जानें, निष्क्रमण संस्कार का महत्व एवं विधि

जानें, निष्क्रमण संस्कार का महत्व एवं विधि

भारतीय संस्कृति प्राचीन काल से अपनी सभ्यता और संस्कृति के कारण आकर्षण का केन्द्र रही है, इस कारण बहुत से पाश्चात्य लोगों ने भारतीय संस्कृति को अपनाया, क्योंकि भारतीय संस्कृति के विषय में कहा गया है “दुर्लभं भारते जन्म” अर्थात् भारत में जन्म लेना अत्यन्त दुष्कर है, एवं जिन लोगों को भारत में जन्म मिलता है वे अत्यन्त भाग्यशाली होते हैं। जीव जब स्वयं के किये हुए कर्मों के अनुसार विभिन्न योनियों में भ्रमण के पश्चात् मनुष्य योनि को प्राप्त करता है, तब यही मनुष्य योनि उसके बन्धन और मोक्ष का कारण बनती है। जीव जिस प्रकार के कर्म इस मनुष्य योनि में करता है उन्हीं कर्मों के अनुसार उसे फल की प्राप्ति होती है। इस भौतिक जगत में जीव जन्म लेता है और अपनी मुक्ति के मार्ग को स्वयं प्रशस्त करता है अतः मनुष्य को संस्कारित होने के लिए संस्कार अवश्य कराना चाहिए। उन्हीं संस्कारों के अंतर्गत निष्क्रमण संस्कार भी है। जब शिशु का नामकरण संस्कार हो जाता है, तत्पश्चात् निष्क्रमण संस्कार वैदिक विधि से संपन्न कराना चाहिए –  

निष्क्रमण संस्कार की आवश्यकता तथा महत्व ?  

संस्कारों की श्रृंखला में छठा संस्कार निष्क्रमण है, जैसा कि नाम से ही इसका अर्थ स्पष्ट हो जाता है- “निष्क्रमण” – बाहर निकलना। अर्थात् शिशु को घर से बाहर निकालना। निष्क्रमण संस्कार के पूर्व तक शिशु घर में ही रहता है, परन्तु घर के वातावरण के अनुसार शिशु का विकास सीमित न हो जाये , इसलिए शिशु को घर से बाहर निकाला जाता है। बालक के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए घर से बाहर का वातावरण भी आवश्यक होता है, जिससे बालक का सम्पूर्ण विकास हो सके। जब बालक प्रथम बार घर से निष्क्रमण करता है तो सर्वप्रथम भगवान सूर्य का प्रकाश या तेज बालक के शरीर पर पड़ता है, जिससे बालक के शरीर और मन में स्फूर्ति और सकारात्मक ऊर्जा का सन्निवेश होता है जिससे वह बालक सदाचार एवं तेज से परिपूर्ण होता है इसलिए भगवान सूर्य नारायण का प्रथम दर्शन कराया जाता है।      

आचार्य पारस्कर जी निष्क्रमण के विषय में बताते हैं - 'सूर्यमुदीक्षयति तच्चक्षुरिति' इस संस्कार में मुख्य रूप से बालक को सूतिका गृह से निकालकर सूर्य का दर्शन कराया जाता है “अथ निष्क्रमणं नाम गृहात्प्रथम- निर्गमः” (बृहस्पति)। इसका तात्पर्य यह है कि निष्क्रमण संस्कार के पूर्व शिशु को घर के अन्दर ही रखना चाहिए, क्योंकि जन्म के पश्चात शिशु के शारीरिक अंग बहुत कोमल होते हैं और पूर्णतया विकसित नहीं हुए होते हैं। यदि जन्म के पश्चात ही बालक को घर से बाहर निकाला जाये तो बालक के कोमल शरीर पर पर्यावरण का दुष्प्रभाव पड़ता है, इसी कारण सूतिका गृह में अधिक रोशनी नहीं की जाती है, क्योंकि अधिक रोशनी भी शिशु के लिए हानिकारक हो सकती है। समयानुसार धीरे-धीरे शिशु में शक्ति का संचार होने लगता है और उसकी इन्द्रियाँ विकसित होने लगती हैं।  

कुछ लौकिक जन कहते हैं की यदि हम यह संस्कार न करायें तो क्या हानि है ? 

