सर्व कामना सिद्धि हेतु करें "वरूथिनी एकादशी" का व्रत

सर्व कामना सिद्धि हेतु करें "वरूथिनी एकादशी" का व्रत

वैशाख माह के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को “वरूथिनी एकादशी” कहते हैं। इस एकादशी को सबसे शुभ और फलदाई माना गया है। भविष्यपुराण के अनुसार, वरूथिनी एकादशी का व्रत करने से मनुष्य के समस्त पापों का क्षय (नाश) हो जाता है तथा उसे सौभाग्य की प्राप्ति होती है। 

हिंदू धार्मिक शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति वरूथिनी एकादशी व्रत का पालन पूरे मन एवं श्रद्धा से करता है उसे वैकुण्ठलोक की प्राप्ति होती है। सम्पूर्ण विधि-विधान से वरूथिनी एकादशी को किया गया व्रत प्राणियों के समस्त पापों को नष्ट करता है तथा उस साधक के परिवारीजनों के भी कष्टों का निवारण होता है। वरूथिनी एकादशी के दिन भगवान् विष्णु के वामन अवतार की आराधना की जाती है।

व्रतराज में वर्णित है कि -

       वरूथिन्या व्रतेनैव सौख्यं भवति सर्वदा।
       पापहानिश्च भवति सौभाग्यप्राप्तिरेव च।।

अर्थात्- वरूथिनी एकादशी का उपवास करने वाले उपासक को सदैव सौख्य (सुख) की प्राप्ति होती है तथा समस्त पापों का नाश और सौभाग्य में वृद्धि होती है।
जो साधक वरूथिनी एकादशी का व्रत रखता है उसे अनेक बाधाओं से सुरक्षा प्राप्त होती है।

वरूथिनी एकादशी 2024  व्रत का दिन और समय तथा व्रत पारण का मुहूर्त :- 

हृषीकेश पञ्चांग के अनुसार वरूथिनी एकादशी-

  • 03 मई 2024 शुक्रवार रात्रि 8 बजकर 4 मिनट से प्रारंभ 
  • 04 मई 2024 शनिवार सांय 5 बजकर 37 मिनट तक ‌  

वरूथिनी एकादशी व्रत का पारण :-

  • 05 मई 2024 रविवार को सुबह 05:54 से मध्याह्न तक द्वादशी में करें ।

वरुथिनी एकादशी व्रत कथा (Varuthani Ekadashi Vrat Katha)

प्राचीन काल में मांधाता नामक एक राजा नर्मदा नदी के तट पर राज करता था। वह अत्यंत दानी व तपस्वी था। राजा हमेशा धार्मिक कार्यों और पूजा-पाठ में लीन रहता था । एक बार जब राजा वन में तपस्या कर रहा था उसी समय न जाने कहाँ  से एक जंगली भालू आ गया  और राजा के पैर को चबाने लगा । परन्तु भालू के आने पर राजा नहीं घबराया और अपनी तपस्या में लीन रहा लेकिन भालू राजा के पैर को चबाते हुए घसीटकर ले जाने लगा । तब राजा ने तपस्या धर्म का पालन करते हुए बिना क्रोध किए अपनी रक्षा के लिए भगवान् विष्णु से प्रार्थना की । उसकी प्रार्थना सुनकर भगवान् विष्णु वहां प्रकट हुए और अपने चक्र से भालू का वध करके राजा को जीवन दान दिया ।

राजा के पैर को भालू पहले ही खा चुका था और यह देखकर उसे अत्यंत पीड़ा हुई । राजा अपने पैर की हालत देखकर अत्यंत दु:खी हो गया। अपने दु:खी भक्त को देखकर भगवान् विष्णु बोले ' हे वत्स ! तुम शोक मत करो, मथुरा जाओ और वरूथिनी एकादशी का व्रत रखकर मेरी वराह अवतार मूर्ति की पूजा करो । व्रत के प्रभाव से तुम फिर से सम्पूर्ण अंगों वाले हो जाओगे। भालू के द्वारा तुम्हारे पैर का नष्ट हो जाना तुम्हारे पूर्व जन्म के दुष्कर्म की सजा थी । भगवान विष्णु की आज्ञा मानकर राजा मांधाता ने मथुरा जाकर पूरे श्रद्धाभाव और लगन से वरूथिनी एकादशी का व्रत किया । व्रत के प्रभाव से राजा शीघ्र ही पुनः सम्पूर्ण अंगों वाला हो गया।

वरूथिनी एकादशी 2024 व्रत विधि  (Rituals of Varuthani Ekadashi Vrat 2024) 

