जानें 12 साल बाद ही क्यों लगता है महाकुम्भ

जानें 12 साल बाद ही क्यों लगता है महाकुम्भ

कुम्भ मेला देश के सबसे पुराने नगरों प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन एवं नासिक में आयोजित किया जाता है। प्रत्येक 6 वर्ष में यहां कुम्भ मेला और 12 वर्ष में महाकुम्भ का आयोजन होता है। कुम्भ मेले के पावन अवसर पर लाखों की संख्या में श्रद्धालु देश-विदेशों से स्नान के लिए इन तीर्थ स्थलों में पहुंचते हैं। कुम्भ का अर्थ होता है कलश और इस मेले की कथा समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश से जुड़ी हुई है। लेकिन आज भी अधिकतर लोगों के मन में प्रश्न है कि आखिर महाकुम्भ 12 वर्षों के बाद ही क्यों लगता है? आज हम इस लेख में कुम्भ मेले से जुड़े प्रश्नों के उत्तर जानेंगे।  

कहां लगता है कुम्भ 

पौराणिक मान्यता के अनुसार कुम्भ मेले की शुरूआत त्रेतायुग में समुद्र मंथन के पश्चात् हुई। अर्थात् देवताओं एवं दानवों के बीच जब अमृत कलश के लिए समुद्र मंथन हुआ, तो उस समय भगवान धनवन्तरी अपने हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए और अमृत कलश देवताओं को प्रदान किया, लेकिन असुर अमृत कलश स्वयं चाहते हैं। जिसके कारण देवताओं एवं असुरों के बीच अमृत के लिए विवाद हुआ और वह देवताओं से अमृत कलश लेकर भागने लगे। इस बीच देवता एवं दानवों की बीच संग्राम छिड़ा और तब अमृत कलश से कुछ बूंदे धरती के 4 स्थान हरिद्वार, उज्जैन, नासिक और प्रयागराज में गिरीं, यही कारण है कि यह स्थान पवित्र तीर्थ स्थलों की सूची में सम्मिलित हैं और यहां पर कुम्भ का आयोजन किया जाता है।  

12 वर्षों के बाद ही क्यों लगता है महाकुम्भ 

स्कन्दपुराण के अनुसार, देवताओं एवं दानव के बीच अमृत कलश को पाने के लिए 12 दिनों तक निरंतर संग्राम चलता रहा और कहा जाता है कि देवताओं के 12 दिन मनुष्यों के 12 वर्षों के बराबर होते हैं। इसलिए प्रत्येक 12 वर्षों में महाकुम्भ का आयोजन किया जाता है।  

4 तीर्थों में होता है कुम्भ मेला 

  1. स्कन्दपुराण के अनुसार, जब कुम्भ राशि में बृहस्पति प्रवेश करता है एवं मेष राशि में सूर्य, तो इस समय हरिद्वार में कुम्भ मेले का आयोजन होता है।   
  2. जब मेष राशि में बृहस्पति एवं मकर राशि में चन्द्रमा तथा सूर्य एक साथ होते हैं, तब प्रयागराज में कुम्भ मेले का योग बनता है। प्रयागराज कुम्भ नगरी के नाम से भी प्रख्यात है, यह 3 नदियों के संगम गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती पर स्थित है।  
  3. जब मेष राशि पर सूर्य एवं सिंह राशि में बृहस्पति विराजमान होते हैं, तो उस समय उज्जैन में कुम्भ मेले का आयोजन होता है। 
  4. जब सिंह राशि में सूर्य तथा बृहस्पति की उपस्थिति एक साथ देखी जाती है, तब नासिक में कुम्भ का योग बनता है।  

कुम्भ मेला क्यों है इतना विशेष  

ऋग्वेद के अनुसार, जिस प्रकार से नदी स्वयं अपने तटों को काटकर मार्ग बनाकर होती है, ठीक इसी प्रकार कुम्भ मेले में सम्मिलित होने वाला व्यक्ति, दान पूर्ण एवं होम आदि सत्कर्मों से अपने समस्त पापों का नाश करता है और स्वयं के लिए पुण्य का द्वार खोलता है।  

