देवउठनी (देवोत्थान) एकाद‌शी

देवउठनी (देवोत्थान) एकाद‌शी

व्रतोत्सव त्यौहार | Duration : 4 Hours
Price Range: 4100 to 8100

About Puja

इस एकादशी में भगवान् विष्णु योगनिद्रा से जगते हैं। हरिशयनी एकादशी जो की आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष में आती है, इस दिन भगवान् विष्णु अपना कार्यभार भगवान् शिव को समर्पित करके चार महीने के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं, जो पूर्ण मानसिक विश्राम की अवस्था है। चार माह पर्यन्त शयन के पश्चात् प्रबोधिनी एकादशी जो की कार्तिक शुक्ल पक्ष में आती है जिसे देवउठनी एकादशी के नाम से जानते हैं,इस दिन भगवान विष्णु अपनी योगनिद्रा से जगते हैं, तथा इसी दिन से सभी शुभ तथा मांगलिक कार्य जैसे - विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन आदि समस्त माङ्गलिक कार्य प्रारम्भ हो जाते हैं।इसी दिन भगवान् शालग्राम और  माता तुलसी का विवाह किया जाता है। तुलसी विवाह के सम्बन्ध में श्रीशिवमहापुराण की रुद्रसंहिता में विस्तार पूर्वक वर्णन मिलता है। शिवपुराण के अनुसार वैष्णव भक्तों के लिये तुलसी विवाह जगत् पालनकर्ता भगवान विष्णु और माता- लक्ष्मी का आशीर्वाद  तथा उनकी कृपा प्रसाद को प्राप्त करने  का विशेष दिवस होता है। भगवान् शालग्राम तथा माता तुलसी का विवाह इस दिन करने से विवाह सम्बन्धी परेशानियां दूर होती हैं। इस सम्बन्ध में श्रीशिवपुराण में एक कथा मिलती है।

एक बार शिव ने अपने तेज को समुद्र में फेंक दिया, उससे एक महातेजस्वी बालक ने जन्म लिया। यह बालक आगे चलकर जलन्धर के नाम से पराक्रमी दैत्य राजा बना। दैत्यराज कालनेमी की कन्या वृन्दा का विवाह जलन्धर से हुआ। जलन्धर महाराक्षस था। अपनी सत्ता के मद में चूर उसने माता लक्ष्मी को पाने की कामना से युद्ध किया, परन्तु समुद्र से ही उत्पन्न होने के कारण माता लक्ष्मी ने उसे अपने भाई के रूप में स्वीकार किया। वहाँ से पराजित होकर वह देवी पार्वती को पाने की लालसा से कैलाश पर्वत पर गया।भगवान् देवाधिदेव शिव का ही रूप धारणकर माता पार्वती के समीप गया, परन्तु माँ ने अपने योगबल से उसे तुरन्त पहचान लिया तथा वहाँ से अन्तर्ध्यान हो गईं। देवी पार्वती ने क्रुद्ध होकर सारा वृत्तान्त भगवान् विष्णु को सुनाया। जलन्धर की पत्नी वृन्दा अत्यन्त पतिव्रता स्त्री थी। उसी के पातिव्रत धर्म की शक्ति से जलन्धर न तो मारा जाता था, और न ही पराजित होता था। इसीलिए जलन्धर का नाश करने के लिए वृन्दा के पातिव्रत धर्म को भङ्ग करना आवश्यक था। तब भगवान् विष्णु अपनी शक्ति से जलन्धर का रूप धारण किया,और देवी वृन्दा के साथ रमण किया। जिसके प्रभाव से देवी वृन्दा का सतीत्व नष्ट हो गया और जलन्धर युद्ध में पराजित हुआ । जब वृन्दा को इस बात का अनुभव हुआ कि ये कोई अन्य व्यक्ति है, न कि मेरे पति तब भगवान् विष्णु अपने रूप में प्रकट हुए। फलस्वरूप देवी वृन्दा ने विष्णु जी को कहा कि तुमने मेरे साथ छल किया इसलिए तुम  पाषाण के हो जाओ ऐसा श्राप दे दिया। अपने भक्त के श्राप को भगवान् विष्णु ने स्वीकार किया और शालग्राम शिला बन गये। सृष्टि के पालनकर्ता के पत्थर बन जाने से ब्रह्माण्ड में असन्तुलन की स्थिति हो गई। यह देखकर सभी देवी देवताओं ने वृंदा से प्रार्थना की वह भगवान् विष्णु को श्राप मुक्त कर दें। वृन्दा ने भगवान् विष्णु को श्राप मुक्त कर स्वयं आत्मदाह कर लिया। जहाँ वृंदा भस्म हुईं, वहाँ तुलसी का पौधा उगा।

