति इन्हीं के माध्यम से होती है। और प्रत्येक मनोवांछित कामना की सिद्धि होती है। अगर भाग्य निर्बल हो तो भाग्य प्रबल करने हेतु धनकुबेर की उपासना सर्वोत्तम उपाय है।

Benefits

भगवान कुबेर का पूजन का माहात्म्य:-

  • भगवान कुबेर की उपासना से घर में सुख समृद्धि का आगमन होता है।
  • धन सम्बन्धी समस्याओं का निदान होता है।
  • इनकी उपासना से दरिद्रता का नाश होता है।
  • इनकी उपासना से धन, ऐश्वर्य,यश आदि में वृद्धि होती है।
  • साधक की प्रत्येक मनोकामना की पूर्ति इनके स्तवन् से होती है।

Process

भगवान कुबेर का पूजन में होने वाले प्रयोग या विधि:-

  1. स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
  2. प्रतिज्ञा-सङ्कल्प
  3. गणपति गौरी पूजन
  4. कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
  5. पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
  6. षोडशमातृका पूजन
  7. सप्तघृतमातृका पूजन
  8. आयुष्यमन्त्रपाठ
  9. नवग्रह मण्डल पूजन
  10. अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
  11. पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं पूजन 
  12. रक्षाविधान
Puja Samagri

वैकुण्ठ के द्वारा दी जाने वाली पूजन सामग्री:-

  • रोली, कलावा    
  • सिन्दूर, लवङ्ग 
  • इलाइची, सुपारी 
  • हल्दी, अबीर 
  • गुलाल, अभ्रक 
  • गङ्गाजल, गुलाबजल 
  • इत्र, शहद 
  • धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई 
  • यज्ञोपवीत, पीला सरसों 
  • देशी घी, कपूर 
  • माचिस, जौ 
  • दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा 
  • सफेद चन्दन, लाल चन्दन 
  • अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला 
  • चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का 
  • सप्तमृत्तिका 
  • सप्तधान्य, सर्वोषधि 
  • पञ्चरत्न, मिश्री 
  • पीला कपड़ा सूती

यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-

  • वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का - 1
  • गाय का दूध - 100ML
  • दही - 50ML
  • मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार 
  • फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
  • दूर्वादल (घास ) - 1मुठ 
  • पान का पत्ता - 07
  • पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg
  • पुष्पमाला - 7 ( विभिन्न प्रकार का)
  • आम का पल्लव - 2
  • विल्वपत्र - 21
  • तुलसी पत्र -7
  • शमी पत्र एवं पुष्प 
  • थाली - 2, कटोरी - 5, लोटा - 2, चम्मच - 2 आदि 
  • अखण्ड दीपक -1
  • देवताओं के लिए वस्त्र -  गमछा, धोती  आदि 
  • बैठने हेतु दरी,चादर,आसन 
  • गोदुग्ध,गोदधि
  • पानी वाला नारियल
  • तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित  

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