  • दशमी के दिन यानी एकादशी से एक दिन पूर्व सूर्यास्त के पश्चात् भोजन ग्रहण ना करें।
  • वरूथिनी एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर ले एवं स्वच्छ वस्त्रों को धारण करें।
  • इसके बाद भगवान विष्णु अथवा लड्डू गोपाल को स्नान करवाएं एवं उन्हें स्वच्छ वस्त्र धारण करायें । 
  • ठाकुर जी के आसन को  को गंगाजल छिड़क कर शुद्ध करें ।
  • इसके बाद भगवान् विष्णु या लड्डू गोपाल की पूजा करें।
  • भगवान् विष्णु या लड्डू गोपाल को गंध,अक्षत, पुष्प और तुलसी अर्पित करें।
  • व्रत के दिन भगवान् को भोग लगाएं।
  • सायंकाल के समय भगवान् को भोग लगायें तथा आरती करें । 
  • अगले दिन सुबह स्नान करके पूजा करें और यदि संभव हो तो किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं।

वरुथिनी एकादशी व्रत के दिन ध्यान रखने योग्य बातें :- 

  • स्कन्धपुराण के अनुसार केले के वृक्ष में भगवान् विष्णु का वास होता है इसलिए वरूथिनी एकादशी के दिन केले के वृक्ष पर जल चढ़ाना शुभ माना गया है।
  • वरूथिनी एकादशी के दिन भगवान् विष्णु को पीला फल, तथा पीले रंग की मिठाई का भोग लगायें ।
  • एकादशी के दिन भगवान् विष्णु के साथ-साथ मां लक्ष्मी की पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि एवं धन का आगमन होता है।
  • व्रत में कम से कम बातचीत करें।
  • लहसुन,प्याज का घर में परित्याग करें।

वरुथिनी एकादशी के दिन शंख में जल भरकर छिड़काव करें, इससे आपके घर की नकारात्मक एनर्जी दूर होती है. साथ ही साथ घर में पॉजिटिव एनर्जी (सकारात्मकता) आती है।

इन चीजों का कर सकते हैं सेवन :-

  • एकादशी के व्रत वाले दिन आप कुटू का आटा , आलू , नारियल और शकरकंद खा सकते हैं। इसके साथ ही आप दूध, बादाम, आदि का भी सेवन कर सकते हैं। 
  • भोजन में सेंधा नमक का ही प्रयोग करें ।

इन चीजों का न करें सेवन :- 

  • एकादशी के दिन लहसुन, प्याज और मसूर दाल का सेवन नहीं करना चाहिए। 
  • एकादशी के दिन चावल खाना वर्जित है । 
  • इस दिन साधारण नमक का प्रयोग नहीं करना चाहिए। 
  • इस एकादशी के दिन गोभी, पालक, शलजम, गाजर आदि भी खाना वर्जित है ।

वरूथिनी एकादशी व्रत का माहात्म्य :- 

भविष्य पुराण‌ में वर्णित वरूथिनी एकादशी का महत्व :- 

       वरूथिन्या व्रते- नैव सौख्यं भवति सर्वदा ।
       पापहानिश्च भवति सौभाग्यप्राप्तिरेव च ।।

वरूथिनी एकादशी को उपवास करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है तथा समस्त पापों का शमन होता है।

       दुर्भगा या करोत्येनां सा स्त्री सौभाग्यमाप्नुयात् । 
       लोकानां चैव सर्वेषां भुक्तिमुक्तिप्रदायिनी।। 

दुर्भगा स्त्री (वह स्त्री जो अपने पति के स्नेह से वंचित हो) इस व्रत को करती है तो‌ उसे‌ सौभाग्य की प्राप्ति होती है, यह एकादशी व्रत सभी‌ उपासकों को भोग और‌ मुक्ति प्रदान करता है।

       “सर्वपापहरा नृणां गर्भवासनिकृन्तनी”।

समस्त‌ पापों का शमन होता है तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है।

       दशवर्षसहस्राणि तपस्तप्यति यो नरः ।
       तत्तुल्यं फलमाप्नोति वरूथिन्या व्रतादपि।।

 इस एकादशी को उपवास करने से दश हजार‌ वर्ष तप करने के‌ सदृश फल की प्राप्ति होती है।

       कुरुक्षेत्रे रविग्रहे स्वर्णभारं ददाति यः ।
       तत्तुल्यं फलमाप्नोति वरूथिन्या व्रतान्नरः।।

जो फल सूर्य ग्रहण के समय कुरुक्षेत्र में स्वर्ण दान करने से प्राप्त होता है वह फल इस एकादशी व्रत को करने से प्राप्त हो जाता है ।

       श्रद्धावान्यस्तु कुरुते वरूथिन्या व्रतं नरः ।
       वाञ्छितं लभते सोपि इह लोके परत्र च ।।

जो साधक श्रद्धापूर्वक इस व्रत को करता है उस साधक को इहलोक और परलोक उभयत्र  मनोवाञ्छित फल की प्राप्ति होती है।

  • महापातकों का नाश और एक हजार गौ दान का पुण्य प्राप्त होता है।

इस प्रकार वैशाख माह के कृष्णपक्ष की “वरूथिनी एकादशी” सभी प्रकार के मनोभिलाषित मनोरथों को पूर्ण कर साधक को मुक्ति प्रदान करती है । 

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