अर्थवेद में कहा गया है कि, पूर्णकुम्भ अथार्त् महाकुम्भ का योग प्रत्येक 12 वर्षों के बाद बनता है जिसे तीर्थ स्थल जैसे कि प्रयागराज, हरिद्वार में आयोजित किया जाता है।  

कुम्भ मेले में स्नान एवं महत्व 

पहले तीर्थ हरिद्वार में कुम्भ के 3 स्नान होते हैं, जिसमें पहला स्नान शिवरात्रि से प्रारंभ होता है, दूसरा चैत्र मास की अमावस्या एवं तीसरा वैशाख के पहले दिन कुम्भ स्नान होता है। प्रयाग राज में भी कुम्भ के कुल 3 विषेश स्नान होते हैं- पहला  मकर संक्रांति के दिन, दूसरा माघ कृष्ण मौनी अमावस्या को और तीसरा माघ मास की शुक्ल बसंत पंचमी को होता है। नासिक में गोदावरी के तट पर कुम्भ मेले का आयोजन होता है, इसका स्नान भाद्रपद की अमावस्या को होता है। इन स्नानों को शाही स्नान के नाम से भी जाता है।  

कुम्भ स्नान का महत्व 

  • स्कन्दपुराण में उल्लेखित है कि जो व्यक्ति इस दिन गंगा में स्नान करता है उसे अमृतत्व की प्राप्ति होती है।  
  • कार्तिक मास में हजार बार किए गए स्नान, माघ मास में सौ बार किए गए स्नान एवं वैशाख मास में करोड़ बार किए गए स्नान से जो फल मनुष्य को प्राप्त होता है, वह प्रयाग के कुम्भ में केवल एक बार स्नान करने से प्राप्त होता है। 
  • इस दिन हरिद्वार में स्नान करने से मनुष्य पुनर्जन्म के च्रक से मुक्त हो जाता है।   

Vaikunth Blogs

सभी प्रकार की मंगल कामनाओं की पूर्ति हेतु करें माता कामेश्वरी की यह स्तुति
सभी प्रकार की मंगल कामनाओं की पूर्ति हेतु करें माता कामेश्वरी की यह स्तुति

श्री महाभागवतपुराण में युधिष्ठिर जी द्वारा माता कामेश्वरी की स्तुति की गयी | माता कामेश्वरी सभी प्रक...

दिवाली 2023: पूजा का शुभ मुहूर्त एवं महत्व
दिवाली 2023: पूजा का शुभ मुहूर्त एवं महत्व

दिवाली एक महत्वपूर्ण महापर्व है, जिससे लोगों की धार्मिक आस्था जुड़ी हुई है, इसलिए इस पर्व को बड़े ही...

7 Benefits of Performing Rudrabhishek Puja on Mahashivratri 2024
7 Benefits of Performing Rudrabhishek Puja on Mahashivratri 2024

Mahashivratri is the most sacred and worshipped Shivratri among the 12 Shivratris that occur once a...

Chhath Puja 2023: छठी मैया की पूजा का पौराणिक महत्व
Chhath Puja 2023: छठी मैया की पूजा का पौराणिक महत्व

आज से आस्था के महापर्व छठ की शुरूआत हो गई है। कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि के दिन छठ का त्यौहार मानाया ज...

सुखी दाम्पत्य विवाहित जीवन के लिए उमा माहेश्वरी पूजा: प्रेम और समृद्धि की कुंजी
सुखी दाम्पत्य विवाहित जीवन के लिए उमा माहेश्वरी पूजा: प्रेम और समृद्धि की कुंजी

हिन्दू पचांग के अनुसार प्रत्येक माह में पूर्णिमा तिथि आती है और इस प्रत्येक तिथि का अपना अलग महत्व ह...

हनुमान जयंती 2024: जानें सही दिनांक , शुभ मुहूर्त और धार्मिक महत्व
हनुमान जयंती 2024: जानें सही दिनांक , शुभ मुहूर्त और धार्मिक महत्व

रामनवमी के पावन अवसर के पश्चात् हनुमान जयंती को बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। हनुमान जयंती हर...

 +91 |

By clicking on Login, I accept the Terms & Conditions and Privacy Policy

Recovery Account