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निष्क्रमण संस्कार एवं सूर्यावलोकन

संस्कार | Duration : 4 Hours
Price : 12000
About Puja
     निष्क्रमण का अर्थ है शिशु को प्रथम बार घर से बाहर निकालना। आचार्य पारस्कर का कथन है - "चतुर्थे मासि निष्क्रमणिका"। अर्थात् जन्म के चौथे महीने में शिशु का निष्क्रमण संस्कार करना चाहिए।इस संस्कार में विशेषतः सूर्य का दर्शन कराया जाता है।

       आचार्य बृहस्पति का कथन है - "अथ निष्क्रमणं नाम गृहात् प्रथम निर्गम:" अर्थात् निष्क्रमण से पूर्व शिशु को घर के अन्दर ही रखना चाहिए। शिशु का नेत्र और शरीर पूर्णतः सुकोमल होता है,सूर्य के प्रकाश से शरीर और आंखों पर दुष्प्रभाव होता है,सूतिका गृह में भी तेज प्रकाश नहीं होनी चाहिए।जब धीरे धीरे आंखों एवं शरीर में शक्ति का संचार हो जाए तब चौथे महीने में विधि विधान से वैदिक विद्वान् ब्राह्मणों को बुलाकर निष्क्रमण संस्कार उत्कृष्ट रीति से कराना चाहिए। यह संस्कार विधि पूर्वक कराने से इसका प्रभाव अमोघ एवं दीर्घकालिक होता है तथा शास्त्रवचन का परिपालन एवं रक्षण भी होता है। अतः: निष्क्रमण संस्कार शास्त्रविधि से ही होनी चाहिए।

Benefits

निष्क्रमण संस्कार एवं सूर्यावलोकन का माहात्म्य:-

  • निष्क्रमण संस्कार मानसिक और शारीरिक रूप से शिशु में शक्ति का संचार करता है।
  • इस संस्कार में पृथ्वी,सूर्य, चन्द्रमा,आदि देवों का सविधि पूजन होता है जिसके प्रभाव से नेत्र और मन परिपक्व होता है तथा इन देवों की कृपा प्राप्त होती है।
  • संस्कारों को वैदिक रीति द्वारा सम्पन्न करने से उत्तम संस्कारों से शिशु बारम्बार सुसंस्कृत होता है,जो कालान्तर में चरित्र को सुदृढ़ करता है।
  • संस्कारों के प्रभाव से शिशु बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न होता है एवं सर्व प्रकार से उसकी रक्षा होती है।
  • स्वास्थ्य रक्षणपूर्वक आयु की वृद्धि होती है।
Process

निष्क्रमण संस्कार एवं सूर्यावलोकन में होने वाले प्रयोग या विधि-

  1. स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
  2. प्रतिज्ञा सङ्कल्प
  3. गणपति गौरी पूजन
  4. कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
  5. पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
  6. षोडशमातृका पूजन
  7. सप्तघृतमातृका पूजन
  8. आयुष्यमन्त्रपाठ
  9. सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध  (आभ्युदयिकश्राद्ध)
  10. नवग्रह मण्डल पूजन
  11. अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
  12. पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल , वास्तु पुरुष आवाहन एवं, पूजन 
  13. रक्षाविधान आदि
  14. दिशाओं तथा दिग्देवता आदि का स्थापन एवं पूजन
  15. भगवान् सूर्य नारायण  का आवाहन एवं पूजन
  16. सूर्याघ्य दान
  17. प्रथम सूर्यनारायणदर्शन विधि
  18. सूर्यनारायण प्रदक्षिणा विधि
  19.  सूर्यप्रणमाञ्जलि
  20.  भूम्युपवेशन
  21. दोलारोहण(पर्यङ्कारोहण)
Puja Samagri

वैकुण्ठ के द्वारा दी जाने वाली पूजन  सामग्री

  • रोली, कलावा    
  • सिन्दूर, लवङ्ग 
  • इलाइची, सुपारी 
  • हल्दी, अबीर 
  • गुलाल, अभ्रक 
  • गङ्गाजल, गुलाबजल 
  • इत्र, शहद 
  • धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई 
  • यज्ञोपवीत, पीला सरसों 
  • देशी घी, कपूर 
  • माचिस, जौ 
  • दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा 
  • सफेद चन्दन, लाल चन्दन 
  • अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला 
  • चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का 
  • पानी वाला नारियल, सप्तमृत्तिका 
  • सप्तधान्य, सर्वोषधि 
  • पञ्चरत्न, मिश्री 
  • पीला कपड़ा सूती, तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित  
  • पंचगव्य गोघृत, गोमूत्र

हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र :-

  • काला तिल 
  • जौ,चावल 
  •  कमलगट्टा, पंचमेवा 
  •  हवन सामग्री, घी,गुग्गुल
  • गुड़ (बूरा या शक्कर) ,गड़ी गोला 
  •  पान पत्ता, बलिदान हेतु पापड़
  • काला उडद 
  • पूर्णपात्र -कटोरी या भगोनी
  • प्रोक्षणी, प्रणीता, स्रुवा, शुचि, स्फय - एक सेट
  • हवन कुण्ड ताम्र का 10/10  इंच या 12/12 इंच 
  • कलश रखने के लिए मिट्टी का पात्र
  •  पिसा हुआ चन्दन 
  • नवग्रह समिधा
  •  हवन समिधा 
  •  घृत पात्र
  • कुशा
  • पंच पात्र

यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-

  • वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का - 1
  • गाय का दूध - 100ML
  • दही - 50ML
  • मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार 
  • फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
  • दूर्वादल (घास ) - 1मुठ 
  • पान का पत्ता - 11
  • पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg
  • पुष्पमाला - 7 ( विभिन्न प्रकार का)
  • आम का पल्लव - 2
  • विल्वपत्र - 21
  • तुलसी पत्र -7
  • शमी पत्र एवं पुष्प 
  •  थाली - 2 , कटोरी - 5 ,लोटा - 2 , चम्मच - 2 आदि 
  • अखण्ड दीपक -1
  • देवताओं के लिए वस्त्र -  गमछा , धोती  आदि 
  • बैठने हेतु दरी,चादर,आसन 
  • गोदुग्ध,गोदधि,गोबर

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