सर्वपापों से मुक्ति तथा चैतन्यता की जागृति हेतु करें योगिनी एकादशी व्रत

सर्वपापों से मुक्ति तथा चैतन्यता की जागृति हेतु करें योगिनी एकादशी व्रत

।। योगिनी एकादशी व्रत ।।

सनातन धर्म में आस्था रखने वाले साधकों के लिए प्रत्येक माह में आने वाली कृष्ण और शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का महत्व अधिक है । पौराणिक ग्रन्थों में भी प्रत्येक एकादशी का अपना अलग महत्व बताया गया है । इन्हीं विशेषताओं के कारण इनके नाम भी भिन्न-भिन्न रखे गये हैं । वर्षभर में कुल मिलाकर चौबीस एकादशीयां होती हैं । मलमास की एकादशीयों को मिलाकर इनकी संख्या 26 हो जाती है । इन्हीं एकादशीयों में एक एकादशी का व्रत ऐसा भी है जिसके करने से समस्त पाप तो नष्ट होते ही हैं साथ ही इस लोक में भोग और परलोक मुक्ति भी इस एकादशी का उपवास रखने से मिलती है । यह है आषाढ़ मास के कृष्णपक्ष की एकादशी जिसे योगिनी एकादशी कहा जाता है । इस एकादशी का वर्णन *श्रीब्रह्मवैवर्त पुराण* में किया गया है ।

ब्रह्मवैवर्तपुराण में वर्णित योगिनी एकादशी का महात्म्य :

अष्टाशीतिसहस्राणि द्विजान् भोजयते तु यः ।
तत्फलं समवाप्नोति योगिनीव्रतकृन्नरः ।।
 महापाप- प्रशमनी महापुण्यफलप्रदा ।

अस्सी हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने से जो फल प्राप्त होता है वही फल इस योगिनी एकादशी के व्रत को करने से प्राप्त होता है । बड़े-बड़े पापों का नाश करने वाली और बड़ा पुण्य प्रदान करने वाली यह एकादशी है । 

योगिनी एकादशी सन् 2024 में व्रत का दिन समय तथा व्रत पारण का शुभ मुहूर्त :

हृषीकेश पञ्चांग के अनुसार :

  • 2 जुलाई को एकादशी का व्रत है ।  (गृहस्थ और वैष्णव)
  • व्रत का पारण 3 जुलाई को प्रातः 6:41 तक पारण करें । 

( यदि प्रातः इस समय तक पारण के निमित्त भोजन निर्माण न हुआ हो तो तुलसी दल और गंगाजल ग्रहण करके व्रत का पारण करें ) । 

श्री ब्रह्मवैवर्तपुराण में वर्णित योगिनी एकादशी की व्रत कथा :

धर्मराज युधिष्ठिर बोले - हे जनार्दन ! अब आप कृपा करके मुझे आषाढ़ माह के कृष्णपक्ष की एकादशी का नाम तथा माहात्म्य क्या है?  सब वर्णन कीजिये । भगवान् श्रीकृष्ण बोले - हे राजन् ! आषाढ़  माह के कृष्णपक्ष की एकादशी का नाम योगिनी एकादशी है । इस एकादशी का व्रत करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं तथा यह एकादशी व्रत इस लोक में भोग तथा परलोक में मुक्ति प्रदान करने वाला है । हे राज राजेश्वर ! यह एकादशी तीनों लोकों में प्रसिद्ध है । मैं आपसे श्रीब्रह्मवैवर्तपुराण में बतायी हुई एक कथा कहता हूँ उसे आप ध्यानपूर्वक सुनिये - 

अलकापुरी नाम की नगरी में एक कुबेर नामक राजा राज्य करता था । वह शिवभक्त था । उसकी पूजा के लिये एक माली पुष्प लाया करता था । उसके विशालाक्षा नाम की अत्यन्त सुन्दर स्त्री थी । एक दिन वह मानसरोवर से पुष्प ले आया परन्तु कामासक्त होने के कारण पुष्पों को रखकर स्त्री के साथ रमण करने लगा और दोपहर तक नहीं आया । जब राजा कुबेर को उसकी राह देखते-देखते दोपहर हो गयी तो उसने क्रोधपूर्वक अपने सेवकों को आज्ञा दी कि तुम लोग जाकर हेममाली का पता लगाओ कि वह अभी तक पुष्प चुनकर क्यों नहीं लाया ?  राजा कुबेर की आज्ञा पाकर सभी यक्ष सेवक  हेममाली को तलाशने के लिए निकल गए और जब यक्षों ने उसका पता किया तो वे कुबेर के पास आये और कहने लगे - हे राजन् ! वह माली अभी तक अपनी पत्नी के साथ रमण कर रहा है । यक्षों की यह बात सुनकर राजा कुबेर ने हेममाली को बुलाने की आज्ञा दी । हेममाली राजा कुबेर के सम्मुख डर से कंपकंपाता हुआ उपस्थित हुआ और प्रणाम किया । हेममाली को देखकर राजा कुबेर को क्रोध आ गया । राजा कुबेर ने कहा- हे पापी ! महानीच, कामी ! तूने मेरे पूजनीय ईश्वरों के भी ईश्वर शिवजी का अनादर किया है । इसलिये मैं तुझे श्राप देता हूँ कि जिस स्त्री से तु प्राणों से भी अधिक प्रेम करता है तू उस स्त्री का वियोग प्राप्त करेगा और मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी होगा ।

