अक्षय तृतीया 2024:- जानें शुभ दिन, मुहूर्त तथा धार्मिक महत्ता ।

अक्षय तृतीया 2024:- जानें शुभ दिन, मुहूर्त तथा धार्मिक महत्ता ।

वैशाख मास के शुक्लपक्ष की तृतीया को अक्षय तृतीया कहा जाता है । भविष्यपुराण के अनुसार अक्षय तृतीय के दिन तीर्थ में अर्थात् गंगा में स्नान, तिल से पितरों का तर्पण, दान और पूजा करने से जातक को अक्षय फल की प्राप्ति होती है साथ ही इस दिन व्रत करने से सभी प्रकार के पापों का क्षय (नाश) होता है और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन ही भगवान् परशुराम का जन्म हुआ इसलिए इस दिन परशुराम जयंती भी मनाई जाती है। इसके साथ ही इस दिन सतयुग का भी प्रारंभ हुआ इसलिए इसे युगादि तिथि भी कहा जाता है । 

अक्षय तृतीया के दिन भगवान् विष्णु और माता लक्ष्मी की नियमानुसार अक्षत से पूजा-अर्चना की जाती है, जिससे जातक के सभी दु:खों का नाश होता है । इस दिन वस्तुदान और दक्षिणादान का विशेष महत्त्व है क्योंकि जो जातक अक्षय तृतीया के दिन अन्नदान के साथ जलदान भी करता है उसे उच्च मनुष्यों की संगति प्राप्त होती है । अक्षय तृतीया को कोई भी शुभ कार्य करने के लिए शुभ मुहूर्त निकालने की आवश्यकता नहीं होती अपितु यह तिथि स्वयं ही शुभ मानी जाती है । यही नहीं इस दिन स्वर्ण (सोना),और चाँदी का क्रय करना तथा शादी-विवाह करना अत्यंत शुभ माना जाता है। 

व्रतराज में अक्षय तृतीया के विषय में वर्णित है - 

अपि सम्यग्विधानेन नारी वा पुरुषोsपि वा । 
प्रातः स्नातः सनियमः सर्वपापै: प्रमुच्यते ॥ 

अर्थात् अक्षय तृतीया पर जो भी स्त्री या पुरुष नियमानुसार व्रत और स्नान करते हैं तो व्रत के प्रभाव से सभी पापों का नाश हो जाता है और उसे दिव्यलोक की प्राप्ति होती है ।  

साल 2024 में अक्षय तृतीया की सही तिथि और शुभ मुहूर्त :-

इस वर्ष अक्षय तृतीया का पर्व शुक्रवार, 10 मई को मनाया जाएगा। 

  • 10 मई को प्रातः 04 बजकर 17 मिनट पर आरम्भ ।
  • 11 मई को प्रातः 2 बजकर 50 मिनट पर समापन । 

अक्षय तृतीया के दिन पूजा के लिए शुभ मुहूर्त 10 मई को सुबह 10 बजकर 49 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 23 मिनट तक रहेगा ।  

यह अक्षय तृतीया का विशेष मुहूर्त है परन्तु अक्षयतृतीया तिथि सम्पूर्ण दिवस है अतः आज के दिन जो भी व्रत-जप-दान किया जायेगा वह सम्पूर्ण दिन होगा ।

अक्षय तृतीया व्रत कथा :-

प्राचीन समय में सुनिर्मळ नाम का एक व्यापारी था । वह सदैव सत्य और मीठे वचन बोलता था तथा देव और ब्राह्मणों की पूजा किया करता था । उसकी शास्त्रों में बहुत रूचि होने के कारण पूजा-पाठ में उसका मन लगा रहता था । एक दिन उसने रोहिणी नक्षत्र शालिनी अक्षय तृतीया का माहात्म्य सुना कि इस तिथि पर जो भी दान-पुण्य किया जाता है उसका अक्षय फल प्राप्त होता है अर्थात् यह पूर्णतया फलदायी होता है । यह सुनकर वह गंगा किनारे पहुंचा, वंहा पहुंचकर उसने स्नान-ध्यान कर पितरों का तर्पण किया । इसके पश्चात् उसने घर आकर ब्राह्मणों को अन्न, ईख, दूध से निर्मित वस्तुएं, जल से भरे घड़े एवं स्वर्ण का दान किया । इधर उसकी पत्नी का चित्त कुटुंब में आसक्त होने के कारण उसने अपने पति को रोकने का बहुत प्रयास किया परन्तु जब तक वह परमात्मा की शरण में नहीं पहुंचा तब तक उसने दान-दक्षिणा देना नहीं छोड़ा ।  

इसके पश्चात् उसका जन्म कुशावतीपुरी में हुआ, यहाँ वह अधिक धनवान बना और उसने दान-दक्षिणा के साथ बड़े-बड़े यज्ञ किये, जिसके फलस्वरूप उसने अनेक विषय वस्तुओं का उपभोग किया । निरन्तर दान करने के बाबजूद भी उसका धन समाप्त  नहीं होता था क्योंकि यह उसके द्वारा अक्षय तृतीया के दिन श्रद्धापूर्वक दान करने का ही फल था । 

अक्षय तृतीया की पूजन विधि :-

  • अक्षय तृतीया के दिन प्रातः ब्रह्ममुहूर्त में जागकर गंगा स्नान करना चाहिए या फिर घर में ही गंगाजल को जल में मिश्रित कर स्नान करें ।  
  • स्नान के पश्चात् भगवान् विष्णु और माता लक्ष्मी की प्रतिमा पर अक्षत श्रद्धापूर्ण अर्पित करें ।  
  • इसके पश्चात् श्वेत कमल के पुष्प या फिर श्वेत गुलाब के पुष्प अर्पित करके, धूप-दीप एवं चंदन इत्यादि से भगवान् की पूजा व अर्चना करें । 
  • पूजा के पश्चात् नैवैद्य अर्पित करें।  
  • पूजन के पश्चात् ही भोजन करें ।  
  • ध्यान रखें कि पूरे दिन में एक ही समय भोजन ग्रहण करें।
  • ब्राह्मणों को यथाशक्ति अन्न और धन का दान  करें।  

अक्षय तृतीया का माहात्म्य :-

वैशाख शुक्ल तृतीया के दिन उपवास करके समस्त पुण्य की प्राप्ति होती है । जो इस प्रकार इस तृतीया व्रत को कर लेता है वह सम्पूर्ण वर्ष के तृतीया व्रत का फल प्राप्त कर लेता है ।

इस प्रकार बड़े ही हर्ष और उत्सव के साथ हमें अक्षय तृतीया का पर्व मनाना चाहिए तथा यथाशक्ति वस्तुओं का दान अवश्य करना चाहिए इससे अक्षय फल की प्राप्ति होती है ।  अक्षय तृतीय का यह महत्त्व “व्रतराज ग्रन्थ” में वर्णित है ।

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