जानें श्रीशिवपञ्चाक्षर स्तोत्र का महत्व

जानें श्रीशिवपञ्चाक्षर स्तोत्र का महत्व

श्रीशिवपञ्चाक्षरस्तोत्र आद्यगुरु शंकराचार्य जी द्वारा वर्णित है। यह सम्पूर्ण स्तोत्र भगवान शिव के पंचाक्षर मन्त्र के प्रत्येक अक्षर का आश्रय लेकर रचित है। नमः शिवाय से ही यह स्तोत्र प्रतिष्ठित है। इस स्तोत्र का नित्य पूजा अथवा भगवान शिव की विशिष्ट पूजा के अवसर पर पाठ करना चाहिए। इस स्तोत्र के स्तवन् के द्वारा समस्त कष्टों का निवारण होता है। यह स्तोत्र पाठ साधक के मन की शान्ति, शरीर में व्याप्त रोगों की निवृत्ति हेतु, संतान प्राप्ति, सुख, समृद्धि, ऐश्वर्य आदि की प्राप्ति में सहायता प्रदान करता है। 

नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय 
        भस्माङ्गरागाय         महेश्वराय। 
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय 
       तस्मै 'न'काराय नमः शिवाय॥ १॥ 

जिनके कण्ठ शोभा, स्वयं नागराज के द्वारा की जा रही है,  जिनके तीन नेत्र हैं, भस्म का लेप ही जिनका श्रृंगार है,  समस्त दिशाएँ ही जिनका वस्त्र हैं, उन शुद्ध अविनाशी महेश्वर 'न' कार स्वरूप शिव को मेरा नमस्कार है॥१॥ 

मन्दाकिनी सलिलचन्दनचर्चिताय 
          नन्दीश्वरप्रमथनाथमहेश्वराय।  
मन्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय 
          तस्मै 'म'काराय नमःशिवाय।।२।। 

गंगाजल और चन्दन से जो पूजित हैं, मन्दार-पुष्प तथा अन्यान्य अनेकों पुष्पों से जिनका अर्चन- पूजन किया जाता है, उन नन्दी के अधिपति प्रमथगणों के स्वामी महेश्वर 'म' कारस्वरूप शिव को मेरा नमस्कार है॥ २॥ 

शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्द- 
        सूर्याय           दक्षाध्वरनाशकाय। 
श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय 
        तस्मै 'शि'काराय नमःशिवाय॥३॥ 

जो कल्याणस्वरूप हैं, पार्वती जी के मुख कमल को विकसित (प्रसन्न) करने के लिये जो सूर्यस्वरूप हैं, जो दक्ष यज्ञ का नाश करनेवाले हैं, जिनकी ध्वजा में बैल का चिह्न है, उन शोभाशाली भगवान नीलकण्ठ के 'शि' कारस्वरूप शिवको मेरा नमस्कार है॥ ३॥ 

वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्य- 
        मुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय।  
चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय 
        तस्मै 'व'काराय नमः शिवाय॥४॥ 

वसिष्ठ, अगस्त्य और गौतम आदि श्रेष्ठ मुनियों ने तथा इन्द्र आदि देवताओं ने जिनके मस्तक की पूजा-अर्चना की है। चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि जिनके नेत्र हैं, उन 'व' कारस्वरूप शिव को मेरा नमस्कार है॥ ४॥ 

यक्षस्वरूपाय जटाधराय 
        पिनाकहस्ताय          सनातनाय।   
दिव्याय  देवाय  दिगम्बराय 
        तस्मै 'य'काराय नमः शिवाय॥५॥ 

जिन्होंने यक्षरूप धारण किया है, जो जटाधारी हैं, जिनके हाथमें पिनाक है, जो दिव्य सनातन पुरुष हैं, उन दिगम्बर देव 'य' कारस्वरूप शिवको मेरा नमस्कार है॥५॥ 

पञ्चाक्षरमिदं  पुण्यं 
        यः पठेच्छिवसन्निधौ।        
शिवलोकमवाप्नोति 
        शिवेन सह मोदते॥६॥ 

जो भक्त इस पवित्र पंचाक्षर स्तोत्र का पाठ शिव मन्दिर अथवा शिव जी की मूर्ति के पास करता है, वह शिवलोक को प्राप्त करता है और वहाँ शिवजी के साथ आनन्दित होता है॥६॥ 

इति श्रीमच्छङ्कराचार्य विरचितं शिवपञ्चाक्षरस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥ 

Vaikunth Blogs

नव वर्ष में करें नवग्रह पूजा, सुख-शांति और व्यवसाय में होगी उन्नति
नव वर्ष में करें नवग्रह पूजा, सुख-शांति और व्यवसाय में होगी उन्नति

नववर्ष प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में नई खुशी एवं नए लक्ष्यों को पाने की उम्मीद को जगाता है। बीता साल...

कालसर्प दोष क्या है? जानें इसके लक्षण एवं निवारण
कालसर्प दोष क्या है? जानें इसके लक्षण एवं निवारण

प्राचीन धर्मग्रन्थों के अनुसार कालसर्प दोष दृष्टिगोचर होता है। कालसर्प दोष के कारण व्यक्ति के जीवन म...

धन- वैभव, समृद्धि और यश के विस्तार हेतु करें माता जया की यह स्तुति
धन- वैभव, समृद्धि और यश के विस्तार हेतु करें माता जया की यह स्तुति

श्री मार्कण्डेयपुराण के अन्तर्गत देवताओं के द्वारा भगवती जया की स्तुति की गयी | इस स्तुति में भगवती...

विवाह संस्कार से पूर्व क्यों होती है मेहंदी और हल्दी लगाने की परंपरा
विवाह संस्कार से पूर्व क्यों होती है मेहंदी और हल्दी लगाने की परंपरा

विवाह दो आत्माओं का एक ऐसा मेल है जो उनके अस्तित्व को एक में सम्मिलित कर नई ईकाई का निर्माण करता है।...

Kartik Snan: कार्तिक मास में सूर्योदय से पूर्व स्नान का विशेष महत्व
Kartik Snan: कार्तिक मास में सूर्योदय से पूर्व स्नान का विशेष महत्व

कार्तिक मास भगवान विष्णु का प्रिय मास है। इस मास में किए गए कार्यों का फल मनुष्य को जीवनभर मिलता है।...

भूमि पूजन का महत्व एवं निर्माण कार्य से पूर्व भूमि शोधन
भूमि पूजन का महत्व एवं निर्माण कार्य से पूर्व भूमि शोधन

सनातन धर्म ग्रंथों में भूमि अथवा धरती को माता का स्थान प्राप्त है। क्योंकि हमारी धरती माता समस्त संस...

 +91 |

By clicking on Login, I accept the Terms & Conditions and Privacy Policy

Recovery Account