महामृत्युंजय मंत्र के जप का वैदिक एवं पौराणिक महत्व

महामृत्युंजय मंत्र के जप का वैदिक एवं पौराणिक महत्व

पुराणों में महामृत्युंजय मन्त्र जप एवं अनुष्ठान को विशेष प्रभावी बताया गया है, इसका उल्लेख ऋग्वेद, यजुर्वेद, आदि में स्पष्ट रूप से मिलता है। हमारे ऋषि मुनियों ने महामृत्युंजय मंत्र को वेद का हृदय कहा है। सनातन वैदिक परम्परा में महामृत्युंजय मंत्र तथा गायत्री मंत्र दोनों सर्वोच्च स्थान पर है। इस मंत्र का उल्लेख शिवपुराण में भी मिलता है, जिसमें महामृत्युंजय अनुष्ठान को श्रेष्ठतम बताया गया है। यह मंत्र इतना प्रभावशाली है कि अकालमृत्यु को भी जीतने का सामर्थ्य रखता है। शिवपुराण में व्याख्यान है कि किस प्रकार से एक मुनि ने महामृत्युंजय मंत्र एवं अराधना से भगवान शिव को प्रसन्न किया और मनोवांछित वरदान पाया। भगवान शिव यदि भक्तजनों की भक्ति से प्रसन्न होते हैं तो, मनोवांछित फल देते हैं, यद्यपि कुछ परिस्थियों में उनका रोद्र रूप देखने को मिलता है।  

महामृत्युंजय मन्त्र  

ॐ हौं ॐ जूं सः भूर्भुवः स्वः त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।  

उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् । भूर्भुवः स्वरों जूं स: हौं ॐ 

अर्थात्, हम तीनों लोकों के स्वामी (त्र्यम्बकं) से प्रार्थना करते हैं कि, अपनी अपार शक्ति से इस संसार का पालन पोषण करें। त्रिनेत्रधारी भगवान शिव से कामना करते हैं कि वह जन्म-मृत्यु के बंधन से हमें मुक्त कर मोक्ष प्रदान करें। 

महामृत्युंजय मंत्र का उल्लेख 

शिवपुराण के रुद्रसंहिता के सती खंड में महामृत्युंजय मंत्र की महत्ता बताई गई है, जिसमें कहा गया है कि, इस मंत्र के जप से भगवान शिव स्वयं ही अपने भक्तों को मृत्यु के बंधन से मुक्त कर देते हैं, क्योंकि भगवान के हाथों में ही बंधन एवं मोक्ष देने की शक्ति है। यह ठीक इस प्रकार है, जिस प्रकार से ककड़ी का बेल अपने फलों को स्वयं ही लता के बंधन में बांध कर रखता है और पक जाने पर स्वयं ही बंधन से मुक्त कर देता है। 

रुद्र संहिता के सती खंड में यह भी बताया गया है कि, शुक्राचार्य ने मुनिश्रेष्ठ दधीचि को भगवान शिव का उपदेश दिया, जिसके बाद दधीचि उनके उपदेश से इतने प्रेरित हुए कि वह प्रेम पूर्वक भगवान शिव के स्मरण के लिए तपस्या करने वन में चले गए, जहां पर उन्होंने महामृत्युंजय मंत्र का जप एवं भगवान शिव का ध्यान करते हुए तपस्या प्रारंभ कर दी। महामुनि की तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हुए तथा वरदान देने के लिए उनके समक्ष प्रकट हुए और कहा तुम वर मांगो। जिसके बाद मुनि ने भगवान से तीन वर मांगे “मेरा शरीर वज्र बन जाए। कोई मेरा कभी वध ना कर पाए। मैं कभी दीनहीन ना रहूँ”। भगवान शिव ने प्रसन्न होकर मुनि को तथास्तु कहा और तीनों वर दे दिए। इस प्रकार से मुनि ने भगवान शिव की आराधना करके मनोवांछित फल प्राप्त किया।  