इसके विषय में आचार्य कहते हैं, यद्यपि बिना संस्कार के भी यह लाभ प्राप्त किया जा सकता है, परन्तु मन्त्रों के साथ होने पर इसका अमोघ एवं दीर्घकालीन प्रभाव होता है, इसलिए शास्त्र ने जो व्यवस्था बनाई है उसकी मर्यादा की रक्षा भी होती है। साथ ही शास्त्र विधि के अनुसार कार्य भी संपन्न हो जाता है, अतः वैदिक विधि से किया गया संस्कार जीवन में श्रेष्ठ फल की प्राप्ति कराता है।  

कब करें यह संस्कार?  

शिशु को जन्म लिए हुए जब तीन मास का समय व्यतीत हो जाता है तत्पश्चात चौथे मास में यह संस्कार विधिवत् सम्पन्न किया जाना चाहिए।  

निष्क्रमण संस्कार के अन्तर्गत कुछ उपांग कर्म भी हैं, जिन्हें अवश्य करना चाहिए:- 

   1. भूमि-उपवेशन कर्म:- आचार्य गदाधर पारस्करगृह्यसूत्र के भाष्य में प्रयोगपरिजात का उद्धरण देते हुए बताते हैं कि भूमि उपवेशनकर्म में भूमि की पूजा के अनन्तर ही बालक को भूमि का स्पर्श कराना चाहिए और यह भूमि उपवेशन कर्म जन्म के पांचवें मास में किया जाता है, जैसा कि आचार्य लिखते हैं “पञ्चमे च तथा मासि भूमौ तमुपवेशयेत्”। 

 भू-देवी की प्रार्थना करने से जीवन पर्यंत शिशु की रक्षा भगवती भूमि (पृथ्वी) करती हैं।  

   2. दोलारोहण – पर्यंकारोहण:- 

शिशु के जन्म से पूर्व नया (दोला) झूला बनवाया जाता है, जिसमें जन्म के पश्चात् शिशु को माता की गोद से प्रथम बार दोले पर बैठाया जाता है, यही मांगलिक कार्यक्रम दोलारोहण उपांग कर्म कहलाता है।  

इस कार्यक्रम को कब सम्पादित करें ? 

नामकरण संस्कार के दिन, या 22 वें दिन, शुभ मुहूर्त में, शुभ दिन देखकर अपने कुल देवी देवता का पूजन करें तथा दोले (झूला) को सुसज्जित करके भगवान का स्मरण करते हुए मंगल मन्त्र ध्वनि के साथ बालक को बिठाएं। 

   3. गोदुग्धपान:-  

इस क्रिया से पूर्व बालक पूर्णतया माँ के दूध पर ही आश्रित रहता है, परन्तु अब बच्चे को विशेष दूध की भी आवश्यकता होने लगती है, अतः अपने कुलदेवता के पूजन के पश्चात् बालक की माता या कोई सौभाग्यशालिनी स्त्री बच्चे को गोदुग्ध पान कराती है।  

निष्क्रमण संस्कार में ग्राह्य तिथि, वार, नक्षत्र और लग्न :- 

  • शुभ तिथियाँ :- प्रतिपदा (कृ), द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, सप्तमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी (शु.) और पूर्णिमा।  
  • शुभ वार :- सोमवार, बुधवार, गुरुवार, एवं शुक्रवार। 
  • शुभ नक्षत्र :- अश्विनी, मृगशिरा, पुनर्वसु, पुष्य, हस्त, अनुराधा, श्रवण, धनिष्ठा। 
  • शुभ लग्न :- 2, 3, 4, 5, 6, 7, 9, 10 एवं 11  