कुबेर के श्राप के प्रभाव से वह उसी क्षण स्वर्गलोक से पृथ्वी पर जा गिरा और कोढ़ी हो गया । उसकी स्त्री भी उसी समय अन्तर्ध्यान हो गयी । मृत्युलोक में जाकर उसने महान् दुःख भोगे । परंतु शिवजी की भक्ति के प्रभाव से उसकी बुद्धि मलीन न हुई । वह हिमाचल पर्वत की ओर चल दिया । वहाँ पर चलते-चलते वह मार्कंडेय ऋषि के आश्रम पहुँचा । वह ऋषि अत्यन्त वृद्ध तथा तपशाली थे । उनको देखकर वह हेममाली वहाँ गया और उनको प्रणाम करके उनके चरणों में गिर पड़ा ।

इस प्रकार हेममाली को देखकर मार्कण्डेय ऋषि बोले - कि तूने कौन से पापकर्म किये हैं जिससे तू कोढ़ी हुआ और महान् दुःख भोग रहा है । ऋषि के द्वारा इस प्रकार पूछे जाने पर हेममाली बोला - हे मुनि ! मैं यक्षराज कुबेर का सेवक हूँ । मैं राजा कुबेर की पूजा के लिये नित्य प्रति पुष्प चुनकर लाया करता था । एक दिन अपनी पत्नी के साथ बिहार करते-करते मुझे विलम्ब हो गया और दोपहर तक पुष्प लेकर नहीं पहुँच सका तो राजा कुबेर ने मुझे श्राप दे दिया कि जिस पत्नी की वजह से तु अपनी नित्य पुष्पसेवा को भूल गया उसी पत्नी से तू वियोग भोगेगा  और मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी बनेगा तथा अत्यन्त कष्ट प्राप्त करेगा । जिस कारण मैं कोढ़ी हो गया हूँ और महान् दुःखभोग रहा हूँ । अतः आप मुझे कोई ऐसा उपाय बतलाइये जिससे मेरी इस मृत्यु रूपी कष्ट से मुक्ति हो जाये ।

इस पर मार्कण्डेय ऋषि बोले कि हे बालक ! तूने मेरे सम्मुख सत्य वचन कहे हैं इसलिये मैं तेरे उद्धार के लिये तुझे एक व्रत बताता हूँ । 

यदि तुम आषाढ़ माह के कृष्णपक्ष की “योगिनी नामक एकादशी का विधि पूर्वक व्रत करेगा तो तेरे समस्त पाप नष्ट हो जायेंगे और समस्त कष्टों से तेरी निवृत्ति होगी । इस प्रकार ऋषि के वचन सुनकर हेममाली बहुत प्रसन्न हुआ और उसने ऋषिवचनों के अनुसार योगिनी एकादशी का विधिपूर्वक व्रत किया । इस व्रत के प्रभाव से वह हेममाली पुनः अपने पुराने स्वरूप में आ गया और अपनी स्त्री के साथ विहार करने लगा ।

हे राजन ! इस योगिनी एकादशी की कथा का फल अट्ठासी हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर है । इस एकादशी के व्रत से समस्त पाप दूर हो जाते हैं और अन्त में साधक को स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है ।

कथासार

मनुष्य को पूजा आदि धर्म कार्यों में आलस्य या प्रमाद नहीं करना चाहिए अपितु मन को संयमित करके सदैव ईश्वर की सेवा में तत्पर रहना चाहिए । इस कलियुग में कोढ़ जैसे रोग से मुक्ति पाने के लिए मनुष्य को योगिनी एकादशी का व्रत श्रद्धापूर्वक करना चाहिए ।

योगिनी एकादशी व्रत में ध्यान रखें ये बातें :

  • योगिनी एकादशी व्रत के दिन तामसिक भोजन ग्रहण न करें ।
  • अधिक वार्ता न करें और यदि संभव हो तो मौन (शान्त) रहने का प्रयास करें ।
  • व्रत के दिन शयन वर्जित है ।
  • ब्रह्मचर्य का पूर्ण पालन करें ।
  • ( मिथ्या ) झूठ न बोलें,  किसी पर क्रोध और किसी से विवाद न करें ।
  • “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” इस मंत्र का जप करें ।
  • रात्रि में भगवान् विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा-अर्चना यथाशक्ति के अनुसार करें ।

श्री ब्रह्मवैवर्त पुराण में वर्णित योगिनी एकादशी व्रत का माहात्म्य :

  • समस्त पापों का नाश करने वाला तथा उपासक को सभी प्रकार के भौतिक पदार्थों को प्राप्त करने वाला यह उत्तम व्रत है ।
  • इस व्रत के प्रभाव से उत्तम संतान की प्राप्ति  है ।
  • अस्सी हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने से जो फल मिलता है वही फल इस योगिनी एकादशी का व्रत करने से मिलता है।
  • इस एकादशी को किया गया उपवास कोढ़ आदि रोगों से मुक्ति दिलाता है ।

अतः सर्वविध यह योगिनी एकादशी का व्रत मनुष्य का सर्वतया कल्याण करने वाला है तथा साधक को ज्ञात-अज्ञातवश हुए समस्त पापों से मुक्ति प्रदान करने वाला है । श्रीब्रह्मवैवर्त पुराण के अन्तर्गत् आने वाली योगिनी एकादशी का वर्णन सम्पूर्ण हुआ । 

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