भगवान विष्णु ने वृन्दा से कहा - हे वृन्दा! तुम अपने सतीत्व के कारण मुझे लक्ष्मी से भी अधिक प्रिय हो गई हो। अब तुम तुलसी के रूप में सदा मेरे साथ रहोगी। तब से हर साल कार्तिक महीने के देवोत्थान एकादशी के दिन तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता।

Benefits

देवउठनी (देवोत्थान) एकाद‌शी  का पाठ माहात्म्य:-

  • कन्या के विवाह में आ रही समस्याएं नष्ट हो जाती हैं तथा वैवाहिक जीवन सुखमय रहता है।
  • भौतिक संसाधनों से युक्त होता है, इहलोक तथा परलोक दोनों में यश पाता है।
  • पूर्व जन्म कृत समस्त पापों का शमन होता है तथा रोगों से निवृत्ति होती है।
  • धन की देवी महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है तथा घर में धन, धान्य, ऐश्वर्यादि की वृद्धि होती है।
  • यदि पत्नी पातिव्रत धर्म का पालन करे, तो उसके पति तथा परिवार के जीवन पर किसी भी प्रकार की समस्या नहीं आ सकती।
Process

देवउठनी (देवोत्थान) एकाद‌शी में होने वाले प्रयोग या विधि:-

  1. स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
  2. प्रतिज्ञा सङ्कल्प
  3. गणपति गौरी पूजन
  4. कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
  5. पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
  6. षोडशमातृका पूजन
  7. सप्तघृतमातृका पूजन
  8. आयुष्यमन्त्रपाठ
  9. सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध (आभ्युदयिकश्राद्ध)
  10. नवग्रह मण्डल पूजन
  11. अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
  12. पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल , वास्तु पुरुष आवाहन एवं , पूजन 
  13. रक्षाविधान , 
  14. प्रधान देवता पूजन
  15. पाठ विधान
  16. विनियोग ,करन्यास , हृदयादिन्यास
  17. ध्यानम् , स्तोत्र पाठ
  18. पंचभूसंस्कार , अग्नि स्थापन , ब्रह्मा वरण , कुशकण्डिका
  19. आधार-आज्यभागसंज्ञक हवन
  20. घृताहुति , मूलमन्त्र आहुति , चरुहोम
  21. भूरादि नौ आहुति स्विष्टकृत आहुति , पवित्रप्रतिपत्ति
  22. संस्रवप्राशन , मार्जन , पूर्णपात्र दान
  23. प्रणीता विमोक , मार्जन , बर्हिहोम 
  24. पूर्णाहुति , आरती , विसर्जन
Puja Samagri

 वैकुण्ठ के द्वारा दी जाने वाली पूजन सामग्री:-

  • रोली, कलावा    
  • सिन्दूर, लवङ्ग 
  • इलाइची, सुपारी 
  • हल्दी, अबीर 
  • गुलाल, अभ्रक 
  • गङ्गाजल, गुलाबजल 
  • इत्र, शहद 
  • धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई 
  • यज्ञोपवीत, पीला सरसों 
  • देशी घी, कपूर 
  • माचिस, जौ 
  • दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा 
  • सफेद चन्दन, लाल चन्दन 
  • अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला 
  • चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का 
  • सप्तमृत्तिका 
  • सप्तधान्य, सर्वोषधि 
  • पञ्चरत्न, मिश्री 
  • पीला कपड़ा सूती,

हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र :-

  • काला तिल 
  • चावल 
  • कमलगट्टा, 
  • हवन सामग्री, घी,गुग्गुल
  • गुड़ (बूरा या शक्कर) 
  • बलिदान हेतु पापड़
  • काला उडद 
  • पूर्णपात्र -कटोरी या भगोनी
  • प्रोक्षणी, प्रणीता, स्रुवा, शुचि, स्फय - एक सेट
  • हवन कुण्ड ताम्र का 10/10  इंच या 12/12 इंच 
  • पिसा हुआ चन्दन 
  • नवग्रह समिधा
  • हवन समिधा 
  • घृत पात्र
  • कुशा
  • पंच पात्र

यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-

  • वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का - 1
  • गाय का दूध - 100ML
  • दही - 50ML
  • मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार 
  • फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
  • दूर्वादल (घास ) - 1मुठ 
  • पान का पत्ता - 07
  • पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg
  • पुष्पमाला - 7 ( विभिन्न प्रकार का)
  • आम का पल्लव - 2
  • विल्वपत्र - 21
  • तुलसी पत्र -7
  • शमी पत्र एवं पुष्प 
  • थाली - 2 , कटोरी - 5 ,लोटा - 2 , चम्मच - 2 आदि 
  • अखण्ड दीपक -1
  • पानी वाला नारियल
  • देवताओं के लिए वस्त्र -  गमछा , धोती  आदि 
  • बैठने हेतु दरी,चादर,आसन 
  • गोदुग्ध,गोदधि
  • तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित  

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