महामृत्युंजय मंत्र को लेकर शिवपुराण में एक और कथा है- भगवान शिव की कठोर तपस्या के बाद मृकण्ड ऋषि को भगवान के वरदान से पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। मृकण्ड ऋषि के अल्पायु पुत्र ने महामृत्युंजय मंत्र के द्वारा यमराज को भी पराजित किया, महामृत्युंजय मंत्र के आशीर्वाद से मृत्यु पर विजय प्राप्त की। 

महामृत्युंजय मन्त्र अनुष्ठान की विधि 

पुराणों में महामृत्युंजय मंत्र के जप की संख्या सपाद लक्ष् (सवा लाख) बताई गई है। महामृत्युंजय अनुष्ठान में भगवान शिव की पूजा, अर्चना, मंत्र जप किया जाता है। जिसके पश्चात् सम्पूर्ण मन्त्रजप का दशांश होम, तर्पण तथा मार्जन का विधान है। इस मंत्र का जप ऊनी आसन पर बैठकर रूद्राक्ष की माला से ही किया जाना चाहिए। महामृत्युंजय अनुष्ठान शुभ मुहूर्त में विद्वान ब्राह्मणों के द्वारा वैदिक विधि विधान से ही संपन्न करवाना चाहिए। जिससे भक्त जनों की समस्त कामना पूर्ण होती है। 

महामृत्युंजय मंत्र, वह मृत संजीवनी मंत्र है, जिसे भगवान शिव का ध्यान करके प्रेमपूर्वक एवं नियमपूर्वक जप करना चाहिए। हवन या जप के पश्चात् मंत्र से अभिमंत्रित किए जल को दिन एवं रात में पीना चाहिए एवं भगवान शिव का ध्यान करना चाहिए। जिससे कभी भी अकाल मृत्यु का भय पैदा नहीं होता है।  

महामृत्युंजय अनुष्ठान के लाभ 

  • शास्त्रों में वर्णित है कि महामृत्युंजय मंत्र अत्यंत शक्तिशाली एवं चमत्कारी है और इसे मृतसंजीवनी कहा जाता है। अनुष्ठान के माध्यम से जीवन में आ रही अनेक प्रकार की समस्याओं का समाधान मिलता है।  
  • महामृत्युंजय अनुष्ठान से अशांत ग्रहों की शांति होती है। यदि जातक की कुण्डली के चतुर्थ, अष्टम्, द्वादश भाव में कोई अशांत ग्रह बैठा है तो यह मंत्र उसके प्रभाव को कम कर देता है।  
  • महामृत्युंजय मंत्र के द्वारा असाध्य रोगों से मुक्ति मिलती है। कहा जाता है कि जब चिकित्सा की सभी पद्धतियां असफल हो जाती हैं, तब महामृत्युंजय मंत्र को चिकित्सा के लिए उपयोग किया जाता है और इस मंत्र का प्रभाव इतना शक्तिशाली होता है कि व्यक्ति को मृत्यु के मुंह से वापस लाया जा सकता है। 
  • शिवपुराण में उल्लेख है कि इस महामन्त्र के प्रभाव से भगवान शिव मनुष्य के समस्त  दुःख, दारिद्र्य, कष्ट तथा अहंकार का हरण कर लेते हैं और व्यक्ति का जीवन सुख, शांति और समृद्धि से भर देते हैं। 
  • महामृत्युंजय मंत्र के प्रभाव से अकाल मृत्यु का योग भी नष्ट हो जाता है। 

तो इस प्रकार से महामृत्युंजय मंत्र के जप एवं अनुष्ठान द्वारा व्यक्ति को असाध्य रोग एवं शारीरिक पीड़ा से मुक्ति मिलती है और भगवान शिव की कृपा सदैव भक्त पर बनी रहती है। यदि आप भी महामृत्युंजय अनुष्ठान पुराणों में उल्लेखित वैदिक विधि द्वारा ही संपन्ना करवाना चाहते हैं, तो इसके लिए वैकुण्ठ आपकी सहायता कर सकता है, जिसके माध्यम से आप किसी भी प्रकार की पूजा, अनुष्ठान एवं यज्ञ संपन्न करवा सकते हैं। 

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