नोट :- यदि किसी कारणवश घर से बाहर जाना आवश्यक है तो जन्म से 12 वें दिन भी निष्क्रमण संस्कार किया जा सकता है।  

  • यदि तृतीय मास में निष्क्रमण संस्कार हो तो सूर्य दर्शन एवं चतुर्थ मास में निष्क्रमण हो तो चन्द्र दर्शन अवश्य कराना चाहिए।   

इस प्रकार हमारे शास्त्रों में संस्कारों की व्यवस्था की गयी है, क्योंकि संस्कार के बिना मनुष्य संस्कारित नहीं होता है, अतः इस प्रकार संस्कारों के विषय में अधिक जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट वैकुण्ठ पर जायें।  

Vaikunth Blogs

भौतिक उन्नति के साथ भक्ति एवं  निर्वाण प्राप्ति हेतु करें जटायुकृत श्री राम स्तोत्र का पाठ
भौतिक उन्नति के साथ भक्ति एवं निर्वाण प्राप्ति हेतु करें जटायुकृत श्री राम स्तोत्र का पाठ

श्रीमदध्यात्मरामायण के अरण्य काण्ड के अष्टम सर्ग में जटायु जी के द्वारा यह स्तोत्र प्रतिपादित है । भ...

पुंसवन संस्कार का उद्देश्य तथा महत्व
पुंसवन संस्कार का उद्देश्य तथा महत्व

हिन्दू धर्म में संस्कारों की परम्परागत पद्धति के अंतर्गत होने वाले भावी माता-पिता को यह बताया जाता ह...

अपार सम्पत्ति तथा भगवद्भक्ति प्राप्ति हेतु करें भागवत- पुराणान्तर्गत् ध्रुव स्तुति
अपार सम्पत्ति तथा भगवद्भक्ति प्राप्ति हेतु करें भागवत- पुराणान्तर्गत् ध्रुव स्तुति

श्रीमद्भागवत महापुराण के चतुर्थ स्कन्ध के नवम अध्याय में ध्रुव जी के द्वारा श्री भगवत् स्तुति की गयी...

कृष्ण-भक्ति प्राप्ति एवं कृष्ण-प्रेम की जागृति करने का स्तवन, कृष्णाष्टकम्
कृष्ण-भक्ति प्राप्ति एवं कृष्ण-प्रेम की जागृति करने का स्तवन, कृष्णाष्टकम्

यह स्तोत्र भगवान् श्रीकृष्ण को समर्पित है। श्रीकृष्ण भगवान् विष्णु जी के आठवें अवतार हैं | इस स्तोत्...

आर्थिक संकटों को दूर करने तथा सौभाग्य प्राप्ति हेतु करें गणपति स्तोत्र का पाठ
आर्थिक संकटों को दूर करने तथा सौभाग्य प्राप्ति हेतु करें गणपति स्तोत्र का पाठ

।। श्री गणपति स्तोत्र ।।  विघ्नरूप अन्धकार का नाश करने वाले, समस्त संकटों से मुक्ति प्रदान करने व...

जन्म-मृत्यु के भय से निवृत्ति और सर्वविध कल्याण प्राप्ति हेतु करें श्री रामचन्द्राष्टकम्  स्तोत्र का पाठ
जन्म-मृत्यु के भय से निवृत्ति और सर्वविध कल्याण प्राप्ति हेतु करें श्री रामचन्द्राष्टकम् स्तोत्र का पाठ

परमपूज्य अमरदास जी द्वारा विरचित यह स्तोत्र है। जैसा की नाम से ही यह स्पष्ट हो जाता है की इस स्तोत्र...

 +91 |

By clicking on Login, I accept the Terms & Conditions and Privacy Policy

Recovery Account